आप क्या कहते हैं?
कई बार कोई पोस्ट पढ़ते पढ़ते मन में हजारों सवाल उठने लगते हैं या कई यादें ताजा हो जाती हैं टिप्पणीई में अगर सब लिखने लगें तो पूरी पोस्ट ही वहां बन जाये। ऐसा ही कुछ आज मेरे साथ हुआ।
आज प्रवीण पांडे जी की पोस्ट पढ़ी, ' लिखना नहीं दिखना बंद हो गया था' http://praveenpandeypp.blogspot.in/2012/05/blog-post_30.html
पोस्ट पढ़ते ही कई सवाल घुमड़ रहे हैं मन में और जवाब तो आप लोगों से ही मिल पायेगें। तो बताइये
1) क्या आप के भी ब्लॉग के ऐसे सक्रिय पाठक है जो खुद ब्लॉगर नहीं है पर आप के लिखे का इंतजार रहता है उन्हें?
2) क्या ये पाठक जन सिर्फ़ पढ़ते ही हैं या टिपियाते भी हैं? अगर नहीं टिपियाते तो आप को कैसे पता चलता है कि वो आप के पाठक हैं?
3) क्या ये पाठक आप के लिये पहले अजनबी थे या आप के अपने परिवेश में से ही हैं, जैसे आप के दोस्त, रिश्तेदार, सहकर्मी, बॉस, इत्यादी?
4) ऐसे पाठकों के प्रति आप उतने ही सहज रह पाते हैं जितने ब्लॉगर बिरादरी के पाठकों के प्रति?
5) क्या पोस्ट लिखते समय आप इस बात का ख्याल रखते हैं कि ये पाठक आप का लिखा पढ़ने वाले हैं और हो सकता है कल दफ़तर में ही मौखिक या टेलिफ़ोन पर ही टिपिया रहे हों?
6) कहीं इस एहसास से आप के लेखन में कमी या कृतिमता तो नहीं आयी?
बस यूँ ही ये सवाल उठ खड़े हुए मन में सो पूछ लिये। आप के जवाब का इंतजार रहेगा
28 comments:
1) क्या आप के भी ब्लॉग के ऐसे सक्रिय पाठक है जो खुद ब्लॉगर नहीं है पर आप के लिखे का इंतजार रहता है उन्हें?
ऐसे पाठक तो हैं , लेकिन सक्रिय नहीं कह सकता , मेरे फ़ेसबुक पर बहुत से सहकर्मी मित्र हैं जिन्हें ब्लॉग का मतलब भी नहीं पता वे इसे साईट समझते हैं , उनके लिए अंतर्जाल पर हिंदी ही एक अजूबा है । न उन्हें ये इंतज़ार कतई नहीं रहता होगा ऐसा मेरा अंदाज़ा है ।
2) क्या ये पाठक जन सिर्फ़ पढ़ते ही हैं या टिपियाते भी हैं? अगर नहीं टिपियाते तो आप को कैसे पता चलता है कि वो आप के पाठक हैं?
नहीं शायद ही कभी टिपियाया हो , क्योंकि उन्हें टिप्पणी करना भी नहीं आता होगा हां कभी एक आध बार किसी ने कोशिश की जरूर है क्योंकि अगले दिन कार्यालय में पूछा था इस बाबत
3) क्या ये पाठक आप के लिये पहले अजनबी थे या आप के अपने परिवेश में से ही हैं, जैसे आप के दोस्त, रिश्तेदार, सहकर्मी, बॉस, इत्यादी?
हर नया पाठक पहले अजनबी ही होता है और कई तो बहुत दिनों तक अजनबी ही रहते हैं , यानि विशुद्ध पाठक
4) ऐसे पाठकों के प्रति आप उतने ही सहज रह पाते हैं जितने ब्लॉगर बिरादरी के पाठकों के प्रति?
लिखते समय शायद ही कभी इस नज़रिए से सोचा हो
5) क्या पोस्ट लिखते समय आप इस बात का ख्याल रखते हैं कि ये पाठक आप का लिखा पढ़ने वाले हैं और हो सकता है कल दफ़तर में ही मौखिक या टेलिफ़ोन पर ही टिपिया रहे हों?
नहीं कम से कम मेरे यहां तो इसकी संभावना बहुत कम ही है
6) कहीं इस एहसास से आप के लेखन में कमी या कृतिमता तो नहीं आयी?
शायद नहीं , हां ब्लॉगरों का आपस में परिचित होना , एक दूसरे को जानना जरूर कुछ न कुछ तो प्रभावित करता ही है किसी विशेष पोस्ट पर खासकर ब्लॉगिंग से जुडी किसी पोस्ट पर
आपके प्रश्नों का ईमानदारी से उत्तर देने की कोशिश की है । विमर्श को उठाने के लिए शुक्रिया आपका
अजय जी धन्यवाद्…आशा है बाकी मित्र भी जल्द कुछ न कुछ कहेगें और कुछ नयी जानकारी हाथ लगे…:)
कई लोगों ने जब बताया कि वे मुझे नियमित पढ़ रहे हैं तो सबसे पहला विचार यह आया कि कहीं ऐसा कुछ तो नहीं लिख बैठे हैं जो इन्हें अटपटा लगे। टिप्पणी के संवाद से सचेत हो जाते हैं पर पाठकों के लिये तो सच में सोचना पड़ता है।
1. हमारे बहुत से पाठक हैं। वे अक्सर कहते हैं कि वे हमारा ब्लॉग पढ़ते हैं। एकाध ने तो खुलेआम कहा भी कि- आप कविता बहुत अच्छी लिखते हैं। :)
एकाध मित्र ऐसे भी हैं जिनको मैं जानता भी नहीं हूं लेकिन उन्होंने मुझे फ़ोन करके लिखने के लिये कहा।
2. कुछ दोस्त ऐसे भी हैं जो सिर्फ़ पढ़ते हैं। टिपियाते नहीं। बता देते हैं।
3. हां जानपहचान तो बाद में बनी फ़िर।
4. लिखते समय कुछ नहीं सोचते। हां यह होता है कि कुछ लिखा तो याद आता है कि इसे वो पढेंगे तो क्या प्रतिक्रिया होगी। क्या कहेंगे! संभावित टिप्पणी सोचकर हंसी भी आ जाती है।
5. हां सहज ही रहते हैं।
6. अब ये तो पढ़ने वाले बता सकते हैं। :)
हमें भी आपने अपने मन का काफी कुछ कहने का अवसर दे दिया...
1.मेरी कहानियों के कई पाठक हैं...जो ब्लॉगर नहीं हैं..पर कहानी की किस्त की देरी होने पर मेल से शिकायत करते हैं या फेसबुक पर मेसेज करते हैं.
2. कुछ लोग कभी-कभार टिपिया देते हैं...कुछ तो कभी भी नहीं टिपियाते..हैं..पर मेल करते हैं..जिस से पता चलता है.
3. ज्यादातर अजनबी लोग ही हैं..पर कुछ रिश्तेदार भी हैं....जो परिवार में नए शामिल हुए हैं...उनसे मिली भी नहीं हूँ..पर वे मुझे मेरे ब्लॉग के थ्रू जानते हैं.
4. ज्यादा सहज :)
5. पोस्ट लिखते समय सिर्फ और सिर्फ अपने मन की लिखते हैं.
6. अभी तक तो नहीं आई है..:)
पांडे जी की पोस्ट अपन ने भी पढ़ी लेकिन जिस तरह से उसे एक विमर्श में तब्दील कर दिया वह बढ़िया है।
1- हां है ऐसे पाठक जो खुद ब्लॉगर नहीं हैं।
2-ऐसे पाठक शायद ही कभी टिपियाते हों, हां, ईमेल एक माध्यम है, जिससे वे अपने पाठक होने का एहसास कराते हैं।
3- ऐसे पाठक पहचान के भी थे तो नितांत अजनबी और दूर देश में बैठे भी थे।
4-पाठक चाहे ब्लॉग बिरादरी का हो या जैसा आप कह रहीं हैं वैसा, सहजता बनी ही रहती है।
5-यह ख्याल नहीं आया।
6-लेखन में कोई बदलाव नहीं।
बड़े मुश्किल सवाल है फिर भी... फ़ीडजिट विजेट के कारण पता लगता है कि कई ऐसे पाठक हैं जो नियमित आते हैं भले ही ब्लॉग पर प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते. आमतौर से ब्लॉगर ही ब्लॉग पर प्रतिक्रिया दर्ज़ करते हैं. और ये आप पर ही निर्भर करता है कि आप किन लोगों से कितना मिलना-जुलना चाहते हैं. कामकाज़ और ब्लॉग अलग-थ्ालग ही रहते हैं.
1 . हाँ!...जी... हाँ.. ऐसे पाठक हैं.. और उन्हें लिखे का इंतज़ार भी रहता है..
2. अब चूंकि मैंने कमेन्ट ऑप्शन ही बंद कर के रखा हुआ है तो टिपियाने का सवाल ही नहीं उठता... और जिनसे मुझे वीऊ चाहिए होते हैं उन्हें मैं मेल कर पूछ लेता हूँ.. नहीं तो यहाँ बहुत कम ऐसे लोग हैं.. जो पोस्ट पढ़ कर और समझ कर टिप्पणी करते हैं... फिर भी मुझे मालूम है कि मेरे बहुत सारे पाठक हैं.. जब टिप्पणी का ऑप्शन खुला था तो दो-ढाई सौ कमेन्ट आते थे.. पर अब बंद है. अब लोगों के वेयूज़ लेकर क्या करूँगा... लोगों को हमारे मेंटल लेवल पर आकर कमेन्ट करना होगा जो कि मुश्किल ही लगता है..
3. मोस्टली अजनबी थे.. पर अब रिश्तों से बढ़कर हो गए हैं..
4. हाँ.. हाँ.. सहज रह लेते हैं..
5. हाँ.. इस बात का हम पूरा ख्याल रखते हैं..
6. नहीं नहीं..बिलकुल नहीं आई है.. हम तो फ्लो में लिखते ही हैं.. ऐसे कोई आरटीफिशीयलिटी नहीं आई है..
1) जी हाँ! ऐसे सक्रिय पाठक है जो खुद ब्लॉगर नहीं है पर लिखे का इंतजार रहता है उन्हें
2) पढ़ते भी हैं, टिपियाते भी हैं. टिपियाते नहीं तो तकनीक बता देती है कि कितने पाठक हैं
3) मेरे पाठकों में मेरे बच्चे, बच्चों के दोस्त, रिश्तेदार, सहकर्मी, बॉस, अजनबी आदि हैं
4) बिलकुल! ऐसे पाठकों के प्रति उतने ही सहज रह पाते हैं जितने ब्लॉगर बिरादरी के पाठकों के प्रति. क्योंकि ना तो लेखन में फूहड़ता रहती है और ना ही गूढ़ विषय या शब्दावली
5) जी हाँ, पोस्ट लिखते समय इस बात का ख्याल रखते हैं कि ये पाठक पढ़ने वाले हैं
6) ना, बिलकुल नहीं. बल्कि इस एहसास से लेखन को रूचिकर बंनाने और सटीकत तथ्यों तर्कों की संभावना बढ़ जाती है
आप सभी मित्रों की बहुत आभारी हूँ
हमारा इण्टर भ्यू ले रही हैं ?
तब क्या? आप प्लीज जवाब दीजिए न
1. जी हां। कई पाठक हैं।
2. ये पाठक सामान्यत: पढ़ते हैं। टिप्पणी कम ही करते हैं। कभी अन्य माध्यमों से प्रतिक्रिया मिलने से पता चलता है कि वे पढ़ते हैं।
3. अधिकांश अजनबी थे। कुछ जानपहचान के थे तो उनसे अपेक्षा नहीं थी कि वे पढ़ते होंगे! :-)
4. जी हां, पूर्णत: सहज!
5. नहीं, लिखते समय उन्हे खास कर ध्यान में नहीं रखा जाता!
6. लगता तो नहीं! :)
1) क्या आप के भी ब्लॉग के ऐसे सक्रिय पाठक है जो खुद ब्लॉगर नहीं है पर आप के लिखे का इंतजार रहता है उन्हें?
पहले पाठक था. अब ब्लोगर भी हूं.
2) क्या ये पाठक जन सिर्फ़ पढ़ते ही हैं या टिपियाते भी हैं? अगर नहीं टिपियाते तो आप को कैसे पता चलता है कि वो आप के पाठक हैं?
ब्लॉग ट्रैफिक दिखता है. मेरे ब्लॉग पर औसतन १५० हिट्स होते हैं.
3) क्या ये पाठक आप के लिये पहले अजनबी थे या आप के अपने परिवेश में से ही हैं, जैसे आप के दोस्त, रिश्तेदार, सहकर्मी, बॉस, इत्यादी?
अजनबी थे प्रारंभ में
4) ऐसे पाठकों के प्रति आप उतने ही सहज रह पाते हैं जितने ब्लॉगर बिरादरी के पाठकों के प्रति?
लिखता तो स्वयं के लिए
5) क्या पोस्ट लिखते समय आप इस बात का ख्याल रखते हैं कि ये पाठक आप का लिखा पढ़ने वाले हैं और हो सकता है कल दफ़तर में ही मौखिक या टेलिफ़ोन पर ही टिपिया रहे हों?
लिखता तो स्वयं के लिए
6) कहीं इस एहसास से आप के लेखन में कमी या कृतिमता तो नहीं आयी?
लिखता तो स्वयं के लिए
मैं भी आपके उन्हीं पाठकों में से हूँ यह मेरे लिए अद्भुत है कि मैं आपको जानता हँ आपके लिखे से बहुत कुछ परिचित हूँ और आपको नियमित पढ़ता हूँ कमेंट पहली बार कर रहा हूँ शायद इससे मेरी पाठक के रूप में निजता खत्म हो गई लेकिन अपने प्रिय लेखकों को यह बताना भी जरूरी होता है कि आपके पाठक आपको नियमित रूप से पढ़ रहे हैं।
सोचकर लिखा गया कुछ भी मन को नहीं छूता , न झकझोरता है . पढ़ते हैं , जो भावों को जीते हैं , बेहतरीन टिप्पणी से मन को, लिखे को तृप्ति मिलती है - पर जो अनुसरण करते हैं वे पढ़ते हैं समय मिलने पर .... वैसे सुखद है खुद को खुद की नज़र से बार बार पढ़ना , तभी हम दूसरे की नज़र में प्रतीक्षा बनते हैं .
धन्यवाद शुभी जी आप का स्वागत है
हम पोस्टों को आंकते नहीं , बांटते भर हैं , सो आज भी बांटी हैं कुछ पोस्टें , एक आपकी भी है , लिंक पर चटका लगा दें आप पहुंच जाएंगे , आज की बुलेटिन पोस्ट पर
http://bulletinofblog.blogspot.in/2012/06/4.html
1) क्या आप के भी ब्लॉग के ऐसे सक्रिय पाठक है जो खुद ब्लॉगर नहीं है पर आप के लिखे का इंतजार रहता है उन्हें?
haan hain na kuchh karib 5-6 log aise jo facbook/orkut ke karan jude aur ab hame bhi unke comments ka intzaar rahta hai...
2) क्या ये पाठक जन सिर्फ़ पढ़ते ही हैं या टिपियाते भी हैं? अगर नहीं टिपियाते तो आप को कैसे पता चलता है कि वो आप के पाठक हैं?
kabhi kabhi unke layak post nahi hota hai , to sirf chat box pe kah jate hain .... Mukessh baat kuchh jami nahi....
3) क्या ये पाठक आप के लिये पहले अजनबी थे या आप के अपने परिवेश में से ही हैं, जैसे आप के दोस्त, रिश्तेदार, सहकर्मी, बॉस, इत्यादी?
अजनबी थे प्रारंभ में par ab reeshtedaro se bhi jayda najdikk
4) ऐसे पाठकों के प्रति आप उतने ही सहज रह पाते हैं जितने ब्लॉगर बिरादरी के पाठकों के प्रति?
sahajta to dono ke prati hoti hai...
5) क्या पोस्ट लिखते समय आप इस बात का ख्याल रखते हैं कि ये पाठक आप का लिखा पढ़ने वाले हैं और हो सकता है कल दफ़तर में ही मौखिक या टेलिफ़ोन पर ही टिपिया रहे हों?
kahi se bhi aayen..
6) कहीं इस एहसास से आप के लेखन में कमी या कृतिमता तो नहीं आयी?
.....
ऐसे पाठक भी होते हैं जो ब्लॉगर नही है । और टिपियाते भी नही ।
फीड से पता चलता है । अब कितनों ने पढा और कितने छू कर निकल गये ये जानना मुश्किल है ।
शीर्षक देख कर लोग छूने चले आये ये काफी अच्छा लगता है पर
इससे कोई प्रभाव नही पडता ।
मंगलवार 08/01/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं .... !!
आपके सुझावों का स्वागत है .... !!
धन्यवाद .... !!
धन्यवाद विभा जी मुझे पाठकों की टिप्पणियों का इंतजार रहेगा
पहली बार आपके ब्लॉग को पढने का मौका मिला , इसके लिए विभा जी की आभारी हूँ मैं ! :) नाम हम दोनों का ही एक ही है !:) आपने काफी रोचक विषय पर लिखा है, ये बातें अक्सर दिल में ही रह जाती होंगी शायद ...
आपके सवालों का उत्तर -
1. जी हाँ ! कुछ हैं! और वो फ़ोन पर या मिलने पर या मेल के ज़रिये बता भी देते हैं और काफी प्रोत्साहित करते हैं !
2. कुछ टिपण्णी कर देते हैं, कुछ मौखिक रूप से बता देते हैं, कुछ फेसबुक के ज़रिये बताते हैं, कुछ मेल के द्वारा ! ज़रूरी नहीं कि हर कोई टिपण्णी करे ! कितने लोग (in general terms) तो ऐसे ही टहल कर निकल चले जाते हैं, शायद उन्हें मेरी रचनाएं नहीं पसंद आतीं होंगीं ... :)
3. मैनें अपना ब्लॉग मई 2012 में शुरू किया है! उसके पहले मैं कभी कहीं लिखती थी तो वहीँ से लिखने के कारण उनसे जान-पहचान हुई , मिले नहीं !
4. ब्लॉगर बिरादरी मेरे लिए अभी नयी-नयी ही है ! फिर भी मैं दोनों के साथ सहज ही रहती हूँ व दोनों की ही आभारी हूँ !
5. ब्लॉग में लिखना मेरे मन की इच्छा है, जिसको जो बात जहाँ करनी होगी ... उसे कोई रोक तो नहीं सकता न ! वो कहीं भी बात करें, मेरे तो अच्छा ही है ! :)
6. जी नहीं !
आशा है, आप मेरे जवाबों से संतुष्ट होंगी ! :)
~सादर !!!
अरे ! मेरी टिपण्णी कहाँ गुम हो गयी ??? मैनें खुद देखी थी , पोस्ट हुई थी ... :(((
अनिता जी आप का टिपियाना बहुत अच्छा लगा। आप की टिप्पणी स्पैम में चली गयी थी। शायद हमारे हमनाम होने से गूगल बाबा कंफ़्यूज हो गये होगें और सोचा होगा मैं ने खुद टिपिया दिया है- 'चीटिंग, चीटिंग, स्पैम में डालो'। अब मैं ने उन्हें समझा दिया है और उनके झोले से आप की नायाब टिप्पणी निकाल लाई हूँ। :)
धन्यवाद अनिता जी ! :)
आपका ये 'टिपियाना' शब्द बड़ा मज़ेदार लगा हमें !
(हमारे ब्लॉग में आने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद :-) !)
~सादर!!!
शुभ लाभ Seetamni. blogspot. in
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