Inclusion of the Rural Poor (Courtsey DNA-1-06-2010) |
आज के डी एन ए अखबार में छपी एक लेख के साथ ये तस्वीर वर्तमान भारत की सही छवि है, है न? शायद बैल महाराज और मुर्गा( वही दिख रहा है न?) बिटवा से कह रहे हैं कि भाई हमें भी भारत मेट्रिमोनी डाट कॉम में रजिस्ट्र करवाई दो। अपनी पहली पोस्ट पर आयी इत्ती सारी टिप्पणियां देख बच्चा आश्चर्यचकित है, है न? मुझे तो ऐसा ही लगा, आप को क्या लगता है?
वैसे असली खबर ये है कि राजीव श्रीनिवासन जी कह रहे हैं कि वित्तिय सेवायें वाजिब दामों पे सबसे गरीब तबके तक गांव गांव तक पहुंचनी चाहियें तभी भारत की आर्थिक व्यवस्था मजबूत होगी। उदाहरण के तौर पर वो बता रहे हैं कि भारतीय डाक सेवा इसमें एक बहुत बड़ा योगदान कर सकती है। इस समय दो सौ मिलियन से भी ज्यादा लोगों के डाकघरों में बचत खाते हैं और 1995 में जब डाक घर ने 10,000 रुपये तक की जीवन बीमा पोलिसी महज एक रुपये प्रति दिन प्रिमियम पर बेचनी शुरु की तो कुछ ही महीनों में 12 मिलियन से ज्यादा पोलिसीस गांव की जनता ने खरीद लीं, और हर महीने डाक घर kए मिलियन से ज्यादा पोलिसीस बेच रहे हैं।
इसका मतलब ये है कि गांव की जनता अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए क्या करना है ये तो जानती है लेकिन उनकी पहुंच के बाहर होने की वजह से मन मसौस के रह जाती है। मजेदार बात ये है कि इससे ये भी पता चल रहा है कि जनता अपने भविष्य की सुरक्षा का इंतजाम खुद करने के लिए तैयार है अगर सरकार ये सुरक्षा वाजिब दामों पर उपल्ब्ध कराये। तो लोन माफ़ करने की जरुरत नहीं, जरुरत है तो बेहतर वि्कल्प और शिक्षा देने की।
यकीन नहीं आता तो आप खुद पढ़िये
http://epaper.dnaindia.com/epapermain.aspx
ये रहा लिंक, पेज नंबर 12..॥:)