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February 17, 2010

गीतकार या अदाकार

आजकल अखबार रात को पढ़ा जाता है। अभी अभी पढ़ रहे हैं कि आमीर और जावेद अख्तर जी में कुछ झड़प हो गयी इस बात को ले कर कि गीतों को यादगार कौन बनाता है? आमीर का कहना है कि गीत कैसा भी लिखा हो उसे यादगार बनाने में अभिनेता का बहुत बड़ा हाथ होता है। जावेद जी को ये बात कैसे गवारा गुजरती, उन्हों ने आमीर को याद दिलाया कि "पापा कहते हैं" गाना जब उन पर फ़िल्माया गया था तब वो स्टार नहीं थे, उस गीत ने उन्हें स्टार बनाया। आमीर हैं कि फ़िर भी मानने को तैयार नहीं।


वैसे तो मैं आमीर को एक जहीन अभिनेता मानती हूँ लेकिन मुझे लगता है इस बार आमीर कुछ ज्यादा ही अंहकार दिखा गये। इस खबर को पढ़ने के बाद सोचती रही कि कौन से ऐसे मेरे पसंदीदा गाने हैं जिन्हें मैं सिर्फ़ इस लिए पसंद करती हूँ कि उसका पिक्चराइजेशन बहुत अच्छा था या वो मेरे पसंदीदा कलाकार पर पिक्चराइस किया गया था।


मुझे तो कुछ याद नहीं आ रहा। ऐसा नहीं कि मेरे पसंदीदा कलाकारों की लिस्ट बहुत छोटी है या मेरे पसंदीदा गीतों की लिस्ट छोटी है। हमें ये कहने में कोई शर्म नहीं आती कि हम हिन्दी फ़िल्मों के रसिया हैं।

अपने पसंदीदा गीत तो बहुत याद आ रहे हैं। हम सोच रहे हैं कि हमें कोई भी गाना क्युं पसंद आता है और स्थायी तौर पर पसंद रहता है या अस्थायी तौर पर? जहां तक मेरा सवाल है मेरे लिए गीत के बोल सबसे ज्यादा मायने रखते हैं फ़िर धुन और फ़िर किस पर पिक्चराइस हुआ ये कोई खास मायने नहीं रखता।


जैसे पहला गाना जो मेरे जहन में आया वो है ' ऐ मेरे वतन के लोगों' इस गीत को सुनते हुए मुझे सिर्फ़ लता मंगेशकर का चेहरा याद आता है या सरहद पे मरते अपने देश के जवानों का। मुझे नहीं मालूम कि ये गीत किसी फ़िल्म में था या नहीं या किस पर पिक्चराइस हुआ लेकिन मेरा पसंदीदा गाना है।

इसी तरह जब पीछे मुड़ कर देख रही हूँ तो राजकपूर की फ़िल्मों के तमाम गीत मेरी पसंदीदा गीतों की लिस्ट में है लेकिन मैं कभी भी राजकपूर फ़ैन नहीं थी।
बोम्बे, रोजा फ़िल्मों के गीत भी मेरे पसंदीदा गीत है लेकिन उन फ़िल्मों का हीरो अरविंदा कभी पॉपुलर नहीं हुआ।

जावेद जी का ही लिखा गाना ' पंछी, नदिया पवन के झौंके' रिफ़्युजी फ़िल्म से मेरा ऑल टाइम फ़ेवरेट है। अभिषेक बच्चन की वो पहली फ़िल्म थी और उस फ़िल्म में वो बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था।


दूसरी तरफ़ जहन में आ रहा है एक गाना जो आजकल रेडियो पे खूब बज रहा है शायद 'इश्किया' फ़िल्म से है ' …।इब्न बतूता…जूता ता ता' कुछ ऐसा सा ही है, उसके बोल हमें अभी तक नहीं समझ में आये कि क्या गा रहा है। प्रोमोस में देखा तो वो हमारे पसंदीदा कलाकार पर फ़िल्माया गया है लेकिन हमें वो गाना बिल्कुल नहीं छू पाया।


अपनी समझ तो यही कहती है कि गीतकार के शब्द गीत की आत्मा होते हैं, धुन और गायकी उसका सौंदर्य, बाकि फ़िल्मांकन तो सिर्फ़ पैकेजिंग भर है, सुनार को लाखों रुपया देते हैं उस छोटी सी डिबिया के अंदर रखे चमकते हीरे का न कि डिबिया का।
आप क्या कहेगें?