ठप्पा लगवा लिए(भाग 2)
सिंगापुर एअरपोर्ट से बाहर निकले तो देखा हमारे नाम की तख्ती ले कर कोई नहीं खड़ा। ट्रेवल ऐजेंट ने जो लोकल नंबर दिया था वो ढूंढ ही रहे थे कि एक महिला भागती हुई आयी, लेट होने के लिए माफ़ी मांगते हुए उसने जल्दी जल्दी वैन की डिक्की खोली और हमने सामान रखना शुरु किया। पता था विदेश में सब काम खुद करने पड़ते हैं ड्राइवर आ कर सामान नहीं रखेगा। गाड़ी में बैठे तो वो महिला ड्राइवर की सीट पर विराजमान हो गयी। तब पता चला कि ये आठ व्यक्तियों को ढोने वाली टोयेटा गाड़ी यही महिला चलायेगीं। बाद में हमने देखा कि सिंगापुर में ज्यादातर गाड़ियां महिलायें ही चलाती हैं फ़िर वो चाहे वैन हो या ट्रॉम या बस या कुछ और्। बम्बई में हमें बताया गया था कि सिंगापुर का मौसम बम्बई जैसा ही है, दिन में 31 डिग्री तो रात में 24 डिग्री। इसी बात को ले कर हम टूर कैंसल कर देना चाह्ते थे पर दोस्तों का इसरार था। पर यहां आते ही देखा कि भरी दुपहरी में भी जरा भी गर्मी नहीं लगती।वहां की सरकार ने इतने पेड़ लगा रखे हैं सब जगह कि पहले बैंगलोर की तरह उसे गार्डन सिटी कहा जाता था और अब सिटी इन गार्डन कहा जाता है। इसी तरह से कहीं कोई धूल मट्टी उड़ती नहीं दिखती। मिट्टी को या तो
पेड़ों की जड़ों ने पकड़ रखा है या फ़िर घास ने। उसी दिन नाइट सफ़ारी देखने गये पर मजा नहीं आया, दूसरे दिन सिटी के सर्शन कराने के लिए एक चाइनीस गाइड उपस्थित था। उस से पता चला कि सिंगापुर में सभी मल्टिपल जॉब्स करते हैं जैसे वो टूरिसम पढ़ाता भी था और गाइड का काम भी करता था। शहर के दर्शन करते हुए हल्की बूंदाबांदी शुरु हो गयी। हमारा गाइड मिस्टर जैकी बहुत परेशान हो गया। उसे बारिश बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी, वो भगवान से कह रहा था कि बारिश बंद हो जाये और हम भगवान से कह रहे थे कि भगवन आप हमें इस तरह मत चिढ़ाओ, ये भी कोई बारिश है। उस दिन तो नहीं पर दूसरे दिन भगवान ने हमारी सुन ली और खूब जम कर बारिश हुई।
चाइनीस मंदिर
चाइनीस मंदिर देखते हुए एहसास हुआ कि चाइना और हमारी संस्कृति में कितनी समानता है। जैकी बता रहा था कि चाइना में अनगिनत देवी देवता है और ऐसी मान्यता है कि आदमी मरने के बाद पाताल में जाता है और वहां उसके कर्मों के अनुसार निश्चित होता है कि वो आगे नरक में जायेगा या स्वर्ग में। पाताल के दरबान को भी देवता मानते हुए उन्हें पुराने जमाने में ओपियम का भोग लगाया जाता था आजकल लोग सिगरेट जला कर सिगरेट का भोग लगाते हैं। लेकिन अजीब बात ये थी कि चाइनीस मंदिर में बहुत सारे चमगादड़ छत से लटके दिखायी दिये। जैकी ने बताया कि चाइना में चमगादड़ों को शुभ माना जाता है और ये चमगादड़ खून नहीं पीते, शाकाहारी हैं। खैर हम तो उस कमरे से भाग लिये, पता नहीं कब उनका मन बदल जाये।
बर्ड पार्क
उसके अगले दिन ड्राइवर ने कहा कि आप को बर्ड पार्क ले जायेगें। हम सोच रहे थे कि हम क्या बच्चे हैं जो हमें चिडियाघर दिखाने ले जा रहे हैं। पर जब हम वहां पहुंचे तो हैरान रह गये ये देख कर कि कोई पिंजरे नहीं है। ओपन ऑडिटोरियम में शो होते है। बर्डस का शो देख कर हमारा बचपन लौट आया।
हमें डर था कि शाकाहारी होने के कारण हमें काफ़ी दिक्कत सामने आयेगी, लेकिन ऐसा कुछ भी न हुआ। वंहा तो पूरा भारत बसता है। महज छ: डालर में एक वक्त का खाना आराम से खाया जा सकता है। दुकाने रात को ग्यारह बजे तक भी खुली रहती हैं और मुस्तफ़ा सेंटर तो चौबिसों घंटे खुला रहता है। सेल्समैन बता रहा था कि अकसर भारतीय सैलानी सुबह साढ़े तीन बजे शॉपिंग करने आते हैं। लेकिन हमें तो वंहा सब कुछ बहुत मंहगा लगा। सो हमने कुछ नहीं खरीदा सिर्फ़ बेटे की फ़रमाइश पर उसके लिए 'गेलेक्सी नोट' ले कर आये…:)
चार दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। जब वापस ऐअरपोर्ट की तरफ़ रवाना होने का समय आया तो हम सब के मन में एक ही बात थी कि काश हम कुछ दिन और यहां रुक पाते। जाने से पहले मैं ने सुना था कि सिंगापुर में पेड़ बिना सूरज की रोशनी पाये भी खूब फ़लते फ़ूलते हैं। यही देखने के लिए बॉटेनिकल गार्डन गये थे, वहां तो ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला पर एअरपोर्ट में चैक इन करने के बाद जो नजारा देखा वो आप भी देखिये।
एअर्पोर्ट
सिंगापुर एअरपोर्ट से बाहर निकले तो देखा हमारे नाम की तख्ती ले कर कोई नहीं खड़ा। ट्रेवल ऐजेंट ने जो लोकल नंबर दिया था वो ढूंढ ही रहे थे कि एक महिला भागती हुई आयी, लेट होने के लिए माफ़ी मांगते हुए उसने जल्दी जल्दी वैन की डिक्की खोली और हमने सामान रखना शुरु किया। पता था विदेश में सब काम खुद करने पड़ते हैं ड्राइवर आ कर सामान नहीं रखेगा। गाड़ी में बैठे तो वो महिला ड्राइवर की सीट पर विराजमान हो गयी। तब पता चला कि ये आठ व्यक्तियों को ढोने वाली टोयेटा गाड़ी यही महिला चलायेगीं। बाद में हमने देखा कि सिंगापुर में ज्यादातर गाड़ियां महिलायें ही चलाती हैं फ़िर वो चाहे वैन हो या ट्रॉम या बस या कुछ और्। बम्बई में हमें बताया गया था कि सिंगापुर का मौसम बम्बई जैसा ही है, दिन में 31 डिग्री तो रात में 24 डिग्री। इसी बात को ले कर हम टूर कैंसल कर देना चाह्ते थे पर दोस्तों का इसरार था। पर यहां आते ही देखा कि भरी दुपहरी में भी जरा भी गर्मी नहीं लगती।वहां की सरकार ने इतने पेड़ लगा रखे हैं सब जगह कि पहले बैंगलोर की तरह उसे गार्डन सिटी कहा जाता था और अब सिटी इन गार्डन कहा जाता है। इसी तरह से कहीं कोई धूल मट्टी उड़ती नहीं दिखती। मिट्टी को या तो
पेड़ों की जड़ों ने पकड़ रखा है या फ़िर घास ने। उसी दिन नाइट सफ़ारी देखने गये पर मजा नहीं आया, दूसरे दिन सिटी के सर्शन कराने के लिए एक चाइनीस गाइड उपस्थित था। उस से पता चला कि सिंगापुर में सभी मल्टिपल जॉब्स करते हैं जैसे वो टूरिसम पढ़ाता भी था और गाइड का काम भी करता था। शहर के दर्शन करते हुए हल्की बूंदाबांदी शुरु हो गयी। हमारा गाइड मिस्टर जैकी बहुत परेशान हो गया। उसे बारिश बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी, वो भगवान से कह रहा था कि बारिश बंद हो जाये और हम भगवान से कह रहे थे कि भगवन आप हमें इस तरह मत चिढ़ाओ, ये भी कोई बारिश है। उस दिन तो नहीं पर दूसरे दिन भगवान ने हमारी सुन ली और खूब जम कर बारिश हुई।
यहां बारिश ने हमें चिढ़ाया |
चाइनीस मंदिर
इन्हें जलती हुई सिगरेट का भोग लगाइये तभी प्रसन्न होगें |
चाइनीस मंदिर देखते हुए एहसास हुआ कि चाइना और हमारी संस्कृति में कितनी समानता है। जैकी बता रहा था कि चाइना में अनगिनत देवी देवता है और ऐसी मान्यता है कि आदमी मरने के बाद पाताल में जाता है और वहां उसके कर्मों के अनुसार निश्चित होता है कि वो आगे नरक में जायेगा या स्वर्ग में। पाताल के दरबान को भी देवता मानते हुए उन्हें पुराने जमाने में ओपियम का भोग लगाया जाता था आजकल लोग सिगरेट जला कर सिगरेट का भोग लगाते हैं। लेकिन अजीब बात ये थी कि चाइनीस मंदिर में बहुत सारे चमगादड़ छत से लटके दिखायी दिये। जैकी ने बताया कि चाइना में चमगादड़ों को शुभ माना जाता है और ये चमगादड़ खून नहीं पीते, शाकाहारी हैं। खैर हम तो उस कमरे से भाग लिये, पता नहीं कब उनका मन बदल जाये।
बर्ड पार्क
शो की पहली परफ़ोर्मेंस देने को आते ये लंबी टांगों वाले पक्षी |
उसके अगले दिन ड्राइवर ने कहा कि आप को बर्ड पार्क ले जायेगें। हम सोच रहे थे कि हम क्या बच्चे हैं जो हमें चिडियाघर दिखाने ले जा रहे हैं। पर जब हम वहां पहुंचे तो हैरान रह गये ये देख कर कि कोई पिंजरे नहीं है। ओपन ऑडिटोरियम में शो होते है। बर्डस का शो देख कर हमारा बचपन लौट आया।
हमें डर था कि शाकाहारी होने के कारण हमें काफ़ी दिक्कत सामने आयेगी, लेकिन ऐसा कुछ भी न हुआ। वंहा तो पूरा भारत बसता है। महज छ: डालर में एक वक्त का खाना आराम से खाया जा सकता है। दुकाने रात को ग्यारह बजे तक भी खुली रहती हैं और मुस्तफ़ा सेंटर तो चौबिसों घंटे खुला रहता है। सेल्समैन बता रहा था कि अकसर भारतीय सैलानी सुबह साढ़े तीन बजे शॉपिंग करने आते हैं। लेकिन हमें तो वंहा सब कुछ बहुत मंहगा लगा। सो हमने कुछ नहीं खरीदा सिर्फ़ बेटे की फ़रमाइश पर उसके लिए 'गेलेक्सी नोट' ले कर आये…:)
चार दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। जब वापस ऐअरपोर्ट की तरफ़ रवाना होने का समय आया तो हम सब के मन में एक ही बात थी कि काश हम कुछ दिन और यहां रुक पाते। जाने से पहले मैं ने सुना था कि सिंगापुर में पेड़ बिना सूरज की रोशनी पाये भी खूब फ़लते फ़ूलते हैं। यही देखने के लिए बॉटेनिकल गार्डन गये थे, वहां तो ऐसा कुछ देखने को नहीं मिला पर एअरपोर्ट में चैक इन करने के बाद जो नजारा देखा वो आप भी देखिये।
एअर्पोर्ट
एअरपोर्ट के अंदर जहां सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती |
6 comments:
छोटा शहर, अनेकों कार्य, सबको दो कार्य तो करने ही पड़ेंगे..सुन्दर वृत्तान्त..
क्या बात है। वहां के चमगादड़ भी कह रहे होंगे -जरा संभलकर भाई, ये अनीताजी हैं। प्रसिद्ध ब्लॉगर!
अच्छी रिपोर्ट!पर अभी और इंतजार है।
वाह आपके साथ तो हमने भी बढ़िया से यात्रा कर ली.
कुआलालम्पूर में मैंने पाया कि वहां यात्रियों के नाम की तख्तियां लेकर खड़ी होने का काम आमतौर से महिलाएं करती हैं, वे आपको व आपके ड्राइवर को मिलवाने का काम भी करती हैं. एअरपोर्ट से आपके रवाना के साथ ही उनका काम संपन्न हो जाता है.
सिंगापूर दर्शन बहुत मजेदार रहा ...
Good one! I could relate to it! Here's my blog post :
http://ajaykishoreblog.blogspot.in/2011/12/trip-to-lion-city-november-2010.html
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