संगोष्ठी से करीब 15 दिन पहले पता चला कि सिद्धार्थ जी ने ‘ब्लोग एथिक्स’ पर किसी संगोष्ठी का आयोजन किया है। सिद्धार्थ जी ने जो संगोष्ठी इलाहाबाद में की थी उसकी रिपोर्ट्स अभी तक हमारे दिमाग में तरो ताजा थीं। ब्लोगजगत के दिग्गज ब्लोगरों को रु ब रु हो कर सुना जा सकता है इस ख्याल से ही रोमांच हो आया। हमने अपने संकोच को दरकिनार करते हुए सिद्धार्थ जी को मेल लिखा और संगोष्ठी में शामिल होने की अनुमति मांगी। उन्हों ने ब्लोगिंग की स्पीड से जवाब देते हुए हमें पेपर प्रेसेंट करने का निमंत्रण पत्र भेज दिया। तारीखें थीं 9 और दस ओक्टोबर्। ग्यारह ओक्टोबर से हमारे कॉलेज में परिक्षाएं शुरु होने वाली थीं और परिक्षाओं के दौरान किसी की भी छुट्टी मंजूर नहीं होती है। संगोष्ठी का निमंत्रण पत्र भी कॉलेज के नाम नहीं आया हुआ था। जैसे तैसे कर के प्रिंसिपल को एक दिन की छुट्टी के लिए मनाया।
हमने जिंदगी में कभी किसी अन्जान शहर के लिए अकेले सफ़र नहीं किया। मन में थोड़ी धुकधुक थी। लेकिन पति के सामने हम बहादुरी का मुखौटा पहने रहे। मेरी घबराहट थोड़ी और बढ़ गयी जब एक मित्र ने कहा मैं तो नहीं जा रहा पर यदि आप जा रही हैं तो संभल कर जाइयेगा, सिद्धार्थ का इंतजाम पता नहीं कैसा हो, अपना सब इंतजाम कर के जाइयेगा। हम और कन्फ़्युज्ड हो गये। खैर हमारे मन का रोमांच हमारे डर से ज्यादा ताकतवर निकला और हम आठ की दोपहर को गाड़ी चढ़ गये।
थ्री टायर ए सी में ए सी की हवा के साथ कॉकरोच रेलवे सेवा की तरफ़ से उपहारस्वरूप मिले। हम सीधे कॉलेज से ट्रेन में जा बैठे थे, खाना खाने का भी वक्त नहीं मिला था, सो पेट में चूहे दौड़ रहे थे। खुद को कोस रहे थे कि पैकिंग लास्ट मिनिट तक क्युं टाली गयी। नासिक से दो पैसेंजर चढ़े कोई आठ बजे के करीब, उनमें से एक करीब तीस साल का रहा होगा और दूसरा करीब 45 साल का। ऐसा लगता था कि ये दोनों नियमित इस रूट पर सफ़र करते हैं। खाने का ऑर्डर देते समय जान पहचान और बातों का सिलसिला शुरु हुआ। साढ़े नौ बजे खाना खाने लगे तो पता नहीं कहां से कॉकरोचों की एक पूरी सेना अपना हिस्सा वसूलने को तैयार नजर आयी। जैसे तैसे हमने उनसे बचा कर दो निवाले गले के हवाले किये और बाकी खाना फ़ेंक दिया। इतने में सिद्धार्थ जी का फ़ोन आ गया कि मेरी ट्रेन कितने बजे वर्धा पहुंचती है। हमने सकुचाते हुए उन्हें बताया कि हम सुबह 4 बजे वर्धा पहुंच जायेगें और वो चिन्ता न करें हम दो घंटे वेटिंग रूम में गुजार लेगें। लेकिन उन्हों ने कहा कि नहीं हमें लेने के लिए चार बजे एक विध्यार्थी आ जायेगा। जान में जान आयी।
वो नासिक से चढ़ा युवा सहयात्री किसी इंटरव्यु की तैयारी कर रहा था, जनरल नॉलेज के प्रश्न। बीच बीच में अगर उसे किसी प्रश्न का उत्तर नहीं आता तो अपने साथी से पूछता जाता। धीरे धीरे हम भी उन प्रश्नों में रस लेने लगे। उसके पास करीब डेढ़ सौ प्रश्न थे, हम शर्मसार हुए जा रहे थे कि हमें उनमें से आधे से ज्यादा( या शायद उससे भी ज्यादा॥J) सवालों के जवाब नहीं मालूम थे। उसने चहक कर कहा आप हिंदी विश्वविधालय जा रही हैं तो इस प्रश्न का उत्तर तो आप को पता ही होगा। प्रश्न में उसने किसी सच्चिदानंद कवि का नाम बता कर कहा ये साहित्य में किस नाम से प्रसिद्ध हैं। हमें याद आया कि वर्द्धा में अभी 2 और 3 ओक्टोबर को इसी कवि के बारे में कोई कार्यक्रम हुआ था। ऐसा लग रहा था कि इसका जवाब अज्ञेय होगा लेकिन फ़िर भी पक्का कर लेना चाह्ते थे। हमने संजीत नामक लाइफ़ लाइन का इस्तेमाल किया। जवाब सही था। सुबह होते होते आंख लग गयी।
सुबह करीब साढ़े तीन बजे अगर सिद्धार्थ जी के विध्यार्थी धनेश का फ़ोन न आया होता तो हम शायद नींद में नागपुर पहुंच जाते। सुबह की ठंडी ठंडी ब्यार में जब चार बजे स्टेशन पर उतरे तो पांच मिनिट में धनेश हमारे सामने खड़ा था। एक और मेहमान जो रात को डेढ बजे आ कर वेटिंग रूम में सो रहा था उसे लिया और दस मिनिट में केम्पस पहुंच गये। ठहरने की व्यवस्था इतनी बढ़िया था कि वापस आने का मन न करे। धनेश को उम्मीद थी कि हम जा कर अपने कमरे में सो जायेगें लेकिन हमारी नींद तो केम्पस की खूबसूरती ने चुरा ली। दूसरों के उठने में अभी वक्त था सो हम उस स्लेटी अंधे्रे में टहलने के लिए निकल पड़े। बिचारा धनेश हमारे साथ हो लिया , साथ साथ में बताता जा रहा था कि यहां कोबरा भी निकलते हैं, हमने डरने से इंकार कर दिया। साढ़े पांच बजे तक तो हम स्नान कर तैयार थे उस के साथ मेहमानों की दूसरी खैप को स्टेशन से लाने के लिए। लेकिन फ़िर गाड़ी में जगह की कमी को देखते हुए हमने स्टेशन जाने का इरादा छोड़ दिया। धनेश ने सोचा होगा इस चिपकू मेहमान से जान बची तो लाखों पाये।
बाकी ब्रेक के बाद्…:)
27 comments:
चलिये, धनेश बेचारा किसी तरह बचा..मगर हमको तो पढ़ना ही पड़ेगा...लिख ही डालिये आगे का हाल भी...उस वीर की तस्वीर भी लगानी चाहिये (धनेश की) :)
वीरांगनाओं सी यात्रा लगी यह।
ब्रेक कितने समय का है ...??
जब एक मित्र ने कहा मैं तो नहीं जा रहा पर यदि आप जा रही हैं तो संभल कर जाइयेगा, सिद्धार्थ का इंतजाम पता नहीं कैसा हो
ज़रा नाम तो ओपन किया जाए ......उस मित्र का !
वैसे यह चिपकू मेहमान इतनी जल्द लौट कैसे आया? ....अगली कड़ी में जानने की आकांक्षा है !!
कब तक रुकना है :)
तनिक रूको भाई, टिपियाते हैं। एक साँस में ही पढ़ गए और बस? शेष आगे? यह क्या? अरे लिख ही डालती ना और कुछ। आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा, एक अलग ही छवि थी मस्तिष्क में, भजन पसन्द वाली। हा हा हा हा। वैसे कई भ्रम टूटे वहाँ जाकर। मेरी पोस्ट भी शाम को आ रही है, इन्तजार कीजिए।
ब्रेक को ब्रेक दीजिए अब, कितना इंतजार करना पड़ेगा?
................
वर्धा सम्मेलन: कुछ खट्टा, कुछ मीठा।
….अब आप अल्पना जी से विज्ञान समाचार सुनिए।
हमने तो आपको देखते ही पहचान लिया था कि यह कोई न कोई बहादुर है ।
:) धनेश को लिंक भेजा जाय.
बड़ी कमाल की रोचक यात्रा रही आपकी .... भावपूर्ण प्रस्तुति...आभार
प्रवीण जी! नाम हम भी जानते हैं, क्योंकि हमारी उपस्थिति से आश्वस्त हो कर ही उन महोदय की समझाईश को दरकिनार किया गया था.
सही कह रही हूँ ना अनीता जी!
४-६ किश्तें आनी चाहिएँ, प्रतीक्षा कर रही हूँ वीरता से जय-विजय के किस्सों की....
डॉ. वाचकनवी ,अनिता जी ने आपको बताया ,बाकी को भी बताया होगा तो फिर प्रवीण जो को भी बता दें नहीं तो हम ही एक ठू पोस्ट लिख ही डालते हैं और "समझाईस'(शब्द कापीराईट फ़ुरसतिया ) भी उजागर कर देते हैं ,बिचारे प्रवीण जी इंतज़ार कर रहे होंगें .....अनिता जी काहें कमेन्ट डिलीट कर रही हैं ...इसे पब्लिश हो जाने दें न ! जैसे डॉ कविता वाचकनवी का किया -अरे हम भी डाक्टर हैं उनकी जैसा ही पी एच डी किये हैं ! :)
@ अरविंद मिश्र जी,
आपकी पीएच. डी. का भान सबको होना ही चाहिए किन्तु अर्ज़ है जनाब कि मेरे नाम के हिज्जे सही और दुरुस्त कर लिखें. शब्द की व्युत्प्पति के चक्कर में पड़े बिना भी, ऊपर की टिप्पणी के साथ आए हिज्जे ( वाचक्नवी ) दिखाई देने में स्पष्ट हैं.
और महिलाओं के नाम लेते हुए उनके प्रति मर्यादा बरतने का चलन तो बिना पीएच डी किए हुओं को भी बरतना चाहिए तथा नाम के साथ "जी" लगा कर संबोधित करना चाहिए. पीएच डी वालों से इस शिष्टता व औपचारिकता की अपेक्षा अधिक होना स्वाभाविक है.
मुझे याद नहीं पड़ता ( न ही ऐसा हुआ है कि ) ब्लॉग जगत में किसी को इतना अनौपचारिक होने की छूट हो कि कोई मुझे इस प्रकार संबोधित करे, हाँ, केवल मेरे परिवारी बुजुर्गों को इसकी छूट है कि वे बिना `जी' लगाए अनौपचारिकता से बात करते हैं.
आशा है आप दोनों इंगितों पर ध्यान देने हुए मुझे निराश नहीं करेंगे
डॉ.वाचक्नवी जी,
व्युत्प्पति ?
इसी तरह नाम में असावधान त्रुटि हो गयी ,खेद है !
और हाँ हमने डॉ. वाचक्नवी लिखा था जो कि एक औपचारिक संबोधन है ,
पूरी दुनिया में ,अकादमीय सरोकारो में यह मान्य है ,एक अमेरिकन एक ब्रिटिश या अन्य देशों के लोग भी जी का मतलब नहीं समझते -यह एक वैश्विक औपचारिक (डॉ.वाचक्नवी) संबोधन है ...हमने अपने विज्ञान गल्प के याहू ग्रुप में एक जी का अभियान चलाया भी था ...मगर वह दूसरे देशों के विद्वानों के परिहास की बलि चढ़ गया ...आपके प्रिय लेखक और मेरे आदरणीय एयर वाईस मार्शल श्री विश्वमोहन तिवारी जी इस प्रकरण से परिचित भी हुए थे ..शायद याद भी हो उन्हें .... आश्चर्य है देश विदेशों में भ्रमण के उपरान्त भी आपका ऐसा आग्रह है ..मगर आपका ऐसा आग्रह है तो मैंने उसका पूरा सम्मान करते हुए डॉ के साथ जी भी लगा दिया है ...
जी लगाने का आग्रह और लगाना दोनों ही अनौपचारिक है और मुझे आपसे अनौपचारिक होने की कतई अभिलाषा नहीं रही है .......
मैं समझता हूँ इतना स्पष्टीकरण पर्याप्त है ..या तो फिर प्रोटोकाल और ब्ल्यू बुक खोल ली जाय ...
अब मैं भी कुछ नामचीन ब्लागरों से कहता हूँ की मुझे जी लगाकर संबोधित करें -यह दृष्टांत है ही ...प्रवीण पांडे जी किसी भी के नाम के आगे जी नहीं लगा रहे हैं .... :)
बस ऐसे ही पूछने चला आया कि .......यह जो 'प्रवीण जी' बार बार उच्चारित किये जा रहे हैं .......यह हमीं हैं या कोई और .... ?
@प्रवीण त्रिवेदी जी ,
जहाँ केवल प्रवीण लिखा है वह आप हैं और जहाँ प्रवीण पाण्डेय जी लिखा है वे वे हैं
चलिए जी इसी बहाने आपने ब्लॉग पर लिखा तो सही। गुड है।
अकेले ट्रेन का सफर, उपर से कॉकरोच सेना, सई है जी सई है।
आपका जब फोन आया तो नाम देखकर यही सोचा था मैने कि इन्हें तो ट्रेन में होना चाहिए फिर ट्रेन में बैठकर ऐसा सवाल…… अब समझ में आया।
अब जाता हूं दूसरी किश्त पढ़ने के लिए
कोई समझदार ज्ञानी हिन्दी के लिए की बोर्ड में ही किसी की को जी क्यों नहीं बना देता? बस दबाइए और काम हो गया। जैसे आपने v capital दबाया और काम हो गया, छप गया एक ठो ’जी ’!
अनीता जी, बढ़िया विवरण रहा।
घुघूती बासूती
सरस और भावपूर्ण। आप लिखती जाइए ब्रेक के बाद या ब्रेक के बिना...
वाह अनीता जी आपके अंदाज निराले हैं ...
HINDI BLOGGING MEIN BHI AJEEB TAMASHE CHAL RAHI HAI..MAHATMA GANDHI ANTARRASHTRIYA HINDI VISHWAVIDYALAYA , WARDHA KE BLOG PER ENGLISH KI EK POST PER PRITI SAGAR NE EK COMMENT POST KI HAI…AISA LAGA KI POST KO SABSE JYADA PRITI SAGAR NE HI SAMJHA..PER SACHHAI YE HAI KI PRITI SAGAR NA TO EK LINE BHI ENGLISH LIKH SAKTI HAIN AUR NA HI BOL SAKTI HAIN…BINA KISI LITERARY CREATIVE WORK KE PRITI SAGAR KO UNIVERSITY KI WEBSITE PER LITERARY WRITER BANA DIYA GAYA…PRITI SAGAR NE SUNITA NAAM KI EK NON EXHISTING EMPLOYEE KE NAAM PER HINDI UNIVERSITY KA EK FAKE ICARD BANWAYA AUR US ICARD PER SIM BHI LE LIYA…IS MAAMLE MEIN CBI AUR CENTRAL VIGILECE COMMISSION KI ENQUIRY CHAL RAHI HAI.. MEDIA KE LOGON KE PAAS SAARE DOCUMETS HAI AUR JALDI HI YEH HINDI UNIVERSITY WARDHA KA YAH SCANDAL NATIONAL MEDIA MEIN HIT KAREGA….AISE FRAUD BLOGGERS SE NA TO HINDI BLOGGING KA BHALA HOGA , NA TECHNOLOGY KA AUR NA HI DESH KA…KYUNKI GANDI MACHLI KI BADBOO SE POORA TAALAB HI BADBOODAAR HO JAATA HAI
Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…Lagta hai Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya men saare moorkh wahan ka blog chala rahe hain . Shukrawari ki ek 15 November ki report Priti Sagar ne post ki hai . Report is not in Unicode and thus not readable on Net …Fraud Moderator Priti Sagar Technically bhi zero hain . Any one can check…aur sabse bada turra ye ki Siddharth Shankar Tripathi ne us report ko padh bhi liya aur apna comment bhi post kar diya…Ab tripathi se koi poonche ki bhai jab report online readable hi nahin hai to tune kahan se padh li aur apna comment bhi de diya…ye nikammepan ke tamashe kewal Mahatma Gandhi Hindi Vishwavidyalaya, Wardha mein hi possible hain…. Besharmi ki bhi had hai….Lagta hai is university mein har shakh par ullu baitha hai….Yahan to kuen mein hi bhang padi hai…sab ke sab nikamme…
Praveen Pandey has made a comment on the blog of Mahatma Gandhi Hindi University , Wardha on quality control in education...He has correctly said that a lot is to be done in education khas taur per MGAHV, Wardha Jaisi University mein Jahan ka Publication Incharge Devnagri mein 'Web site' tak sahi nahin likh sakta hai..jahan University ke Teachers non exhisting employees ke fake ICard banwa kar us per sim khareed kar use karte hain aur CBI aur Vigilance mein case jaane ke baad us SIM ko apne naam per transfer karwa lete hain...Jahan ke teachers bina kisi literary work ke University ki web site per literary Writer declare kar diye jaate hain..Jahan ke blog ki moderator English padh aur likh na paane ke bawzood english ke post per comment kar deti hain...jahan ki moderator ko basic technical samajh tak nahi hai aur wo University ke blog per jo post bhejti hain wo fonts ki compatibility na hone ke kaaran readable hi nain hai aur sabse bada Ttamasha Siddharth Shankar Tripathi Jaise log karte hain jo aisi non readable posts per apne comment tak post kar dete hain...sach mein Sudhar to Mahatma Handhi Antarrashtriya Hindi Vishwavidyalaya , Wardha mein hona hai jahan ke teachers ko ayyashi chod kar bhavishya mein aisa kaam na karne ka sankalp lena hai jisse university per CBI aur Vigilance enquiry ka future mein koi dhabba na lage...Sach mein Praveen Pandey ji..U R Correct.... बहुत कुछ कर देने की आवश्यकता है।
महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय,वर्धा के ब्लॉग हिन्दी-विश्व पर २६ फ़रवरी को राजकिशोर की तीन कविताएँ आई हैं --निगाह , नाता और करनी ! कथ्य , भाषा और प्रस्तुति तीनों स्तरों पर यह तीनों ही बेहद घटिया , अधकचरी ,सड़क छाप और बाजारू स्तर की कविताएँ हैं ! राजकिशोर के लेख भी बिखराव से भरे रहे हैं ...कभी वो हिन्दी-विश्व पर कहते हैं कि उन्होने आज तक कोई कुलपति नहीं देखा है तो कभी वेलिनटाइन डे पर प्रेम की व्याख्या करते हैं ...कभी किसी औपचारिक कार्यक्रम की रिपोर्टिंग करते हुए कहते हैं कि सब सज कर ऐसे आए थे कि जैसे किसी स्वयंवर में भाग लेने आए हैं .. ऐसा लगता है कि ‘ कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की अपने परिवार की छीनाल संस्कृति का उनके लेखन पर बेहद गहरा प्रभाव है . विश्वविद्यालय के बारे में लिखते हुए वो किसी स्तरहीन भांड से ज़्यादा नहीं लगते हैं ..ना तो उनके लेखन में कोई विषय की गहराई है और ना ही भाषा में कोई प्रभावोत्पादकता ..प्रस्तुति में भी बेहद बिखराव है...राजकिशोर को पहले हरप्रीत कौर जैसी छात्राओं से लिखना सीखना चाहिए...प्रीति सागर का स्तर तो राजकिशोर से भी गया गुजरा है...उसने तो इस ब्लॉग की ऐसी की तैसी कर रखी है..उसे ‘कितने बिस्तरों में कितनी बार’ की छीनाल संस्कृति से फ़ुर्सत मिले तब तो वो ब्लॉग की सामग्री को देखेगी . २५ फ़रवरी को ‘ संवेदना कि मुद्रास्फीति’ शीर्षक से रेणु कुमारी की कविता ब्लॉग पर आई है..उसमें कविता जैसा कुछ नहीं है और सबसे बड़ा तमाशा यह कि कविता का शीर्षक तक सही नहीं है..वर्धा के छीनाल संस्कृति के किसी अंधे को यह नहीं दिखा कि कविता का सही शीर्षक –‘संवेदना की मुद्रास्फीति’ होना चाहिए न कि ‘संवेदना कि मुद्रास्फीति’ ....नीचे से ऊपर तक पूरी कुएँ में ही भांग है .... छिनालों और भांडों को वेलिनटाइन डे से फ़ुर्सत मिले तब तो वो गुणवत्ता के बारे में सोचेंगे ...वैसे आप सुअर की खाल से रेशम का पर्स कैसे बनाएँगे ....हिन्दी के नाम पर इन बेशर्मों को झेलना है ..यह सब हमारी व्यवस्था की नाजायज़ औलाद हैं..झेलना ही होगा इन्हें …..
अनीता जी,
बहुत देर ब्लॉगिंग प्रारंभ की और बहुत देर से आपसे परिचय हुआ वरना मैं चाहता की आपकी आँख नागुपर ही पहुंचकर खुलती और फिर आपको लिवाकर साथ में मैं भी वर्धा आता। चलिए इस बार न सही आगे कोई न कोई अवसर ज़रूर मिलेगा। वर्धा में मैं भी एक सेमिनार करना चाह रहा हूं। डॉ. उमाशंकर उपाध्याय से बात भी की है। इसी महीने मिलने का भी कार्यक्रम बन रहा है। सेमिनार के बारे में सूचित करूंगा। देर से ही सही पर पोस्ट पढ़ी। मेरे लिए तो सब नया ही है। अच्छी लगी। बधाई।
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