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April 19, 2009

गोली दिमाग के आरपार, महिला ने चाय बनायी"

गोली दिमाग के आरपार, महिला ने चाय बनायी"


वैसे तो हमने अखबार पढ़ना बहुत कम कर दिया है। अखबार हमारी सेहत के लिए हानिकारक हैं। पूरा अखबार रेप, इनसेस्ट, या राजनीतिज्ञों की फ़ैलायी नफ़रत, धोखागड़ी के मामलों से पटा पड़ा रहता है, पढ़ते पढ़ते बेकार में रक्तचाप बड़ जाता है। लेकिन आज इतवार का दिन और बहुत दिनों बाद फ़ुर्सती सुबह के कुछ पल्। आराम से चाय की चुस्की के साथ सोचा चलो अखबार ही देख लें। पहले पन्ने पर तो था कि संजय दत्त ने मायावती को जादू की झप्पी और पप्पी देने की इच्छा जताई, हम क्ल्पना मात्र से ही मुस्कुरा उठे। संजय को अपनी ये तमन्ना पूरी करने के लिए मायावती के जन्मदिन पर एक जिम उपहार के रूप में भेजना होगा तभी उनका ये सपना पूरा होने की कुछ संभावना बन सकती है।
पेज पलटते ही एक खबर पर नजर पड़ी, " गोली दिमाग के आरपार, महिला ने चाय बनायी"
यकीनन खबर चौंकाने वाली थी। खबर कुछ यूँ थी कि ब्रिटेन में एक 47 वर्षीय महिला दोपहर के बारह बजे अपने घर आराम कर रही थी। अदालत ने उसके पति को घरेलू मारपीट की वारदात की वजह से छ: महीने के लिए पत्नी से दूर रहने को कहा था। लेकिन ये जनाब दोपहर बारह बजे घर में घुसे और आते ही पंलग पर आराम करती अपनी पत्नी के माथे पर गोली दाग दी। गोली खोपड़ी को चीरती पीछे से निकल गयी। इतने में पत्नी के एक पड़ौसी रिश्तेदार ने पुलिस को फ़ोन कर दिया था। अब ये अपनी पुलिस तो थी नहीं जो क्रियाकरम होने के बाद तेरहवीं पर आती, तो आनन फ़ानन में पुलिस हाजिर हो गयी। तब तक पति देव मकान के पिछवाड़े जा कर खुद को भी गोली मार कर टें बोल लिए। जब पुलिस अफ़सर उस महिला के पास पहुँचा तो महिला न सिर्फ़ होश में थी बल्कि अपने लिए किचन में जा कर चाय बना लाई थी, हां माथा एक कपड़े से दबा रखा था। लेकिन उसने अफ़सर को पूछा
"यहां क्या हो रहा है? तुम यहां क्या कर रहे हो? अब आये हो तो चाय पियो।"
महिला को हेलिकोप्टर से तुंरत अस्पताल ले जाया गया और उम्मीद की जा रही है कि वो पूर्णरुपेन स्वस्थ हो जायेगी। लोग परेशान हैं, अरे गोली लगे तो आदमी को मर जाना चाहिए,ये थोड़े के चाय पीने बैठ जाओ और फ़िर आराम से अस्पताल जाओ और ठीक हो कर आ जाओ। कल को टाटा टी वाले कहेगें "देखाआआआअ, हमारी चाय का कमाल।"

इसे पढ़ कर हमें इंगलैंड में ही घटा एक और किस्सा याद आ गया, मनोविज्ञान की किताबों में अक्सर इसका जिक्र रहता है और छात्रों की यादों में रचा बसा रहता है।





बात सन 1848 की है। रेल की पटरी बिठाने का काम चल रहा था। अब जमीन कहीं समतल तो कहीं ऊबड़ खाबड़ थी। पटरी बिठाने वाली टीम में से एक पच्चीस साल के नौजवान के जिम्मे ये काम था कि जमीन को समतल बनाने के लिए चट्टानों में ड्रिल मशीन से सुराख कर उसमें थोड़ा बारुद भर कर ऊपर से रेता से ढक दो और फ़िर बिजली के फ़्युस और लोहे की छड़ों की मदद से चट्टान को उड़ा दिया जाए। उस दिन इस नौजवान का थोड़ा सा ध्यान बंटा और लोहे की तीन सेंटीमीटर मोटी और 109 से मी लम्बी छ्ड़ चट्टान के बदले उसके गाल को चीरती हुई खोपड़ी से आकाश की तरफ़ उड़ ली। ये नौजवान हक्का बक्का रह गया लेकिन तत्काल होश संभाला। वो बात करने और साथी की दद से चलने की स्थिती में था। वो नौजवान न सिर्फ़ बच गया बल्कि एक लंबे जीवन का सफ़र तय करके गया।


हाँ, ये बात और है कि इस हादसे ने उसकी पूरी पर्सनलिटी ही बदल दी। हादसे से पहले वो एक जिम्मेदार, अक्लमंद, सर्वजन प्रिय व्यक्ति था जिसका उज्जवल भविष्य सबको दिखाई दे रहा था। हादसे के बाद जैसे जैसे समय गुजरा उसके माता पिता ने चैन की सांस ली, उसके शारिरीक स्वास्थय में, बातचीत में, उठने बैठने, चलने फ़िरने में कहीं कोई कमी नहीं आयी थी, सब पहले जैसा ही था। यहां तक की उसकी नयी चीजें सीखने की काबलियत, यादाश्त या बुद्धीमत्ता पर भी कोई असर न पड़ा था।



लेकिन कुछ न कुछ तो असर पड़ना ही था। उसके स्वभाव में एक अजीब प्रकार का सनकीपन, उंदडता, मौजीपना, गैरजिम्मेदारानापन नजर आने लगा। माता पिता का श्रवण कुमार अब समाज के किसी भी नियम को तोड़ना अपना धर्म समझने लगा। गाली गलौच करना, दूसरों से झगड़ा करना उसकी खास आदत बन गयी और लोग उससे कतराने लगे। लोगों से किए वायदे तोड़ना उसका शौक बन गया। किसी जमाने में सबसे निष्ठावान, जिम्मेदार माना जाने वाला मजदूर अब नौकरी से हाथ धो बैठा इसके बावजूद की मालिक उसे निकालना नहीं चाहते थे पर उस पर भरौसा भी नहीं किया जा सकता था।

क्या आप को भी ऐसा ही कोई किस्सा मालूम है, यदि हाँ तो बताइए न…॥


29 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया ...दोनो किस्‍सों को पढकर अच्‍छा लगा .

दिनेशराय द्विवेदी said...

बहुत दिनों बाद आप जाल पर नजर आईं। वो भी दिलचस्प किस्से ले कर। पर बनी रहिएगा।

L.Goswami said...

मुझे तो अभी ऐसी कोई कहानी नही याद आ रही ..पर आपकी दोनों कहानिया अच्छी लगी.

Gyan Dutt Pandey said...

सिर में चोट से पर्सनलिटी में परिवर्तन का मामला तो मेरे घर में ही है।
बाकी, यह महिला जीवट की है - गोली लगने पर भी चाय बनाने वाली। कहां ये और कहां छिपकली देख कर मेज पर चढ़ जाने वाली! :)

vijaymaudgill said...

bahut khoob dono hi kahania bahut intrusting lagi. asha laga apka likha padhna

अनिल कान्त said...

bahut rochak kisse sunaye hain aapne

Gyan Darpan said...

दोनों ही किस्से बड़े मजेदार पढ़कर अच्छा लगा !

Gyan Darpan said...

राजस्थान के चिडावा कस्बे के पास एक गांव है बलोदा उस गांव में १९७२ के लगभग एक बावरिया जाति का व्यक्ति हिरण पकड़ रहा था हिरण ने छुडाने की कोशिश की ,इसी दौरान हिरण का एक सिंग उस व्यक्ति के नाक में घुस गया लेकिन उस व्यक्ति की जीवटता देखो उसने नाक से सिंग तो निकली ही , हिरण को भी नहीं छोडा और उसका शिकार करके ही माना | लेकिन इस घटना में उसकी नाक एक साइड से कट गयी और उसका नाम ही नकटिया बावरिया पड़ गया |

Anil Pusadkar said...

किस्से तो दोनो रोचक हैं और अख़बारो के बारे मे आपकी राय से भी पूरी तरह सहमत हूं। आपकी ही तरह मैने भी अख़बार पढना,पढना क्या अख़बार मे नौकरी करना ही छोड़ दिया है।अब ये पापी पेट का सवाल है जो फ़िर से वापस कलम उठाने की सोच रहा हूं।एक शेर याद आ रहा है।

हादसे इतने है मेरे शहर मे कि,
अखबारो को निचोड़ो तो खून टपकता है॥

Anonymous said...

18 मार्च के बाद सीधे 19 अप्रैल! ये अच्छी बात नहीं है!!

दोनों किस्से तो मज़ेदार हैं।

आप बताने को कह रही हैं? अब हम अपने मुँह मियां मिट्ठू कैसे बनें :-)

सतीश पंचम said...

खबरें तो रोचक हैं।

मीनाक्षी said...

दोनो किस्से रोचक है.. दूसरे किस्से मे वीडियो के माध्यम से हमने ठीक इसी तरह के हादसे के शिकार आदमी की सर्जरी होते देखी है...

कुश said...

मानव शरीर अपने में कई गूढ़ तत्व समेटे हुए है..

Abhishek Ojha said...

दोनों रोचक !
हमारे स्कूल में एक टीचर थे. मेरे प्रिय टीचर... बाकी लोग उनसे बहुत डरते थे क्योंकि वो मारने के लिए कुख्यात थे. पर गजब के टैलेंटेड थे. अपने पूरे शैक्षणिक कैरियर के टॉपर. गणित और भौतिकी पढाते तो हम खो कर रह जाते थे. पर उनका व्यवहार थोडा अजीब सा था. लोग कहते की एक स्कूटर अक्सीडेंट के बाद वो बदल गए और यही कारण है की वो बस एक स्कूल के शिक्षक बन कर रहे है.

PD said...

kahani to hame bachpan se hi bahut pasand hai.. Chutpan me nani se kahani sunte the aur ab aunty ji se.. :)
achchha laga.. lekin ek shikayat hai ki hamari aunty ji bahut din lagati hain ek kahani sunane me.. :(

Sanjeet Tripathi said...

ह्म्म, मुद्दे की बात यह सामने आई कि आपको अगर कुछ लिखने के लिए उद्वेलित करना है तो अखबारों में इस तरह की घटनाएं आती रहनी चाहिए।
है न ;)

Shiv said...

सचमुच रोचक. जैसा कुश ने कहा; मानव शरीर गूढ़ तो है ही.

एक खोज के अनुसार गोली अगर सर के आर-पार हो जाती है तो चाय अच्छी बनती है. खबर अच्छी बनती है. ब्लॉग पोस्ट और अच्छी बनती है....:-)

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

लिखिये और यूँ ही true stories सुनाती रहीये अनीता जी -
बहुत खूब !
आपकी बातोँ को पढते वक्त लगता है,
आपसे मिलकर बतिया रही हूँ :)

और ज्ञान भाई साहब और
रतन भाई साहब की comments पढकर
बहुत हँसी भी :-)
स्नेह,
- लावण्या

डॉ .अनुराग said...

जाहिर है इसलिए तो सारा खेल दिमाग का है .हम तो कई बार पिटते पिटते बचे है ...एक हस्पताल में ट्रौमा के मरीज का रेफरेंस देखने गए उन्हें किसी दवा से रिक्यक्षण था .हमें देख ते ही हाथ बढ़कर गरियाने लगे ..उन्हें रस्सी ओर कई चीजो से बाँधा हुआ था.....कई बार मरीज की मेमोरी लोस भी हो जाता है .ओर दिमाग को रिकवर होने में सालो बरसो लग जाते है ..इसलिए दिमाग की चोट को हमेशा सीरियसली लेना चाहिए .....जब तक इन्तेर्न्शिप में हमारी सर्जरी में पोस्टिंग नहीं हुई थी हम भी बाइक बिना हेलमेट के चलाते थे ..

अनूप शुक्ल said...

वाह! रोचक! गोली,चाय के बहाने ब्लागिंग शुरू हुई फ़िर से रुकने के लिये !!!!

Arvind Mishra said...

हाँ यह वाक़या तो जग जाहिर है इससे साफ़ पता लगता है कि दिमाग के हिस्सों में परिवर्तन से व्यवहार परिवर्तन हो जाता है -इसी क्ल्यू से मैंने वह अपनी एक मशहूर कहानी ( आत्म प्रोजेक्शन -सारी ! ) -"आपरेशन काम दमन "लिखी थी जो कोई दस वर्ष पहले जनसता में छपी थी -जिसमें एक प्रयोग के तहत कुछ वालंटियर लेखकों के मस्तिष्क के उस सूक्ष्म भाग को आपरेट कर निकाल दिया गया था जिससे यौनेच्छा का नियमन होता है ! ताकि ऐसे लेखकों का ध्यान कामजनित विषयों से अलग हट कर केवल सृजनात्मक कामों में लग सके ! मगर विडंबना यह रही कि उस आपरेशन के बाद यौनेच्छा की ही कौन कहे उनमें सृजन की इच्छा ही मिट गयी ! प्रयोग असफल रहा ! ऐसे ही कुछ लेखक इस समय न लिखने के कारणों का महिमामंडन करते फिर रहे हैं -मगर असली बात तो मुझे पता है ! ( कुछ ब्लॉगर /ब्लागरी भी इसमें देर से सम्मिलित हुए हैं -हा हा ! कुछ टंकी पर चढ़ने को लालायित रहते हैं ! )

Asha Joglekar said...

Bahut dino bad blog dekh rahee hoon. Aapka blog padh kar barbas ek muskan chehare par aa gaee.kya jeevat wale log hote hain.

Science Bloggers Association said...

इन्हें पढकर इतना ही कहूंगा कि आश्चर्यजनक किन्तु सत्य।
----------
किस्म किस्म के आम
क्या लडकियां होती है लडको जैसी

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

bahut.......bahut.........bahut mazaa aayaa is blog par aakar.......!!

neha said...

lohe ki salaken is tarah se gusne ka ek kissa to kuch din pahle news main maine bhi dekha tha...ye ek road accident tha.lekin uske baad us vaykti ki life main kya badlaaw aaye ye to nahi pata?lekin uski bhi jaan bach gayi thi.khair apke lekh se 2 nayi ghatnayn padhne milin.blog main aane ke liye apka dhanyawaad

Shikha .. ( शिखा... ) said...

Wahh .. Amazingly Beautiful.. :)

amitabhpriyadarshi said...

achha laga pahali baar aapke blog par aa kar.
dono post achhe lage. par akhabaar se vitrishna kyon? sochiye to agar akhbaar na hota to yeh post adhurri rah jati . bhai ham akhbaar walon aur hamare akhbaar ko bhi thodi jagah dijiye apane paas.

amitabhpriyadarshi said...

anita ji abhi kal ki hi to bat hai akhabaaron ke bare me baat ho rahi thi. aj hamane apane akhabaar prabhat khabar me aap teen saheliyon anita kumar, sangita puri aur minakshee ji ke blog ke bare me aur aap ki mitrta ke bare me khabar blog varta me lagaya hai.
page scane kar aapke mail par bhej rahaa hoon.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

रोचक और सुन्दर अभिव्यक्ति