Subscribe

RSS Feed (xml)

Powered By

Skin Design:
Free Blogger Skins

Powered by Blogger

सुस्वागतम

आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।

July 02, 2008

नकुल कृष्णा: भाग 3

नकुल कृष्णा: भाग ३
========
तीसरे किस्त में आपको यह बता दूँ कि नकुल ने ऐसा क्या किया अपने को इस छात्रवृत्ति के योग्य बनने के लिए। जैसा मैंने बताया, योग्यता के लिए तीन शर्तें और छह लोगों से सिफ़ारिश की चिठ्ठियों की जरूरत थी।




पहली शर्त

पहली शर्त थी शिक्षा में लगातर उत्तम प्रदर्शन। इसे साबित करना सबसे आसान था।स्कूल और कॉलेज के रिपोर्ट कार्डस से यह साफ़ ज़ाहिर था कि नकुल सदैव एक उत्तम विद्यार्थी रहा है और स्कूल और कॉलेज में उसके सदा अच्छे नंबर आये हैं। यह जरूरी नहीं था कि छात्र कोई गोल्ड मेडलिस्ट रहा हो या बोर्ड परीक्षाओं में टॉप्पर रहा हो। बस consistently excellent academic performance काफ़ी था।



दूसरी शर्त


दूसरी शर्त थी कि नियमित पाठ्यक्रम के बाहर की गतिविधियों (extra curricular activities) में राष्ट्रीय स्तर पर सफ़लता। बस इसमें तो नकुल ने आसानी से बाजी मार ली। स्कूल और कॉलेज में वाद-विवाद प्रतियोगिताओं में शायद ही कभी उसने पहला पुरस्कार नहीं जीता हो। जब हाई-स्कूल में था तो डिस्कवरी चैनल के आयोजित अखिल भारतीय वाद-विवद प्रतियोगिता में बैंगलौर में पहले नंबर पाकर, चेन्नैई में हुई ऑल इन्डिया फ़ाईनल्स में अपने शहर का प्रतिनिधित्व करके , चौथा नंबर पाया था और बाद में पता चला judges में भी मतभेद हुआ था और उनमें से एक ने नकुल को पहले या दूसरे नंबर पर रखना चाहा था। अन्तिम निर्णय जब घोषित हुआ तो वह तीसरा स्थान पाने से बाल-बाल चूका था।



रंगमंच


English Theatre उसके लिए passion और एक तरह का नशा था। Shakespeare के कई Dialogues तो उसे कंठस्थ था। अपने दोस्तों के एक theatre group में शामिल हो गया। उन लोगों का व्यंग्य-नाटक "Butter and Mashed banana" तो सारे भारत में अंग्रेज़ी रंगमंच की दुनिया में hit हुआ था। देश में कई जगहों पर उसका प्रदर्शन हुआ था। National Center for Performing arts, Mumbai में एक अखिल भारतीय Theatre festival में इस नाटक ने तीन awards जीते थे। Best play, Best direction और नकुल को इस festival का Best actor घोषित किया गया। Mumbai Mirror में उसकी एक रंगीन तसवीर भी छपी थी, हाथ में अवार्ड लिए हुए। Rave reviews भी पढ़ने को मिले थे। काश मैं यह तसवीर संलग्न कर सकता।



मेरे कंप्यूटर से किसी कारण मिट गया है और मुझे तारीख याद नहीं, नहीं तो इस अखबार के online edition से download कर लेता। नकुल से पूछने से डरता हूँ इसके विवरण। उसे यह अभी तक मालूम नहीं के उसके बारे में मैं इतना सब कुछ लिख रहा हूँ । अगर पता चला तो नाराज़ हो जाएगा। वह तो मुझसे भी ज्यादा विनम्र है और एकदम publicity shy है।


इसी नाटक का प्रदर्शन मुंबई में Kala Ghoda festival में भी हुआ। मुम्बई के Prithivi Theatre, पुणे में Film and Television Institute, और पॉन्डिचेरी में भी हुआ था। Indian Institute of Management में भी उसे विशेष आमंत्रण मिला इस नाटक का प्रदर्शन करने के लिए और हमने सुना है नाटक चलते चलते इसका सीधा प्रसारण भी भारत के अन्य IIM में भेजा गया था। इसके अलावा नकुल एक उच्च कोटी का लेखक है।


स्वावलंबी


जबसे कॉलेज जाने लगा, मुझसे एक रुपया भी जेब खर्च के लिए माँगा नहीं। Print media में और कई web sites पर उसके लेख मिल जाएंगे। अठारह साल की आयु से ही जेब खर्च पैसा खुद कमा लेता था। Outlook Traveler के लिए वह राज्य में भ्रमण करके लेख भेजता रहा और अपने जेब खर्च के पैसे कमा लेता था। अन्तर्जाल में Openspace।org पर भी उसके कुछ लेख मिल जाएंगे जिससे वह कभी कभी कुछ कमा लेता था। नकुल एक कवि भी है और उसके कई प्रशंसक हैं। बैंगलौर में कई बार अपनी अंग्रेज़ी कविताओं को जाने माने कवियों के सामने पढ़ने का मौका मिला। बैंगलौर में प्रतिष्ठित book release functions में हाजिर होता था और उसको प्रसिद्ध लेखकों के साथ मंच पर बैठे देखा हूँ अखबार के चित्रों में। लेखक के नए किताबों से कुछ अंश पढ़ने के लिए भी उसे आमंत्रण मिलता रहा है। जब विश्वविख्यात लेखक विक्रम सेठ बैंगळूरु आये थे, उनके पीछे पढ़ गया था और जब तक अपनी निजी कॉपी को उनसे हस्ताक्षर नहीं करावाया उस महान हस्ती से, वह वहीं डटा रहा।



बैंगलौर में English theatre circles में वह एक जाना पहचाना व्यक्ति है और कभी कोई मौका नहीं छोड़ता भारत के विख्यात अंग्रेज़ी रंगमंच के सितारों से मिलने में और उनके साथ समय बिताने में। कभी सारा दिन उनके साथ चक्कर काटता रहता था और अपने मोबईल भी बन्द रखता था ताकि उसकी माँ उसे यह भी नहीं पूछ सके कि भाई कब घर आ रहे हो? खाना ठंण्डा हो रहा है! सुना है कि आमोल पालेकर, नसीरुद्दीन शाह, अलइक पदमसी जैसे लोगों से मिलने का अवसर भी मिला था उसे। मुबई में Prithvi Theatre में उसको शशी कपूर के सामने अपना अभिनय का प्रदर्शन करने का अवसर मिला था। और भी उदाहरण दे सकता हूँ लेकिन यह Name Dropping से मुझे भी चिढ़ है!



अब क्या कहें?


कई बार, उसको मुम्बई जाना पढ़ता था नाटक के सम्बन्ध में और कभी कभी हम डर गये थे कि इसकी पढाई की क्या होगी? कहीं यह भटक तो नहीं रहा है? मुझे तो इन रंगमंच वालों का डर भी रहता था। हम लोगों से भिन्न हैं यह लोग। यहाँ बैंगलौर में उसका संपर्क रंगमंच के कुछ लंबे बाल और दाढ़ी वालों से, पायजामा/कुर्ता और चप्पल पहने हुए और कंधे पर एक कपडे का थैला लटका कर घूमने वाले लोगों से होता रहता था। मुझे कुछ अजीब लगता था पर उसे रोकने के लिए मेरे पास कोई logical कारण नहीं था। हमने तय किया थ कि पढ़ाई में उन्नति के हिसाब से उससे निपटेंगे। आखिर प्राथमिकता पढ़ाई को दी जानी चाहिए, न इस ड्रामेबाजी को! उसके लिए तो सारी जिन्दगी पड़ी है, पढ़ाई पूरी करने के बाद। पर हमें उसे डाँटने का अवसर मिला ही नहीं! कॉलेज में हर exam और test में अव्वल नंबर पाता रहा और वह तो अपने शिक्षकों का favourite बना रहा। मुझे नहीं मालूम कहाँ से समय निकाल लेता था अपने पाठ्यक्रम के लिए। रात को देर तक सोता नहीं था और पढ़ाई करता रहा होगा। कई बार उसके बन्द कमरे में बत्ती जलती मिली हमें रात बारह बजे के बाद भी।



एक बार उसको और उसके साथियों को किसीने हवाई टिकट खरीदकर, और मुम्बई के Oberoi Sheraton में कमरा बुक करके अपना नाटक stage करने के लिए बुलाया था। हम तो आश्चर्यचकित रह गए। हमें तो ऐसे होटलों को बाहर से निहारने का अवसर ही मिला था अपने जीवन में। कभी हिम्मत भी नहीं होती थी इन Five Star होटलों के अन्दर झाँकने की भी! Fancy मूँछो और पगड़ी वाला दर्वान तक ही हमारी पहुँच थी! सुबह का निकला नकुल रात को ही विमान द्वारा वापस आया था हाथ में १६,०००/- रुपये की नकद के साथ! वह अपने कमाए हुए पैसे ज्यादातर किताबों और डीवीडी/कैसेट पर खर्च करता था।


संगीत


संगीत तो उसका एक और शौक है। इतना अच्छा गाता है कि पूछिए मत।मेरी स्वर्गवसी माँ के आँखों में आँसू आ जाते थे उसके कुछ गाने सुनने के बाद. आवाज़ भी अतयंत मधुर है और शास्त्रीय संगीत की theory का बहुत ही अच्छा ज्ञान है। १२ साल की आयु में ही, उसने हमें यह कहकर चौंका दिया था कि मैं शास्त्रीय संगीत सीखना चाहता हूँ। आजकल बच्चे फ़िल्म संगीत या pop music में ही रुचि रखते हैं। शास्त्रीय संगीत तो हम उनपर जबरदस्ती करके थोंपते हैं खासकर हमारी संप्रदाय में। लेकिन यहाँ तो वह स्वयं हमारे पास आकर इसकी माँग की। इस मौके का फ़ायदा उठाकर, झट से मेरी पत्नि यहाँ एक जाने माने कर्नाटक शैली में गाने वाली रेडियो आर्टिस्ट से संपर्क करके उसे एक संगीत विद्यालय में भर्ती करा दी। आठ साल से संगीत सीख रहा है और पिछले दो या तीन साल से मंच पर भी कई बार, तबला, मृदंग और तंबूरे के साथ अपना हुनर का प्रदर्शन कर चुका है। एक कैसेट और सीडी भी रिलीस हुआ है उसका। लेकिन उसका नाम कर्नाटक संगीत जगत में अभी तक पह्चाना नहीं जाता। और कई साल का परिश्रम आवश्यक है इसके लिए और अब उसकी प्राथमिकताएं बदल चुकी हैं। हमने उससे संगीत से अपना संपर्क जारी रखने की सलाह दी है और उससे कह दिया के जब कभी मौका या समय मिलता हैं अपना अभ्यास जारी रखना। एक दिन वह समय जरूर आएगा जब वह संगीत से अपना सम्बन्ध फ़िर से जोड़ने के लिए तैयार हो जाएगा।

उसका रंगमंच में राष्ट्रीय स्तर पर सफ़लता के कई प्रमाण तैयार थे दिल्ली में साक्षातकार के समय।अपने कॉलेज के वरिष्ठ प्रोफ़ेस्सरों से इतनी बढिया सिफ़रिश की चिठ्ठियाँ जुटाकर ले गया कि कोई भी प्रभावित हो जाएगा। इन चिठ्ठियों के कुछ अंश बाद में संलग्न करूंगा अपने अंतिम किस्त में। मुझे यकीन ही नहीं होता है कि आजकल के शिक्षक इस तरह के भावपूर्ण सिफ़ारिश की चिठ्ठियाँ लिखने के लिए तैयार हो जाएंगे।


प्रधानमंत्री से मुलाकात


अगली किस्त में यह बताऊँगा कि तीसरी शर्त, यानी, समाज सेवा और पर्यावरण के संबन्ध में उसने क्या किया अपने को और भी योग्य साबित करने के लिए। जाते जाते एक और मज़ेदार बात आप को बता दूँ।ज्ञानजी के ब्लोग पर मैंने ए पी जे अबदुल कलाम के साथ मेरा १९८६ में भेंट के बारे में बताया था जब वे राष्ट्रपति नहीं थे।२१ सितंबर, २००७ को नकुल को इससे भी अच्छा मौका मिला था किसी सेलेब्रिटी से मिलने का। अगले दिन उसे Oxford जाना था और एक दिन पहले हम तीन (नकुल, मेरी पत्नि ज्योति और मैं) दिल्ली पहुँचे थे। नकुल सीधा हवाई अड्डे से सफ़दरजंग रोड के लिए रवाना हुआ प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह से मिलने। सभी पाँच स्कॉलरों को प्रधान मंत्री के साथ १० मिनट बिताने का मौका मिला था। दिल्ली में स्थित Rhodes selection committee ने इसका आयोजन किया था। मनमोहन सिंहजी स्वयं Rhodes Scholarship में दिलचस्पी लेते हैं। किसी जमाने में वे सेलेक्शन कमैटी के अध्यक्ष रहे थे। Security वालों ने किसी को camera तक अन्दर ले जाने नहीं दिया और इस भेंट का हमारे पास कोई तस्वीर नहीं है।

बाद में उसी शाम एक send off party के अवसर पर लिए गए दो चित्र संलग्न कर रहा हूँ।

पहले में भारत के वर्ष २००७ के पाँच Rhodes Scholars की तसवीर देखिए ।













बाएं से:


१)कुमारी अनिषा शर्मा (दिल्ली के St Stephens college की छात्रा)
२)बैंगलौर से राहुल बत्रा (एक computer science engineer) जो Afro Asian Games में तैराकी में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुका है)
३)बैंगलौर के National Law school से कुमारी रम्या रघुराम
४)हैदराबाद के NALSAR से राघवेंद्र शंकर
५)मेरा बेटा नकुल (नीले कुर्ते में)



दूसरी तसवीर में नकुल तो नहीं दिखाई दे रहा है लेकिन मेरी पत्नि ज्योति को आप देख सकते हैं (orange saree with blue border)










फ़िर मिलेंगें एक दो या तीन
दिन के बाद।

सबको मेरी शुभकामनाएं

गोपालकृष्ण विश्वनाथ











13 comments:

Anita kumar said...

विश्वनाथ जी कितने जन्मों के सत कर्म जमा किए हैं आप ने ऐसा बेटा पाने के लिए। इस के लिए सितारा शब्द तो बहुत छोटा है । भगवान करे ये इसी तरह आप को और ज्योती जी को आंनदित करता रहे और खुद भी खुश रहे…। आमीन ।

Anita kumar said...

विश्वनाथ जी माफ़ी चाहूंगी, बहुत ध्यान रखने के बाद भी एक दो वर्तनी की गलतियां रह गई हैं, क्या करें उम्र का तकाजा है, आखें कभी कभी धोखा दे जाती हैं , आगे से ज्यादा केअरफ़ुल रहेगें…॥सॉरी।

डॉ .अनुराग said...

भावुक भी हूँ ओर प्रसन्न भी....ओर एक उम्मीद इस नई पीड़ी से.....ओर जाग गई है...

PD said...

विश्वनाथ सर ने मुझे भी बहुत कुछ नकुल जी के बारे में बताया था.. ये भी बताया था कि आंटी जी के ब्लौग पर उसके बारे में उन्होंने लिखा है जो किस्तों में छप रहा है.. आज मौका मिला तो एक ही सांस में सारा कुछ पढ गया.. वैसे अधिकांश बातें तो मैं खुद उनके मुंह से ही सुन चुका हूं.. जिसे शायद कल मैं अपने ब्लौग पर डालूंगा.. एक अलग अंदाज में.. :)

art said...

bete ki unnati ka nasha hi kuch alag rehta hai....badhai

Abhishek Ojha said...

बस इतना ही कह सकता हूँ... 'बहुमुखी प्रतिभा के धनी'

महेन said...

नई पीढ़ी वैसे भी प्रतिभा की धनी है और नकुल जैसे बच्चे तो पूरे देश का गौरव हैं। आशा और प्रार्थना है कि जहाँ, जिस क्षेत्र में भी वह जाये उसे सफलता मिले। अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा।
शुभम।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

We all feel extremely happy & proud to read about such a talented
& exceptionally gifted child like NAKUL ...
God bless ..
warm Rgds,
lavanya

vikky said...
This comment has been removed by the author.
vikky said...

To describe Mr.Nakul a single word i get is "Genius" no other word in my dictionary
bhot achha laga Nakul ji ki kamyabhiyu ke baare mi jaane ke,!shayad mujhmi etni kabliyat ya ,meri etni umer nahi ki mi koi comments de sakho par mujhia padh kar etni kushi mile jo mi samjh sakta ho Mr.Nakul ke pataji Shri Vishwanath ji ko ketni hui hogi..
i congratulate sir for all these Achievements and all the best

नीरज गोस्वामी said...

इसे कहते हैं "सर्व गुण संपन्न" ऐसा बेटा बहुत तपस्या के बाद प्राप्त होता है. इश्वर से प्रार्थना है की नकुल अपना माता पिता और देश का नाम खूब रोशन करे.
नीरज

Udan Tashtari said...

बहुत ही होनहार बालक है. बहुत अच्छा लग रहा है इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी बालक के बारे में जानना. विश्वनाथ जी को बहुत बधाई बेटे को इतने संस्कार और प्रतिभायें देने के लिए. आगे पढ़ने का इन्तजार है.

दिनेशराय द्विवेदी said...

विश्वनाथ जी, जरीए अनिता जी!
संयोग, बहुत सारे सकारात्मक गुणों का। सब से पहले तो शरीर की जीववैज्ञानिक संरचना जो सदैव ही एक संयोग होती है। माता-पिता के न जाने कितने पूर्वजों के गुण समाविष्ट होते हैं इस संयोग में, तब जा कर एक ऐसे व्यक्ति का जन्म होता है। एक साथ इतने सारे कामों को कर सकने की योग्यता और क्षमता बिरली ही हो सकती है। इस मामले में विश्वनाथ जी बहुत भाग्यशाली रहे। दूसरे शारीरिक क्षमताओं के जन्मोत्तर विकास में माता-पिता का सक्रिय योगदान महत्वपूर्ण है यह काम विश्वनाथ जी और ज्योति भाभी ने पूरी लगन के साथ किया। तीसरे साधन, मुम्बई और बंगलौर जैसे महत्वपूर्ण नगरों के निवास, अच्छे विद्यालयों की उपलब्धता और उन के लिए आरंभिक आर्थिक क्षमता उपलब्ध रही।
और भी अनेक कारक रहे होंगे जिन का विश्वनाथ जी विश्लेषण कर सकते हैं।
सब कारक जुटाए जा सकते हैं, लेकिन संयोग वाले कारक? वे तो भाग्य से ही मिलते हैं, या यूँ कहें जिन्हें ऐसे सुन्दर संयोगों का साथ मिलता है वे ही भाग्यशाली कहे जाते हैं।
अनिता जी को धन्यवाद जो विश्वनाथ जी को नकुल के सम्बन्ध में लिखने को प्रेरित किया।