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June 30, 2008

नकुल कृष्णा: भाग २

नकुल कृष्णा: भाग २
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अनिता जी को, और सभी शुभचिंतकों को आभार।आप कि प्रतिक्रियाएं पढ़कर दिल भर गया।दिल हलका भी हुआ यह जानकर के कोई मुझे गलत नहीं समझेगा।मुझे डर था कि कहीं कोई यह न समझे के मैं अपने ही बेटे का नाजायज़ बडप्पन कर रहा हूँ।

अब आप लोगों से आश्वासन मिल गया है कि यह लेख पठनीय और उपयोगी होगा और अब यह लेख जारी रखने के लिए मुझे प्रोत्साहन भी मिल गया ।
पहले Rhodes छात्रवृत्ति के बारे में कुछ मूल जानकारी देना चाहता हूँ।जो और भी अधिक जानकारी चाहते हैं वे मुझसे सीधा संपर्क कर सकते हैं मेरा e mail id अंत में दे रहा हूँ।

Cecil Rhodes, एक अंग्रेजी व्यापारी थे जो अफ़्रीका में कई साल रहकर बहुत धन जुटाने में सफ़ल हुए थे। Rhodesia उनके नाम पर ही बना था (अब नाम बदलकर Zimbabwe बन गया है)। १९०२ में उनके देहांत के बाद उनकी अपार संपत्ति में से उनके वसीयतनामे के अनुसार, Rhodes छात्रवृत्तियाँ घोषित की ।

यह केवल USA, Canada, और अन्य Commonwealth राज्यों के छात्रों के लिए आरक्षित हैं और केवल Oxford University में पढ़ाई करने के लिए दी जाती है। विश्व में किसी और विश्वविध्यालय के लिए नहीं दी जाती। हर साल करीब ९० छात्रवृत्तियाँ घोषित की जाती है जिसमें से ३२ USA के लिए, Canada, Australia, South Africa के लिए ९(प्रत्येक) और भारत के लिए केवल ५ घोषित हुई है। अन्य Commonwealth राज्यों (जैसे सिंगापोर, मलेयसिया, वगैरह के लिए और भी कम हैं)। सभी विषयों के लिए (जो Oxford University में पढ़ाई जाती है), यह छात्रवृत्ति उपलव्ध है (Science, Engineering, Humanites, Law, Agriculture, Medicine)।
यह दो साल के लिए दी जाती है और विशेष परिस्थितियों में तीन साल के लिए। छात्र/छात्रा की आयु १९ से लेकर २५ तक हो सकती है। आजकल छात्रवृत्ति की रकम है करीब १००० pounds प्रति महीना।इसके अलावा कॉलेज के फ़ीस नहीं देनी पढ़ती और अपने देश से आने जाने का खर्च भी दिया जाता है।
मेरे बेटे ने बताया कि यह रकम भारत के छात्रों के लिए जरूरत से ज्यादा है और इस रकम से वह आराम से रह सकता है और काफ़ी कुछ बचा भी लेता है।

हर देश में Rhodes Trust की एक Selection committee होती है और अगस्त के महीने में अर्जियाँ स्वीकार की जाती हैं, सितम्बर में क्षेत्रीय Interviews होते हैं (मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, और बैंगलौर में) और छाँटने के बाद अन्तिम Interview और selection दिसम्बर में दिल्ली में की जाती है।committee में देश के जाने माने हस्तियों को शामिल किया जाता है। एक ज़माने में प्रधान मन्त्री मनमहोन सिंह इस कमिटी में थे (शायद committe की अध्यक्ष भी थे?)। आजकल Infosys के Chairman श्री नारायणमूर्ति, रंगमंच के प्रसिद्ध कलाकार और लेखक गिरिश कर्नाड, इस कमिट्टी के सदस्य हैं। इन्होंने मेरे बेटे नकुल का जोरदार interview लिया था।

Cecil Rhodes की वसियतनामे के अनुसार, इन छात्रों के निम्नलिखित गुण/योगयताएं होनी चाहिएं।

1)Exceptionally brilliant and consistent Academic record throughout (School and College)

2)Outstanding achievements at national level in extra curricular activites ।

3)Proven record of social service and committment to social causes and एनवायरनमेंट।

Rhodes trustके नियमों के अनुसार (उन्हीं के शब्दों में):-------------------------------------Qualities of intellect, character and leadership are what the committee will be looking for in a candidate। A Rhodes Scholar should not be one-sided or selfish। Intellectual ability must be founded upon sound character and integrity of character upon sound intellect। Cecil Rhodes regarded leadership consisting of moral courage and interest in one's fellow beings, as the more aggressive qualities. It was his hope that a Rhodes Scholar would come to esteem the performance of public duties as the highest aim. -------

इसके अलावा, हर छात्र की अर्जी के साथ समाज के किसी अच्छे जाने माने, और अपने अपने क्षेत्रों में सक्षम, कामयाब और जिम्मेदार नागरिकों से समर्थन और सिफ़ारिश की आवश्यकता है लेकिन पर्याप्त नहीं। यह जरूरी नहीं के वे celebrities हों लेकिन उनका उम्मीद्वार को निजी तौर से जानना जरूरी है।अपनी अर्जी के साथ छात्र/छात्रा को १००० शब्दों के अन्दर एक निबन्ध लिखना पड़ता है जिसपर सेलेक्शन कमिटी अपने अंतिम साक्षातकार के समय छात्र के साथ बहस करेगी।ज़ाहिर है के जो भी छात्र यह सभी शर्तें पूरी करता है, और सफ़ल हो जाता है, वह कोई साधारण छात्र नहीं होगा। देश के हर कोने से हर विषय में रुचि रखने वाले हज़ारों छात्रों से अर्जियाँ मिलती होंगी और छाँटकर कुछ छात्र/छात्रओं को देश के चार क्षेत्रीय बुलाया जाता है।

जब इस छात्रवृत्ति के लिए अर्जी देने के लिए नकुल ने इच्छा जाहिर की, तो मैं ने केवल मुस्कुराकर उससे कह दिया, हाँ जो भी खर्च हो बता देना, हम तैयार हैं और "Best of Luck!"। उत्तर में वह भी मुस्कुराकर धन्यवाद कहा। उस समय मैं इस Scholarship के बारे में इतना सब जानता ही नहीं था। सुन चुका था इसके बारे में लेकिन कभी इसके बारे में अधिक जानने की कोशिश नहीं की थी। हम धरती पर रेंगने वाले, तारें तोड़ने के बारे में क्या सोचेंगे!

मैं जानता था के मेरा बेटा होनहार है लेकिन कभी सोचा भी नहीं था के यह इस हद तक कामयाब होगा। अर्जी भेजने में हमारा क्या बिगडेगा? मुझे ठीक याद नहीं हमने अर्जी देने में कितने खर्च किए लेकिन वह तो शायद एक हज़ार रुपयों सी ज्यादा नहीं हुआ होगा। अर्जी देने के बाद मैं इस मामले को भूल गया था।

सेप्टेंबर के महीने में जब preliminary interview के लिए उसे बैंगलौर में Indian Institute of Science में बुलाया गया, मैं भी साथ गया था उसे अपनी गाड़ी में पहुँचाने के लिए। वहाँ दक्षिण भारत के चमकते सितारों की भीड़ जब मैने देखी, तो मेरी सभी उम्मीदें गायब हो गईं। कई उम्मीद्वारों से मिलकर इधर-उधर की बातें भी की। एक से एक बढ़कर निकले यह छात्र/छात्राएं और मैं सोचने लगा था कैसे इन लोगों में से केवल पाँच को चुनेंगे! मुझे तो सभी योग्य लग रहे थे।एक अनोखा अनुभव था वह। अधिकाँश लोग २४ या २५ साल के लगते थे और सब ने अपनी अपनी पढ़ाई पूरी भी की थी और PhD या किसी अन्य विषय में Oxford में MA/MSc वगैरह करने के इच्छुक थे। कईओं की तो डरावने वाली दाढ़ी/मूँछें भी थीं इनके सामने मेरा नकुल तो दूध पीता हुआ एक बच्चा लगता था। मैंने सोचा, चलो यह भी जीवन में एक अनुभव है नकुल के लिए। जब नवंबर में सूचना मिली कि नकुल preliminary round में सफ़ल हुआ है तो हम अत्यंत खुश हुए। चलो, इस विशाल देश के लाखों विद्यार्थियों में से केवल १९ चुने हुए श्रेष्ठ विद्यार्थियों में से वह एक है। क्या यह कम है? हम बस इससे ही खुश होने के लिए तैयार थे। हम चिन्तित भी हुए। मंज़िल के इतने पास आकर अगर वह वहाँ तक पहुँच नहीं सका, तो उस बेचारे पर क्या बीतेगी? क्या असफ़लता का सामना maturity के साथ कर पाएगा?

२, दिसम्बर, 2006 को दिल्ली में उसका अन्तिम साक्षातकार हुआ।पत्नि और मैं भी उसके साथ जाना चाहते थे लेकिन उसने साफ़ मना कर दिया और हम पति-पत्नि बैंगलौर में सुबह १० बजे से लेकर ३ बजे तक नाखून काटते काटते कैसे समय बिताए यह हमें आज भी याद है।
दोपहर के ३ बजे जब अमेरिका से फ़ोन आया (मेरी बेटी से जो रात भर जागकर उसके लिए प्रार्थना करती रही) और वह फोन पर ही चीखती चिल्लाती नकुल की सफ़लता की घोषिणा की, तो हमारी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है। पत्नी तो रोने लगी थी और लिपट गई थी मुझसे। मुझे भी जीवन में पहली बार वह "lump in one's throat" का अनुभव हुआ। भाई बहन के बीच इतना प्यार था कि नकुल ने सबसे पहले खुशखबरी अपने से ९ साल बडी दीदी को ही दी और कहा कि माँ और पिताजी को तुम ही फ़ोन करके बता दो! वह जानता था के उसकी दीदी उसके लिए अमेरिका में बैठी रात भर जाग रही है।उस शाम मन्दिर में जाकर न जाने कितने नारियल फ़ोड़े हम लोगों ने।
अब कैसे और क्यों नकुल को सफ़लता मिली, यह अगली कड़ी में बताऊंगा।फ़िलहाल, ये दो चित्र संलग्न कर रहा हूँ।

पहले में Times of India में छपा उसका एक प्रोफ़ाइल









दुसरे में selection की घोषणा के तुरन्त बाद, सफ़ल छात्रों के साथ पूरी सेलेक्शन कमिट्टी का एक समूह चित्र।नकुल पीछे, बाएं तरफ़ से तीसरे स्थान पर है।







शेष अगली कड़ी में।शुभकामनाएंगोपालकृष्ण विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरुemail id:gvshwnth AT याहू डॉट कॉम geevishwanath AT जीमेल डॉट कॉम)

10 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अनिता जी का बहुत आभार, इस कथा को सामने लाने के लिए। विश्वनाथ जी आप इतने संकोची क्यों हैं। यह ठीक है कि अपने मियाँ मिट्ठू बनने की बात कोई हमें कहे तो अच्छा नहीं लगता। इस चक्कर में मै ने बहुत हानि अपने जीवन में की है और कर रहा हूँ। बदलना चाहता हूँ, लेकिन शायद स्वभाव भी नैसर्गिक ही होता है। व्यक्ति चाहते हुए भी नहीं बदल पाता। लेकिन अगर आप की यह कथा सार्वजनिक न होती तो न जाने कितने प्रतिभावान विद्यार्थी इस से वंचित रह जाते। वे ऐसी कथाओं से प्रेरणा लेते हैं, और उन के अभिभावक भी। वे चाहे वहाँ तक न पहुँच सकें लेकिन प्रेरणा उन्हें कुछ तो ऊपर उठाती ही है।
अब सोचिए विश्वनाथ जी कितना नुकसान कर रहे थे देश का?

Abhishek Ojha said...

प्रेरणादायक कहानिया अपनी ही हो तो सुनाने में क्या हर्ज़ है.. द्विवेदी जी से पूर्णतया सहमत हूँ ... वृतांत जारी रखें ..

रंजू भाटिया said...

जानकारी के साथ प्रेरणा दायक लेख है

Anita kumar said...

विश्वनाथ जी हिन्दी में एक कहावत है बिल्ली के भाग से छींका फ़ूटा, आप के आने से मेरे ब्लोग पर तो बहार आ गयी। मुझे पक्का यकीन है कि कई अभिभावक बार बार इस जानकारी को लेने इस पोस्ट पर आते रहेगें, अगली कड़ियों का इंतजार है।
एक बार फ़िर आप का धन्यवाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बेटे नकुल की सफलता का इतिहास पढते
आँखेँ, खुशी के आँसुओँ से
नम हो गयीँ -
मेरे आशिष -
आपकी बिटिया के बारे मेँ भी लिखियेगा -
आगे लिखते रहिये-
इस पोस्ट की जानकारी
सभी को आगे भी
काम आती रहेँगीँ ..
- लावण्या

Gyan Dutt Pandey said...

वाह! पढ़ते पढ़ते "लम्प इन थ्रोट" तो हमारे भी आ गया। बधाई जी।

मीनाक्षी said...

अनिता दी सबसे पहले तो आपका शुक्रिया जो इस लेख के माध्यम से आज के बच्चों को प्रेरणा दे रही हैं. नकुल को हमारा खूब सारा प्यार और आशीर्वाद

Udan Tashtari said...

बहुत जानकारी पूर्ण एवं प्रेरणादायक आलेख के लिये आपका आभार.

pallavi trivedi said...

nakul ko bahut bahut badhai uski shaandar safalta ke liye...bahut prerna milegi aaj ke bachchon ko ise padhkar.

36solutions said...

आभार अनिता जी । रोचक, प्रेरणादायक व ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए । विश्वनाथ जी व नकुल को हमारी शुभकामनायें ।