आठ साल पहले घर से बाहर जाते हुए एक 17 /18 बरस का मासूम सा नौजवान गैरेज में बैठा दिखाई दिया। हमें देखते ही बड़ी तत्परता के साथ गेट खोलने आगे बढ़ लिया। अक्सर हमारे चौकीदार के मित्रगण उससे मिलने आते ही रहते थे और चौकीदार की ऐसे कामों में मदद भी करते रहते हैं । हम जल्दी में थे कोई ध्यान नहीं दिया। शाम को लौटे तो उसी नौजवान को एक शर्मीले से अभिवादन के साथ गेट खोलते पाया। पूछने पर पता चला वो नया चौकीदार नियुक्त हुआ है।
नाम है पन्नालाल देखने में सुन्दर, पतला पर स्वस्थ बदन का,अभी मसें भी न भीगी थीं। हमारे और ज्यादा पूछ्ने पर डरते डरते बताया -गांव झरोनिया, जिल्हा इलहाबाद, दसंवी फ़ैल, पिता किसान, चार भाई। इससे ज्यादा कुछ बताता तब तक हमारी सोसायटी का दूसरा चौकिदार उसे हमारी प्रश्नावली से बचा कर ले गया। दूसरे चौकीदार को हम कुछ कह न पाए, कैसे कहते, उनकी उम्र होगी लगभग पचास पचपन की, पूरा नाम तो हम भी भूल चुके हैं उन्हें हम बुलाते हैं तिवारी जी, पता चला वो यू पी से हैं और एम ए पास हैं हिन्दी में । गांव में कोई नौकरी का जुगाड़ नही हो सका तो शहर चले आये और कोई नौकरी न मिली तो चौकीदारी ही कर ली, इस बहाने किराए का मकान तो नहीं लेना पड़ेगा। अब दोनों पंप रूम में खाना बनाते हैं और वहीं गैरेज में सो लेते हैं। शुरुवात में आज से आठ साल पहले दोनों की पगार 1000 रुपये प्रति माह थी अब बड़ कर 3000 रुपये प्रति माह है।
हमने जब सुना कि तिवारी जी एम ए पास है और चौकीदारी कर रहे हैं तो मन रो उठा। हमने उनको सुझाया कि वो दूसरी जगह कोई और नौकरी क्युं नहीं तलाश करते, पर उनका कहना था कि हिन्दी को कौन पूछता है और उनके पास कोई अनुभव भी नहीं था और फ़िर दूसरी नौकरी में किराए पर खर्च कर जितना पैसा बचा पायेंगे अब भी उतना ही बचाते हैं। हमने सुझाया कि सारा दिन यूं ही ऊंधते रहने से अच्छा है वो कुछ बच्चों की ट्युशन ले लें। उनके पास कोई तर्क नहीं था हमारी बात काटने का, इस लिए देखते हैं कह कर टाल गये। उनकी ड्युटी लगती थी रात की लिहाजा वो दिन में सोते हुए नजर आते थे, पर लोगों को ये भी शिकायत थी कि वो रात को भी घोड़े बेच कर सोते हैं। एम ए पास होने के बावजूद अगर उन्हें कोई बाहर का काम दे दिया जाए तो उन्हें पिस्सु पड़ जाते थे। बाहर का काम जैसे पानी, बिजली का बिल भरना, सबके टेलिफ़ोन के, बिजली के बिल जमा कर एक साथ भर कर आना, सोसायटी के बैंक के काम निपटाने। बम्बई की दौड़ती भागती जिन्दगी में इन सब कामों के लिए हम लोग चौकीदारों पर काफ़ी निर्भर करते हैं।
इसके विपरीत पन्नालाल जो पहले बड़ा शर्मीला सा बच्चा लगता था अब काफ़ी कारगर सिद्ध हो रहा था। बाहर के काम वो चुटकियों में समझ जाता था और बड़ी मुस्तेदी से करता था। धीरे धीरे वो कई ग्रहणियों का मुंहलगा पसंदीदा चौकीदार बन गया। और क्युं न होता वो इतना महनती जो था , लोगों की सब्जी, ब्रेड, इत्यादी खरीदने से लेकर शाम को बच्चे संभालने तक का काम वो करता था। हर मर्ज की दवा है पन्नालाल्। आप को घर में काम करने वाली बाई चाहिए पन्नालाल को बोल दिजिए, शाम तक कई बाइयां आप के घर पहुंच जांएगी, ऊंची बिल्डिंगों में अक्सर मधुमक्खी के छ्त्ते की परेशानी आये दिन होती रहती है, आप के घर मधुमक्खी ने छ्त्ता बना लिया है, पर आप उसे जला कर अपनी दिवार का पेंट खराब नहीं करना चाहते अभी अभी तो करवाया था, पन्नालाल के पास उसका भी हल है-बेगॉन स्प्रे, आप के पास 200 गमले हैं जिनकी गुढ़ाई, निराई करनी है, पन्नालाल हाजिर है। आप के घर का दरवाजा हवा से बंद हो गया है और आप बाहर अटक गये हैं पन्नालाल को बुलाइए। कारें धोते तो अक्सर चौकीदार हर सोसायटी में आप को मिल जाएगें पर आश्चर्य तो हमें तब हुआ जब सात साल पहले हम अपनी कार को मन चाहे ढंग से पार्किंग में लगा नहीं पा रहे थे, और पन्नालाल आया और बोला मैं लगा देता हूँ। उसके आत्मविश्वास को देखते हुए हम न नहीं कर पाए न पूछ पाए गाड़ी चलानी आती है क्या? उसने गाड़ी इतनी बड़िया पार्क की हम पूछे बिना रह नहीं पाए। बड़ी लापरवाह नम्रता के साथ उसने बताया कि वो गांव में जीप चलाया करता था। उस समय तो ठीक से समझे नहीं पर बाद में पता चला कि वो वहां जीप से सवारियां ढोने का काम किया करता था । उसके बाद कई दिनों तक हमें इस बात का प्रलोभन रहता था कि गाड़ी पार्क करने के लिए उसे दे दें। वो भी खुशी खुशी करता था पर इस प्रलोभन पर काबू पाया ये सुच कर कि हम कब ठीक से पार्क करना सीखेंगे। लेकिन टायर पंक्चर हो जाए तो उसे बदलने की जिम्मेदारी अभी भी उसी की है।
अजी ये तो कुछ भी नहीं, अवाक तो हम उस दिन रह गये थे जब पन्नालाल एक दिन हमारे पास आया और बोला
"मैने सुना है आप दूसरा मकान खरीदना चाहती हैं?
हमने हंस कर कहा।
हां है कोई नजर में?
बोला " हां "
उस दिन हमें पता चला कि वो इस्टेट एजेंसी का साइड बिसनेस करता है। हमारे घर के पास तीन चार इंजीरियंग कॉलेज हैं और कई छात्र बाहर से पढ़ने आते हैं। इन कॉलेजों में होस्टेल नहीं हैं और छात्र कॉलेज के पास किराए के मकान तलाश करते है तो पन्नालाल और उसके गांव से आये और साथियों ने मिल कर बिन दुकान के ये धंधा शुरु कर लिया। जून के महीने में ये चौकीदार सारा सारा दिन गेट के पास खड़े पाए जाएंगे, छात्रों के झुंड जो दलाली देने से बचना चाह्ते हैं इन लोगों से पूछ्ते हैं कोई मकान मिलेगा और ये कम दलाली में उन्हें मकान दिला देते हैं। इसी तरह से किस सोसायटी में कौन सा मकान बिक रहा है सब खबर रहती है। अक्सर जिस बिल्डिंग में दलाल की दुकान होती है उसका चौकीदार भी इनका दोस्त होता है जैसे ही कोई ग्राहक दलाल की दुकान से निकला ये उसे घेर घार कर कम दलाली में मकान दिलाने की कौशिश करते है।
पन्नालाल अपने हिसाब का बड़ा पक्का है, बिना पैसे लिए वो कोई काम नहीं करता, अगर उसकी लाई हुई बाई आपने रक्खी तो वो बाई से कमीशन लेता है काम दिलाने का, अगर आपने उसे नीचे से गुजरते ठेले वाले को रोकने को कहा तो जो कुछ भी खरीदो उसे नजराना देना पड़ेगा। है तो दसवीं फ़ैल पर अग्रेजी काफ़ी समझ लेता है। ऊपर लिखे सब काम वो पैसे ले कर ही करता है।
पन्नालाल की एक आदत हमें बहुत खराब लगती है वो अपने काम से काम नहीं रखता, बिल्डिंग में सबके घर में क्या चल रहा है उसे पूरी जानकारी रहती है। एक दिन जब हमारी डाक आयी तो हम उसके नाम का खत अपने पते पर देख कर चौंक गये। पता लगा कि हमारा इन्सयौरेंस का काम जो एंजेट देखता है उस पर पन्नालाल की कई दिन से नजर थी। एक दिन जिज्ञासावश उसने उस एंजेट को नीचे घेर लिया पूछ्ने के लिए वो क्युं आता है? हमारा एंजेट भी इलाहाबादी, तो साहब उसने इसको इंस्यौरेंस के बारे में जानकारी दी। अब इनके मन में भी आया की एक पॉलिसी ली जाए, समस्या सिर्फ़ मकान का पता किसका दें वो थी सो हमसे पूछे बिना हमारे पते पर पॉलिसी ले ली गयी, सोसायटी के सेक्रेटरी के पते पर बैंक एकाउंट खोला गया। गुस्सा तो हमें बहुत आया लेकिन उसकी अपनी जिन्दगी संवारने की ललक को देखते हुए हमारा गुस्सा उड़नछू हो गया। ये एक आदमी था जो अपने सपने साकार करने के लिए किसी बाधा को बीच में न आने देता था और एक बार मन में कुछ निश्चय कर लिया तो फ़ुर्ती से आगे बड़ता था।![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxUWWTgKOaq0hpspvVx09xZe8HYI2cqOVTwVdxpTnemHS1LwwI_KaEBcmhIfJsQdUx1HtlGT8ce-awZoQxBnejw7KRpu-uE-FpxTtCab86KfT-HEj3w1MBKUSt9WrJGzND9bMW1la2jxmO/s320/%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE+002.jpg)
एक दिन हम रात को लौटे तो देखा ये महाराज आराम से कुर्सी पर पांव फ़ैलाए गैरेज में टी वी देख रहे हैं। टी वी-- कई प्रश्न दिमाग में कौंध गये। पूछ्ने पर पता चला उसने खुद खरीदा है शायद सेकेंड हैंड, ब्लैक एंड वाइट, पर केबल कनेक्शन कहां से लिया, ये गुत्थी मैं आज तक नहीं सुलझा पायी। उसकी सिर्फ़ एक ही समस्या है। हमारी बिल्डिंग में एक रिटार्यड अकंल जी रहते हैं जिनका तीन चौथाई दिन नीचे घूमते या गैरेज में बैठ कर गुजरता है। अब जब से पन्नालाल टी वी लाया है तब से उन्होने घर पर टी वी देखना ही छोड़ दिया है। अब पन्नालाल को भी 25 साल की उम्र में जबरन आसाराम जी को सुनना पड़ता है और रामदेव बाबा को देखना पड़ता है।
दिन की ड्युटी में उसे ये नौकरी से अलग दूसरे धंधे करने में बड़ी तकलीफ़ हो रही थी, दिन भर सोसायटी में बंध जाए तो मकान कैसे दिखाए। उन दिनों हम खजानची थे सो हमको आकर बोला देखिए ये मेरे साथ बहुत ज्यातती है, मुझे ही क्यों दिन की ड्युटी पर रक्खा जाता है हमेशा। हमने समझाया कि तिवारी जी बाहर के काम करने में सक्षम नहीं इस लिए। पर ये तो उसकी काबलियत की सजा जैसे था। बात हमें जंच गयी और नियम बना कि आधा महीना वो रात की ड्युटी करेगा और आधा महीना तिवारी जी। तिवारी जी को बात पसंद न आयी क्युं कि दिन में काम ज्यादा रहता है पर आखिरकार मानना ही पड़ा। वो उसके साइड बिसनेस की चुगली भी नहीं लगा सकते थे क्योंकि हम खुद इस बात को बढ़ावा देते थे कि बिना नौकरी से बेइमानी किए अपने खाली वक्त में तुम ऐसा कुछ जुगाड़ करना चाहो तो करो। सोच रही हूँ इसे हिन्दी में पढ़ने के लिए धीरुभाई अंबानी की जीवन गाथा दे दूँ। सपने थोड़े और बड़े हो जाएगें।
इसी पन्नालाल का एक और पहलू भी है उसके इस चालाक, तेज तरार रूप से एकदम अलग। उसका बड़ा भाई बाजू वाली बिल्डिंग में चौकीदार है, वो तिवारी जी जैसा, लेकिन पन्नालाल उसकी बहुत इज्जत करता है, करनी भी चाहिए। पर इन्तहा ये है कि पन्नालाल को अपनी पत्नी का नाम तक नहीं पता और एल आई सी पॉलिसीस पर नॉमिनेशन में बड़े भाई का नाम लिखाया है। बहुत समझाया पर ये तो लक्ष्मण है न्। ये है आज का युवा, भारत के भविष्य का एक हिस्सा
नाम है पन्नालाल देखने में सुन्दर, पतला पर स्वस्थ बदन का,अभी मसें भी न भीगी थीं। हमारे और ज्यादा पूछ्ने पर डरते डरते बताया -गांव झरोनिया, जिल्हा इलहाबाद, दसंवी फ़ैल, पिता किसान, चार भाई। इससे ज्यादा कुछ बताता तब तक हमारी सोसायटी का दूसरा चौकिदार उसे हमारी प्रश्नावली से बचा कर ले गया। दूसरे चौकीदार को हम कुछ कह न पाए, कैसे कहते, उनकी उम्र होगी लगभग पचास पचपन की, पूरा नाम तो हम भी भूल चुके हैं उन्हें हम बुलाते हैं तिवारी जी, पता चला वो यू पी से हैं और एम ए पास हैं हिन्दी में । गांव में कोई नौकरी का जुगाड़ नही हो सका तो शहर चले आये और कोई नौकरी न मिली तो चौकीदारी ही कर ली, इस बहाने किराए का मकान तो नहीं लेना पड़ेगा। अब दोनों पंप रूम में खाना बनाते हैं और वहीं गैरेज में सो लेते हैं। शुरुवात में आज से आठ साल पहले दोनों की पगार 1000 रुपये प्रति माह थी अब बड़ कर 3000 रुपये प्रति माह है।
हमने जब सुना कि तिवारी जी एम ए पास है और चौकीदारी कर रहे हैं तो मन रो उठा। हमने उनको सुझाया कि वो दूसरी जगह कोई और नौकरी क्युं नहीं तलाश करते, पर उनका कहना था कि हिन्दी को कौन पूछता है और उनके पास कोई अनुभव भी नहीं था और फ़िर दूसरी नौकरी में किराए पर खर्च कर जितना पैसा बचा पायेंगे अब भी उतना ही बचाते हैं। हमने सुझाया कि सारा दिन यूं ही ऊंधते रहने से अच्छा है वो कुछ बच्चों की ट्युशन ले लें। उनके पास कोई तर्क नहीं था हमारी बात काटने का, इस लिए देखते हैं कह कर टाल गये। उनकी ड्युटी लगती थी रात की लिहाजा वो दिन में सोते हुए नजर आते थे, पर लोगों को ये भी शिकायत थी कि वो रात को भी घोड़े बेच कर सोते हैं। एम ए पास होने के बावजूद अगर उन्हें कोई बाहर का काम दे दिया जाए तो उन्हें पिस्सु पड़ जाते थे। बाहर का काम जैसे पानी, बिजली का बिल भरना, सबके टेलिफ़ोन के, बिजली के बिल जमा कर एक साथ भर कर आना, सोसायटी के बैंक के काम निपटाने। बम्बई की दौड़ती भागती जिन्दगी में इन सब कामों के लिए हम लोग चौकीदारों पर काफ़ी निर्भर करते हैं।
इसके विपरीत पन्नालाल जो पहले बड़ा शर्मीला सा बच्चा लगता था अब काफ़ी कारगर सिद्ध हो रहा था। बाहर के काम वो चुटकियों में समझ जाता था और बड़ी मुस्तेदी से करता था। धीरे धीरे वो कई ग्रहणियों का मुंहलगा पसंदीदा चौकीदार बन गया। और क्युं न होता वो इतना महनती जो था , लोगों की सब्जी, ब्रेड, इत्यादी खरीदने से लेकर शाम को बच्चे संभालने तक का काम वो करता था। हर मर्ज की दवा है पन्नालाल्। आप को घर में काम करने वाली बाई चाहिए पन्नालाल को बोल दिजिए, शाम तक कई बाइयां आप के घर पहुंच जांएगी, ऊंची बिल्डिंगों में अक्सर मधुमक्खी के छ्त्ते की परेशानी आये दिन होती रहती है, आप के घर मधुमक्खी ने छ्त्ता बना लिया है, पर आप उसे जला कर अपनी दिवार का पेंट खराब नहीं करना चाहते अभी अभी तो करवाया था, पन्नालाल के पास उसका भी हल है-बेगॉन स्प्रे, आप के पास 200 गमले हैं जिनकी गुढ़ाई, निराई करनी है, पन्नालाल हाजिर है। आप के घर का दरवाजा हवा से बंद हो गया है और आप बाहर अटक गये हैं पन्नालाल को बुलाइए। कारें धोते तो अक्सर चौकीदार हर सोसायटी में आप को मिल जाएगें पर आश्चर्य तो हमें तब हुआ जब सात साल पहले हम अपनी कार को मन चाहे ढंग से पार्किंग में लगा नहीं पा रहे थे, और पन्नालाल आया और बोला मैं लगा देता हूँ। उसके आत्मविश्वास को देखते हुए हम न नहीं कर पाए न पूछ पाए गाड़ी चलानी आती है क्या? उसने गाड़ी इतनी बड़िया पार्क की हम पूछे बिना रह नहीं पाए। बड़ी लापरवाह नम्रता के साथ उसने बताया कि वो गांव में जीप चलाया करता था। उस समय तो ठीक से समझे नहीं पर बाद में पता चला कि वो वहां जीप से सवारियां ढोने का काम किया करता था । उसके बाद कई दिनों तक हमें इस बात का प्रलोभन रहता था कि गाड़ी पार्क करने के लिए उसे दे दें। वो भी खुशी खुशी करता था पर इस प्रलोभन पर काबू पाया ये सुच कर कि हम कब ठीक से पार्क करना सीखेंगे। लेकिन टायर पंक्चर हो जाए तो उसे बदलने की जिम्मेदारी अभी भी उसी की है।
अजी ये तो कुछ भी नहीं, अवाक तो हम उस दिन रह गये थे जब पन्नालाल एक दिन हमारे पास आया और बोला
"मैने सुना है आप दूसरा मकान खरीदना चाहती हैं?
हमने हंस कर कहा।
हां है कोई नजर में?
बोला " हां "
उस दिन हमें पता चला कि वो इस्टेट एजेंसी का साइड बिसनेस करता है। हमारे घर के पास तीन चार इंजीरियंग कॉलेज हैं और कई छात्र बाहर से पढ़ने आते हैं। इन कॉलेजों में होस्टेल नहीं हैं और छात्र कॉलेज के पास किराए के मकान तलाश करते है तो पन्नालाल और उसके गांव से आये और साथियों ने मिल कर बिन दुकान के ये धंधा शुरु कर लिया। जून के महीने में ये चौकीदार सारा सारा दिन गेट के पास खड़े पाए जाएंगे, छात्रों के झुंड जो दलाली देने से बचना चाह्ते हैं इन लोगों से पूछ्ते हैं कोई मकान मिलेगा और ये कम दलाली में उन्हें मकान दिला देते हैं। इसी तरह से किस सोसायटी में कौन सा मकान बिक रहा है सब खबर रहती है। अक्सर जिस बिल्डिंग में दलाल की दुकान होती है उसका चौकीदार भी इनका दोस्त होता है जैसे ही कोई ग्राहक दलाल की दुकान से निकला ये उसे घेर घार कर कम दलाली में मकान दिलाने की कौशिश करते है।
पन्नालाल अपने हिसाब का बड़ा पक्का है, बिना पैसे लिए वो कोई काम नहीं करता, अगर उसकी लाई हुई बाई आपने रक्खी तो वो बाई से कमीशन लेता है काम दिलाने का, अगर आपने उसे नीचे से गुजरते ठेले वाले को रोकने को कहा तो जो कुछ भी खरीदो उसे नजराना देना पड़ेगा। है तो दसवीं फ़ैल पर अग्रेजी काफ़ी समझ लेता है। ऊपर लिखे सब काम वो पैसे ले कर ही करता है।
पन्नालाल की एक आदत हमें बहुत खराब लगती है वो अपने काम से काम नहीं रखता, बिल्डिंग में सबके घर में क्या चल रहा है उसे पूरी जानकारी रहती है। एक दिन जब हमारी डाक आयी तो हम उसके नाम का खत अपने पते पर देख कर चौंक गये। पता लगा कि हमारा इन्सयौरेंस का काम जो एंजेट देखता है उस पर पन्नालाल की कई दिन से नजर थी। एक दिन जिज्ञासावश उसने उस एंजेट को नीचे घेर लिया पूछ्ने के लिए वो क्युं आता है? हमारा एंजेट भी इलाहाबादी, तो साहब उसने इसको इंस्यौरेंस के बारे में जानकारी दी। अब इनके मन में भी आया की एक पॉलिसी ली जाए, समस्या सिर्फ़ मकान का पता किसका दें वो थी सो हमसे पूछे बिना हमारे पते पर पॉलिसी ले ली गयी, सोसायटी के सेक्रेटरी के पते पर बैंक एकाउंट खोला गया। गुस्सा तो हमें बहुत आया लेकिन उसकी अपनी जिन्दगी संवारने की ललक को देखते हुए हमारा गुस्सा उड़नछू हो गया। ये एक आदमी था जो अपने सपने साकार करने के लिए किसी बाधा को बीच में न आने देता था और एक बार मन में कुछ निश्चय कर लिया तो फ़ुर्ती से आगे बड़ता था।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxUWWTgKOaq0hpspvVx09xZe8HYI2cqOVTwVdxpTnemHS1LwwI_KaEBcmhIfJsQdUx1HtlGT8ce-awZoQxBnejw7KRpu-uE-FpxTtCab86KfT-HEj3w1MBKUSt9WrJGzND9bMW1la2jxmO/s320/%E0%A4%AA%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE+002.jpg)
एक दिन हम रात को लौटे तो देखा ये महाराज आराम से कुर्सी पर पांव फ़ैलाए गैरेज में टी वी देख रहे हैं। टी वी-- कई प्रश्न दिमाग में कौंध गये। पूछ्ने पर पता चला उसने खुद खरीदा है शायद सेकेंड हैंड, ब्लैक एंड वाइट, पर केबल कनेक्शन कहां से लिया, ये गुत्थी मैं आज तक नहीं सुलझा पायी। उसकी सिर्फ़ एक ही समस्या है। हमारी बिल्डिंग में एक रिटार्यड अकंल जी रहते हैं जिनका तीन चौथाई दिन नीचे घूमते या गैरेज में बैठ कर गुजरता है। अब जब से पन्नालाल टी वी लाया है तब से उन्होने घर पर टी वी देखना ही छोड़ दिया है। अब पन्नालाल को भी 25 साल की उम्र में जबरन आसाराम जी को सुनना पड़ता है और रामदेव बाबा को देखना पड़ता है।
दिन की ड्युटी में उसे ये नौकरी से अलग दूसरे धंधे करने में बड़ी तकलीफ़ हो रही थी, दिन भर सोसायटी में बंध जाए तो मकान कैसे दिखाए। उन दिनों हम खजानची थे सो हमको आकर बोला देखिए ये मेरे साथ बहुत ज्यातती है, मुझे ही क्यों दिन की ड्युटी पर रक्खा जाता है हमेशा। हमने समझाया कि तिवारी जी बाहर के काम करने में सक्षम नहीं इस लिए। पर ये तो उसकी काबलियत की सजा जैसे था। बात हमें जंच गयी और नियम बना कि आधा महीना वो रात की ड्युटी करेगा और आधा महीना तिवारी जी। तिवारी जी को बात पसंद न आयी क्युं कि दिन में काम ज्यादा रहता है पर आखिरकार मानना ही पड़ा। वो उसके साइड बिसनेस की चुगली भी नहीं लगा सकते थे क्योंकि हम खुद इस बात को बढ़ावा देते थे कि बिना नौकरी से बेइमानी किए अपने खाली वक्त में तुम ऐसा कुछ जुगाड़ करना चाहो तो करो। सोच रही हूँ इसे हिन्दी में पढ़ने के लिए धीरुभाई अंबानी की जीवन गाथा दे दूँ। सपने थोड़े और बड़े हो जाएगें।
इसी पन्नालाल का एक और पहलू भी है उसके इस चालाक, तेज तरार रूप से एकदम अलग। उसका बड़ा भाई बाजू वाली बिल्डिंग में चौकीदार है, वो तिवारी जी जैसा, लेकिन पन्नालाल उसकी बहुत इज्जत करता है, करनी भी चाहिए। पर इन्तहा ये है कि पन्नालाल को अपनी पत्नी का नाम तक नहीं पता और एल आई सी पॉलिसीस पर नॉमिनेशन में बड़े भाई का नाम लिखाया है। बहुत समझाया पर ये तो लक्ष्मण है न्। ये है आज का युवा, भारत के भविष्य का एक हिस्सा
13 comments:
अच्छा लगा पन्नालाल कि कहानी सुन कर.. आप लिखते रहें आपके पोस्ट का इंतजार रहता है मुझे.. :)
Anita Didi apney insani zindagi ka ek panna badi khoobi sey pannalaal ley through pesh kiya....
delhi key kai ase pannalalo sey mein bhi kai baar mili hun sahi mayney mein uljhi hun....par ase log safal hai jo zindagi mein karmath rehtey hai...
बहुत अच्छा लेखन ।
पन्ना लाल के दोनों पहलू अच्छे लगे।
पन्ना लाल की महिमा अपरंपार है
चाहे ज्ञान जी का भरतलाल हो या आपका पन्नालाल जिधर देखो इलाहाबाद वालो की धूम है। तिस पर आप लोगो की लंबी लेखनी - सोने पे सुहागा।
आप भी इलाहाबाद से घिरे हैं? आज ज्ञान जी ने अनूप जी को सलाह दी है कि वे चिट्ठे पर तारीख के साथ समय भी डाला करें। यह सलाह आप को भी मिलने वाली है। आलेख जल्दी आ गया होता तो पहली टिप्पणी उन की ही होती। पन्नालाल का रेखाचित्र खूब है। आप हाथ मांजती जाऐं। पढ़ते समय महादेवी जी के रेखाचित्र याद आ रही थी।
एसे ही पन्नालाल की जरूरत है भारत को हम सभी को इससे सीख लेनी चाहिए । तिवारी जी जैसे तो हर कोई हो सकता है पन्नालाल बने । तिवारी जी हिन्दी को अपनी कुंठा न बनायें ।
बहुत ही बढिया प्रस्तुति, धन्यवाद ।
क्या है छ.ग.के पुलिस प्रमुख का पत्र
बहुत ही बढ़िया लगा पन्ना लाल के बारे में पढ़कर...आपने बहुत खूबसूरती से उनके बारे में बताया है. पन्ना लाल के बारे में पढ़कर ज़रूर लगा कि मेहनती लोग ही आगे बढ़ते हैं.
बहुत ही सूक्ष्म दृष्टि और सशक्त लेखन। आपकी कलम को नमस्कार।
बहुत सुन्दर पोस्ट।
पन्नालाल उर्फ़ जुगाड़ू भइया को हमरी राम राम।
ऐसे जुगाड़ू बंदे को आज के जमाने में आगे बढ़ने से कोई नही रोक सकता!!
बहुत बढ़िया तरीके से आपने पन्नालाल ही नही बल्कि हमारे देश की एक पीढ़ी से परिचय करवा दिया।
Anita ji,
"Pannalal " ka chitra bakhoobi dikha diya aapne.
Aise hee likhtee rahiyega.
Aur haan,
Dhirubhai Ambani ki Jeevni use dee ya nahee ? :)
De hee dijiye ...
Kahanee ki aglee kadee ka intezaar
rahega.
sa sneh,
lavanya
शानदार। अब मालूम हो रहा है कि आप सच्ची में मनोविज्ञान जैसा कुछ पढ़ाती होंगी। ऐसा ही लिखती रहें जरा जल्दी-जल्दी। :)
ऐसा लेख जिसे एक बार शुरू किया तो खत्म होने तक नजरें हटी ही नहीं । पन्नालाल जी तो किसी बिजनेस स्कूल में पढ़ा सकते हैं । ऐसे ही हमें तिवारियों और पन्नालालों के बारे में बताते रहें ।
घुघूती बासूती
Post a Comment