बम्बई में हुई कल की ब्लोगर मीट की खबर तो आप तक पहुंच ही गयी। हम ठहरे आलसी बंदे, इसी लिए आप से देर से मुखातिब हो रहे हैं। जब तक घर पहुंचे नौ बज चुके थे और आ कर देखा तो घर पर महफ़िल लगी हुई थी। मेरा परिवार, भाई सपरिवार, सचिन तेंदुलकर और धोनी सब ड्रांइग रूम में धूनी रमाये बैठे थे। कंप्युटर खोलने का तो सवाल ही नहीं उठता था। आधी रात को मैच खत्म होने तक बम्बई की चांद सी सड़कों की बदौलत हम नींद की गौद में जा चुके थे।
सुबह उठे तो शाम तक टीचर के रोल में रहे ( मजबूरी है भाई, नहीं जी बच्चों को अपने लेक्चर से नहीं मार रहे थे, उनके लिखे ऊट पटांग जवाबों से खुद मर रहे थे।) जब शाम को ब्लोगजगत की दुनिया में लौटे तो पता चला कि रश्मि रविजा जी और विवेक जी तो राजधानी से भी तेज हैं जी सुपर सोनिक जेट, कल रात को ही सब को खबर कर दिये। हम आलसीराम खुश हो लिए कि चलो अब हम उनके पोस्ट पर आये कमैंट से मजा लूटेगें। हम तो कैमरा भी ले जाना भूल गये थे (जानबूझ के:)) लेकिन हमारे मित्रगण हड़काऊगिरी में नंबर एक हैं… लगे हड़काने।
हमने कहा भी, 'अमां यार, रिपोर्ट तो रश्मि जी ने पढ़वा दी फ़ोटू विवेक जी ने दिखला दी अब और भी बोर
होने की ताब बाकी है? हमारे ये परम मित्र 'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…।' की तर्ज पर बोले 'देखना है बोर कितना, करने की ताब तुझ में है'। तो जनाब आप को क्या लगता है हम क्या कर रहे हैं? हाँ………ठीक समझे आप:)
स्कूल के दरवाजे पर बोधीसत्व जी, विमल जी, अनिल रघुराज जी और हमारे आगे आगे ही आये अभय जी परफ़ेक्ट होस्ट के रूप में स्वागत में खड़े पाये गये। अब तक तो हम कुछ महसूस नहीं कर रहे थे, लेकिन इन लोगों को देखते ही एक खुशी की लहर दौड़ गयी मानों बरसों से बिछड़े सगे संबधियों से मिल रहे हों। उम्मीद है कि उन्हें भी उतनी ही खुशी हुई होगी।
यूँ तो घुघुती जी ने बताया था फ़ोन पे कि ऐसी ब्लोगर मीट की संभावना बन रही है पर हमारा जाना कुछ निश्चित नहीं था। आभा जी का मेल आया तो ब्लोगर मीट में किस विषय पर चर्चा होगी ये भी स्पष्ट किया हुआ था,'मेरी रचना, मेरी कलम और ब्लोगकी दुनिया'। विषय रोचक लग रहा था। हम अब भी नहीं तय कर पाये थे कि हम जायेगें या नहीं। बाई मिस्टेक यूनुस जी ऑन लाइन दिखाई दिये, बाई मिस्टेक इस लिए कह रहे हैं कि वो इन्विसिबल रहना चाह्ते थे लेकिन लोगों को दिख रहे थे। खैर हमने पूछा जादू आ रहा है? उन्हों ने बताया की वो बम्बई का स्टार ब्लोगर है उसके बिना ब्लोगर मीट कैसे हो सकती है। ह्म्म, अब ये एक और लालच हमारे सामने था, इतने में आभा जी और बोधी जी भी चैट पर आ गये और कहा कि हम पूछ नहीं रहे कह रहे हैं कि आप को आना है। चलो जी, अब हम आलसीराम को निर्णय लेने की कोई जरूरत ही नहीं थी, निर्णय तो लिया जा चुका था , अपने को तो सिर्फ़ हुकुम की तामील करनी थी। सो हमने झट से घुघुती जी की कार को थम्ब डाउन दिखाया और लपक कर उनके साथ हो लिए। बहुत मजा रहा, क्युं कि हम ड्राइव नहीं कर रहे थे, उन अनजान गलियों की भूलभुलैयां बूझने का काम उनके ड्राइवर ने किया और बम्बई के ऐसे दर्शन कराये जो हमने पिछले तीस सालों में नहीं किये थे। रास्ते भर ट्रैफ़िक हमारी कार को गलबहियां करता रहा जैसे समुद्री ओक्टोपस। उनका ड्राइवर किसी महायौद्धा की भांति ट्रैफ़िक से जुझता रास्ता बनाता रहा और हम 92 7 एफ़ एम का मजा लूटते चिव्युगम चबाते बतियाते रहे, गुनगुनाते रहे।
दुआ सलाम के बाद हम सब क्लास रूम की ओर चल दिये। क्लास शायद के जी के बच्चों की रही होगी, छोटी छोटी बेन्च और बोर्ड पे लिखा हुआ ब्लोगर मीट। वहां आभा जी और दो महिलाये और पहले से मौजूद थीं जिन्हें हम नहीं पहचानते थे। हम आभा जी से करीब दो साल बाद मिल रहे थे। हमने गौर किया कि वो पहले से भी ज्यादा खूबसूरत दिख रही हैं, एकदम सौम्य, धीर गंभीर पर स्नेहमयी और बोधी जी तो मेहमान नवाजी में निपुण लग रहे थे। हम क्लास में सबसे पीछे की बेन्च पर जा के बैठे, घुघूती जी बीच बीच में कान में पूछ रही थीं ये कौन हैं? हम फ़ुसफ़ुसा के बता रहे थे ये विमल जी हैं, ये अनिल रघुराज जी, ये विवेक जी। विवेक जी को मैं पहली बार देख रही थी लेकिन तुरंत पहचान लिया( उन्हों ने अपना सर मुड़ाने पे पोस्ट जो लिखी थी…:) )
परिचय का दौर
जैसा रश्मि जी ने बताया परिचय का दौर कई बार शुरु हुआ, चर्चा के विषय की तरफ़ मुड़ा, यूनुस जी की लेट एन्ट्री से कुछ ठिठका, आगे बड़ा, राज सिंह जी की एन्ट्री से फ़िर ठिठका, टी ब्रेक हुआ और फ़िर दोबारा शुरु हुआ। अंत में परिचय और चर्चा का विषय आपस में चाइनीस नूडलस की तरह घुलमिल कर हिन्दी चीनी भाई भाई का नारा लगाने लगे।
परिचय आरंभ हुआ विभा रानी जी से, वो इन्डियन आइल में काम करती हैं, फ़िर आया विवेक जी पर। विवेक जी ने अपने ब्लोगस का परिचय दिया और बाकि परिचय ऐसे दिया जैसा बायोडेटा में लिखा रहता है, शायद थोड़ा झिझक रहे थे कि कितना खुलें…हमने थोड़ा चाबी मारने का काम किया, उनके भविष्य के प्लान के बारे में बोलने को उकसाया( जो हमें मालूम था)। मैं और विवेक जी इस बात से पूर्णत्या सहमत है कि आज एक बहुत ही लाजवाब कैरियर अगर है तो वो ये कि आप गॉडमेन बन जाइए, मिनिमम लागत और ढेरों पैसा और ऐशो आराम्…कोई बॉस का झंझट नहीं। विवेक जी का आध्यात्म और पौराणिक कथाओं की तरफ़ काफ़ी झुकाव है, उस पर वो एक ब्लोग भी चलाते हैं। हमने उन्हें देवदत्त पटनायक की किताबें पढ़ने की सलाह दी और यू ट्यूब पर भी उस के लेक्चर देखने को कहा। जो उन्हों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।
राजसिंह और नितीश कुमार
फ़िर ये परिचय आभा जी, ममता जी से घूमता हुआ राजसिंह जी पर पहुंच गया। रश्मि जी बता ही चुकी हैं कि राज सिंह जी ने आते ही हांक लगायी थी ' ओह! अनिता जी आप भी आयी हैं?' और आश्चर्य से हमारी आंखे चश्मे के बाहर गिरते गिरते बचीं। हम ऐसे अचंभित हुए कि बेवकूफ़ी के सवाल पूछने लगे, 'आप कौन?' अरे समझने की बात है, ब्लोगर मीट में आया तो ब्लोगर ही होगा, कैसा बेवकूफ़ी का सवाल था? खैर, राज सिंह जी ने हल्की सी मुस्कान के साथ हमारी जिझासा शांत की, अपने ब्लोग का परिचय दिया, अपने परिचय में जोड़ा कि मैं जनता दल बम्बई शाखा का प्रमुख हूँ। अभय जी ने पूछा कौन सा जनता दल, नितीश कुमार वाला? उन्हों ने हामी भरी। हमने झट से प्रशन दागा, ये नितीश कुमार अपना ब्लोग अंग्रेजी में क्युं लिख रहा है? अब चौंकने की बारी राज सिंह जी की थी। पक्के राजनेता की तरह उन्हों ने हमारे प्रश्न की बाल को धीरे से खेला और कहा कि बिहार की आम जनता भी अंग्रेजी जानती है। हमने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि ये राजनेता भाषा की बॉल से खेलते ही रह जायेगें, क्या?
'बत्ती के नीचे, मेज के ऊपर, ले टपाटप, दे टपाटप'( टेबल टेनिस) और अंग्रेजी चुपचाप राष्ट्र भाषा का स्थान ले उड़ेगी।
तब तक बोधी जी ने चाय का दौर शुरु कर दिया और हम चाय की चुस्कियां लेते हुए जादू के जादू में खो गये। रश्मि जी से परिचय लिया, मन ही मन उनकी खूबसूरती को सराहा, उनके व्यक्तित्व को सराहा, और क्लास वापस लग गयी सब लोग जो क्लास के बाहर गये थे लौट आये। राज जी ने कहा, ' अनिता जी, मैं ने नितीश कुमार के सचिव को फ़ोन कर दिया है और कह दिया है कि उनके ब्लोग का हिन्दी में अनुवाद करवाओ'।
अहा! हम सोच रहे थे इसे कहते हैं ब्लोगिंग की ताकत। घुघुती जी, विमल जी, अनिल जी और रश्मि जी के परिचय के बाद हमसे कहा गया कि हम अपना परिचय दें। हमने कहा कि हमें तो सब जानते ही हैं वहां, लेकिन रश्मि जी नहीं मानी और कहा कि रुल इस रूल…सब को अपना परिचय देना है तो आप को भी देना होगा।
अब कहना कुछ ऐसा था जो ज्यादातर लोगों को न पता हो नहीं तो सब बोरियत की बली चढ़ जाते। तो हमने कहा कि भाई जो बातें जगजाहिर हैं उन के बारे में क्या बोलना, जो विषय दिया गया है उस पर कुछ कहते हैं, कुछ घुघुती जी ने जो कहा उस पर रिएक्ट करते हैं।
चैटिंग
अक्सर हमने लोगों नाक भौं सिकोड़ते, कहते सुना है कि भैया हम तो चैटिंग से दूर ही रहते हैं। बेकार की चीज है। हम इस बात से सहमत नहीं। हमें लगता है कि ये लोगों के मन के पूर्वाग्रह हैं। अगर हिन्दी भाषा के हिसाब से भी देख लें तो ब्लोग लिखता हूँ, मेरा ब्लोग है ( ब्लोग पुर्लिंग है) उसे लोग सम्मान की दृष्टि से देखते हैं, फ़क्र महसूस करते हैं कि हम ब्लोगर हैं। चैट की जाती है( स्त्रिलिंग है) उसे वो सम्मान प्राप्त नहीं। इन फ़ेक्ट ऑलमोस्ट अपवित्र मानी जाती है। लेकिन सवाल ये है कि ब्लोगिंग क्या है- संवाद का एक जरिया है, तो फ़िर चैटिंग क्या है- संवाद का एक जरिया। मैं आज कल नियमित नहीं लिख पा रही और फ़िर भी लोग मुझे भूले नहीं… क्युं? इस लिए नहीं कि मैं बहुत अच्छा लिखती थी, बल्कि इस लिए कि मैं आज भी कई ब्लोगर दोस्तों के साथ संवाद बनाये हुए हूँ, कैसे? चैटिंग से , टिप्पणी से। तो क्या चैटिंग बुरी चीज है। मुझे तो नहीं लगता, आप बतायें…।
वर्चुअल वर्ड बनाम रियल वर्ड
अभय जी ने अपना विचार सामने रखा कि रियल वर्ड के रिश्ते ज्यादा संतुष्टी देने वाले, ज्यादा पुखता होते हैं और वर्चुअल वर्ड के रिश्तों में वो बात नहीं होती। लेकिन हमें लगता है कि ये पूरा सच नहीं । किताबों में तो मैं ने भी यही पढ़ा है कि रियल वर्ड के रिश्ते ज्यादा पुख्ता होते हैं और वर्चुअल वर्ड के रिश्तों का क्या वजूद्। आप का पी सी नहीं चल रहा। मोबाइल में बैलेंस नहीं तो वर्चुअल वर्ड के रिश्ते तो हवा हो गये और मुसीबत के समय पास पड़ौस ही काम आयेगा, वर्चुअल वर्ड के दोस्त नहीं। ये बात तो सच है।
लेकिन उन खबरों का क्या जो हमने अखबारों में पढ़ी हैं । बम्बई की ही महाराष्ट्रियन लड़की को नेट पर पाकिस्तानी लड़के से प्यार हो गया और उन्हों ने शादी भी कर ली, नेट पर ही हुई बातों से किसी ने किसी को आत्महत्या करने से रोका, वगैरह वगैरह्। ये नेट कई वर्द्ध व्यक्तियों का मसीहा बन उनके अकेलेपन का साथी बन रहा है। हमारे हिन्दी ब्लोगजगत को ही देख लें तो ब्लोगर मीट की शुरुवात तो नेट से होती है, आत्मियता बड़ती है और मिलने की इच्छा जागती है। बलोगजगत में जो तू तू मैं मैं होती है वो क्या हमारे ऊपर असली असर नहीं छोड़ती? अखबार पढ़ कर तो जर्नलिस्ट को मिलने की इच्छा नहीं जागती। लेकिन ये मामला इतना पेचीदा है कि इसका कोई सीधा सीधा हा या न में उत्तर देना कठिन है, है न? आप को क्या लगता है?
ब्लोगिंग का प्रभाव
एक बात जो वहां उपस्थित ज्यादातर लोगों ने मानी वो ये कि हम सब नेट या कहें ब्लोग लत से पीड़ित हैं। और अगर अपने दिन का या जिन्दगी का एक बड़ा हिस्सा नेट के नाम कर रहे हैं, परोक्ष या अपरोक्ष रूप से, तो ये मुद्दा बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि ब्लोगिंग हमें किस तरह प्रभावित कर रही है।
घुघुती जी का कहना था कि ब्लोगिंग से पहले उनकी अपनी कोई पहचान नहीं थी, उनकी पहचान उनके पति से थी, उनका सामाजिक दायरा पति के सहकर्मियों से जुड़ा था और वो खुश हैं कि ब्लोगिंग ने उन्हें अपनी एक पहचान दी है और अपने मित्र दिये हैं। मैं भी लगभग उनकी बात से सहमत थी।
एक पहचान
मेरी परिस्थति थोड़ी बेहतर है। मेरी ब्लोगिंग से पहले भी अपनी एक पहचान थी, प्रोफ़ेशन की वजह से पति से अलग भी सहेलियों का एक गुट है। लेकिन फ़िर भी हम भी कहां तक आजाद थे। कॉलेज में हम किस के साथ काम करेगें, घर पर कौन हमारे पड़ौसी होगें, कौन हमारे रिश्तेदार होगें, ये हम नहीं निश्चित कर सकते, और हम भी अपनी रियल जिन्दगी में कुएं के मेढक के समान थे। हमें उतना ही आकाश नजर आता था जितना हमारे कुएं के ऊपर था। अपने आसपास वही लोग, वही बातें।
ब्लोग की दुनिया में आने के बाद हमें धीरे धीरे एहसास होने लगा कि अपने ही देश में मेरे अपने देशवासी कितनी अलग अलग लेवल पर जीते हैं, उत्तर भारत में ही संस्कृति के कितने अलग अलग रूप है, छत्तीसगढ़, झारखंड मेरे लिए सिर्फ़ अखबार में पढ़े जाने वाले नाम थे। भावनात्मक रूप से मैं उनके साथ नहीं जुड़ी हुई थी। लेकिन अब ब्लोगजगत में वहां रहने वाले ब्लोगर साथी मेरे मित्र हैं और ये राज्य मेरे मानसपटल पर अब भारत का एक अभिन्न अंग हैं। संजीत अगर ब्लोगर न होता तो माओवादी समस्या के बारे में मैं ने शायद गहराई से सोचा न होता। संगीत और खास कर फ़िल्मी गीत तो बचपन से मेरी जान रहे हैं लेकिन यूनुस और मनीष कुमार जी के ब्लोग पर जा कर मैं महज श्रोता से फ़िल्मी संगीत की शिष्या बन गयी और उन बारीकियों की तरफ़ ध्यान देने लग गयी जो पहले कभी न सोचा था। मेरा आनंद दूना हो गया। अजित वेडनेकर जी के शब्दों के सफ़र ने मेरा ज्ञान लीपस एंड बाउंडस में बढ़ाया और शब्दों की उत्त्पति के बारे में मेरी रुचि जगा दी, इसके पहले मैं ने इसके बारे में कभी न सोचा था। अनूप शुक्ला जी की पोस्टस क्रिएटिव राइटिंग की क्लासेस लगती हैं तो कविता जी के बेलेसंड लेख मुझे हदप्रद कर जाते हैं। क्या नहीं है यहां? यू नेम द टॉपिक और कोई न कोई उसके बारे में लिख रहा होगा।
कहने का तात्पर्य ये कि ब्लोग की दुनिया में आने के बाद
1) मेरी अपनी सोच विकसित हुई, ज्ञान बढ़ा,
2) कई पूर्वाग्रह टूटे, और
3) पहली बार भारी संख्या में वैरायटी मिली जिसमें से मैं दोस्त चुन सकती थी।
4) मैं ने ये भी देखा कि रियल वर्ड में भी जब लोगों को पता चलता है कि
मैं ब्लोगिंग करती हूँ तो उनकी आखों में एक अलग प्रकार की आदर की भावनादेखती हूँ
5) मैं खुद भी गर्व महसूस करती हूँ कि मैं ब्लोगर हूँ, ये मेरी पहचान का एक अहम हिस्सा बन चुका है
6) ब्लोगिंग जो अभिव्यक्ति की स्वत्रंता देती है वो मुझे अपने सशक्त होने का एहसास देती है और इसमें मैं नारी सशक्तिकरण की बात नहीं कर रही। किसी भी प्राणी के लिए जो इस सिस्टम से लड़ नहीं सकता, जिसकी आवाज दबा दी जाती है अब ब्लोग पर अपनी आवाज वापस पा सकता है।
आशा करती हूँ कि मैं आने वाले कई सालों तक ब्लोगिंग में सक्रिय रहूंगी और मेरी आज के मित्रों के साथ मित्रता कालजयी साबित होगी और अनेक और नये मित्र भी मिलेगें…आमीन।
सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।
April 27, 2010
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