अमूमन जब सुबह कॉलेज सवा सात बजे पहुंचते हैं तो इधर उधर देखने की फ़ुरसत नहीं होती, लपकते, फ़ांदते, हांफ़ते क्लास में भागे चले जाते हैं। पर कल की तो बात ही कुछ और थी। सुबह पौने आठ बजे पहुंचे, हलकी हलकी खुशनुमा ठंड में एक लंबी सांस ले ताजी हवा अपने नथुनों में भरनी चाही, नजर इधर उधर घुमायी तो पेड़ों के ऊपर सूरज धरती की बिंदिया सा चमकता नजर आया, एकदम गोल नारंगी। बम्बई में कब से इतनी ठंड पड़ने लग गयी कि सूरज महाराज आठ बजे आराम से हाजिरी बजा रहे हैं।
क्लास की तरफ़ मंथर गति से बढ़ते हुए ख्याल आया कि अरे! सर्दी को बम्बई में पसरे पूरा एक महीना होने को आया और हमने अभी तक घर आयी इस मेहमान का ठीक से स्वागत भी नहीं किया। मन में ठान लिया कि आज कुछ करना होगा। लो जी ठंड में सरसों का साग और मकई की रोटी नहीं खायी तो ये तो सर्दी मैडम की तौहीन होगी। अरे, और कुछ नहीं तो कम से कम छिलकेवाली मूंगफ़ली तो ढूंढनी पड़ेगी।
वापस लौटते हुए सोचा कि आज सब्जी मार्केट जाया जाए। सुना है आजकल सब्जी बहुत मंहगी हो रही है। सुना सिर्फ़ इस लिए है कि जब से शॉपिंग मॉल से सब्जी लेने का रिवाज चल पड़ा है तब से सब्जी वाले से तोलमोल करने का सुख छूट सा गया है।पतिदेव को शनिवार की छुट्टी होती है और शॉपिंग का जिम्मा अपने सर ले उन्हों ने हमारा काफ़ी बोझ कम कर दिया है। लेकिन इस आरामदेई के चलते पिछले कई महीनों से हम सिर्फ़ पत्ता गोभी, फ़ूल गोभी और शिमला मिर्च ही खा रहे हैं, वो भी कोल्ड सटोरेज की। लौकी की पतिदेव को एलर्जी है इस लिए छूते भी नहीं,टिंडों का न तो नाम सुना है उन्हों ने, न ही देखा है।
पिछले हफ़्ते एक दिन खाना बनाने वाली नही आयी और हमने फ़ोन कर पति देव से कहा कि आते हुए किसी होटेल से कुछ लेते आयें। जनाब ने सोचा बीबी भी क्या याद करेगी, मक्की की रोटी और सरसों का साग ले चलते हैं, अपने लिए मुर्ग मुसल्लम। हम भी कृतार्थ हुए कि पतिदेव को कितना ख्याल है, जब खाने लगे तो रोटी से घी की धाराएं बह रही थीं, मुस्कुरा के बोले मैं ने खास बटरवाली मक्की की रोटी देने को कहा। हमने उनके इस बटरी लाड़ को प्लेट में निचोड़ते हुए एक कौर तोड़ा तो रोटी टूटती ही नहीं थी, रंग तो पीला ही था पर पता नहीं रोटी मैदे की थी या कोई अमरीकन मकई की। हाँ उसके साथ गाजर का हलवा जो लाया गया था वो बढ़िया था।
सब्जी मार्केट में घुसने से पहले तय किया गया कि रौशन की दुकान पे जायेगें मक्की का आटा उसकी दुकान का सब से अच्छा होता है( और कोई दुकान हमें पता भी नहीं) दुकान में घुसे तो लगा पूरा पंजाब वहीं समाया हुआ है, मक्की का आटा, आटे के बिस्किट, सूजी के टोस्ट, गुड़ की चिक्की, अदरक की कतरनें सिरके में और पता नहीं क्या क्या लेते चले गये। वहां से निकले तो सोच में थे कि सब्जी मार्केट का रुख करें या उसके पहले ही सिगनल से मुड़ लें। असमंजस पार्किंग की वजह सा था, ज्यादातर सब्जी मार्केट के बाहर कार पार्क मिलना मुश्किल होता है, खैर आज तो मन बना ही लिया था, सो ओखली में सर देने को तैयार हो लिए। मेरी किस्मत अच्छी थी जो सब्जी मार्केट के बाहर दो मोटरसाइकलों के बीच कार मुश्किल से घुसा सके। थोड़ी कम ही सही पर जगह मिल गयी यही क्या कम था। मार्केट की शुरुवात में ही बड़े बड़े अमरुद देख कर मन ललचा गया, संतरे के दाम पूछे तो पता चला दस दस रुपये का एक संतरा और अमरूद तीस रुपये किलो। खैर अमरूद ले कर वहीं कार में डाले और वापस आये। लौकी, मैथी लेने का मन था। मैथी की दुकान पर पहुंचे तो एक महिला कह रही थी," भैया एक जूड़ी सरसों और एक जूड़ी पालक दे दो"। उसकी देखा देखी हमने भी सब्जी वाले से वही मांगा, दोनों जूड़ी दस दस रुपये, पतली पतली मूलियां दिखीं- पांच रुपये की एक्। सोचा सर्दियों में मूली के परांठे भी खाने जरूरी हैं, सो तीन मूलियाँ खरीदीं गयीं। उम्मीद थी कि मार्केट के अंदर सब्जी थोड़ी वाजिब दामों पर मिलेगी, लेकिन यहां भी लौकी मिली पच्चीस रुपये किलो, मुए कांटे वाले बैंगन भी पच्चीस रुपये थे। टमाटर साठ रुपये थे तो मटर पच्चीस रुपये किलो।
खैर सब्जी ले कर जब हम वापस आये तो देख कर हैरान रह गये कि एक लंबी सी कार ठीक हमारी कार के पीछे लगी हुई है और ड्राइवर नदारत। इंतजार करते करते आधा घंटा गुजर गया। जैसे जैसे सूरज गरम होता जा रहा था और पेट में चूहों का क्रिकेट मैच शुरु हो गया हमारा पारा उसी रफ़्तार से ऊपर की तरफ़ छलांग लगा रहा था। मन तो कर रहा था कि इस नयी नवैली कार को लंबा सा स्क्रेच मार दें पर किसी तरह से खुद को ऐसा करने से रोक लिया। हम सोच ही रहे थे कि टो करने वाली गाड़ी आ जाए कि इतने में टो करने वाली गाड़ी आती दिखी, हम भाग कर उसके पास गये और बोले इस गाड़ी को टो कर के ले जाओ। ट्रेफ़िक कासंटेबल बड़ा हैरान था, ज्यादातर लोग बोलते है जाने दो, छोड़ दो, और यहां हम कह रहे थे कि आओ हम बताते है कौन सी गाड़ी नियम के खिलाफ़ पार्क कर खड़ी है। कांसटेबल ने फ़ट से टायर को लॉक लगवाया और हमारी गाड़ी निकलवाने का इंतजाम कर ही रहा था कि उस पकड़ी हुई गाड़ी का मालिक आ गया, और जैसी उम्मीद थी कहने लगा 'जाने दो'। हम लपक कर हवलदार के पास पहुंचे और धमकाते हुए बोले कि अगर उसने उस गाड़ी को जाने दिया तो हम उसके खिलाफ़ शिकायत दर्ज कर के आयेगें अभी के अभी और फ़ट से हवलदार का नाम और गाड़ी का नंबर नोट किया। गाड़ी की मालकिन हमें गालियां देने पर उतर आयी, उस कार के ड्राइवर ने किसी को फ़ोन लगा कर हवलदार की तरफ़ बढ़ा दिया। हवलदार के चेहरे का रंग बदलने लगा। हम समझ गये कोई नेता फ़ेता होगा, पर हम फ़िर भी हवलदार के सामने अड़े रहे कि चाहे किसी का भी फ़ोन हो तुम चालान काटो नहीं तो तुम्हारी खैर नहीं। बेचारे के सामने कोई रास्ता नहीं था, वो हमसे भी डर रहा था कि हमने उसका नाम वगैरह नोट कर लिया है और हमारे लिए रास्ता बन जाने के बावजूद अब हम वहां से जाने को तैयार न थे। खैर उसने चालान दिया।रात को हमने बड़े मजे लेते हुए जब पतिदेव को पूरा किस्सा बताया तो बोले
"तुम कब दुनियादारी सीखोगी?"
हमने पूछा "क्युं हमने कुछ गलत किया?"
"नहीं तुम सही थीं, लेकिन वो हवलदार तुम्हें उल्लु बना गया।"
"वो कैसे?"
बोले "उसने उस ड्राइवर का लाइसेंस लिया था?'
हमने यादाश्त पर जोर डालते हुए कहा ," हाँ लिया तो था पर देख कर वापस कर दिया"
बोले " तो फ़िर उस चालान का क्या मतलब?"
एक बार फ़िर मेरा पारा उछाल मारने लगा, निश्चय किया कि कल ही चौकी जा के उस हवलदार की खबर लूंगी, लेकिन थोड़ी देर बाद ही सोचा कि क्या फ़ायदा है, अब शायद वो हमें पहचानने से भी इनकार कर दिया, बेकार में अपनी ऊर्जा बेकार करने का कोई मतलब नहीं सो पूरे किस्से को जहन से उठा के बाहर फ़ैंक दिया।
वैसे इससे याद आया कि पिछले महीने मानखुर्द के सिगनल पे हमें ट्रैफ़िक हवलदार ने पकड़ा, हमने बड़ी रुखाई से कहा कि हमने सिगनल नहीं तोड़ा। लाइसेंस दिखाने को कहा तो हमें आदतन लाइसेंस में पचास का नोट रख कर दे दिया। ट्रैफ़िक हवलदार लड़का सा था, अभी अभी नौकरी पर लगा था। हमारे पचास रुपये देने पर बहुत आहत हुआ। पहली बार हम हवलदार देख रहे थे जो कह रहा था कि मुझे पचास रुपये नहीं चाहिए, आप मेरी वर्दी की इज्जत करें बस यहीं चाहते हैं।उसने न सिर्फ़ रिश्वत लेने से इंकार कर दिया बल्कि हमारा चालान भी नहीं काटा क्युं कि हमें नहीं लग रहा था कि हमने सिगनल तोड़ा। मन में बहुत आत्मग्लानी हुई। उस समय तो हम चले गये, देर हो रही थी। लेकिन बाद में जब हमने पूरे वाक्ये पर फ़िर से विचार किया तो लगा कि हमारी रुखाई और झुंझालाहट का असली कारण था कि हम जल्दी में थे और उसने हमें रोक लिया था, और हो सकता है कि सिगनल जंप किया ही हो। सो अगले दिन उसी समय हम फ़िर उस चौराहे पर गये, ये सोच के कि वो वहीं मिलेगा पर दूसरे दिन कोई और हवलदार खड़ा था। हमने पूछा "
वो कल वाला हवलदार कहां गया?"
तो बोला "कौन सा हवलदार?"
"अरे वही जो जवान सा था।"
उसे हमारा जवाब बिल्कुल अच्छा नहीं लगा
" मैडम जवान तो हम सभी हैं"
हम कुछ कहते इतने में एक दूसरा हवलदार आ गया जो कल वाले का साथी लग रहा था। उसने पूछा कि हमें क्या काम है? हमने कहा कि कलवाले हवलदार से हमने ठीक से बात नहीं की थी और इस बात का हमें अफ़सोस है और हम उस से माफ़ी मांगने आये हैं।
उस दूसरे हवलदार की बत्तीसी खिल गयी कहने लगा,
" अरे मैडम कोई बात नहीं, हमारा पाला तो सभी तरह के लोगों से पड़ता है, हमें अब कोई फ़रक नहीं पड़ता"
हमारे फ़िर भी जोर डालने पर उसने कहा कि शायद उसकी ड्यूटी अगले चौराहे पर है, वैसे मैं आप का मैसेज दे दूंगा। हम अगले चौराहे तक घूम आये पर वो हवलदार हमें नहीं मिला, आशा कर रही हूँ कि मेरा माफ़ीनामा उसके पास पहुंच गया होगा।
खैर, तो शाम को सरसों का साग बनाने का प्रोग्राम था। बहुत दिन हो गये थे, याद नहीं आ रहा था सरसों का साग कैसे बनाते हैं, यादाश्त में सिर्फ़ मां के हाथ कुकर में मदानी चलाते नजर आ रहे थे बाकि कुछ याद नहीं आ रहा था। खुद को कोसा कैसी पंजाबन हूँ मैं, कोई सुनेगा तो क्या सोचेगा? जिसका कोई नहीं उसका नेट तो है ही:) सो नेट पर रेसिपी देखी, संजीव कपूर की रेसिपी---न न बेकार लगी, यू ट्युब पर गये और वाह रे वाह डॉट कॉम की रेसीपी अच्छी लगी, साग बहुत अच्छा बना। रात को पति देव से कहा पालक बनायी है, लेकिन वो कहां झांसे में आने वाले थे।
बाजार में कहीं भी फ़ीका मावा न मिलने के कारण कल गाजर का हलवा नहीं बन सका। आज भी कहीं नहीं मिला, तब दिमाग की बत्ती जली कि भैया फ़ीका मावा मिलेगा भी नहीं, अरे उसी मावे की बर्फ़ी बना के हलवाई कम से कम दो सौ चालिस रुपये किलो के हिसाब से बेचेगा जब कि फ़ीका मावा वो किस भाव से बेच लेगा? सो शाम को बिन मावे के गाजर का हलवा बनाया, जय नेसले कंडेस्ड मिल्क्। ऑफ़िस से आते ही पतिदेव सीधा सुगंध का पीछा करते किचन में और हलवा के आनंद उठाते हुए बोले अच्छा बना है। हमने मुस्कुरा के मन में कहा,
जय शीत देवी आप का स्वागत है।
आप सब को नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएं