बेटे के आंचल में आते ही हर भारतीय मां उसके सर पर सेहरा बंधने के सपने देखने लगती है। हम भी कोई अपवाद नहीं हैं। जैसे ही हमारे बेटे ने अपने पिता के जूतों, कपड़ों पर हाथ साफ़ करना शुरु किया और पतिदेव रोज सबेरे शिकायत करते अपना रेजर, शेविंग क्रीम ढ़ूंढते पाये गये, हमारी आंखों ने बेटे के सेहरे के सपने देखने शुरु कर दिये। हाल यहां तक पहुंचा कि हमें बेटे की शादी से ज्यादा जरूरी कोई और काम नहीं दिखता था। सोते जागते उसी की बातें, जिससे मिले उसी से यही बातें। बेटा अपनी आजादी खोना नहीं चाहता था और हम दिन रात उसे यकीन दिलाते रहे कि बेटा शादी में ही तुम्हारा मोक्ष है( ये कौन बोला…नहींईईईईईई……तुम बेटे को बरगला रही हो…:))। इतने सालों की मशक्कत का नतीजा ये रहा कि बेटा हमारी बातों से सहमत तो नहीं हुआ लेकिन थक हार कर मान ही गया कि अब जिन्दगी के दूसरे पड़ाव की तरफ़ अग्रसर होना चाहिए।
हमारे आस पास हमने देखा है कि आज कल ज्यादातर माता पिता को बच्चों की शादी में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती।बच्चे खुदबखुद सब काम कर लेते हैं……जीवन साथी ढ़ूंढ़ने से ले कर शादी का हॉल बुक करने तक्। हमने भी सोचा कि बस हमारा काम भी हो गया, अब बेटा जब मान गया है तो खुद ही सब काम कर लेगा और हमें तो सिर्फ़ आशीष देने को हाथ भर उठाना होगा। लेकिन ये हमारा भ्रम था। लड़के ने साफ़ कह दिया कि उसकी जिन्दगी में कोई लड़की नहीं है और वो इसके लिए कोई मशक्कत नहीं करने वाला। उसने सोचा इस तरह मां को टाला जा सकता है। हमने भी हार नहीं मानी और कौशिश जारी रखी। आखिरकार वो दिन आ ही गया जब हमारा सपना पूरा होने जा रहा है। कोई भी खुशी तब तक पूरी नहीं होती जब तक उसमें अपनों का साथ न हो। मुझे लगता है कि ये तो बताना जरूरी नहीं न कि ब्लोगर मित्र मेरे उतने ही अपने हैं जितने मेरे सगे संबधी।
मैं आप सब को अपने बेटे के विवाह के शुभ अवसर पर सादर आमंत्रित कर रही हूँ इस उम्मीद के साथ कि आप सब मेरा नेह निमंत्रण सस्नेह स्वीकर कर हमारी खुशियों में सहभागी बनेगें। मेरा आप सब से अनुरोध है कि आप नवदंपति को अपना स्नेहाशीष दे मुझे अनुग्रहित करें।
विवाह कार्यक्रम इस प्रकार है:
सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।
October 02, 2009
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