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June 30, 2008

नकुल कृष्णा: भाग २

नकुल कृष्णा: भाग २
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अनिता जी को, और सभी शुभचिंतकों को आभार।आप कि प्रतिक्रियाएं पढ़कर दिल भर गया।दिल हलका भी हुआ यह जानकर के कोई मुझे गलत नहीं समझेगा।मुझे डर था कि कहीं कोई यह न समझे के मैं अपने ही बेटे का नाजायज़ बडप्पन कर रहा हूँ।

अब आप लोगों से आश्वासन मिल गया है कि यह लेख पठनीय और उपयोगी होगा और अब यह लेख जारी रखने के लिए मुझे प्रोत्साहन भी मिल गया ।
पहले Rhodes छात्रवृत्ति के बारे में कुछ मूल जानकारी देना चाहता हूँ।जो और भी अधिक जानकारी चाहते हैं वे मुझसे सीधा संपर्क कर सकते हैं मेरा e mail id अंत में दे रहा हूँ।

Cecil Rhodes, एक अंग्रेजी व्यापारी थे जो अफ़्रीका में कई साल रहकर बहुत धन जुटाने में सफ़ल हुए थे। Rhodesia उनके नाम पर ही बना था (अब नाम बदलकर Zimbabwe बन गया है)। १९०२ में उनके देहांत के बाद उनकी अपार संपत्ति में से उनके वसीयतनामे के अनुसार, Rhodes छात्रवृत्तियाँ घोषित की ।

यह केवल USA, Canada, और अन्य Commonwealth राज्यों के छात्रों के लिए आरक्षित हैं और केवल Oxford University में पढ़ाई करने के लिए दी जाती है। विश्व में किसी और विश्वविध्यालय के लिए नहीं दी जाती। हर साल करीब ९० छात्रवृत्तियाँ घोषित की जाती है जिसमें से ३२ USA के लिए, Canada, Australia, South Africa के लिए ९(प्रत्येक) और भारत के लिए केवल ५ घोषित हुई है। अन्य Commonwealth राज्यों (जैसे सिंगापोर, मलेयसिया, वगैरह के लिए और भी कम हैं)। सभी विषयों के लिए (जो Oxford University में पढ़ाई जाती है), यह छात्रवृत्ति उपलव्ध है (Science, Engineering, Humanites, Law, Agriculture, Medicine)।
यह दो साल के लिए दी जाती है और विशेष परिस्थितियों में तीन साल के लिए। छात्र/छात्रा की आयु १९ से लेकर २५ तक हो सकती है। आजकल छात्रवृत्ति की रकम है करीब १००० pounds प्रति महीना।इसके अलावा कॉलेज के फ़ीस नहीं देनी पढ़ती और अपने देश से आने जाने का खर्च भी दिया जाता है।
मेरे बेटे ने बताया कि यह रकम भारत के छात्रों के लिए जरूरत से ज्यादा है और इस रकम से वह आराम से रह सकता है और काफ़ी कुछ बचा भी लेता है।

हर देश में Rhodes Trust की एक Selection committee होती है और अगस्त के महीने में अर्जियाँ स्वीकार की जाती हैं, सितम्बर में क्षेत्रीय Interviews होते हैं (मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता, और बैंगलौर में) और छाँटने के बाद अन्तिम Interview और selection दिसम्बर में दिल्ली में की जाती है।committee में देश के जाने माने हस्तियों को शामिल किया जाता है। एक ज़माने में प्रधान मन्त्री मनमहोन सिंह इस कमिटी में थे (शायद committe की अध्यक्ष भी थे?)। आजकल Infosys के Chairman श्री नारायणमूर्ति, रंगमंच के प्रसिद्ध कलाकार और लेखक गिरिश कर्नाड, इस कमिट्टी के सदस्य हैं। इन्होंने मेरे बेटे नकुल का जोरदार interview लिया था।

Cecil Rhodes की वसियतनामे के अनुसार, इन छात्रों के निम्नलिखित गुण/योगयताएं होनी चाहिएं।

1)Exceptionally brilliant and consistent Academic record throughout (School and College)

2)Outstanding achievements at national level in extra curricular activites ।

3)Proven record of social service and committment to social causes and एनवायरनमेंट।

Rhodes trustके नियमों के अनुसार (उन्हीं के शब्दों में):-------------------------------------Qualities of intellect, character and leadership are what the committee will be looking for in a candidate। A Rhodes Scholar should not be one-sided or selfish। Intellectual ability must be founded upon sound character and integrity of character upon sound intellect। Cecil Rhodes regarded leadership consisting of moral courage and interest in one's fellow beings, as the more aggressive qualities. It was his hope that a Rhodes Scholar would come to esteem the performance of public duties as the highest aim. -------

इसके अलावा, हर छात्र की अर्जी के साथ समाज के किसी अच्छे जाने माने, और अपने अपने क्षेत्रों में सक्षम, कामयाब और जिम्मेदार नागरिकों से समर्थन और सिफ़ारिश की आवश्यकता है लेकिन पर्याप्त नहीं। यह जरूरी नहीं के वे celebrities हों लेकिन उनका उम्मीद्वार को निजी तौर से जानना जरूरी है।अपनी अर्जी के साथ छात्र/छात्रा को १००० शब्दों के अन्दर एक निबन्ध लिखना पड़ता है जिसपर सेलेक्शन कमिटी अपने अंतिम साक्षातकार के समय छात्र के साथ बहस करेगी।ज़ाहिर है के जो भी छात्र यह सभी शर्तें पूरी करता है, और सफ़ल हो जाता है, वह कोई साधारण छात्र नहीं होगा। देश के हर कोने से हर विषय में रुचि रखने वाले हज़ारों छात्रों से अर्जियाँ मिलती होंगी और छाँटकर कुछ छात्र/छात्रओं को देश के चार क्षेत्रीय बुलाया जाता है।

जब इस छात्रवृत्ति के लिए अर्जी देने के लिए नकुल ने इच्छा जाहिर की, तो मैं ने केवल मुस्कुराकर उससे कह दिया, हाँ जो भी खर्च हो बता देना, हम तैयार हैं और "Best of Luck!"। उत्तर में वह भी मुस्कुराकर धन्यवाद कहा। उस समय मैं इस Scholarship के बारे में इतना सब जानता ही नहीं था। सुन चुका था इसके बारे में लेकिन कभी इसके बारे में अधिक जानने की कोशिश नहीं की थी। हम धरती पर रेंगने वाले, तारें तोड़ने के बारे में क्या सोचेंगे!

मैं जानता था के मेरा बेटा होनहार है लेकिन कभी सोचा भी नहीं था के यह इस हद तक कामयाब होगा। अर्जी भेजने में हमारा क्या बिगडेगा? मुझे ठीक याद नहीं हमने अर्जी देने में कितने खर्च किए लेकिन वह तो शायद एक हज़ार रुपयों सी ज्यादा नहीं हुआ होगा। अर्जी देने के बाद मैं इस मामले को भूल गया था।

सेप्टेंबर के महीने में जब preliminary interview के लिए उसे बैंगलौर में Indian Institute of Science में बुलाया गया, मैं भी साथ गया था उसे अपनी गाड़ी में पहुँचाने के लिए। वहाँ दक्षिण भारत के चमकते सितारों की भीड़ जब मैने देखी, तो मेरी सभी उम्मीदें गायब हो गईं। कई उम्मीद्वारों से मिलकर इधर-उधर की बातें भी की। एक से एक बढ़कर निकले यह छात्र/छात्राएं और मैं सोचने लगा था कैसे इन लोगों में से केवल पाँच को चुनेंगे! मुझे तो सभी योग्य लग रहे थे।एक अनोखा अनुभव था वह। अधिकाँश लोग २४ या २५ साल के लगते थे और सब ने अपनी अपनी पढ़ाई पूरी भी की थी और PhD या किसी अन्य विषय में Oxford में MA/MSc वगैरह करने के इच्छुक थे। कईओं की तो डरावने वाली दाढ़ी/मूँछें भी थीं इनके सामने मेरा नकुल तो दूध पीता हुआ एक बच्चा लगता था। मैंने सोचा, चलो यह भी जीवन में एक अनुभव है नकुल के लिए। जब नवंबर में सूचना मिली कि नकुल preliminary round में सफ़ल हुआ है तो हम अत्यंत खुश हुए। चलो, इस विशाल देश के लाखों विद्यार्थियों में से केवल १९ चुने हुए श्रेष्ठ विद्यार्थियों में से वह एक है। क्या यह कम है? हम बस इससे ही खुश होने के लिए तैयार थे। हम चिन्तित भी हुए। मंज़िल के इतने पास आकर अगर वह वहाँ तक पहुँच नहीं सका, तो उस बेचारे पर क्या बीतेगी? क्या असफ़लता का सामना maturity के साथ कर पाएगा?

२, दिसम्बर, 2006 को दिल्ली में उसका अन्तिम साक्षातकार हुआ।पत्नि और मैं भी उसके साथ जाना चाहते थे लेकिन उसने साफ़ मना कर दिया और हम पति-पत्नि बैंगलौर में सुबह १० बजे से लेकर ३ बजे तक नाखून काटते काटते कैसे समय बिताए यह हमें आज भी याद है।
दोपहर के ३ बजे जब अमेरिका से फ़ोन आया (मेरी बेटी से जो रात भर जागकर उसके लिए प्रार्थना करती रही) और वह फोन पर ही चीखती चिल्लाती नकुल की सफ़लता की घोषिणा की, तो हमारी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं है। पत्नी तो रोने लगी थी और लिपट गई थी मुझसे। मुझे भी जीवन में पहली बार वह "lump in one's throat" का अनुभव हुआ। भाई बहन के बीच इतना प्यार था कि नकुल ने सबसे पहले खुशखबरी अपने से ९ साल बडी दीदी को ही दी और कहा कि माँ और पिताजी को तुम ही फ़ोन करके बता दो! वह जानता था के उसकी दीदी उसके लिए अमेरिका में बैठी रात भर जाग रही है।उस शाम मन्दिर में जाकर न जाने कितने नारियल फ़ोड़े हम लोगों ने।
अब कैसे और क्यों नकुल को सफ़लता मिली, यह अगली कड़ी में बताऊंगा।फ़िलहाल, ये दो चित्र संलग्न कर रहा हूँ।

पहले में Times of India में छपा उसका एक प्रोफ़ाइल









दुसरे में selection की घोषणा के तुरन्त बाद, सफ़ल छात्रों के साथ पूरी सेलेक्शन कमिट्टी का एक समूह चित्र।नकुल पीछे, बाएं तरफ़ से तीसरे स्थान पर है।







शेष अगली कड़ी में।शुभकामनाएंगोपालकृष्ण विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरुemail id:gvshwnth AT याहू डॉट कॉम geevishwanath AT जीमेल डॉट कॉम)

June 28, 2008

नकुल कृष्णा: एक चमकता सितारा

नकुल कृष्णा: एक चमकता सितारा

ये रही नकुल की तस्वीर जो 5 फ़ेब्रुअरी 2007 में टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुख्य पृष्ट पर छ्पी थी। नकुल को आप नीले कुर्ते में देख सकते हैं। लावण्या जी ने अपनी टिप्पणी में बताया कि बिल क्लिंटन को भी ये स्कॉलरशिप मिला था, तो शायद हम भावी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को देख रहे हैं। नकुल के बारे में और अगली पोस्ट में।

June 27, 2008

नकुल कृष्णा: एक चमकता सितारा

आजकल परिक्षा परिणाम निकलने का मौसम है, एक एक कर हर क्लास के रिजल्टस निकल रहे हैं और कहीं खुशी कहीं गम। टीचर होने के नाते अक्सर बच्चों के मां बाप से भी पाला पड़ता रहता है। आजकल की कट थ्रोट कंपीटीशन वाली दुनिया में विरले ही ऐसे मां बाप होगें जो अपने बच्चों के कार्यकलाप से पूरी तरह मन से संतुष्ट हों। ऐसे में किसी मां बाप का ये कहना कि हमारा बेटा हमारे घर की शान है कानों में संगीत घोलता है। विश्वनाथ जी एक ऐसे ही भाग्यशाली पिता है। मुझे खुशी है कि विश्वनाथ जी ने मेरा आग्रह स्वीकार कर अपने बेटे के बारे में हमें बताने का मन बना लिया है और मैं गर्व से इतरा रही हूँ कि एक होनहार बच्चे की गौरव गाथा मेरे ब्लोगपटल पर लिखी जाएगी। विश्वनाथ जी , मेरे ब्लोग को ये ईज्जत देने के लिए सहस्त्र नमन और धन्यवाद ।

आलोक जी ने अभी हाल ही में ज्ञान जी की एक पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि हर आदमी अपने आप में एक उपन्यास होता है, हर आदमी के अंदर पांच सात आदमियों की कहानियां छुपी होती हैं। मुझे भी ऐसा ही लगता है। और अगर कहानी एक प्रतिभावान व्यक्ति की हो रही हो तो एक ही पोस्ट में निपटाना उसके साथ और पाठकों के साथ अन्याय होगा, इस लिए मैं आशा करती हूँ कि विश्वनाथ जी नकुल की पूरी कहानी सुनाएगे, सिर्फ़ झलक नहीं दिखलायेगें। विश्वनाथ जी, हम बिल्कुल बोर न होगें, मुझे पूरा विश्वास है कि नकुल की कहानी न सिर्फ़ रोचक होगी बल्कि कइयों के लिए प्रेरणादायक भी होगी। शुरु हो जाइए, हम सुन रहे हैं

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नकुल कृष्णा: एक चमकता सितारा

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मेरे बेटे का नाम है, नकुल कृष्णा, और अगले महीने में वह बाईस साल को हो जाएगा।

बेंगळूरु में St Joseph's College से BA (first class with distinction) पास करने का बाद आजकल उसकी पढ़ाई Oxford University (UK) में जारी है।
२००७ में भारत के पाँच चुने हुए Rhodes Scholars में से वह एक है। इस अन्तर-राष्ट्रीय और बहुत ही प्रतिष्ठित (और साथ ही अत्यंत भारी रकम वाली) छात्रवृत्ति के बारे जानकारी, क्या क्या गुण और योगयताएं होनी चाहिए, कैसे मेरा बेटा नकुल Rhodes Scholar बनने में सफ़ल हुआ, इन सभी विषयों पर काफ़ी कुछ लिखा जा सकता है जो शायद आपको और अन्य पाठकों को रोचक लगे। अन्य विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत भी बन सकता है।

एक बाप को अपने बेटे पर गर्व करना स्वाभाविक है और इस विषय पर लिखना मेरे लिए गर्व और खुशी की बात होगी।लेकिन मैं अपना ढिंढोरा पीटना नहीं चाहता।बिना आपके और अन्य मित्रों की सम्मति और प्रोत्साहन मिले, मैं यह प्रोजेक्ट शुरू नहीं करना चाहता।

फ़िलहाल इतना ही कहूँगा कि एक अच्छे विद्यार्थी होने के अलावा, वह एक अच्छा लेखक, नाटककार, कवि, समाज सेवक और शास्त्रीय गायक भी है जिसके बल पर वह Rhodes Scholar बना। बचपन से ही मेरे लिए और मेरी पत्नि के लिए वह एक आदर्श बेटा बनकर रहा है और हमारे परिवार की शान है। ईश्वर की असीम कृपा है हम दोनों पर जो हमें ऐसा बेटा मिला।

उसके और बेंगळूरु से दो अन्य विद्यार्थियों का इस scholarship के लिए चुने जाने की खबर, पिछले साल Times of India के मुखपृष्ठ पर उसकी तसवीर सहित छपी थी. यह तसवीर संलग्न है इस ब्लॉग पोस्ट के साथ।अगर इस पोस्ट को इस तसवीर के साथ आप अपने ब्लॉग पर छापने योग्य समझती हैं तो बड़ी कृपा होगी।
उसके "प्रोफ़ाइल" के साथ, कुछ दिन बाद एक और चित्र इसी अखबार में छपा था जो बाद में भेजूँगा।

आज के लिए बस इतना ही।आपको और हिन्दी जालजगत के मेरे नये मित्रों को शुभकामनाएं।
गोपालकृष्ण विश्वनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु


नकुल की फोटो अगली पोस्ट में दिखाएँगे , लोड नही कर पाए ....:)

June 24, 2008

मरीना बीच पर लिखी एक और प्रेम कहानी

मरीना बीच पर लिखी एक और प्रेम कहानी


गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी ने जब से बताया कि उनकी शादी करवाने में एक बंदर का हाथ था तब से हमारी जिज्ञासा बनी हुई थी और हम विश्वनाथ जी से पूछने का कोई मौका छोड़ते नही थे। आखिर उन्होनें ये कहानी सुनाने का मन बना ही लिया , हमें पूरा यकीन है कि पहले पत्नी से permission ले लिया होगा। And what a story it is, it is worth all the effort and patience that it required. I am greatly honoured that Vishwanatha ji decided to publish it on my blog. Vishwanath ji thank you very much .


आइए अब इस किस्से का मजा लेते हैं ।


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बन्दर और मेरी शादी की कहानी


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बन्दर तो बहुत चतुर होते हैं। बचपन में नुक्कड़ पर मदारी और उनके बन्दरों से हमारा काफ़ी मनोरंजन होता था। क्या क्या नहीं कर सकते यह बन्दर!
लेकिन क्या आप जानते हैं के एक बन्दर ने एक इंजिनीयर की शादी तय की थी? वह भाग्यशाली इन्जिनीयर तो मैं ही हूँ। ऐसी सुन्दर, सुशील, पढ़ी लिखी और हर काम में सक्षम और दक्ष बीवी मिली मुझे उस बन्दर की कृपा से कि अगर वह बन्दर मुझे अब मिल जाए तो जीवन के और कई महत्वपूर्ण निर्णयों को मैं उसके हाथों में छोड़ने के लिए तैयार हूँ।


Disclaimer:


यह कहानी मेरी एक पुरानी और प्रिय कहानी है जिसे निकट के रिश्तेदारों और दोस्तों को कई बार सुना चुका हूँ लेकिन इस कहानी की यथार्थता का मेरे पास कोई सबूत नहीं और अब प्रमाण जुटाना असंभव है। मेरी पत्नि और ससुरजी इस कहानी को सरासर मनघडंत और एक शरारती दिमाग का उपज मानते हैं और इसका जोर शोर से खंडन करते आये हैं। अब आप ही निर्णय कीजिए कि यह कहानी सच हो सकती है या नहीं।
बात १९७२ की है। BITS पिलानी से पाँच साल का BE(Hons) की पढ़ाई पूरी करके घर (मुम्बई) आया था। शादी के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। अब तो career की चिन्ता थी। लेकिन मेरी माँ कहाँ मानने वाली थी?


मेरे बडे भाइसाहब ने १९६८ में ही, अपना जीवन साथी स्वयं चुनकर, परिवार को धक्का पहुँचाया था। उन दिनों प्रेम - विवाह आम बात नहीं थी। अपने परिवार के बुज़ुर्गों से लड़ना पड़ता था और उतनी जल्दी सहमति नहीं मिलती थी। माँ को डर था के कहीं मेरा दूसरा लाड़ला भी मेरे हाथों से निकल न जाए। रूड़की विश्वविद्यालय में मेरा ME (Structures) में admission हो गया था जो काफ़ी मुशकिल समझा जाता था उन दिनों। मैं तैयार हो रहा था रूड़्की जाने के लिए। माँ को डर था कि कहीं मेरा किसी हिन्दी बोलने वाली यू पी की लड़की से कोई चक्कर न चल जाए। रिश्तेदारों ने डरा दिया था यह कहकर कि कोई यू पी की लड़की अवश्य उसे अपने चुंगल में फ़ँसा लेगी। सावधान रहो!


रो रोकर मुझे अनुमति मिली ऊंची पढाई के लिए। इधर मैं रूड़की के लिए निकल गया था, उधर मेरे पिताजी ने बहू ढूँढना शुरू कर दिया। मुम्बई में एक जाने माने प्राइवेट कंपनी में अपने विभाग के सबसे वरिष्ठ Sales Manager थे, और बहुत दौरा करना पढ़ता था उनको काम के सिलसिले में। अगले दौरे पर उनका विशाखपट्नम जाना हुआ और संयोग से किसी मीटिंग में मेरे होने वाले ससुर से उनकी मुलाकात हो गई। पिताजी और ससुर केरळ के एक ही गाँव के थे और बचपन में एक दूसरे से परिचित भी थे और यह मुलाकात बरसों बाद हो रही थी। दोनों अत्यंत प्रसन्न हुए एक दूसरे से मिलने पर और उसी दिन मेरे ससुरजी मेरे पिताजी को घर पर आने को आमंत्रित किया।


मेरे पिताजी के तीन बेटे हैं और मैं मँझला बेटा हूँ। ससुरजी की चार सुन्दर सुशील बेटियाँ थी, कोई बेटा नहीं। पिताजी का ध्यान दूसरी बेटी पर गया और बहू का चयन उसी क्षण हो गया। बस एक ही समस्या थी। अपने पागल दूसरे बेटे को कैसे समाझाएं की पढ़ाई-वढ़ाई तो होती रहेगी, झट शादी के लिए कैसे इसे मना लें। माँ मुम्बई सी सीधे विशाखापटनम पहुँच गई। माँ तो मेरी होने वाली पत्नि पर फ़िदा हो गई।


माँ उतावली हो रही थी और उसका कारण मुझे बाद में मालूम हुआ।


ज्योतिष विज्ञान पर अटूट विश्वास था उन्हें और परिवार का ज्योतिषि ने उन्हे डरा दिया था कि मेरे जनम पत्रि के अनुसार, यदि अमुक तारीख से पहले मेरी शादी नहीं हो जाती तो उस तरीख के बाद उन्नीस साल तक कोई मुहूर्त नहीं!!

गौरतलब बात है के उस जमाने में किसीने मेरी पत्नि से कुछ पूछा तक नहीं। हमारे सम्प्रदाय की प्रथा थी कि लड़कियाँ विवाह के मामलों में बड़े जो निश्चय करते थे उसे मौन रहकर स्वीकार करते थे। आखिर परिवार के बुजुर्ग हमारी हित में ही सोचंगे न? उस समय वह BSc कर रही थी। बस मेरा एक फोटो थमा दिया उसके हाथ में।
फ़िर क्या था! मुझे माँ की चिट्टी मिली और मुझे लड़की देखने रूड़की से विशाखापटनम पहुँचने के लिए कहा गया। मैं हैरान रह गया। साफ़ मना कर दिया और कहा के इस समय मैं कोई लड़की वड़की देखने वाला नहीं हूँ। मुझे तंग मत करो और शांती से पढ़ाई पूरी करने दो। पढ़ाई पूरी करने के बाद, और कहीं अच्छी नौकरी लगने के बाद ही विवाह के बारे में सोचूँगा। और इस बीच आप सब लोग निश्चिन्त रहिये। बडे भाई का अनुकरण नहीं करूँगा और मेरा यहाँ किसी से कोई चक्कर नहीं चल रहा है और न इसके लिए मेरे पास वक़्त है।
मैंने यह भी समझा दिया के ME का course कठिन है और इतने दिनों तक छुट्टी लेकर lecture, test, practical, tutorial submission वगैरह को छोड़कर आ नहीं सकता।
माँ को मेरा यह फ़ैसला अच्छा नहीं लगा।
उत्तर में माँ ने इतना ही पूछा "छुट्टियाँ कब है?" मैंने बता दी।फ़िर कुछ महीनों के लिए मैं इस बात को भूल गया था।पिताजी और ससुर संपर्क में रहे (चिट्टियों द्वारा)।


कुछ महीने बाद, माँ चेन्नैई गयी मेरे मामाजी के यहाँ। मेरी वार्षिक छुट्टियों के दिन करीब आने लगे। मेरी माँ ने मामाजी के यहाँ जाकर अपनी दुख भरी कहानी सुना दी। यह कैसा बेटा है मेरा! Deadline होते हुए भी इतने अच्छे रिश्ते से मुँह मोड़ रहा है। अब केवल ढाई साल बचे हैं। शादी ब्याह का मामला कभी कभी तो जल्दी "फ़िट" नहीं होता और सालों लग सकते हैं सही लड़की और अच्छे परिवार मिलने में। कहीं गाड़ी छूट गई तो यह आजीवन कुँवारा रह जाएगे। उन्नीस साल बाद कौन करेगा एक बुड्ढे से शादी? अरे कोई इसे समझाओ!
मेरे मामाजी की लड़की ने सुझाव दिया कि किसी तरह मुझे लड़की दिखा दिया जाए। बस देखते ही उसकी सुन्दरता पर मोहित होना निश्चय है। आगे हम निपट लेंगे।

दोनों ने खिचडी पकाना शुरू कर दिया। कई साल पहले चेन्नैई के बाहर मेरे पिताजी ने मेरे नाम एक छोटा सा प्लॉट खरीदा था। अब तो हम मुम्बई में बस गये थे और इस जमीन को बेचना ही ठीक समझा।

मुझे चिट्टी मिली के छुट्टियों में रूड़की से सीधे चेन्नई पहुंच जाओ। तुन्हारी उपस्थिति आवश्यक है। हम जमीन बेच रहे हैं और क्योंकि जमीन तुम्हारे नाम है, रेजिस्ट्रार के कार्यालय में हस्ताक्षर करना है तुम्हें। हम सब होंगे और मामाजी के यहाँ रुके हैं और तुम भी वहीं चले आओ।


जाल बिछा दिया गया। उधर ससुर जी को नोटिस भेज दिया गया कि रूड़की के बकरे को फ़ंसाने की योजना तैयार है और ज्योति (मेरी पत्नि) के साथ एक या दो दिन पहले ही चेन्नैइ पहुँच जाइए।


सुना है ससुरजी कुछ सोच में पढ़ गये थे। जन्म पत्रियाँ मिलायी गयी थीं और यह कहा गया था कि यह तो राम सीता की जोड़ी है! फ़िर भी ससुरजी सोचने लगे थे कि जब लड़का इतना "Hard to get" रुख अपना रहा है और शादी के लिए राजी नहीं हो रहा है, क्या यह रिश्ता हमारे लिए ठीक रहेगा? इतनी दूर (मुम्बई से रूड़की) जाने की क्या जरूरत थी पढ़ाई के लिए? क्या पता रूड़की में क्या कर रहा है? पढ़ाई का बहाना तो नहीं बना रहा है शादी को रोकने के लिए? अगर माँ-बाप को केवल खुश करने के लिए और पिंड छुडवाने के लिए लड़की देखने आता है और लड़की देखकर मना कर दिया तो? क्या असर पढे़गा मेरी बेटी पर? क्यों न कहीं और के अच्छे लड़के और परिवार के बारे में भी सोचा जाय? इसके अलावा, यह तो दूसरी बेटी है। पहले की शादी निपटाने से पहले दूसरी की शादी के बारे में सोचना कहाँ तक उचित है? क्या सोचेगी मेरी पहली बेटी?


कुछ समय इन प्रश्नों से झूझते रहे होंगे।
चैन्नैई से आया हुआ निमंत्रण स्वीकार करने से पहले उन्होंने मन की शांति के लिए क्या किया, अब सुनिए।


बस यहाँ से कहानी विवादस्पद है। आगे पढ़िए।


विश्वसनीय सूत्रों से मुझे यह सब बाद में पता चला ।


उनके घर से थोडी दूर, एक छोटे पहाड़ के ऊपर एक पुराना हनुमानजी का मन्दिर है। इस मन्दिर के आस पास एक वृद्ध बन्दर रहता था। श्रद्धालुओं का मानना है कि यदि कोई मन-ही-मन प्रस्ताव लेकर, सच्चे दिल से, पूरी श्रद्धा से इस मन्दिर पर पूजा करके प्रसाद चढ़ाता है और यह प्रसाद उस बन्दर के नज़दीक रख देता है तो बन्दर कभी प्रसाद (फ़ल वगैरह) स्वीकार करता है और कभी ठुकराता है। कोई अब तक यह समझ नहीं सका कि बन्दर ऐसा कब और क्यों करता है। भूख की बात नहीं थी। कभी किसी से स्वीकार नहीं करता पर कुछ देर बाद किसी और का प्रसाद स्वीकार करता था। वहाँ के भक्त यह मानते हैं कि अगर बन्दर फ़ल स्वीकार करता है तो समझ लीजिए की हनुमानजी की सम्मति मिल गयी!


अब आगे क्या बताऊँ आपको? आप अन्दाज़ा लगा सकते हैं के वहाँ क्या हुआ होगा। ससुर्जी नगर के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित फ़ल के दूकान पर जाकर वहाँ से सबसे मोटे, ताजे और लाल दिखने वाले सेव को चुनकर, एक चाँदी की थाली में रख दिया उस मन्दिर के चौखट पर।बन्दर लपककर सेव उठाकर उसे खाने लगा!। काश मैं तारीख, समय वगैरह बता सकता जब यह सब हुआ था और मेरा भाग्य खुला था।


आगे क्या बताऊँ आपको? यह सब बातों से बिल्कुल अनभिज्ञ रहकर चेन्नैई पहुँचा जमीन बेचने। शाम को बताया गया के हम सब मरीना बीच देखने जा रहे हैं। माँ ने धीरे धीरे मुँह खोलकर संकोच के साथ मुझसे कहा "वे लोग भी आ रहे हैं वहीं"।


"कौन लोग?" मैने पूछा। तब ही पता चला इस योजना के बारे में। मामाजी की लड़की ने हँसते हँसते सारी योजना उगल दी।


मामाजी और उनकी लड़की की योजना के अनुसार, बिना कोई औपचारिकता के, बस ऐसे ही दो परिवार के सदस्यों का मरीना बीच पर मिलन हुआ। Introductions के बाद, हम दोनों को अकेले छोड़कर बाकी सभी कुछ दूर चले गए। केवल आधे घंटे हम आपस में बातें की मरीना बीच पर, रेत पर बैठे बैठे, शाम की ठण्डी हवा खाते खाते और हमेशा के लिए एक दूसरे के हो गए। हम दोनों ने तय किया की शादी अब नहीं होगी। उसकी दीदी की शादी होने के बाद, और हम दोनों की पढ़ाई पूरी होने के बाद और मेरी कहीं अच्छी नौकरी लगने के बाद ही शादी करेंगे।


१९७३ में चेन्नैई के मरीना बीच पर उस मिलन के बाद हम दो साल पत्र व्यवहार करते रहे और इस बीच केवल एक बार मुम्बई में एक दिन के लिए मिले और १९७५ को मुम्बई में हमारी शादी हुई।


चित्र देखिए। उन दिनों कलर फ़ोटोग्राफ़ी दुर्लभ और माहँगा था।


उस बन्दर का लाख लाख शुक्रिया!! ऐसी सुन्दर बीवी किस किस के भाग्य में लिखा है? और आज भी वह उतना ही सुन्दर लगती है मेरे लिए।===========


Vishwanath