एक शाम-आय आय टी(मुम्बई) के नाम
कुछ दिन पहले घूमते घामते मैं किसी विकास कुमार के ब्लोग पर पहुँच गयी। ब्लोग में विकास जी ने अपने स्कूल के दिनों की चर्चा करते हुए एक खेल के बारे में लिखा था, “कविताओं की अन्ताक्षरी”, बिल्कुल ऐसे ही जैसे गानों की अन्ताक्षरी”। इसे खेलने के लिए हिन्दी वर्णमाला को ध्यान में रखते हुए कई कविताएं कन्ठ्स्थ करनी पढ़ती थीं। उन्हों ने साथ में एक लिन्क भी दे रक्खा था उन कविताओं के संकलन का जो उन्हों ने बचपन में याद की थीं। ये पढ़ते ही हमारी आखें चमक उठीं। अभी अभी ‘हिन्दी दिवस समारोह’ मनाया गया था हमारे कोलेज में , ज्यादातर छात्र मराठी भाषी हैं इस लिए उतने बढ़े पैमाने पर नहीं मना पाए जितने बढ़े पैमाने पर मनाने की इच्छा थी। पर हमारे छात्र भी गीतों के, कविताओं के रसिया हैं। मन में ख्याल आया कि अगर हमें इस खेल के बारे में पहले से पता होता तो शायद ‘हिन्दी दिवस’ का समां कुछ और ही बधंता। वैसे इस बार की खास बात ये थी कि हमने आलोक पुराणिक जी के व्यंग लेख (अपनी पसंद के) प्रदर्शित किए थे( उनकी अनुमति से)और छात्रों की हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी। हमारे कोलेज के ज्यादातर छात्रों के पास घर पर क्मपुयटर की सुविधा नहीं है फ़िर भी वो आलोक जी के ब्लोग का नाम नोट कर रहे थे। तो अगर कहीं कविताओं की अन्ताक्षरी का आयोजन होता तो छात्र कितना आनंद उठाते, और हिन्दी साहित्य से छात्रों का सान्निध्य अपने आप बढ़ जाता ये सोच कर ही हम मुस्कुरा लिए।
विकास जी की पोस्ट के नीचे एक लिन्क था उनके एक वाणी नाम के समूह का। बिना एक क्षण गवाये हम उस समूह के सदस्य बन गये। बाद में हमें पता चला कि विकास जी आय आय टी (मुम्बई) के छात्र हैं चौथे वर्ष में । हिन्दी को प्रोत्साहन देने के लिए ही उन्होंने आय आय टी में ये समूह बनाया है और इस में 100 से ज्यादा सदस्य है लेकिन सब आय आय टी (बम्बई) के छात्र्। मैं शायद अकेली सदस्या हूँ जो बाहर से हूँ( ये मुझे बाद में पता चला)। विकास जी हिन्द युगम के लिए कविताओं को अपनी अवाज़ से और आनंदमय बनाते हैं। इस समूह की एक खासियत ये भी है कि सदस्य बनते ही इ-मेल्स आने लगते हैं और कोई भी सदस्य किसी और सदस्य से जो कुछ भी कह्ता है वो बाकी के सभी सदस्य देख सकते हैं। तो सदस्य बनते ही हमें इनकी आपसी बातचीत से पता चला कि गणेश विसर्जन के दिन वाणी समूह ने एक काव्य संध्या का आयोजन किया है। मेरी तो बाछें खिल गयीं। इधर कई वर्षों से प्रत्य्क्ष कवि सम्मेलन का मज़ा नहीं लूट पाए थे, टी वी पर ही प्रसारित होते कवि सम्मेलन देख कर ही संतोष कर लेते थे। विकास जी से फ़ोन पर बात हुई, हमें ना जानते हुए भी उन्हों ने न सिर्फ़ सहर्ष आने का न्यौता दिया बल्कि निर्णायक का पद भी सौंप दिया।
हॉल में घुसते ही सामने एक लड़का बैठा दिखाई दिया, बड़े अट्पटे से बाल बनाए हुए, लोग धीरे धीरे आ रहे थे। थोड़ी देर में हम क्या देखते हैं, आलोक ने उसी अट्पटे बालों वाले लड़के को मंच संचालन का भार सौंप दिया। नाम है उसका मोन्टी, एक बार जो मोन्टी ने बोलना शुरु किया तो बस हम तो देखते ही रह गये, कमाल का सेंस ओफ़ हुम्यर है जनाब उसका, साफ़ जाहिर था कि वो एक मंजा हुआ रंगमंच का कलाकार होगा और बड़िया कवि भी । चुटकी लेने में उसने किसी को नहीं छोड़ा । हमें इतना मज़ा आया कि दूसरे दिन हम कोलेज में भी उसके सुनाये चुट्कले दूसरों के साथ बाटँ रहे थे।
हालांकि ऐसी कोई बन्दिश नहीं थी पर 90% छात्रों ने स्वरचित कविताएं सुनायी। ज्यादातर कवि प्रथम वर्ष के छात्र थे पर कविताओं की गुणवत्ता इतनी बड़िया थी कि लगा हम जैसे प्रतिशिष्ठ कवियों को सुन रहे हैं। पिछ्ले 25 सालों में सैकड़ों बार निर्णायक की भूमिका निभायी है पर ये काम कभी इतना मुश्किल नहीं लगा जितना इस शाम्। सब एक से बड़ कर एक, किसके नम्बर काटें और कहाँ काटें निश्चित करना इतना कठिन कभी नही था। आशिश ने अपनी कविता में मित्रता का गुणगान कर और छ्त्तीसगड़ का स्तुतिगान प्रस्तुत कर ऐसा भाव विभोर किया की सब के पांव थिरक उठे। नीरज ने समुद्र की लहरों से प्रेरित हो कर छोटी सी लहर के अस्तित्व के संघर्ष को जितने मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया वो सराहनीय था। हर रस की कविता का आंनद उठाने को मिला।
बहुत जल्द इन सबकी रचनाएं वाणी के ब्लोग पर होंगी। मोन्टी की लच्छेदार बातों का लुत्फ़ तो आप नहीं उठा पायेगें पर इनकी कविताओं का स्वाद तो चख ही पायेगें।
मेरे घर के पिछवाड़े प्रकाश पुंज है और मुझे उसकी झलक अब मिली वो भी हिन्दी की बदौलत । गर्व से मेरा माथा ऊँचा हो रहा है ये सोच कर कि ये हमारे देश का भाविष्य हैं, कौन रोक पायेगा भारत को विश्व नेता बनने से? हमने आय आय टी से सिलिकॉन वैली तक का सफ़र के बारे में सुना है ,पर अब जानते है कि तकनीकी क्षेत्र में ही नहीं साहित्य और कला के क्षेत्र में भी हम नये आयाम हासिल करने वाले हैं।वो दिन दूर नहीं जब हिन्दी का प्रचार ऐसा होगा कि लोग फ़क्र से कहेगें मेरा बेटा हिन्दी माध्यम से पढ़ा है। तब शायद हमारे ‘हिन्दी दिवस’ का रूप एकदम अलग हो। क्या ये सपना हमारे जीवन काल में ही…………।
आमीन
विकास जी की पोस्ट के नीचे एक लिन्क था उनके एक वाणी नाम के समूह का। बिना एक क्षण गवाये हम उस समूह के सदस्य बन गये। बाद में हमें पता चला कि विकास जी आय आय टी (मुम्बई) के छात्र हैं चौथे वर्ष में । हिन्दी को प्रोत्साहन देने के लिए ही उन्होंने आय आय टी में ये समूह बनाया है और इस में 100 से ज्यादा सदस्य है लेकिन सब आय आय टी (बम्बई) के छात्र्। मैं शायद अकेली सदस्या हूँ जो बाहर से हूँ( ये मुझे बाद में पता चला)। विकास जी हिन्द युगम के लिए कविताओं को अपनी अवाज़ से और आनंदमय बनाते हैं। इस समूह की एक खासियत ये भी है कि सदस्य बनते ही इ-मेल्स आने लगते हैं और कोई भी सदस्य किसी और सदस्य से जो कुछ भी कह्ता है वो बाकी के सभी सदस्य देख सकते हैं। तो सदस्य बनते ही हमें इनकी आपसी बातचीत से पता चला कि गणेश विसर्जन के दिन वाणी समूह ने एक काव्य संध्या का आयोजन किया है। मेरी तो बाछें खिल गयीं। इधर कई वर्षों से प्रत्य्क्ष कवि सम्मेलन का मज़ा नहीं लूट पाए थे, टी वी पर ही प्रसारित होते कवि सम्मेलन देख कर ही संतोष कर लेते थे। विकास जी से फ़ोन पर बात हुई, हमें ना जानते हुए भी उन्हों ने न सिर्फ़ सहर्ष आने का न्यौता दिया बल्कि निर्णायक का पद भी सौंप दिया।
हॉल में घुसते ही सामने एक लड़का बैठा दिखाई दिया, बड़े अट्पटे से बाल बनाए हुए, लोग धीरे धीरे आ रहे थे। थोड़ी देर में हम क्या देखते हैं, आलोक ने उसी अट्पटे बालों वाले लड़के को मंच संचालन का भार सौंप दिया। नाम है उसका मोन्टी, एक बार जो मोन्टी ने बोलना शुरु किया तो बस हम तो देखते ही रह गये, कमाल का सेंस ओफ़ हुम्यर है जनाब उसका, साफ़ जाहिर था कि वो एक मंजा हुआ रंगमंच का कलाकार होगा और बड़िया कवि भी । चुटकी लेने में उसने किसी को नहीं छोड़ा । हमें इतना मज़ा आया कि दूसरे दिन हम कोलेज में भी उसके सुनाये चुट्कले दूसरों के साथ बाटँ रहे थे।
हालांकि ऐसी कोई बन्दिश नहीं थी पर 90% छात्रों ने स्वरचित कविताएं सुनायी। ज्यादातर कवि प्रथम वर्ष के छात्र थे पर कविताओं की गुणवत्ता इतनी बड़िया थी कि लगा हम जैसे प्रतिशिष्ठ कवियों को सुन रहे हैं। पिछ्ले 25 सालों में सैकड़ों बार निर्णायक की भूमिका निभायी है पर ये काम कभी इतना मुश्किल नहीं लगा जितना इस शाम्। सब एक से बड़ कर एक, किसके नम्बर काटें और कहाँ काटें निश्चित करना इतना कठिन कभी नही था। आशिश ने अपनी कविता में मित्रता का गुणगान कर और छ्त्तीसगड़ का स्तुतिगान प्रस्तुत कर ऐसा भाव विभोर किया की सब के पांव थिरक उठे। नीरज ने समुद्र की लहरों से प्रेरित हो कर छोटी सी लहर के अस्तित्व के संघर्ष को जितने मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया वो सराहनीय था। हर रस की कविता का आंनद उठाने को मिला।
बहुत जल्द इन सबकी रचनाएं वाणी के ब्लोग पर होंगी। मोन्टी की लच्छेदार बातों का लुत्फ़ तो आप नहीं उठा पायेगें पर इनकी कविताओं का स्वाद तो चख ही पायेगें।
मेरे घर के पिछवाड़े प्रकाश पुंज है और मुझे उसकी झलक अब मिली वो भी हिन्दी की बदौलत । गर्व से मेरा माथा ऊँचा हो रहा है ये सोच कर कि ये हमारे देश का भाविष्य हैं, कौन रोक पायेगा भारत को विश्व नेता बनने से? हमने आय आय टी से सिलिकॉन वैली तक का सफ़र के बारे में सुना है ,पर अब जानते है कि तकनीकी क्षेत्र में ही नहीं साहित्य और कला के क्षेत्र में भी हम नये आयाम हासिल करने वाले हैं।वो दिन दूर नहीं जब हिन्दी का प्रचार ऐसा होगा कि लोग फ़क्र से कहेगें मेरा बेटा हिन्दी माध्यम से पढ़ा है। तब शायद हमारे ‘हिन्दी दिवस’ का रूप एकदम अलग हो। क्या ये सपना हमारे जीवन काल में ही…………।
आमीन