औरकुट के नाम
क्लासों में, गलियारों में,
औरकुट, औरकुट, का शौर सुना,
देख आने का मन बना,
उपवन के प्रवेशद्वार से अदंर झांका,
बच्चे खेल रहे थे,धमाचौकड़ी उछलकूद,हँसते गाते,
निकल जाऊं मैं, मेरा यंहा क्या काम,
क़दम पलटने को थी मैं,
आई एक आवाज,आओ दोस्त कं चले,
आश्चॅयचकित सी मुड़ कर देखा,
इक् बच्चा था,उमर का कच्चा था,
ने हैरानी से पूछा,"कौन मैं?",हँा हँा तुम भी,
से देखा,कई हँसती आखें, नन्हें हाथ बुला रहे थे,
हँस कर कहा, "बेटा",मुझसे क्या बात करोगे,
नहीं हो जाओगे,
वो, बेटा नहीं दोस्त,
था गुमनामी का बेबाकपन,
युवापीड़ी के मन का खुलापन,याँ फ़िर कोरा अकेलापन,
किसी को आत्मसात् करने को तैयार,
उजले बालों पर दोस्ती की चादर डाल,
मेरा हाथ, ले चले ये नन्हें दोस्त मेरे,
गलियारों में।कभी हँसी मजाक,
कभी रोने को मागंते कधां उधार,
जाते कभी मन के गहरे राज,
शरारती आखों वालासकुचाते से पूछ डालता,
क्युं दोस्त, कभीतुम्हारा भी था ऐसा हाल,
, कहती, हँा दोस्त, यही है जिंदगी,
समझ गयी मैं, नये जीवन का सत्य,
नाता सिफॅ दोस्ती का,
सब रिश्ते मिथ्या,
कोइ आस नहीं, कोइ बाधं नहीं,
चाहे रम लो तुम,और जब चाहे निकल लो तुम,
मन के सब सशंय,बेझिझक, अब मैं इनके संग हँसती हूं,गाती हूं,टोक देती हूं,
फिर
नाच भी लेती हूं,रोज शाम मैं इक नया जीवन जी लेती हूं
सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।
July 08, 2007
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