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May 05, 2008

कविताई शाम

कविताई शाम


ह्म्म! अब कुछ पल सुस्ताने बैठी हूँ तो कल शाम को याद कर खुद ही हैरान हूँ। मैं जिसका हिन्दी प्रेम सरस्वती नदी की तरह कई परतों के नीचे दफ़न था और जिसके घर के सदस्यों के लिए हिन्दी साहित्य काला अक्षर भैंस बराबर है, उसके घर पर हिन्दी कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ। ये चमत्कार नहीं तो और क्या हो सकता है। ये मुमकिन हुआ बतरस की बदौलत्। जैसा हमने बताया था कि पिछ्ले कुछ महीनों से हमने इसकी गोष्ठियों में जाना शुरु किया है। हमारे घर से काफ़ी दूर पड़ता है फ़िर भी हम हिम्मत कर ही डालते हैं। ऐसी हिम्मत वेस्टर्न मुम्बई में रहने वाले नहीं कर पाते( है न यूनुस जी?…J)। खैर पिछली बार हमने ठिठाई दिखाते हुए मई महिने की बतरस हमारे घर रखने का प्रस्ताव रखा और ये बतरस के सदस्यों का बड़प्पन और न्यायप्रियता ही है कि उन्हों ने हमारा प्रस्ताव तुंरत मान लिया। त्रिपाठी जी को डर था कि हमारा घर इतना दूर और कवि सम्मेलन का आयोजन रात के समय होने के कारण शायद बहुत से लोग नहीं आये और शो कहीं फ़्लोप न जाए।

आख़िर वो दिन आ ही गया, मानसिक तनाव अभी बरकरार था। हमारे एरिआ में लोड शैडिंग होती है तो रोज 4-5 शाम को लाइट नहीं होती, मकान है आठ्वें माले पर, आने वालों में कई बुजुर्ग्। पर हमारी किस्मत देखिए शायद रविवार होने के कारण कल बिजली भी नहीं गयी। हॉल धीरे धीरे भरना शुरु हुआ और एक घंटे में कम से कम 45 लोग आ चुके थे। और लोगों का आना अभी जारी था। अब आश्चर्यचकित होने की बारी त्रिपाठी जी की थी।


ऊपर से अरविंद शर्मा राही जी( ये कवि भी हैं और बिल्डर भी) के कहने पर लोकल टी वी चैनल वाले आ गये पूरा प्रोग्राम रिकॉर्ड करने और तीन टेकनिशियन और कैमरा स्टेंड ने मिल कर चार लोगों की जगह कब्जे में ले ली तो युवा कवियों ने हॉल के साथ सटी सीड़ियाँ हथियाई देख हमें अपने कैम्पस के दिन याद आ रहे थे। आने वाले कवियों में से कुछ को हम ब्लोगजगत की वजह से पहचानते थे जैसे बसंत आर्या, विकास और अलोक (आय आय टी से), नीरज गोस्वामी जी का जब फ़ोन आया कि वो भी आ रहे हैं तो हमें सुखद आश्चर्य हुआ। इनके अलावा आने वालों दिग्गजों की लिस्ट भी काफ़ी लंबी

थी, जैसे दवमणि पांडेय( ये कवि भी हैं, फ़िल्मों के लिए गाने लिखते हैं और फ़िर भी टाइम बच जाए तो इन्कम टैक्स ऑफ़िस में काम कर लेते हैं बसंत आर्या जी के साथ),
देवमणि जी की सुनाई कविता की चार पंक्तियाँ-


"हर खुशी मिल भी जाए तो क्या फ़ायदा
गम अगर न मिले तो मजा कुछ नहीं
जिन्दगी ये बता तुझसे कैसे मिलें
जीने वालों को तेरा पता कुछ नहीं"


"यूं ही तो लोग कहते नहीं उनको किंग खान
शाहरुख ने बादशाहत का रुतबा दिखा दिया
चक दे की हाकियों से जो भी कमाया माल
क्रिकेट की चियर गर्ल्स पर वो सब लुटा दिया॥"


कपिल कुमार( ये 76 वर्षिय युवा हैं जो एक्टर, गीतकार और मॉडल हैं),
कनक तिवारी( ये कवियत्री तो हैं ही साथ साथ में इंजिनियरिंग कॉलेज में कम्युनिकेशन स्किल्स पढ़ाती हैं, हिन्दी फ़िल्म राइटरस एसोसिएशन की सदस्या हैं, दो अखबारों में एडिटर रह चुकी हैं और भी न जाने क्या क्या),


अक्षय जैन से मैं आप को पहले भी मिलवा चुकी हूँ । सत्तर को पार कर चुके जैन साहब एक बहुत ही डायनमिक शख्शियत के मालिक हैं,मूलत: मार्क्सवादी पर फ़िर भी मार्क्सवादियों और आर एस एस को उनकी अवसरवादिता पर लताड़ने से नहीं झिझकते। उनके बारे में लिखने जाऊँ तो कई पन्ने लग जाएं यहां मैं उन्हीं की म्युसिक एलबम "आगे और लड़ाई है" के कुछ अंश सुनाती हूँ
"जिस घर में मिट्टी मुलतानी
जिस घर में मटके का पानी
जिस घर में तुलसी की पूजा
जिस घर में मीठा खरबूजा
जिस घर में दादी के किस्से
उस घर के न होवें हिस्से
घर से बड़ा न कोई मंदिर
तीरथ ऐसा न कोई दूजा
जाप करो तुम लाख हजारों
घर से बड़ा न कोई पूजा"


जाफ़र रजा-
ये तो नवी मुम्बई के ही शायर निकले। उन्हों ने अपनी नयी गजलों की किताब दूसरा मैं की एक प्रति हमें भेंट की, उसी में से कुछ शेर सुनाती हूँ-


“कदम कदम पे दिले-गमजदा दुखाया गया
तमाम उम्र मेरा सब्र आजमाया गया
कसम तुम्हारी अभी तक खबर नहीं मुझको
सलीब-ओ-दार पे कब कब मुझे चढ़ाया गया
तेरी निगाह से गिरना मेरा बिखर जाना
वो कत्ल था कि जिसे हादसा बताया गया” ।


पूर्ण मनराल- इनका नाम हमने ही नहीं सुन रखा था, इन की भेंट की किताब में इनका परिचय देख लगता है कि आप सब इनसे परिचित ही होगें। पत्रकारिता, रेडियोस्टेशन से जुड़े हुए शासकिय सेवारत।


खन्ना मुजफ़रपुरी, राकेश शर्मा, रितुराज सिंह, रवीन्द्र मौर्या, राजेन्द्रनाथ शर्मा, मनीष ठाकुर, सविता अग्रवाल, तारा सिंह, और भी बहुत सारे। कुमार शैलेन्द्र,हस्तीमल हस्ती ये वो कवि हैं जिनकी कविता कई दिनों तक जहन में छायी रहती है।


कुमार शैलेंद्र जी की कविता की कुछ पक्तियाँ देखिए
"कबिरा बैठा लिए तराजू
तौल रहा दुनियादारी
जो भीतर से जितना हल्का
बाहर से उतना भारी"।


हस्तीमल हस्ती जी पेशे से सुनारे हैं , दुकानदार हैं। अब उनकी कविता की चार लाइन देखिए
"ये नहीं कहता मैं कि खवाब न लिख
अपने कांटों को तू गुलाब न लिख
जिससे लिखता है प्यार की चिठ्ठी
उस कलम से कभी हिसाब न लिख।


राकेश शर्मा जी को सुनिए
" दिल देता जो हुकुम हम वही करते हैं
चाहत पर कुर्बान जिन्दगी करते हैं
इस दर्जा नफ़रत है हमें अंधेरों से
घर को अपने फ़ूंक कर रोशनी करते हैं।"


नीरज जी की कविता नीरज जी की ही आवाज में सुनाने का मन है लेकिन क्या करें ये टेकनॉलोजी चैलेंजड होना बीच में आ जाता है। कौशिश जारी है( संजीत , मुस्कुराओ मत,हमें सुनाई दे रहा है, कौशिश करने वालों की हार नहीं होती। तुम देख लेना एक दिन हम गायेगें “ जीत जायेगें हम , बस थोड़ी कसर है “…J) आखिर नीरज जी ही हमारी मदद को सामने आये और आज अपने मोबाइल से खीचीं तस्वीरें हमें में भेज दीं। ये तस्वीरें जो आप देख रहे हैं वो नीरज जी के ही सौजन्य से हैं । नीरज जी धन्यवाद्।


कविताओं के दौर के बाद खाना, समय कैसे उड़ा और कब एक बज गया पता ही न चला।
यहां एक किस्से का जिक्र करना बहुत जरुरी है। नीरज जी खाना खाए बिना जा रहे थे, हमारे हजार आग्रह करने के बाद भी वो टस से मस नहीं हुए। और भी कुछ लोग बिन खाए गये हमें इतना बुरा नहीं लगा पर नीरज जी तो ब्लोगर मित्र हैं, इनका इस तरह से जाना हमें बहुत खराब लग रहा था। हमने अंतिम ब्रह्म शस्त्र चलाते हुए कहा कि अगर आप खाए बिना गये तो आप की शिकायत कलकत्ते पहुंचा दी जाएगी, शिव भैया फ़िर देखना आप को कितना गुस्सा करेगें। आप यकीन नहीं करेगें नीरज जी चुपचाप खाने की टेबल की तरफ़ बढ़ लिए और मिठाई का टुकड़ा मुंह में डाल शिव भैया के नाम का मान रख लिया। शिव भैया, ऐसी पक्की दोस्ती कैसे की जाती है जरा हमें भी गुर सिखाए दो प्लीज्।
इस कवि सम्मेलन का एक अप्रत्याशित परिणाम भी निकला, पर उसके बारे में कल बताएगें। लेकचर के पचास मिनिट खत्म हो गये हैं और मुझे खर्राटे सुनाई दे रहे हैं…J

23 comments:

Shiv said...

बहुत जबरदस्त आयोजन था ये तो. और बहुत बढ़िया तरीके से आपने इस आयोजन के बारे में लिखा दीदी. आनंद आ गया..संजीत, मुस्कुराओ मत भाई.. ये तकनीक का ज्ञान बांटो....:-)

बताईये नीरज भइया केवल इसलिए खाने की टेबल पर जा पहुंचे, क्योंकि उन्हें डर था की शिकायत मेरे पास पहुँच जायेगी? अगर ऐसी बात है तो हम तो आज धन्य हो गए.

Manish Kumar said...

ये नहीं कहता मैं कि खवाब न लिख
अपने कांटों को तू गुलाब न लिख
जिससे लिखता है प्यार की चिठ्ठी
उस कलम से कभी हिसाब न लिख।
बहुत खूब !

और वो घर वाली कविता भी बेहद पसंद आई
जिस घर में दादी के किस्से
उस घर के न होवें हिस्से...

प्रस्तुति का शुक्रिया !

Yunus Khan said...

ओहो हो हमने मिस किया ।
जी आपने सही कहा । हम हिम्‍मत नहीं कर पाए ।
क्‍या करें आजकल बिजियाए हुए हैं ।

अनूप शुक्ल said...

बहुत बधाई सफ़ल आयोजन के लिये। शानदार कवितायें पढ़ीं। इनको सुनावने की तरकीब आशा है अगली बार तक सीख जायेंगी। इंतजार है अगली प्रस्तुति का। अच्छा विवरण! आपने कौन सी कविता सुनायी?

दीपक said...

उल्लेखीत कविताये अच्छी लगी !!

धन्यवाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

वाह अनिता जी ...
आप ऐसे आयोजन कराने लगीं --
:-)

सुंदर कवितायेँ सुनवाने का शुक्रिया

दिनेशराय द्विवेदी said...

अच्छा तो मुंबई में भी बतरस है। यहाँ कोटा में अनेक बतरस हैं, कवि अनगिनत। मार पड़ती है संचालक पर। एक आयोजन के लिए अनेक संचालक रखने पड़ते हैं। गनीमत है फिर भी मिल जाते हैं।

Asha Joglekar said...

मजा़ आगया बतरस में । कविताएं बडी प्यारी थीं । सुनने का इंतजार हैं

अमिताभ मीत said...

मज़ा आ गया. पोस्ट करने के शुक्रिया.

Udan Tashtari said...

मजा आया-या खुदा, हम क्यूँ न हुए!!

Batangad said...

क्या बात है। बहुत खूबसूरत। जिस घर में मिट्टी मुलतानी... बहुत बढ़िया लाइनें हैं।

ALOK PURANIK said...

रिपोट देखकर तो लगता है कि कोई भी समंदर में ना गया होगाजी।
हाहाहाहाहाहा।

Abhishek Ojha said...

वाह बहुत अच्छा आयोजन और पोस्ट भी. अच्छी पंक्तियों के लिए धन्यवाद.

नीरज गोस्वामी said...

950आभार देवमणि पाण्डेय एवं अनिता जी का जिनकी बदोलत दोस्तों की संख्या में खूब इजाफा हुआ. अनिता जी द्वारा किया गया आयोजन इतना अच्छा था की कभी एहसास ही नहीं हुआ की हम किसी दूसरे घर में बैठे हैं. खाना ना खा कर जाने में मुझे भी कष्ट कुछ कम नहीं हुआ लेकिन मजबूरी थी, मैंने वायदा किया है की अनिता जी के यहाँ कभी सिर्फ़ खाना खाने ही आऊंगा. जो लोग नहीं आ पाए वो कभी नहीं जान पाएंगे की उन्होंने क्या खोया है...(इशारा यूनुस जी की तरफ़ है.)
नीरज

Sanjeet Tripathi said...

वाह वाह!! शानदार! बधाई

अजी हम मुस्कुरा नई रहे सोच रहे कि कैसे आपको समझाया जाए ये सब!!
जुगाड़ते है रास्ता कोई न कोई

डॉ. अजीत कुमार said...

कवि गोष्ठी का सफ़ल आयोजन करवाने का और उन सारी कवियों तथा उनकी कविताओं से हमें रूबरू कराने का तहे दिल से शुक्रिया.
कविताओं को देख पड़ कर ही लगता है कि आयोजन सचमुच शानदार रहा होगा.

पारुल "पुखराज" said...

padhkar aanand aa gaya Aneetaa di, shukriyaa

आशीष कुमार 'अंशु' said...

बहुत जबरदस्त आयोजन था

आशीष कुमार 'अंशु' said...

बहुत जबरदस्त आयोजन था

Anita kumar said...

आप सबका ब्लोग पर आने के लिए धन्यवाद

सुनीता शानू said...

आयोजन की बहुत-बहुत बधाई जी...अच्छा लगा पढ़कर...

कंचन सिंह चौहान said...

"हर खुशी मिल भी जाए तो क्या फ़ायदा
गम अगर न मिले तो मजा कुछ नहीं
जिन्दगी ये बता तुझसे कैसे मिलें
जीने वालों को तेरा पता कुछ नहीं"


तेरी निगाह से गिरना मेरा बिखर जाना
वो कत्ल था कि जिसे हादसा बताया गया” ।

कबिरा बैठा लिए तराजू
तौल रहा दुनियादारी
जो भीतर से जितना हल्का
बाहर से उतना भारी"।

ये नहीं कहता मैं कि खवाब न लिख
अपने कांटों को तू गुलाब न लिख
जिससे लिखता है प्यार की चिठ्ठी
उस कलम से कभी हिसाब न लिख।

kis kis par waah kare.n ..hame kab nasib ho.nge aise kavi sammelan di..!

महेन said...

उल्लेखित सभी कवितायें अद्भुत लगीं। सोचता हुँ, मुंबई आने की कोई सूरत निकालनी पड़ेगी… :)