" स्ट्रीट शॉट्स फ़्रोम जर्मनी"
दोस्तों संजीत जी ने और ज्ञान जी ने सुझाया और हम आज पारिवारिक पोस्ट लेकर हाजिर हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि विनोद जी हिन्दी में अभी नहीं लिख सकते इस लिए ये पोस्ट हमारे अंग्रेजी वाले ब्लोग "चिर्पिंग्स" पर डाली है। विनोद जी फ़ोटो ब्लोग बनाना चाह्ते हैं। इस पहली पोस्ट के लिए भी उन्हों ने कुछ 20-25 फ़ोटोस निकाली और कहा इन्हें डाल दो। हमने कौशिश की पर तीन से ज्यादा लोड ही नहीं हो रही थी। उनके चेहरे पर निराशा देख हमें बहुत खराब लग रहा था पर क्या करते, दोनों टेकनॉलिजिकली चैलेंजड्।
हम सोच रहे थे क्या करें और साथ में अपनी पोस्ट पर आयी टिप्पणियाँ देख रहे थे। एक नाम दिखा अभिषेक ओझा -ये कौन है वैसे भी उनका धन्यवाद देने के लिए ईमेल पता चाहिए था सो हम उनके ब्लोग पर गये, जैसे ही उनका ब्लोग खोला विनोद बड़े एक्साइटिड हो कर बोले " देट इस इट, आई वान्ट टू मेक इट लाइक दिस"। ओझा जी ने कम से कम पंदरह फ़ोटो लगा रखे थे वो भी समोसे बनाने के लिए। अब ओझा जी को ढूंढना शुरु किया उनसे पूछ्ने के लिए कि भाई कैसे इत्ते सारे फ़ोटू डाले। अभिषेक जी का ईमेल पता भी नहीं मिला उनके ब्लोग पर, हार कर टिप्पणी के रुप में एस ओ एस छोड़ आये। पति देव से कहा सो जाइए कल सागर जी के आगे भी गुहार लगाते हैं। दूसरे दिन सागर जी ऑन लाइन न मिले।
हमारी हैरानी देखने लायक थी जब शाम को पतिदेव को दरवाजे पर खड़ा पाया( रात को दस बजे से पहले तो कभी नहीं आते) पूछने पर कुछ ऐसे ही अनमना सा बहाना था, फ़िर बोले हमारी पोस्ट बन गयी क्या। अच्छा तो ये बात थी…:) हमने कहा नहीं सागर जी आज नहीं मिले चलो खुद ही ट्राई करते हैं। अब हम दोनो यूं ही चिठ्ठों पर घूम रहे थे। मन में गाना घूम रहा था
" दो बेचारे, बिना सहारे, देखो घूम घूम के हारे, बिन ताले की चाबी ले कर( फ़ोटोस थी पर लोड करने का तरीका नहीं) फ़िरते मारे मारे…:)) ।"
तभी चिठ्ठाजगत में एक टेकनिकल पोस्ट दिखाई दी। ज्यादातर हम ऐसी पोस्ट नहीं खोलते, कुछ समझ ही नहीं आता न, पर आज पोस्ट का शीर्षक देख कर खोली, शीर्षक था "सर्च इंजन पर इमेज"। इमेज शब्द ने हमारी जिज्ञासा जगा दी थी और काम बन गया। जहां हम उल्लु हैं और रात को बहुत देर से सोते हैं विनोद हमसे एकदम उल्टे हैं। दस बजते न बजते उनकी आखें झपकने लगती हैं। पर कल तो सारी पोस्ट तैयार करते और फ़िर पोस्ट करते रात का एक बज गया, जनाब की आखों से नींद गायब थी। तो ये बनी विनोद जी की पहली पोस्ट " स्ट्रीट शॉट्स फ़्रोम जर्मनी" । अभी अभी ऑफ़िस से फ़ोन आया और कुछ शर्माते हुए , कुछ झिझकते हुए पूछा गया " कोई टिप्पणी?"…हा हा , टिप्पणीयों को लेकर लिखी गयी सभी पोस्ट मेरे दिमाग में कौंध रही हैं।
याद आ रहा है कि जब मैंने पहली बार आलोक जी के ब्लोग पर लिखा था तो कैसे कॉलेज से यूं भागी आयी थी मानो जैल से छूटी कैदी और आते ही पी सी ऑन कर दिया था। इस बात को लेकर पिता पुत्र दोनों ने कितना मुझे चिढ़ाया था।
ये पहले ही वार में ब्लोग बाबा ने मेरे धीर गंभीर पति का ये हाल कर दिया- जय हो ब्लोग बाबा। चुपचाप जाके दूसरा पी सी खरीद आती हूँ , अब इस पर से मेरा साम्राज्य खत्म होता दिखता है। यारों क्या तुमरा भी था ऐसा हाल?
सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।
May 13, 2008
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11 comments:
अनित जी, आपके ब्लोग पर पहली बार आया. बहुत अछा लिखा आपने. ब्लोग वास्तव मैं नए दौर का छापस का रोग है. लिखना तब तक पूरा नही होता जबतक कोई उसे पढ न ले. कुछ कह न दे. जिस ब्लोग के बनने का किस्सा आपने कहा वह ब्लोग भी मजेदार है. फोटोस तो गजब के सुंदर है. पर थोडे छोटे है. भले ही दो या ती पोस्ट में पोस्ट कीजिये पर फोटो थोडे बडे हो. आपके पति के तत्व ज्ञान की तारीफ करनी होगी. आपसे मित्रता करने का मन है. आप मेरा जीमेल अपने जीटल्क पर टांक ले तो आपसे और भी बातें करने का मन है.
योगेश समदर्शी
yogesh.samdarshi@gmail.com
Anitaji, aap ke pati dev - Vinod ji blog to abhi nahi dekha, abhi dekhta hoon per ek baat us ke pahle batana chahunga ki baki aur kisika blog padhe ya na padhe, aap ke blog ke narration ko padhne ka jo majha hai, aur kuchh padhne mein itna majha to nahi hi ayega, yah hamen pakka maloom hai.......
आंटी जी, अंकल जी को कह दिजीयेगा की बच्चे भी टिपिया कर जा रहें हैं.. किसी बड़े को आज अभी तक फुर्सत नहीं है.. :D
विनोद जी को हमारा प्रणाम, फोटो तो आप दोनों के प्रयास से बेहतर लगे हैं । मेरा एक सुझाव सभी ब्लागर्स से है कि फोटो ब्लाग में डालने से पहले उसका आकार छोटा कर के डालें तो डायलप के द्वारा इंटरनेट कनेक्ट होने वालों को फोटो दिखेगा नहीं तो बडे आकार और बाईट्स के फोटो उन्हें दिखते ही नहीं हैं या फिर लोड होने में बहुत समय लगता है (आपके पोस्ट में शीर्षक फोटो को छोडकर बाकी सभी फोटो कम बाईट्स के हैं यद्वपि वे मूल रूप में काफी बडे हैं, 'काडी' कर के सीखने के लिये आप दोनों को धन्यवाद )।
वैसे फोटो बकेट जैसे कई वेब साईट (संभवत: आपने ऐसे ही एक का प्रयोग भी किया है)फोटो अपलोड करने के साथ ही उस फोटो के यूआरएल लिंक व एचटीएमएल कोड भी देते हैं जिसे अपने ब्लाग में पेस्ट कर दर्जनों फोटो अपलोड किया जा सकता है साथ ही पोस्ट में डालते समय माउस ड्रैग कर या एचटीएमएल कोड में फोटो के साईज को कम ज्यादा करते हुए मनपसंद आकार के फोटो लगाये जा सकते हैं मैनें अपने कई पोस्टों में पूरे ब्लाग पोस्ट कालम साईज के फोटो भी लगाये हैं पर मैने देखा है ऐसे पोस्ट पर पाठक कम आते हैं क्योंकि ऐसे पोस्ट क्लिक करते ही नहीं खुलता, थोडा समय लगाता है ।
पोस्ट तो अच्छी है ही, फोटोग्राफी के और कमाल देखने को मिलेंगे ऐसी आशा है...
आपको मदद भेजने में थोडी देर हो गई, उसके लिए फिर से क्षमा चाहता हूँ... उस दिन बस दो मिनट के लिए ऑनलाइन हो पाया था, और वो भी टिपण्णी चेक करने के लिए (टिपण्णी चेक करने का तो ये आलम है कि ऑनलाइन नहीं आ पाने पर मोबाइल से देख लेता हूँ, हिन्दी फोंट्स तो नहीं दिखते लेकिन पता चल जाता है की किसने टिपण्णी की है.)
... अब तो आपके पास मेरा नंबर भी है ऐसी कोई समस्या हो तो जरूर याद करें... अगर कुछ मदद कर पाया तो इससे बड़ी खुश नहीं होगी मेरे लिए.
अरे वाह!! अभी टिपिया कर आते हैं.
पुराणिक छाप कहें तो - जमाये रहिये पारिवारिक!
अनीता जी बहुत ही सुन्दर चित्र ले गये हमारे जर्मनी से, धन्यवाद
मुसीबतें तो आनी ही चाहिये.. मुसीबतें इन्सान को आत्मनिर्भर बनाती है, कुछ हद तक आपको भी बना रही है।
एक समय ऐसा था जब मुझे भी हर बात जीतू भाई , संजय- पंकज भाई बैंगाणी आदि मित्रों से पूछनी पड़ती थी। धीरे धीरे खुद करने की कोशिश की; सफलता मिलती गई। आज मदद करने तक की हिम्मत भी होने लगी है।
मुझे उम्मीद है आपको भी कुछ दिनों बाद किसी की मदद की जरूरत नहीं पड़ेगी, आपखुद लोगों को मदद देंगी।
:)
aaj pahli baar aapke blog par aayi..man khush ho gaya..khaaskar aapki ek kavita bahut pasand aayi....aati rahungi.
आपके ब्लोग पर पहली बार आया. बहुत अछा लिखा आपने। फोटो तो आप दोनों के प्रयास से बेहतर लगे हैं ।
प्रवीण त्रिवेदी "प्राइमरी का मास्टर"
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