आज मनीषा पांडेय जी के ब्लोग 'कबाड़खाना' पर एक बहुत ही मार्मिक कविता पढ़ी। इसी तर्ज पर एक गीत हमारे कॉलेज में भी गाया जाता है, गीतकार हैं शहनाज शेख और गीता महाजन।ये गीत एक महिला सघंटन 'आवाज़े-ए-निस्बाँ' के लिए तैयार किया गया था जो बम्बई में बहुत अच्छा काम कर रहा है। मैं ये गीत कई बार सुन चुकी हूँ और गा चुकी हूँ पर अब तक उकताई नहीं , हर बार ये गीत मुझे उतना ही द्रवित करता है जितना पहली बार किया था, आशा है आप को भी पसंद आयेगा, वैसे सुनने का अलग ही मजा है।वैसे दोस्तों आज पहली बार हमने किसी दूसरे ब्लोग से लिंक जोड़ने की कौशिश की है, पता नहीं सही हुआ है या नहीं ये तो आप लोग ही बताएं
खत में लिखो
मैं अच्छी हूं घबराओ नको, ऐसा खत में लिखो
कुणी मेलयाने तुझको लिखा मैं निकली रोडावर (रोडावर=सड़क पर)
गर तुझको शक है मुझ पर, नहीं निकलूंगी बाहर
मैं पानी को जाऊँ क्या नको, ऐसा खत में लिखो (कुणी =किस ) (मेल्याने= मरे हुए ने)
सौ रुपये का हिसाब मांगे तो मैंने घर में क्या खाई
पानी को तीस,लाइट बीस, पच्चीस का राशन लाई
दी पच्चीस दूधवाले को , ऐसा………………॥
पिछ्ली बार आए, कुछ नहीं लाए, अबकी लाना टेप
बेबी बड़ी हुई ऐकन को,ऐसा खत ……………… । (ऐकन=सुनने को)
बाबा को आया बुखार खांसी, प्राइवेट में गई उसको लेकर (बाबा=बच्चा)
सौ रुपया दिया, इंजेकशन लिया, असर न हुआ बच्चे पर,
मैं जे जे को जाऊँ क्या नको, ऐसा ………………। (जे जे = हॉस्पिटल का नाम है)
बेबी को मैं ने इस्कूल डाला, खूब अच्छा पढ़ती है
औरतों ने भी है पढ़ना लिखना, आवाज़े-ए-निस्बां का मन है
मैं पढ़ने को जाऊं क्या नको, ऐसा………………।
आवाज़े-ए-निस्बां है महिला मंडल, जाती मैं उस मीटिंग को
तेरी बहन को शौहर जब पीटे, जाती सब धमकाने को
उसको मदद मैं करुं क्या नको, ऐसा……………।
मंहगाई इतनी रोजगार भी नहीं, तेरे जैसे जाते दुबई को
घर भी कितने टूट जाते हर दिन, दुख होता मेरे मन को
तू आजा जल्द मिलने को, ऐसा………………।
गया तू जबसे बिगड़ा है माहौल , फ़साद का डर है मुझको
धर्म के नाम पे कैसे ये झगड़े, अमन से रहना है सबको
ये बस्ती में समझाऊं क्या नको, ऐसा………॥
सऊदी जाके, दुबई जाके कितने दिन हम टिकेगें
इसी समाज को हमको बदलना, बच्चों के लिए अपने
मैं मोर्चे में जाऊँ क्या नको, ऐसा…………॥
कोणी मेल्या ने तुझको लिखा, मैं निकली रोडावर
मीटिंग में जाती, मोर्चे में जाती, सुधरने जिंदगानी को
तू भी आजा साथ देने को, ऐसा……………
सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।
February 26, 2008
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15 comments:
भाषा और भावनाओं का सुंदर संगम । अदभुत । सुंदर । दिव्य ।
वाह बहुत भावभीनी रचना...मन को छू गई.. संघर्षों से जूझने की हिम्मत इनमें ही है ... साउदी अरब और दुबई आए कई पुरुष परिवार पीछे छोड़ आते हैं और सालों तक हज़ारों मुसीबतें झेलते हैं. उस पार भी कुछ परिवार टूट जाते हैं, कुछ बन जाते हैं.
वाह, बहुत सुन्दर!!! आनन्द आ गया पढ़कर.
बहुत ही सुंदर।
बहुत अच्छा लिखा है.....एक बार फिर यह सिद्ध हो गया कि मन के निकली बातों को भाषाओं की दीवारों में कहां कैद किया जा सकता है। वैसे आपने यह भी अच्छा किया कि मुश्किल से मराठी शब्दों का शब्दार्थ भी साथ दे दिया ।
एक गीत में कितृनी ही सामाजिक परिस्थितियों से रूबरू करवाता यह गीत बहुत अच्छा लगा।
अत्यन्त सुन्दर रचना। अब तो यह लोक रचना हो चुकी होगी। मुझे इस रचना ने शिवराम जी के नाटकों खास तौर पर 'जनता पागल हो गई है'में किये अपने अभिनय की याद दिला दी। इस नाटक में भी उन की खुद की रची अनेक काव्य पंक्तियां थीं जिन में से अभी भी मुझे कुछ स्मरण हैं।
बढ़िया!!
बढिया। कालजयी रचना।
sada kee tarah bahut achha kayee rang hain is men ise ham indradhanushee khat kah sakte hain
Anil masoomshayer
वाकई, अर्से बाद कोई ऐसी चीज पढ़ी। गाने वालों की जुबान पर चढकर तो यह गीत गजब ही ढाता होगा।
कई महीनों पहले गोरेगांव में महिलाओं की एक तीन दिवसीय बैठक में यह गीत सुना था, शानदार लगा।
बढ़िया कविता.. दिल को छू लेने वाली
अरे - बड़ा बढ़िया गाना है - [यह नही पर ऐसा कुछ बचपन के समय सुना याद सा आता है] - पढ़ कर अच्छा लगा - धन्यवाद - मनीष
Bahot hi achha geet hai, bhale hi kisi ke blog se uthaya hai aapne. Iska udesh kitna badhiya hai, aajkal jo log saudi aur gulf chale jate hai, unke peeche apna parivaar chhod jate hai, jo kuchh samay tak to unki khabar lete rahte hai per fir kahin goom ho jate hai itni badi duniya mein, aur unke parivaar kitni yaatnaen bhoogatte hai, ve nahi jante. Lekin is kavya mein ek aurat ki jo himat batayi gayi hai, jo dheere dheere apne ghar ke mahol ko chhod kar apne aur apne family ke liye bajar/road tak pahonch jati hai aur apne sangharshon ke samne jhoomne lagti hai, akeli hi, koi veerangana ki tarah......
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