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October 07, 2007

प्यार तेरा यही अंजाम


प्यार तेरा यही अंजाम

अभी हाल ही में एक खबर छपी थी, कलकत्ता से करीब 175 कि मी दूर कुमारबाजार में एक सर्कस चल रहा था-ओलंपिक सर्कस। सर्कस में एक हथिनी थी सावित्री। 29 अगस्त की मध्य रात्री में एक 26 वर्षिय जगंली हाथी आया, सावित्री को देखा, पहली ही नजर में दोनों को एक दूसरे से प्यार हो गया। आनन फ़ानन दोनों ने फ़ैसला लिया और सावित्री अपने प्रेमी के साथ भाग गयी पास ही के जंगल में। जंगल में मंगल का माहौल था, दोनों प्रेमी साथ साथ बहुत खुश थे। सर्कस का मालिक अपने लाखों रुपयों के नुकसान को रो रहा था जो उसने सावित्री को खरीदने में खर्चे थे जब वो बच्ची थी। हम मन में सोच रहे थे कि बचपन से लेकर जवानी तक उसने तुम्हारे सर्कस में जो इत्ता काम किया क्या पैसा वसूल न हो गया। ये पढ़ कर कि जब भी इन लोगों ने सावित्री को दोबारा बहलाने फ़ुसलाने की कौशिश की उसने इनको घास भी न डाली, और जब ये लोग जोर जबर्दस्ती पर उतर आये तब उसका प्रेमी उसका साथ देने आ खड़ा होता। लगा बिल्कुल हिन्दी फ़िल्म की कहानी है जी सिर्फ़ नायक नायिका मानव जाती के न हो कर हाथी और हथिनी हैं। राजेश खन्ना की एक पिक्चर आयी थी 'हाथी मेरे साथी' जहन में कौधं गयी। अंत भला तो सब भला सोच कर हम इस खबर को भूलभाल गये।

आज अख्बार में फ़िर सावित्री की तस्वीर छपी है। पता चला कि सर्कस के कर्मचारी और जंगल के रखवाले सावित्री पर नजर रखे हुए थे, एक शाम वो गंगाजलघाटी के जगंल में एक तालाब पर पानी पीती दिखायी दी, उसका प्रेमी भी उससे कुछ ही दूरी पर वंही पानी पी रहा था। बस फ़िर क्या था, इन जालिमों ने सावित्री की घेराबंदी कर डाली और ढोल, नगाड़े बजा बजा कर इतना शोर मचाया कि उसका प्रेमी डर गया और पीछे ह्ट गया, दूर से सावित्री को पुकारता रहा। अकेली पड़ गयी अबला सावित्री को ये निर्दयी घेरघार कर सर्कस वापस ले आये। सर्कस का मालिक चंद्र्नाथ बैनर्जी खुश, कहता है मेरी बिटिया लौट आयी है। बिटिया या नोटों की थैली, लौट आयी है या अगवा कर ली गयी है? उसका महाउत कहता है, मैं जानता था वो अपने प्रेमी से उकता जाएगी और लौट आयेगी, जंगल में रहने की आद्त जो नहीं उसे। सावित्री को पूछा क्या किसी ने? अगर सच में सावित्री अपनी मर्जी से आयी है तो फ़िर ये सर्कसवाले दिन रात उसकी चौकसी कयुँ कर रहे हैं और जंगल के अधिकारी ये वादा क्युँ कर रहे हैं कि वो जंगल में उस प्रेमी पर नजर रखेंगे, बैनर्जी के नोटों की खातिर ना। क्या अनेक हिन्दी फ़िल्मों की याद नहीं आ रही, दुनिया की किसी और प्रजाती में ऐसी विसंगती देखी, होठों पर रह्ते है प्रेम के तराने और कर्मों में सर्वोपरी रहता है माल। अपने स्वार्थ के लिए, स्वाद के लिए, मौज के लिए दूसरों की जिन्दगियों पर राज करने का अधिकार हमें किसने दिया?

9 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

बड़ा दुखद लग रहा है सावित्री के बारे में मानवीय स्वार्थ लिप्सा की जबरदस्ती पढ़ कर। मानव नारियों के साथ यह करता ही है - अत: कुछ अजीब नहीं है। पर दुखद तो अवश्य है।

Anonymous said...

यह अत्याचार है.

Sajeev said...

सच है अनिता जी ये वाकई किसी फ़िल्म की कहानी लगती है, इस पर एक अनिमेशन फ़िल्म बन सकती है बच्चों को बहुत भायेगी. अच्छी कवरेज दी है आपने

Yugal said...
This comment has been removed by the author.
Yugal said...

It is very sad story but love will find another way to success

अनूप शुक्ल said...

बड़ा अफ़सोस हुआ जानकर कि हथिनी को उसके साथी से जबरियन अलग कर दिया गया।

Vikash said...

दुःखदायी कहानी.
प्रेम कितना विवश होता है कभी कभी.

Shastri JC Philip said...

एकाध कविता देखने के लिये मैं आज आपके चिट्ठे पर आया लेकिन वह न मिल पाया. लेकिन जो मिला वह है एक बहुत ही संवेदनशीलता से लिखा गया लेख जो इस बात को याद दिलाता है कि सिर्फ मानव को नहीं बल्कि जानवरों को भी दोस्ती, सहभागिता, प्यार आदि की जरूरत होती है.

मैं अपने दोनों बच्चों को यह लेख आज ही दिखाऊंगा. वे तो हमारे घर के आसपास बसे हुए चीटी से लेकर चूहों तक के संरक्षक है. केरल में साल के 170 दिन पानी बरसता है एवं जमीन पर सूखी मट्टी हफ्तों नहीं दिखती अत: चीटियां ऐसे मौसमों में हमारी सीढियों पर, स्टोर के कोनों पर इकट्ठी हो जाती है. मेरे बच्चे (मांबाप बनने लायक हो गये है) इन सब को संरक्षण देते है. मां से झगडते रहते हैं कि आपका क्या जा रहा है, चींटियां ही तो है. अब तो सैकडों घोंघे भी हमारे आंगन मे विचरण करने लगे है. हमारा घर एक अभयारण्य बन गया है.

ऐसे वातावरण में अपने बच्चों का समर्थन करने वाले मुझे तो यह वर्णन बहुत मार्मिक लगा. काश कोई सर्कस के मालिक से सावित्री को छुडा कर उसे अपना जीवन जीने की आजादी दे देता!

कल को यदि जानवर सर्कस चालाने लगें एवं हमारे बेटे बेटियों को पकड कर, जंजीरों में बांध कर नचाते एवं उनका स्वाभाविक जीवन उन से छीन लिया जाता तो कैसा लगेगा -- शास्त्री जे सी फिलिप

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है

Anonymous said...

haan, yeh to sach hai.....humans always want to domainte every scene for thir selfish reasons ! And for many it is an accpeted norm... as if animals dont have any rights ! she was sold.. she was bought.. was seperated from her partner... as if she has no feeling.. no disires. Even the basic desire of every organism to reporduce was jnot allowed to her. And there are many other animals and also Human beings who are forced intom this kind of life. Is this DEMOCRACY ???

And is this what the various religions preach ??? Are we not scared ot GOD at all (the one who sem to be very religious) !!

Its a good artivcle written. THe purpose of writing is to make people think...so thats what it has done !!

-- NIharika