कविताई शाम -भाग २
बहुत बोले कविताई शाम पर पिछली बार पर फ़िर भी कुछ कहना बाकी है। ये तो बताना भूल ही गये थे कि उस दिन विश्व हास्य दिवस था और कवि सम्मेलन भी हास्य कवि सम्मेलन था। और कुछ कवियों की खास कर अपने ब्लोगर भाइयों की कविताओं का जिक्र नहीं किया था, तो फ़िर उनकी नाराजगी तो झेलनी ही पड़ती न। इसके पहले कि हमें शिकायतों की मार सहनी पड़े हम ही उनमें से कुछ और लोगों का जिक्र कर देते हैं।
अंनत श्रिमाली को कवि तो नहीं कहा जा सकता पर वो बम्बई हर कवि सम्मेलन की जान होते हैं। वो एक अच्छे व्यंगकार हैं और सरकारी सेवारत हैं। एक बात जो और पता चली वो ये कि उनके पत्नी प्रेम के चर्चे बड़े मशहूर हैं , पत्नी से जुदाई सिर्फ़ उतनी ही सहन कर सकते है जब तक दफ़्तर में रहते हैं।
मेघा श्रिमाली जी भी उनका पूरा साथ देते हुए हर कवि सम्मेलन में उनके साथ रहती हैं। वो इतनी प्यारे व्यक्तित्व की स्वामी हैं कि हमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ कि वो भी पति के साथ साथ हर कवि सम्मेलन में प्राण फ़ूंकती हैं।
सागर जी ने पिछ्ली पोस्ट पर पूछा था क्या हस्तीमल हस्ती जी वहीं हैं जिनकी लिखी गजल जगजीत सिंह जी ने गायी थी
"प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है, नये परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता है"
विकास ने जो कविता(देश जला दो) सुनाई थी वो आप सब ने उसके ब्लोग पर पढ़ ही ली होगी।
बसंत आर्या आज कल अपने ब्लोग पर बहुत कम लिखते हैं। लिखना तो चाह्ते हैं पर वो बिचारे भी क्या करें, ये बम्बई के लोग उन्हें छोड़े तब न, दिन भर इन्कम टैक्स के दफ़्तर में ये लोगों की बजाते हैं और शामों को एक कवि सम्मेलन से दूसरे। हमारे यहां से भी अपनी कविता पढ़ निकल लिए थे दूसरी जगह जो पहुंचना था। बड़ी मुश्किल से उस दिन् की पढ़ी रचनाएं आप लोगों के लिए लाई हूँ आशा है आप को भी ये मजेदार लगेगीं।
"दुख वाली घडियाँ तो सब ने अकेले काटी सुख आया तो दौड़ के जमाने वाले आ गये
कली जब फूल हुई खिल के एक रोज तो फिर आस पास भवरे मडराने वाले आ गये
औ कवि गन जो कविता सुनाने वाले आये तो श्रोता गन तालियाँ बजाने वाले आ गये
कविता की मौत मंच पे हो गई उसी दिन जो घूम घूम चुट्कुले सुनाने वाले आ गये
कली जब फूल हुई खिल के एक रोज तो फिर आस पास भवरे मडराने वाले आ गये
औ कवि गन जो कविता सुनाने वाले आये तो श्रोता गन तालियाँ बजाने वाले आ गये
कविता की मौत मंच पे हो गई उसी दिन जो घूम घूम चुट्कुले सुनाने वाले आ गये
इसे देख आह किया उसे देख वाह किया आज कल के मजनूँओं की बात ही निराली है
इसके संग जीने की तो उसके संग मरने की बात बात मे ही सारी कसमे भी खा ली है
तो सिर्फ कॉलेज नही जितने भी नॉलेज मे है बारी बारी पींगे सब से प्रेम की चढा ली है
और उनके भाई जब लाठी लेके आ गये तो हर एक से जाके खुद ही राखियाँ बंधा ली है
इसके संग जीने की तो उसके संग मरने की बात बात मे ही सारी कसमे भी खा ली है
तो सिर्फ कॉलेज नही जितने भी नॉलेज मे है बारी बारी पींगे सब से प्रेम की चढा ली है
और उनके भाई जब लाठी लेके आ गये तो हर एक से जाके खुद ही राखियाँ बंधा ली है
उंची रहे नाक और जम जाये धाक यह सोंच के किया मजाक एक रोज मन में
पत्नी से बोला तूने सुना तो जरूर होगा तीन रानियाँ थी दशरथ के भवन मे
सुनते ही पत्नी के दिल से धुँआ उठा और आग लग गई जैसे पूरे तन मन में
बोली गर दशरथ बनने की सोंचोगे तो मैं भी बन जाउंगी द्रोपदी एक छन में
पत्नी से बोला तूने सुना तो जरूर होगा तीन रानियाँ थी दशरथ के भवन मे
सुनते ही पत्नी के दिल से धुँआ उठा और आग लग गई जैसे पूरे तन मन में
बोली गर दशरथ बनने की सोंचोगे तो मैं भी बन जाउंगी द्रोपदी एक छन में
शाश्वत रतन, अतुल सिन्हा, रविदत्त गौड़, डा सतीश शुक्ल, डा ब्रह्मदेव, कवि इक्बाल मोम राजस्थानी, जैसे कुछ और दिग्गज कवियों ने अपनी रचनाएं सुनाई। लेकिन चलते चलते मैं सोच रही हूँ कि नीरज जी की रचना मैं आप को यहीं पढ़वाती चलूं, मेरी टेकनिकल काबलियत पता नहीं कब तक परवान चढ़े तब तक नीरज जी का किया कविता पर किया हुआ नया प्रयोग देखें
नीरज जी
गर जवानी में तू थकेला है, सांस ले कर भी तू मरेला है
सच ब्यानी की ठान ली जब से , हाल तब से ही ये फ़टेला है
ताजगी मन में आ न पाएगी, घर भी चारों में तू सड़ेला है
रात गम की ये बेअसर काली, चांद आशा का गर उढेला है
लोग सीढ़ी है काम में ले लो, ये जो बात बचपन से पढ़ेला है
रोक पाओगे तुम नहीं नीरज, वो गिरेगा फ़ल जो पकेला है।
सच ब्यानी की ठान ली जब से , हाल तब से ही ये फ़टेला है
ताजगी मन में आ न पाएगी, घर भी चारों में तू सड़ेला है
रात गम की ये बेअसर काली, चांद आशा का गर उढेला है
लोग सीढ़ी है काम में ले लो, ये जो बात बचपन से पढ़ेला है
रोक पाओगे तुम नहीं नीरज, वो गिरेगा फ़ल जो पकेला है।
अच्छी लगी तो यहां वाह वाह कर दीजिए नहीं अच्छी लगी तो हम कहेगें मैं नहीं कहता ये नीरज कहता है…।:)
अंत में नीरज जी की टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए उनके मोबाइल से खीचीं विनोद और अनिता की फ़ोटो। कविताई कीड़ा हमको भी काटा था, लेकिन पहले फ़ोटो क्युं नहीं दिखाई आप फ़ोटो देख कर समझ जाएगें…:)
हमारे कविता पढ़ने से पहले ही पतिदेव मुंह फ़ेर कर बैठे हैं मानों पहले से लोगों की प्रतिक्रिया जानते हों.॥:)
5 comments:
श्रीमाली जी सरकारी नौकरी करते हुए भी व्यंग लिखते हैं, ये तो बहुत बड़ी उपलब्धि है. बसंत जी आजकल ब्लॉग पर क्यों नहीं लिखते, इस बात की सफाई अगली पोस्ट में कविता लिख कर दें. ये मेरी एक डिमांड है. उनकी कविता बहुत अच्छी लगी...
बहुत बढ़िया लगा ये भाग भी....वैसे नीरज भइया के ऊपर बम्बई का रंग तो बहुत जोर चढेला है...
गजल पर उनकी टिपण्णी कर दूँ
वरना बोलेंगे; "शिव हठेला है"
आप से हमें शिकायत है..विनोद जी का आप ने ग़लत खाका खींचा है दरअसल वो पास बैठे श्रीमाली जी से कह रहे थे की भाई चुप हो जाओ हमारी श्रीमती कविता पढ़ रही हैं...आप ने दूसरी फोटो नहीं लगाई जिसमें वो दत्तचित्त हो कर आप की रचना सुन रहे हैं...सीधे व्यक्ति की सच में कोई सुनवाई नहीं है...:)
मेरी ग़ज़ल आप ने पोस्ट पर लगाई, धन्यवाद लेकिन उसमें कुछ त्रुटियां रह गयी हैं, ठीक करने के लिए या तो हमसे सम्पर्क करना होगा या मेरा ब्लॉग देखना और रचना पढ़ कर उसे ठीक करना होगा.
नीरज
जे सई हतो!
विनोद जी से सहानुभूति है जो घर मे ही एक कवियित्री हैं उनके ;)
ऐसे आयोजन करती रहें आप!
ये हुई न कुछ रिपोर्टिंग. बहुत बढ़िया. ऐसे ही जमाये रहें.
सही है जी, जमाये रहिये!
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