Gandhi ji Happy Earth Day
२२/४/०८
22 एप्रिल पृथ्वी दिवस है हमें तो आज ही पता चला। रेडियो इस मामले में बड़े काम की चीज है, सुबह सुबह दुनिया भर की खबरें दे जाता है। पृथ्वी पर मंडराते ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को मद्दे नजर रखते हुए पृथ्वी दिवस मनाने की जरूरत महसूस हुई है। इसके पहले कभी सुना नहीं था कि पृथ्वी दिवस भी मनाया जाता है। सुनने के बाद लगा, लो इसमें कौन बड़ी बात है यहां तो हर हिन्दुस्तानी रोज ही पृथ्वी दिवस मनाता है, इसे मनाने के तौर तरीके हमें और आप को घुट्टी में पिलाये गये थे। बच्चों को सिखाया जाता है कि खाना झूठा मत छोड़ों जितना चाहिए उतना ही लो, बड़े भाई के कपड़े छोटे भाई को पहनने होगें ये तो वो अपने भाग्य में लिखा कर ही लाता है, यहां तक की चचेरे ममेरे भाइयों के भी, यही हाल किताबों का होता है। किफ़ायती होना, रिसाइकलिंग करना किसी जमाने में फ़क्र की बात समझी जाती थी
बिजली के बिल से रोज एक दो मौतें होना बड़ी आम बात है (बिल देख कर हॉर्ट अटैक जो हो जाता है) हम भी इस से कई सालों से त्रस्त हैं।जब बिल आता है लगता है कि ओवर चार्ज किया गया है। जब से रिलायंस ने बिजली वितरण संभाला है तब से तो इति ही हो गयी है। आज से दस साल पहले जब हम नये मकान में आए और पहली बार ऐसा मौका मिला कि छ्त भी अपनी थी तो सोचा ये बिजली के बिलों का कोई सोल्युशन करना चाहिए। सबसे ऊपर का घर होने के कारण सूर्य देवता और वरुण देवता हम पर काफ़ी महरबान रहते हैं। हमने सोचा जैसे गांधी जी ने नमक कानून तोड़ खुद नमक बनाने का रास्ता दिखाया क्युं न हम सौर ऊर्जा को बिजली की तरह इस्तेमाल कर इन बिजली कंपनियों के चुंगल से छुटकारा पा लें। क्युं न सोलार पैनलस लगा कर दिन भर बिजली बनायी जाए और रात में उसे इस्तेमाल कर बिजली के बिल में कटौती की जाए।
अब हमने ढूंढना शुरु किया कि सोलार पैनलस कैसे और कहां से मिल सकते हैं।
टाइम्स ऑफ़ इन्डिया में समय समय पर इसके बारे में लेख देखने को मिलते थे मानो हमारा मुँह चिढाते हों, जैसे एक लेख देखा था राजस्थान में तिलोनिया नाम की कोई जगह है जहां एक एन जी ओ ने गांव की हर औरत को सौर उर्जा कैसे जमा की जाए बैटरी कैसे ऑपरेट की जाए सिखा दिया और वहां एक कॉलेज भी है बेअरफ़ुट कॉलेज ओफ़ तिलोनिआ। इस संस्था को कोई अंतराष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिला था इसके लिए। बहुत पता किया पर कोई संपर्क न साध पाए। फ़िर पता चला कि इंदौर में एक एन जी ओ है जो एक दंपती चलाते हैं जिनमें पत्नी पंजाबी है और पतिदेव अंग्रेज इंजीनियर और उन्होंने अपने आश्रम में सौर ऊर्जा के इस्तेमाल के कई उपाय किए हुए हैं । हम भी इंदौर से एक सोलार कुकर ले आए। पर बिजली की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई थी। फ़िर पता लगा कि बम्बई के दादर इलाके में ही किसी इंजिनियर ने खुद ही सोलार सेल बना लिए है और अपने घर की छ्त पर लगा दिए हैं और आराम से बिजली संचय कर शाम को इस्तेमाल करते हैं। ये सारे लेख बहुत प्रेरणादायी हैं पर मुसीबत ये है कि टाइम्स ओफ़ इंडिया वाले ये नहीं बताते कि इन से संपर्क कैसे साधा जाए। पूना में अनकन्वेनशनल एनर्जी का द्फ़तर है वहां भी चक्कर लगा आए। सारे प्रयत्न करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि अभी हमें कुछ साल और इंतजार करना होगा। अभी सौर ऊर्जा से बिजली बनाने के उपकरण की कीमत लाखों में हैं उससे तो बिजली के बिल ही भर दो।
आज पृथ्वी दिवस पर मन कर रहा है कि पूछें हमारे देश के इतने सारे होनहार इंजिनियरस हैं क्या हमें सौर ऊर्जा से बिजली बनाने के सस्ते उपकरण खरीदने के लिए और इंतजार करना होगा। क्या अब कोई गांधी नहीं पैदा होगा?
सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।
April 21, 2008
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7 comments:
सौर उर्जा से पानी को गर्म करने करने के उपकरण तो मुंबई में बड़ी आसानी से मिलने चाहिए। होटलों में इस टेक्नॉलजी को पिछले कई वर्षों से हाथोंहाथ लिया है।
आजकल तो सौर उर्जा का उपयोग सोलर रेफ्रिजेटर बनाने में हो रहा है। IIT Mumbai में मुझे वहाँ की वर्कशाप में इसका निर्माण होते हुए देखने का सौभाग्य मिला था।
मनीष जी
पानी गर्म करने के उपकरण तो 25000 के मिल जाते हैं, रेफ़्रिजिरेटर का हमें पता नहीं अभी तक इसके बारे में कोई जानकारी मीडिया को नही दी गई होगी असली बात तो बिजली बना कर स्टोर करने की है। बैंगलोर में टाटा बी पी बनाते हैं सोलार सेल पर अभी तक सरकार के 50% सब्सीडी के बावजूद लाखों में कीमत है।
जिस दिन आम लोगों के काम आने वाला सौर ऊर्जा का संकलन तकनीकी विकास प्राप्त कर बिजली से सस्ता पड़ने लगेगा, उस दिन सभी इस का उपयोग करने लगेंगे और अन्य बिजलीघरों की स्थापना का काम भी रुक जाएगा। अभी इस ऊर्जा को आम लोगों के लिए उपयोगी बनाने में बहुत तकनीकी विकास की आवश्यकता है। हाँ हम बचपन में सर्दी के दिनों मे धूप में पानी भरी बाल्टी रख कर पानी गरम कर स्नान कर सौर ऊर्जा का उपयोग जरूर करते थे।
वास्तव में - अभी थर्मल-हाइड्रो-गैस बेस्ड बिजली के विकल्प कॉस्मेटिक ही हैं।
हम्मम सोलर हीटर तो बहुत मिलते हैं । बल्कि पूरे घर की बिजली की सप्लाई भी सोलर की जा सकती है ।
वैसे रेडियो और रेडियोवाले दोनों ही बड़े काम के होते हैं । है ना अनीता जी
Anitaji, ab saur urja mein kafi kuchh hone laga hai per khood hi urja sanchit kar ke gharon mein free istemaal kare, yah govt ko manjoor hoga kya? Aree bhai aap apni bijli khood bana logi to govt ki urja ka kya hoga? vaise kabhi na kabhi koi GANDHI paida hoga jaroor.......
खोज में लगी रहिये कुछ पता चले तो हमें भी बताइयेगा ।
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