अहिल्या बना दो न
हूँ तो साधारण सा पत्थर
गोला गया ठोकरें खा खा
पगली, तुम समझीं मैं अहिल्या
नित तुम्हारी वंदना पाता
पर कुछ न कह पाता
भ्रमित पुजारी देख अक्षत, रगोंली,
तुम भी धोखा खा गये
रास्ते का पत्थर जड़ दिया मंदिर के प्राचीर में
ये पगली पुजारन फ़िर भी न मानी
करती रही नित सांझ दीप
मौन आखों से ताकता
उसकी श्रद्धा और विश्वास का प्रकाश
यूं तो बहुत फ़र्क है
मुझमें और प्राचीर की कोठरियों में कैद
उस मूर्त रूपी पत्थर में
मगर अब मजबूर हूँ बनुं अहिल्या गर बन सकूं
ओ पुजारी जगाओ सोये मर्यादा पुरुषोतम को
कह दो कि हे राम गर सोके भी जागते हो
गर सुन सकते हो भक्तों की पुकार
तो इस भ्रमित अंधविश्वासी श्रद्धा की खातिर
इस पतित पत्थर को ठोकर मार कर
अहिल्या बना दो न
सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।
March 14, 2008
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15 comments:
very expressive full of depth
रचना की भावना अच्छी है, पर कब तक? प्रतीक्षा करेगा यह पत्थर। उसे प्रतीक्षा और राम के दरबार में गुहार के बजाए खुद नहीं उठ खड़ा होना चाहिए।
आपका ई वाला विचार जमा नहीं। आप पत्थर बन जायेंगी तो ब्लाग कौन लिखेगा? ई-मदर का काम कौन करेगा। इसको पोस्टपोन करिये जी। :)
sheershak ne bhavuk kar diya aur rachna ne pathar bana diya , main to ab tak stabdh hoon
"ऐ पत्थर,
क्या तुम्हारा दिल गर्व नहीं करता,
लोग तो यूं ही खुद को
भगवान मानने लगते हैं.
पर तुम,
क्या इतनी पूजा पाकर भी
अपने को भगवान क्यूं नहीं समझते.
मानुष बनने की चाह रखते हो,
सिर्फ़ एक स्वर्ग के लिये."
आंटी,
क्या भाव रखा है आपने! सच, पुरुषोत्तम को जागना ही होगा.
धन्यवाद.
रचना ने अपने ब्लॉग पर इस कविता का उत्तर लिखा है।
पर मेरी नजर में वह सही नहीं है।
मैं ने अपनी नजर में जो हो सकता था, वह टिप्पणी में लिख दिया है। वे छापती हैं या मोडरेट होता है?
अपन तो फुरसतिया जी से सहमत हैं
आप इतनी अच्छी हैं ,फिर आप के गौतम [यानि विनोद जी-भला श्राप क्यो देगें, जो आप अहिल्या बनेगी ।
फिर इस युग मे राम कहाँ मिलेगें सब कैंसिल कर दीजिए।
भ्रमित अंधविश्वासी श्रद्धा !
अनोखा शब्द पद,निराला प्रयोग.
अनिता जी ,
देवनागरी में इस पहुँच की राह तो
मुझे अजित जी और रवि भाई ने बताई.
आपने गौर किया ,आपका शुक्रिया .
शब्दों के सफ़र ने आपकी जीवन यात्रा से भी
सहयात्रियों का परिचय कराया .
सबने पसंद किया ; मैं इस प्रस्तुति को
ब्लॉग की खिड़की से रचनात्मकता की नई किरण
से रूबरू होने की तरह देखता हूँ .
शुभ कामनाएँ.
bahut achhi kavita hai,apni enerjy jutaye rakhiyega.
अत्यन्त विनम्रता के साथ अपनी अंत: संवेदनाओं को अभिव्यक्ति का कवच दिया है , आपकी अभिव्यक्ति सुंदर ही नही सार गर्भित भी है , बधाईयाँ !
सुंदर भाव, सुंदर अभिव्यक्ति...
वाह....
भ्रमित अंधविश्वासी श्रद्धा की खातिर
इस पतित पत्थर को ठोकर मार कर
अहिल्या बना दो न
Ek aur to aap ko andh vishwas hai aur wah bhi bhramit hi hai, kuchh pakka nahi aur doosri aur aap shraddha bhi dikha rahi hai ki shayad is patthar ko thokar maar kar kahin Bhagwan Ram sachmuch Ahilya hi bana de....
sundar abhivyakti
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