फ़िरंगी के पन्नों से
अपने वादे के अनुसार मैं यहां फ़िंरगी उपन्यास का एक पन्ना प्रस्तुत करने जा रही हूँ,
आशा है आप को पंसद आयेगा।सगुन अनुकूल होने पर दूसरों का भविष्य केवल मौत था, दल में चाहे कितने ही लोग हों, या वक्त कितना ही लगे। अगर दिखाई पड़े कि राह्गीर संख्या में ज्यादा हैं तो सूझ-बूझवाला सरदार मकड़ी के उस जाले पर हाथ रखेगा और खामोशी से एक धागा खींचेगा। सुबह होते न होते ही दिखाई पड़ेगा कि नुक्क्ड़ पर राह्गीरों का एक और दस्ता अपने ढ़ंग से चल रहा है। धीरे-धीरे उनके साथ मेल मिलाप होगा। दल भारी होता चला जाएगा।तीन दिन बाद शायद और बड़ा हो जाए। तब किसी एक रात को धरती का
सन्नाटा तोड़ते हुए,'झिरनी' उठेगी,"साह्ब खान, तंबाकू खाओ"।
आइए आपका परिचय रामासी भाषा से कराया जाए।जो सच्चा 'बोरा' या 'औला' है, यानी जो पक्का ठग है, वह बोली सुन कर बता देगा कि सामने वाला दल ठ्गों क है या 'बिट्टो' या 'कुज' अर्थात ठ्ग नहीं। सच्चा ठ्ग अपरिचित ठग को देख्ते ही बोल पड़ेगा'औले खान, सलाम' या 'औले भाई, राम-राम'।बोरो की भाषा में उनके विचरने के क्षेत्र का नाम है' 'बाग' या 'फ़ूल'। रुमालधारी खूनी का नाम है 'भूकोत' या 'भुरतोत'। जहां खून किया जाता है उस जगह का नाम 'ब्याल' या 'बिल'। जाल में मनपंसद मंडली फ़ंसते ही एक आदमी चला जाएगा 'बिल' पसंद करने, जाने से पहले दलपति कहेगा 'जा कटोरी मांज ला', यानी 'जगह तय कर आओ। उसका नाम है 'बिलहो'। उसकी रिपोर्ट मिलते ही वहां से दौड़ेगा 'लुगहा' यानी कब्र खोदने वाला।
कब्र दो किस्म की हो सकती है- कुरवा यानी चौकोर या गव्वा यानी गोलाकार्।उधर दस या बीस मील दूर कब्र बन रही है इधर शिकारी और शिकार में दोस्ती हो जाती है। अगर मंडली अमीर दिखे तो 'सोथा' फ़ौरन उनके इर्द गिर्द मँडराने लगेंगे। उनका काम है मंडली को दोस्ती के दायरे में लाना, उनमें विश्वास जगाना, उनका मनौरंजन करना।
'चँदूरा' या दक्ष ठग उनकी इस काम में सहायता करते हैं। मुसाफ़िर अगर 'लट्कनिया' यानी गरीब है तो भी खातिर में कोई कमी नहीं। 'खारुओ' के पास ,यानी ठगों के गिरोह के लिए राह पर सभी बराबर्। वहाँ 'फ़ाँक' यानी बदाम की चीजों की भी काफ़ी कद्र है।इधर जितना वक्त गुजरता जाएगा, एक दल उतना पिछड़ता जाएगा। वे हैं 'तिलहाई' या गुप्तचर्। पीछे 'डानकी' यानी पुलिस वाले लगे हैं कि नहीं देखने।वध-स्थान पर पहुँच कर भी वे मौके की प्रतीक्षा करेंगे। मनपंसद जगह पर वे 'थाप' बिछाएँगे, यानी तबूं गाड़ेगे। देखेंगे कि जगह 'निसार'(निरापद) है,या 'टिक्कर'(खतरनाक)?
सारी सूचनाएं लेने के बाद रात को एक दावत होगी, उसके बाद किस्सा-कहानी। दल में अगर कोई 'नौरिया' यानी नाबालिग है, तो उसे वहां से दूर भेज दिया जाएगा।'सोथा' अपने बगल में बैठे आदमी को धीमी आवाज में संदेश देगा'चुका देना' या 'थिवाई देना' यानी किसी तरह इन्हे समझा बुझा कर इन्हे बिठा दो। वे बैठ गये तो बगल में वे भी बैठ जाऐगे, दोनो ओर दो, पीछे एक और्। बीच में बटोही। किस्सा जारी है।बटोहियों की आँखों में नींद उतर आई है। ऐसे ही समय सुनाई पड़ा, कोई कह रहा था, "पान का रुमाल लाओ"मतलब रुमाल तैयार करो। उसके बाद ही दूसरा हुक्म 'तमाकू लाओ'। सोते हुए आदमी का खून करना मना है। इसलिए बटोही अगर सो रहे हों तो एक आदमी चिल्ला उठेगा,'सापँ-सापँ', वे हड़बड़ा उठ बैठेंगे और फ़िर नींद की गोद लुढ़क जाएँगे-अबकी बार हमेशा के लिए।
'मुकोत' लमहे भर में उसके गले में फ़ाँसी लगा देगा। बगल में बैठा आदमी एक धक्का देकर उसे जमीन पर गिरा देगा। उसका नाम है' चुभिया'। एक आदमी दोनों हाथ पकड़े रहेगा। उसका नाम है 'चुभोसिया'। क्या हो रहा है इसके पहले ही बटोही आखिरी सांस ले लेगा। दलपति कहेगा-'ऐ बिचाली देखो' यानी 'बाहरा' अर्थात लाशों का इंतजाम करो। देखना कोई 'जिवालु' यानी जिन्दा आदमी न रह पाए।
एक दस्ता लाशों को ढो कर कब्र कि ओर ले चलेगे, वे है 'मोजा'। एक दस्ता उनके घुटनों को तोड़ ठोड़ी से मिलाएगा, पेट और सीने पर चाकू चला काम पक्का करेगा, वे है 'कुथावा'। हाथों- हाथ हैरतअंगेज फ़ुर्ती से लमहे भर में खून के सारे निशान मिटा दिए जाँएगे। उस दस्ते को कहेंगे 'फ़ुरजाना'। देखते ही देखते कब्रों के ऊपर उनकी भोज-सभा बैठ जाएगी।
गुड़ का भोज्।
सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।
November 05, 2007
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15 comments:
रोचक उपन्यास है भाई! बहुत-बहुत शुक्रिया पढ़वाने के लिये।
बाप रे, मैं तो इन्हें जालसाजों की कथा मानकर चल रहा था. पर ये तो बड़े निर्मम ढ़ंग से कत्ल करते थे। ठगी से जुड़ी रोचक शब्दावली से रूबरू कराने के लिए आभार।
रोचक!!!!
शुक्रिया आपका कि आप इसे हम सबको पढ़वाने के लिए टाइप करने की मेहनत कर रही हैं!!
बहुत रोचक और रोमांचक कथा है, उस दुनिया की नई जानकारी पढ़वाने के लिए बहुत बह्त धन्यवाद
बहुत रोमांचक है .
बहुत ही रोचक ..पहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूँ ..यहाँ टू बहुत कुछ है पढने को
शुक्रिया आपका ..इसको यहाँ हमारे साथ शेयर करने के लिए अनिता जी
बहुत रोचक. किताब की इच्छा बढ़ती जा रही है. आभार प्रस्तुति का.
इसे पढ़कर तो उपन्यास पढ़ने की लालसा बलबती हो गई है… धन्यवाद।
अरे राम रे! इतना वीभत्स और इतना रोचक!
देखें रात में नींद कैसे आयेगी।
एक बात समझ नही आयी - जब सो रहे हों शिकार तो 'एक आदमी चिल्ला उठेगा,'सापँ-सापँ'' कर उठा कर क्यों मारते थे? नींद में ही मार डालते।
ज्ञान जी ठगों के भी कुछ अपने ऊसुल थे, उनमें से एक ऊसूल ये था कि सोते हुए आदमी की हत्या नही करनी। इसी लिए अगर शिकार सो रहा हो तो उसे पहले जगा दो चाहे नाम के वास्ते और फ़िर फ़ौरन कत्ल कर दो
भयंकर अति भयंकर. पर शब्दावली रोचक है. कृपया जारी रखें.
अनीता जी ... आपकी यह पोस्ट बेहद अच्छी लगी.. मै भी ठगी के किस्से पुराने कई किताबें पढ़ी.. किन्तु अरसे बाद आपके ब्लॉग में मुझे इन के बारे में पुनः रोंगटे खड़े करने वाले तरीके दिखे... आकी दो पोस्ट फिरंगी के पन्नों से मै चर्चामंच में रखूंगी... आपने जनवरी में कोई नयी पोस्ट नहीं डाली ब्लॉग में... इंतजारी रहेगी...
आपकी ये दो पोस्ट होंगी... http://charchamanch.uchcharan.com ..तीन फरवरी २०११ की पोस्ट देखिएगा.. अर्थात कल आप चर्चामंच पर आयें और अपने विचारों से अनुग्रहित कीजियेगा..
आज ४ फरवरी को आपकी दो रोमांचकारी पोस्ट चर्चामंच पर है... आपका आभार ..कृपया वह आ कर अपने विचारों से अवगत कराएं
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/02/blog-post.html
अनीता जी, इस रोचक रचना को हम तक पहुंचाने का शुक्रिया।
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ध्यान का विज्ञान।
मधुबाला के सौन्दर्य को निरखने का अवसर।
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