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August 07, 2007

दु:खता है

दु:खता है


गले में कसी इस चुन्नी को सिर्फ एक बार खोल दो
इतना तो कहने दो कि दु:खता है
मेरी छोटी सी सिसकी तुम्हें क्या डरायेगी
कहाँ तुम्हारी लकाँ ढह जाएगी
तुम्हारी तो बरसों की तैयारी है
सड़ी गली संस्कर्ती में लिपटा तुम्हारा ये मन
आखों पर खिचें मोटे काले पर्दे
बड़े जतन से छीली मेरी जबां
मेरी मौन चीख
ये सब कहाँ भेद पायेगी
अच्छा! सलीब नहीं हटाते तो न सही
कम से कम कधां तो बदलने दो
कि दु:खता है

7 comments:

Anita kumar said...

???????

Niharika said...
This comment has been removed by the author.
Niharika said...

This work of art is also very nice. This is exactly what I guess many people must be experiencing. the way it has been potrayed is good.

Rajesh said...

Sabhi log yahi anubhav karte rahte hai, lekin koi kahan ye bata sakta hai? bahot sadi bhasha main aapne yah MAUN CHEEKH ke baare main bataya hai anita ji. a good post

Kshitij said...

really goodone.

Anita kumar said...

Rajesh ji , Kshitij ji
dhanywaad

PD said...

अभी यूं ही भटकते हुये आपकी लिखी इस कविता पर आ गया था जो पहले नहीं पढी थी.. अच्छा लगा, सबसे बड़ी खूबी तो यह है कि आपने इसे मेरे जन्मदिन पर पोस्ट किया है.. :)

और हां, वो पहला वाला कमेंट स्पेनिश में लिखा हुआ है.. जिसका मतलब कुछ इस तरह है..

Hello friends this is blog business and wanted to invite you on my blog! Thanks

Http://inventosmaravillosos.blogspot.com

तो अब जल्दी से स्पेनिश सीख कर उनका ब्लौग देख डालिए, बेचारे कब से इंतजार कर रहें हैं.. :D