तेरा नाम क्या है बसंती?
शेक्सपियर ने कहा “अरे नाम में क्या रखा है?”
लेकिन सोचने वाली बात तो ये है भई कि नाम के बिना हमारा क्या अस्तित्व? किसी भी व्यक्ति से पहली मुलाकात, पहला वार्तालाप, स्टेज से भाषण में उवाचे पहले शब्द, टेलिफ़ोन पर उवाचे दूसरे शब्द ( पहला शब्द तो हैल्लो होता है), घरों के बाहर लगायी नाम की पट्टियाँ, आदि आदि, कहां कहां हम अपने नाम का प्रयोग नहीं करते। मुझे तो लगता है कि हम जिन्दगी में जो शब्द सबसे ज्यादा बोलते हैं वो है ‘माय नेम इस ………”। “ मैं … … बोल रहा हूँ”।
फ़िर शेक्सपियर साहब ने कैसे कह दिया जी कि नाम में क्या रखा है?
हमारी एक सखी से इस बारे में बतिया रहे थे। अब वो ठहरी अंग्रेजी विभाग की, शेक्सपियर को झूठा पड़ता तो देख ही नहीं सकती थी न्। सो तड़ से बोली लेकिन कितने ही लोग हैं जो अपने नाम बदल लेते हैं, छुपा लेते हैं। किसी भी विषय पर बात हो रही हो और हम भारतीयों को हिन्दी फ़िल्में न याद आयें ये तो बड़ा मुश्किल है न जी। सो उदाहरण भी फ़िल्म इंडस्ट्री के आने लगे, बोलीं कि देखो कितने ही लोकप्रिय कलाकार हुए जिन्हों ने अपने नाम छुपा कर छ्द्म नाम से अपनी पहचान बनायी, दिलीप कुमार, अजीत, मीना कुमारी से ले कर अपने खिलाड़ी नंबर वन अक्षय कुमार तक।
समाजशास्त्र विभाग वाली मैडम भी चर्चा में उतरीं और बोलीं कि विदेश गये भारतीयों को देखो, साल बीतते न बीतते उनकी काया पलट हो जाती है। जैसा देस वैसा भेस का अनुसरण करते हुए वो लोग न सिर्फ़ अपने कपड़े पहनने का ढंग बदल लेते हैं बल्कि अपने नाम का भी विदेशीकरण कर डालते हैं। सुमित सैम हो जाता है तो प्रमिला प्रोम हो लेती है।
अजी विदेशों की बातें छोड़ दें तो यहां भी अच्छे खासे नाम छोटे करने के चक्कर में अपना रंग रुप खो बैठते हैं जैसे आदित्य बन जाता है आदि, और आनंद बन जाता है अंडू, …॥
लेकिन जी शेक्सपियर गलत ही था। नाम में तो बहुत कुछ रखा है। नाम है तो जहान है। आप की कमाई के आकड़े आप के नाम पर भी निर्भर करते हैं, स्वीडन में हुई एक शोध के अनुसार जिन अप्रवासी नागरिकों ने अपने नाम बदल डाले उनकी सालाना आय में 114% की वृद्धी हुई। नाम बदलने के तीन साल पहले की आय और नाम बदलने के बाद तीन साल की आय में तुलना करने से ये वृद्धि देखी गयी।
ऐसा क्युं? वैरी सिम्पल।
ये तो जग जाहिर बात है कि जब कोई साक्षात्कार के लिए जाता है तो उसे नौकरी मिलेगी कि नहीं ये उसके कुर्सी पर बैठने से पहले ही निश्चित हो चुका होता है, बाकी का साक्षात्कार तो औपचारिकता निभानी होती है। केनडिडेट की शक्ल, हाव भाव, पोशाक ही निर्णय लेने में मदद करती है, और वो कहते हैं न जी ‘फ़र्स्ट इंप्रेशन इस ड लास्ट इंप्रेशन’, आदमी स्वभाविक रूप से इतना कंजूस है कि बाद में साक्षात्कार के दौरान अगर लगे तो भी अपना दिमाग खपाना नहीं चाहता और अपने पहले इंप्रेशन के साथ ही जाना चाहता है।
मेरे लेक्चर नुमा जवाब से बोर हो कर मेरी सहेली बोली ‘हां वो सब तो ठीक लेकिन नाम का क्या?,
लो जी साक्षात्कार के दरवाजे तक तो आप तब पहुंचेंगे न जब आप को कोई बुलायेगा। आप के बायोडेटा पर सबसे पहले आप का नाम पढ़ कर ही वो आप की शक्शियत की जो तस्वीर बनायेगा वही तो निर्णायक होगा कि आप को इंटरवियु के लिए बुलायेगा कि नहीं ।
मैं सोच रही हूँ कि अगर मेरा नाम अनिता न हो कर अनिता देवी /अनिता रानी /अनितामति हो तो मेरी शक्शियत के बारे में लोग क्या सोचेगें, वैसे अनिता के साथ कुमार लगा देख कर भी लोग जरा अटपटा ही महसूस करते हैं जैसे अरविंद जी ने लिखा। ये सिर्फ़ नेट पर ही नहीं हुआ ऐसा मेरे साथ कई बार जाति जिन्दगी में भी हुआ, कहीं नया फ़ॉर्म भरना है तो कलर्क ये सोच कर कि हम ई की मात्रा लगानी भूल गये हैं हमारी भूल सुधारने के इरादे से कुमार को कुमारी बनाने की चेष्टा करते हैं और हमें उन्हें रोकना पड़ता है। तो जी ये कुमार उपनाम का किस्सा कुछ यूं है कि शादी के बाद जब उपनाम बदलने की बात आयी तो समस्या ये थी कि हमारे पति देव दक्षिण भारतीय हैं , उनका उपनाम ऐसा है कि अक्सर लोग उसका कचूमर बना देते हैं , मेरे रिश्तेदारों के लिए तो वो उपनाम बिल्कुल ही टंगटिवस्टर होता। तो पूरी जिन्दगी या तो अपने उपनाम के भ्रष्ट रुप सुनते या लोगों को सुधारते रह जाते, इस लिए हम दोनों ने सोचा कि क्युं न एक उपनाम कानून अपना लिया जाए और कुमार एक ऐसा उपनाम है जो भारत के हर प्रदेश में पाया जाता है तो बस हम कुमार हो लिए।
सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।
March 13, 2009
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18 comments:
शेक्सपियर ने कहा “अरे नाम में क्या रखा है?”
लेकिन सोचने वाली बात तो ये है भई कि नाम के बिना हमारा क्या अस्तित्व?
बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति पूर्ण विचारणीय आलेख .
वाह एक तो शेक्सपियर वाली बात और आपके नाम अनीता के बाद वाली बात ....क्या लिखा है आपने ...वाकई बहुत अच्छा लगा पढ़कर ...रोचक
आप कुमार की जगह कुमारी भी लिखतीं या और कोई उपनाम, शेक्स्पीयर की बात सही ही रहती, कि आप की शक्सियत , आपकी मुस्कान, और आपके निर्मल मन में कोई फ़र्क हो जाता क्या?
हमेँ तो आपका नाम बहुत पसद है अनिता कुमार जी :)
- लावण्या
नाम? हमारे एक प्रोफेसर थे केरल के - P.S.V.S.K. Raju. बड़ा लम्बा नाम बताया था उन्होंने। पर हम उन्हें पसवस्क राजू कहा करते थे! :)
बस अनिता ही रहता तो कितना खूबसूरत अब भी हटा दीजिये कुमार ! और हाँ अनीता क्यों नहीं ? चलिए छोडिये आखिर नाम में क्या रखा है ! नहीं नहीं नाम में बहुत कुछ रखा है ! आप रामचरित मानस जुहा सकें तो बालकाण्ड में नाम की महिमा पढ़ लें !
उल्टा राम नाम जपने से वाल्मीकि महान कवि बन गए !
जैसे ही शादी हुई कुमारी तो आप रही नहीं। पर कुमार जरूर हो गई हैं। वैसे प्रकृति की गड़बड़ ठीक करने का यह तरीका भी अच्छा और बेहतर है।
naam mein bahut kuch hai....ham to yahi maante hain.
द्विवेदी जी का कहना बिल्कुल ठीक है।
आप जैसे मस्तमौला, जिंदादिल इंसान के लिए 'कुमार' शब्द जोड़ना, प्रकृति की गड़बड़ ठीक करने का एक अच्छा और बेहतर तरीका है।
… और नाम सुनते ही, फर्स्ट इंप्रेशन इज़ लास्ट इंप्रेशन!
नाम का फ़र्क पड़ता है। लेकिन नाम भी कहां बेचारे पूरे बचते हैं? हमारे एक साथी हैं उनका नाम अनुराग सहाय भटनागर है। हम लोग उनको असहाय भटनागर कह लेते हैं। अनुराग बोले तो प्रेम/लगाव असहाय हो लिया! वैसे अगर इनकम बढ़ती हो तो नाम बदलने में का हर्ज! :)
अनिताजी
नाम में क्या रख्खा है जी ?
तनसुख को हमने सदा बीमार देखा, अंधे का नाम नयन -सुख देखा , शांतिलाल को हमेशा अशांत देखा, आनंद को सदा दुखी देखा .........
धन्यवाद |
-हर्षद जांगला
एटलांटा , युएसए
अजी नाम में तो सब कुछ रखा है ...तभी तो गुलजार साहब ने लिखा है ..तुमने इक मोड़ पर अचानक जब /मुझे गुलजार कह के दी आवाज़ / एक सीपी से खुल गया मोती /मुझको इक मानी मिल गए जैसे /.....
और मुझे तो यह दर्द है कि कोई मेरा नाम ले के ही नहीं बुलाता ..इसी दर्द में एक दिन लिखा मैंने ... मिलने को तो मिलता है सारा जहान हमको ..पर एक नहीं मिलता जो प्यार से मेरा नाम पुकारे :)
"नाम में क्या रखा है" यह शेक्सपियर ने तो कहा मगर उसके निचे भी अपना नाम लिखना नहीं भूले.. अगर कोई अनाम व्यक्ति यह कहता तो शायद कोई यह बात जानता भी नहीं.. :)
वैसे आंटी जी, आप अनीता से बदलकर अपना नाम अनियमितता भी रख सकती हैं.. :P
नाम में तो सबकुछ है । हमे पता है ये जो मुस्कुराती चश्मे के अंदर से परखती खुशमिजाज महिला हैं ये है अनिता कुमार । आपको क्या अच्छा लगेगा अगर आपको एक्स बुलाया जाये ।
प्रणाम
कहते है की इंसान से पहले उसका नाम पहुँच जाता , और नाम ही न हो तो क्या होगा .
नाम वो हो जो सबको याद हो चाहे हम रहे या न रहे .
लल्लू नाम होने से आदमी मुर्ख हो और गणेश नाम होने से ज्ञानवान हो ऐसा थोड़े ही होता है.
बहुत रोचक पोस्ट...आपको ब्लॉग जगत में सक्रीय देख बड़ा आनंद आ रहा है...
"नाम गुम जायेगा...चेहरा ये बदल जायेगा...मेरी आवाज ही पहचान है....गर याद रहे..."
और अगर याद ही ना रहे तो फिर नाम में क्या रखा है...??
नीरज
नाम बड़ी गलफ़त की चीज है जी....अब हमारा एक दोस्त हुआ करता था चौधरी ...स्कूल में सब इसी नाम से पुकारा करते .असली नाम याद नहीं रहा...एक बार तुरंत फुरंत क्रिकेट मेच तय हुआ चोधरी साहब अछे हीटर थे तो हम दो दोस्त बुलाने घर पहुंचे .बहार दरवाजे पे लिखा था चौधरी भवन "बुल्लाये किसको ....सब चोधरी थे ....बड़ी मुश्किल से बुलाया गया ....हमारा नाम भी अ से ओर सरनेम भी.....रोल नंबर रहे ओर सदा खामियाजा भुगता ....कॉलेज में एक लड़की थी शीतल ओर एक लड़का था शीतल .....बुलाना होता तो कैसे बुलाए ......नाम बड़ी जालिम चीज है जी.....शादी का कार्ड बांटने निकलो....वहां कोई बैठा दिख जाए .अजी आपका कार्ड बनाया रखा है...छोडिये यही देता हूँ .वैसे क्या नाम लिखते है जी ?
badhiya mudde pe likha hai aapne!
vaise ek bat to hai kumar upnam thoda impressive bhi lagta hai ;)
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