कुलबुलाहट
इधर हम कुछ दिनों से कुछ नहीं लिख पा रहे। मन और मस्तिष्क दोनों छुट्टी पर हैं। उनके लौटने का इंतजार है। हमने कई नोटिस भेजे हैं पर दोनों टस से मस नहीं हो रहे, बिमार हैं कह कर टाल दिया जब की हम जानते हैं कि दोनों बारिश की रिमझिम का मजा ले रहे हैं।
सभी ब्लोगरस की तरह हमें भी बहुत कुलबुलाहट हो रही है। जब नहीं रहा गया तो आज हमने मस्तिष्क को फ़ोन लगाया'अरे भई, नहीं आते तो मत आओ, वहीं से हमारे एक सवाल का जवाब दो, ये बहुत परेशान कर रहा है'।
मस्तिष्क बोला मतलब अब हमारा भी वर्चुअल ऑफ़िस हो लिया, खैर क्या सवाल है ?
मैं- हम बाह्य मुखी हैं या अंतर्मुखी मतलब एक्स्ट्रोवर्ड या इन्ट्रोवर्ड?
मस्तिष्क कुछ सोचते हुए बोला हम तब जवाब देगें जब मन भी हमारी बातचीत में शामिल हो, आखिरकार ये तो पॉलिसी डिसिजन है जी।हमने मन को भी फ़ोन लगाया, विडियो कोन्फ़्रेसिंग करवाई,( कित्ते पैसे खर्च हो गये, ब्लोगिंग की लत जो न करवाये कम है)
मैं- मस्तिष्क भाई, हमें इतनी कुलबुलाहट क्युं हो रही है? एक साल पहले भी कहां लिखते थे तब तो ऐसी बैचेनी नहीं होती थी, ब्लोगजगत के दोस्तों को इतना मिस न करते थे।क्या ये बाह्य मुखी होने की निशानी है?
मन- लो! अब ये नयी बिमारी हमारे पल्ले बांध रही हो। हम तो ताउम्र ये समझे थे कि तुम अपनी तन्हाइयों में खुश रहती हो, फ़िर ये कुलबुलाहट की बात कहां से आ गयी।
मैं- वही तो हम पूछ रहे हैं क्या ब्लोगजगत ने हमें बदल कर रख दिया है और हमें पता भी न चला कि कब हम अंतर्मुखी से बाह्य मुखी हो गये।
मस्तिष्क अपनी पिछवाड़े वाली कोठरी से निकलता हुआ बोला अंतर्मुखी अपने ही विचारों और भावनाओं से ऊर्जा पाते हैं, और एक वक्त में एक ही काम करते हैं पूरी एकाग्रता के साथ्।
मन- तब तो ये अंतर्मुखी हो ही नहीं सकती, देखा नहीं तुमसे और मुझसे कितना काम करवाती हैं, एक ही वक्त में तीन तीन चार चार काम करने को कहती हैं। लेक्चर बनाने को बैठती हैं तो मुझे दौड़ा देती हैं, जरा देख कर तो आओ ब्लोगजगत में क्या हो रहा है, ज्ञान जी का मक्खीमार का रिकॉर्ड तीस तक पहुंचा कि नहीं, अनूप जी ने किसकी मौज ली, अजीत जी के बकलम में कौन आया, और भी न जाने कहां कहां जाने के लिए लंबी लिस्ट पकड़ा देतीं हैं। दौड़ते दौड़ते शाम हो जाती है पर इनकी लिस्ट तो शैतान की आंत की तरह खत्म ही नहीं होती। हांफ़ते हांफ़ते वहां का हाल सुनाता हूँ तो तुम्हें झट से दौड़ा देती हैं मेरे तो पैरों में छाले पड़ गये। मैं कहे देता हूँ मैं गणपति की छुट्टियों से पहले नहीं आने वाला। अवकाश अवधि बड़वाने की अर्जी देने वाला हूँ। देखो देखो, छुट्टी पर हूँ फ़िर भी चैन नहीं यहां भी फ़ोन ख्ड़का दिया।
मै- तुम तो शिकायतों का पुलिंदा हो जी
मस्तिष्क हम दोनों की नोंक झोंक को नजर अंदाज करते हुए बोला सोचने वाली बात ये है कि अंतर्मुखी मितभाषी होते हैं और जो भी बोलते हैं बहुत सोच विचार कर बोलते हैं।
मन तपाक से चहचहाया- देखा! मैं न कहता था ये अंतर्मुखी हैं ही नहीं, इनके जैसा बातूनी देखा है कहीं और सोच विचार का तो नाम ही मत ओलो। जब तक तुम अपने पेंच कसते हो, इनकी जबां फ़िसल चुकी होती है।
मै- अरे हमेशा थोड़े ऐसा होता है वो तो जब हम एक्साइटेड होते हैं तब्…।
मस्तिष्क - तुम दोनों यूं ही भिड़ते रहे तो मैं चला।
मैं - अरे नहीं नहीं, फ़ोन मत रखना, तुम बोलो तुम बोलो, ऐ मन चुप बैठो।
मस्तिष्क- हम्म! अंतर्मुखी को अपनी निज जानकारी जग जाहिर करने में बड़ा संकोच होता है, तो तुम्…
हम टप्प से बोले नहीं नहीं ये बात हम नहीं मानते, हमारे कई ऐसे ब्लोगर दोस्त हैं जो अंतर्मुखी हैं पर हम सबको उनकी पल पल की खबर रहती है वो भी बिना जासूस।
मस्तिष्क परेशान होते हुए बोला तब हमें नहीं मालूम, किसी और को पूछो।हम छुट्टियों में ओवर टाइम नहीं करते।
अब बताइए जनाब किस से पूछें , क्या आप बता सकते हैं हम बाह्य मुखी हैं या अंतर्मुखी?
सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।
July 29, 2008
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24 comments:
nothing is more vocal then silence mam , so decide yourself if your silence is resonating vocally or if your vocal being is resonating silently
अब बताइए जनाब किस से पूछें , क्या आप बता सकते हैं हम बाह्य मुखी हैं या अंतर्मुखी?
क्या फर्क पड़ता है। आप का लेखन तो हमें मन-मस्तिष्क दोनों से रोचक लगता है।
अनिता दी..सच कहें तो हम खुद ही इसी कुलबुलाहट में फँसे हैं...लेकिन आपकी 'मैं, मन और मस्तिष्क' की बात ने थोडा बहुत तो हमें शान्त कर ही दिया है.... :)
लेख बहुत कुछ बोलता है ..:) और अब आप तो आप हैं ग्रेट ..:) कोई शक ...
अनिता जी,
वाह !
कुलबुलाहट ने,
एक अच्छी पोस्ट बना दी :)
मन और मस्तिष्क की कुलबुलाहट से कुछ अच्छे नतीजे पता चले. फाईनल जवाब के लिए यहाँ भी मन और मस्तिष्क में कुलबुलाहट हो रही है.:)
ब्लॉग सबको बदल रहा है... मुझे लगा की बस मैं ही बदल रहा हूँ !
क्या फर्क पडता है दीदी.. मुख किधर भी हो मजा आना चाहिये... मेरी तरह... :P कुछ भी कहो बात वो कहो जिससे मजा आ जाये :)
सुंदरतम विचारों से भरा सुंदरतम लेख। बहुत ही सुंदर लिखती हैं आप। साधुवाद एवं सादर नमस्कार।
अच्छा है आंटी. जानने की की कोशिश जारी रखिये... हां, आपकी कुलबुलाहट ने मेरी कुलबुलाहट को और कुलबुला दिया है.
aap likhti jaayen, andar-behar se kya fark parta hai....
आपके कुलबुलाहट ने आपसे इतना कुछ करवा लिया क्या बात है, पर मन सच कहता है आपका आप उसे दौडाती बहुत हैं ।
बहुत सही कुलबुलाहट रही-जान लिजिये कि अब आप न तो बाह्य मुखी है और न ही अंतर्मुखी-अब आप ब्लागमुखी हैं.
आप दोनों ही हैं, कभी इधर तो कभी उधर। फिलहाल अन्तर्मुखी से बाह्यमुखी होने का परिवर्तन चल रहा है।
अंतर्मुखी yaa बाह्यमुखी ! What difference does it make for you! In both the faces you are doing a great job, dont know which works more! You dont need any subject for your great articles, thats the biggest thing on your part.
शानदार और रोचक वार्तालाप.
कभी कभी अपन के साथ भी यही होता है.
क्यूं न मैं यह कहूं कि आपकी यह कुलबुलाहट बनी रहे, दर-असल अंदर की यह कुलबुलाहट ही हमसे अक्सर कुछ या बहुत कुछ क्रिएटिव करवाती है।
समीरजी गलत कहते हैं, आप ब्लॉगविमुखी हो।
:)
आप इस सब चक्कर में ना पड़ें बस लिखती जायें । हम और कितना इंतज़ार करें । गेट वेल सून सून सून ।
देखिये इस कुलबुलाहट ने आपको कितना लिखवा दिया है ....आपको पढ़कर अच्छा लगा
इस बेकली में तो
बड़ी ऊर्जा निहित है.
मष्तिस्क की यात्रा जब-जब
मन के साथ हुई है तब-तब
सृजन का पथ प्रशस्त हुआ है.
आपका चिंतन सर्वोंन्मुखी है......
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डा.चन्द्रकुमार जैन
आपने तो अपने लेख में तकरीबन सभी की कुलबुलाहट प्रस्तुत कर दी.बहर हाल,आप कुछ भी हों,हमें तो आपके हर लेख का बेसब्री से इन्तज़ार रहता है.आप इतना अच्छा कैसे लिख लेती हैं,हमें भी टिप्स दीजिये ना प्लीज़ ?
apna apna khyaal hai bhaiyya
jeewan to janjaal hai bhaiyya
Anita ji bahut din hue kuch likhiye to maja aaye.
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