मरीना बीच पर लिखी एक और प्रेम कहानी
गोपालकृष्ण विश्वनाथ जी ने जब से बताया कि उनकी शादी करवाने में एक बंदर का हाथ था तब से हमारी जिज्ञासा बनी हुई थी और हम विश्वनाथ जी से पूछने का कोई मौका छोड़ते नही थे। आखिर उन्होनें ये कहानी सुनाने का मन बना ही लिया , हमें पूरा यकीन है कि पहले पत्नी से permission ले लिया होगा। And what a story it is, it is worth all the effort and patience that it required. I am greatly honoured that Vishwanatha ji decided to publish it on my blog. Vishwanath ji thank you very much .
आइए अब इस किस्से का मजा लेते हैं ।
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बन्दर और मेरी शादी की कहानी
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बन्दर तो बहुत चतुर होते हैं। बचपन में नुक्कड़ पर मदारी और उनके बन्दरों से हमारा काफ़ी मनोरंजन होता था। क्या क्या नहीं कर सकते यह बन्दर!
लेकिन क्या आप जानते हैं के एक बन्दर ने एक इंजिनीयर की शादी तय की थी? वह भाग्यशाली इन्जिनीयर तो मैं ही हूँ। ऐसी सुन्दर, सुशील, पढ़ी लिखी और हर काम में सक्षम और दक्ष बीवी मिली मुझे उस बन्दर की कृपा से कि अगर वह बन्दर मुझे अब मिल जाए तो जीवन के और कई महत्वपूर्ण निर्णयों को मैं उसके हाथों में छोड़ने के लिए तैयार हूँ।
Disclaimer:
यह कहानी मेरी एक पुरानी और प्रिय कहानी है जिसे निकट के रिश्तेदारों और दोस्तों को कई बार सुना चुका हूँ लेकिन इस कहानी की यथार्थता का मेरे पास कोई सबूत नहीं और अब प्रमाण जुटाना असंभव है। मेरी पत्नि और ससुरजी इस कहानी को सरासर मनघडंत और एक शरारती दिमाग का उपज मानते हैं और इसका जोर शोर से खंडन करते आये हैं। अब आप ही निर्णय कीजिए कि यह कहानी सच हो सकती है या नहीं।
बात १९७२ की है। BITS पिलानी से पाँच साल का BE(Hons) की पढ़ाई पूरी करके घर (मुम्बई) आया था। शादी के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। अब तो career की चिन्ता थी। लेकिन मेरी माँ कहाँ मानने वाली थी?
मेरे बडे भाइसाहब ने १९६८ में ही, अपना जीवन साथी स्वयं चुनकर, परिवार को धक्का पहुँचाया था। उन दिनों प्रेम - विवाह आम बात नहीं थी। अपने परिवार के बुज़ुर्गों से लड़ना पड़ता था और उतनी जल्दी सहमति नहीं मिलती थी। माँ को डर था के कहीं मेरा दूसरा लाड़ला भी मेरे हाथों से निकल न जाए। रूड़की विश्वविद्यालय में मेरा ME (Structures) में admission हो गया था जो काफ़ी मुशकिल समझा जाता था उन दिनों। मैं तैयार हो रहा था रूड़्की जाने के लिए। माँ को डर था कि कहीं मेरा किसी हिन्दी बोलने वाली यू पी की लड़की से कोई चक्कर न चल जाए। रिश्तेदारों ने डरा दिया था यह कहकर कि कोई यू पी की लड़की अवश्य उसे अपने चुंगल में फ़ँसा लेगी। सावधान रहो!
रो रोकर मुझे अनुमति मिली ऊंची पढाई के लिए। इधर मैं रूड़की के लिए निकल गया था, उधर मेरे पिताजी ने बहू ढूँढना शुरू कर दिया। मुम्बई में एक जाने माने प्राइवेट कंपनी में अपने विभाग के सबसे वरिष्ठ Sales Manager थे, और बहुत दौरा करना पढ़ता था उनको काम के सिलसिले में। अगले दौरे पर उनका विशाखपट्नम जाना हुआ और संयोग से किसी मीटिंग में मेरे होने वाले ससुर से उनकी मुलाकात हो गई। पिताजी और ससुर केरळ के एक ही गाँव के थे और बचपन में एक दूसरे से परिचित भी थे और यह मुलाकात बरसों बाद हो रही थी। दोनों अत्यंत प्रसन्न हुए एक दूसरे से मिलने पर और उसी दिन मेरे ससुरजी मेरे पिताजी को घर पर आने को आमंत्रित किया।
मेरे पिताजी के तीन बेटे हैं और मैं मँझला बेटा हूँ। ससुरजी की चार सुन्दर सुशील बेटियाँ थी, कोई बेटा नहीं। पिताजी का ध्यान दूसरी बेटी पर गया और बहू का चयन उसी क्षण हो गया। बस एक ही समस्या थी। अपने पागल दूसरे बेटे को कैसे समाझाएं की पढ़ाई-वढ़ाई तो होती रहेगी, झट शादी के लिए कैसे इसे मना लें। माँ मुम्बई सी सीधे विशाखापटनम पहुँच गई। माँ तो मेरी होने वाली पत्नि पर फ़िदा हो गई।
माँ उतावली हो रही थी और उसका कारण मुझे बाद में मालूम हुआ।
ज्योतिष विज्ञान पर अटूट विश्वास था उन्हें और परिवार का ज्योतिषि ने उन्हे डरा दिया था कि मेरे जनम पत्रि के अनुसार, यदि अमुक तारीख से पहले मेरी शादी नहीं हो जाती तो उस तरीख के बाद उन्नीस साल तक कोई मुहूर्त नहीं!!
गौरतलब बात है के उस जमाने में किसीने मेरी पत्नि से कुछ पूछा तक नहीं। हमारे सम्प्रदाय की प्रथा थी कि लड़कियाँ विवाह के मामलों में बड़े जो निश्चय करते थे उसे मौन रहकर स्वीकार करते थे। आखिर परिवार के बुजुर्ग हमारी हित में ही सोचंगे न? उस समय वह BSc कर रही थी। बस मेरा एक फोटो थमा दिया उसके हाथ में।
फ़िर क्या था! मुझे माँ की चिट्टी मिली और मुझे लड़की देखने रूड़की से विशाखापटनम पहुँचने के लिए कहा गया। मैं हैरान रह गया। साफ़ मना कर दिया और कहा के इस समय मैं कोई लड़की वड़की देखने वाला नहीं हूँ। मुझे तंग मत करो और शांती से पढ़ाई पूरी करने दो। पढ़ाई पूरी करने के बाद, और कहीं अच्छी नौकरी लगने के बाद ही विवाह के बारे में सोचूँगा। और इस बीच आप सब लोग निश्चिन्त रहिये। बडे भाई का अनुकरण नहीं करूँगा और मेरा यहाँ किसी से कोई चक्कर नहीं चल रहा है और न इसके लिए मेरे पास वक़्त है।
मैंने यह भी समझा दिया के ME का course कठिन है और इतने दिनों तक छुट्टी लेकर lecture, test, practical, tutorial submission वगैरह को छोड़कर आ नहीं सकता।
माँ को मेरा यह फ़ैसला अच्छा नहीं लगा।
उत्तर में माँ ने इतना ही पूछा "छुट्टियाँ कब है?" मैंने बता दी।फ़िर कुछ महीनों के लिए मैं इस बात को भूल गया था।पिताजी और ससुर संपर्क में रहे (चिट्टियों द्वारा)।
कुछ महीने बाद, माँ चेन्नैई गयी मेरे मामाजी के यहाँ। मेरी वार्षिक छुट्टियों के दिन करीब आने लगे। मेरी माँ ने मामाजी के यहाँ जाकर अपनी दुख भरी कहानी सुना दी। यह कैसा बेटा है मेरा! Deadline होते हुए भी इतने अच्छे रिश्ते से मुँह मोड़ रहा है। अब केवल ढाई साल बचे हैं। शादी ब्याह का मामला कभी कभी तो जल्दी "फ़िट" नहीं होता और सालों लग सकते हैं सही लड़की और अच्छे परिवार मिलने में। कहीं गाड़ी छूट गई तो यह आजीवन कुँवारा रह जाएगे। उन्नीस साल बाद कौन करेगा एक बुड्ढे से शादी? अरे कोई इसे समझाओ!
मेरे मामाजी की लड़की ने सुझाव दिया कि किसी तरह मुझे लड़की दिखा दिया जाए। बस देखते ही उसकी सुन्दरता पर मोहित होना निश्चय है। आगे हम निपट लेंगे।
दोनों ने खिचडी पकाना शुरू कर दिया। कई साल पहले चेन्नैई के बाहर मेरे पिताजी ने मेरे नाम एक छोटा सा प्लॉट खरीदा था। अब तो हम मुम्बई में बस गये थे और इस जमीन को बेचना ही ठीक समझा।
मुझे चिट्टी मिली के छुट्टियों में रूड़की से सीधे चेन्नई पहुंच जाओ। तुन्हारी उपस्थिति आवश्यक है। हम जमीन बेच रहे हैं और क्योंकि जमीन तुम्हारे नाम है, रेजिस्ट्रार के कार्यालय में हस्ताक्षर करना है तुम्हें। हम सब होंगे और मामाजी के यहाँ रुके हैं और तुम भी वहीं चले आओ।
जाल बिछा दिया गया। उधर ससुर जी को नोटिस भेज दिया गया कि रूड़की के बकरे को फ़ंसाने की योजना तैयार है और ज्योति (मेरी पत्नि) के साथ एक या दो दिन पहले ही चेन्नैइ पहुँच जाइए।
सुना है ससुरजी कुछ सोच में पढ़ गये थे। जन्म पत्रियाँ मिलायी गयी थीं और यह कहा गया था कि यह तो राम सीता की जोड़ी है! फ़िर भी ससुरजी सोचने लगे थे कि जब लड़का इतना "Hard to get" रुख अपना रहा है और शादी के लिए राजी नहीं हो रहा है, क्या यह रिश्ता हमारे लिए ठीक रहेगा? इतनी दूर (मुम्बई से रूड़की) जाने की क्या जरूरत थी पढ़ाई के लिए? क्या पता रूड़की में क्या कर रहा है? पढ़ाई का बहाना तो नहीं बना रहा है शादी को रोकने के लिए? अगर माँ-बाप को केवल खुश करने के लिए और पिंड छुडवाने के लिए लड़की देखने आता है और लड़की देखकर मना कर दिया तो? क्या असर पढे़गा मेरी बेटी पर? क्यों न कहीं और के अच्छे लड़के और परिवार के बारे में भी सोचा जाय? इसके अलावा, यह तो दूसरी बेटी है। पहले की शादी निपटाने से पहले दूसरी की शादी के बारे में सोचना कहाँ तक उचित है? क्या सोचेगी मेरी पहली बेटी?
कुछ समय इन प्रश्नों से झूझते रहे होंगे।
चैन्नैई से आया हुआ निमंत्रण स्वीकार करने से पहले उन्होंने मन की शांति के लिए क्या किया, अब सुनिए।
बस यहाँ से कहानी विवादस्पद है। आगे पढ़िए।
विश्वसनीय सूत्रों से मुझे यह सब बाद में पता चला ।
उनके घर से थोडी दूर, एक छोटे पहाड़ के ऊपर एक पुराना हनुमानजी का मन्दिर है। इस मन्दिर के आस पास एक वृद्ध बन्दर रहता था। श्रद्धालुओं का मानना है कि यदि कोई मन-ही-मन प्रस्ताव लेकर, सच्चे दिल से, पूरी श्रद्धा से इस मन्दिर पर पूजा करके प्रसाद चढ़ाता है और यह प्रसाद उस बन्दर के नज़दीक रख देता है तो बन्दर कभी प्रसाद (फ़ल वगैरह) स्वीकार करता है और कभी ठुकराता है। कोई अब तक यह समझ नहीं सका कि बन्दर ऐसा कब और क्यों करता है। भूख की बात नहीं थी। कभी किसी से स्वीकार नहीं करता पर कुछ देर बाद किसी और का प्रसाद स्वीकार करता था। वहाँ के भक्त यह मानते हैं कि अगर बन्दर फ़ल स्वीकार करता है तो समझ लीजिए की हनुमानजी की सम्मति मिल गयी!
अब आगे क्या बताऊँ आपको? आप अन्दाज़ा लगा सकते हैं के वहाँ क्या हुआ होगा। ससुर्जी नगर के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित फ़ल के दूकान पर जाकर वहाँ से सबसे मोटे, ताजे और लाल दिखने वाले सेव को चुनकर, एक चाँदी की थाली में रख दिया उस मन्दिर के चौखट पर।बन्दर लपककर सेव उठाकर उसे खाने लगा!। काश मैं तारीख, समय वगैरह बता सकता जब यह सब हुआ था और मेरा भाग्य खुला था।
आगे क्या बताऊँ आपको? यह सब बातों से बिल्कुल अनभिज्ञ रहकर चेन्नैई पहुँचा जमीन बेचने। शाम को बताया गया के हम सब मरीना बीच देखने जा रहे हैं। माँ ने धीरे धीरे मुँह खोलकर संकोच के साथ मुझसे कहा "वे लोग भी आ रहे हैं वहीं"।
"कौन लोग?" मैने पूछा। तब ही पता चला इस योजना के बारे में। मामाजी की लड़की ने हँसते हँसते सारी योजना उगल दी।
मामाजी और उनकी लड़की की योजना के अनुसार, बिना कोई औपचारिकता के, बस ऐसे ही दो परिवार के सदस्यों का मरीना बीच पर मिलन हुआ। Introductions के बाद, हम दोनों को अकेले छोड़कर बाकी सभी कुछ दूर चले गए। केवल आधे घंटे हम आपस में बातें की मरीना बीच पर, रेत पर बैठे बैठे, शाम की ठण्डी हवा खाते खाते और हमेशा के लिए एक दूसरे के हो गए। हम दोनों ने तय किया की शादी अब नहीं होगी। उसकी दीदी की शादी होने के बाद, और हम दोनों की पढ़ाई पूरी होने के बाद और मेरी कहीं अच्छी नौकरी लगने के बाद ही शादी करेंगे।
१९७३ में चेन्नैई के मरीना बीच पर उस मिलन के बाद हम दो साल पत्र व्यवहार करते रहे और इस बीच केवल एक बार मुम्बई में एक दिन के लिए मिले और १९७५ को मुम्बई में हमारी शादी हुई।
चित्र देखिए। उन दिनों कलर फ़ोटोग्राफ़ी दुर्लभ और माहँगा था।
उस बन्दर का लाख लाख शुक्रिया!! ऐसी सुन्दर बीवी किस किस के भाग्य में लिखा है? और आज भी वह उतना ही सुन्दर लगती है मेरे लिए।===========
Vishwanath
23 comments:
वाह मजा आ गया विश्वनाथजी की कहानी सुनकर... उस मन्दिर का पता भी जुगाड़ कर ले आइये कहीं से हम भी प्रसाद चढाते हैं ! विश्वनाथजी के सफल दाम्पत्य जीवन में बन्दर के हाथ से इनकार नहीं किया जा सकता... जय हनुमान !
आप की माता जी ने बड़े जत्न कर आप को हिन्दी बोलने वाली यू पी की लड़की के जाल से तो बचा लिया लेकिन ये अंतर्जाल पर हिन्दी ब्लोगिंग से न बचा पायीं। इतनी अच्छी हिन्दी लिखना क्या रुड़की में सीखा।
अगर उस समय बंदर सेब न खाता तो मुहुर्त तो गया ही था समझो, तब तो उस ज्योतिष के हिसाब से 19 साल बाद मतलब आप अब शादी लायक होते?…:)
इस वानर ने अनेक लोगों के काम साधे हैं जी। मुझ पर तो अनन्य स्नेह की बरसात है। (किस्सा कभी अपने ब्लाग पर) मैं न कहता था विश्वनाथ जी की तिजोरी से अभी बहुत कुछ निकलना शष है।
बहुत बढिया,
बस मेरे घरवाले गलती से इसे न पढ लें और आस पास कहीं हनुमान मंदिर न खोजने लगें ।
शादी पक्की होने के बाद पत्र व्यवहार का अपना अलग मजा रहता होगा । अनूपजी के भी खूब किस्से हैं उनके पत्र व्यवहार के । आजकल के दौर में फ़ोन/इंटरनेट के बाद क्या वो उत्सुकता बचती होगी जो एक चिट्ठी के इन्तजार में रहती होगी ।
इस किस्से को हम सब के साथ बांटने के लिये बहुत धन्यवाद ।
जय बोलो हनुमान जी की. :)
बहुत बढ़िया लिखा है विश्वनाथ जी ने। विवाह चाहे बंदर की सहायता से सम्पन्न हुआ हो परन्तु सफल तो स्वयं के प्रयत्नों से ही हुआ होगा। आशा है, वे सदा इस बन्दर को धन्यवाद देते प्रसन्न रहें।
घुघूती बासूती
बड़ा ही रोचक संस्मरण. मज़ा आ गया.
विश्वनाथ जी पर बजरंगबली की कृपा सदैव बनी रहे!
अति रोचक!! आनन्द आ गया विश्वनाथजी की कहानी सुनकर...जय हनुमान जी महाराज!! जय हो!!
कथा बांटने के लिए आभार. :)
विश्वनाथ जी के विवाह की कहानी बहुत रोचक है. हमें विश्वास है सर. किसी सबूत की जरूरत नहीं है. बहुत शानदार पोस्ट है.
पवनसुत हनुमान की जय...
वाह पढ़कर मजा आ गया ....कहते है न हर आदमी अपने भीतर एक समंदर छुपाये बैठा है.......दिलचस्प दास्तान....
क्या बात है.. मस्त.. मजा आ गया.. अब तो बैंगलोर आया तो आपके साथ-साथ आंटी जी से भी मिलूंगा.. :)
मैंने भी ना जाने कितने ही खुशगवार और मायूस शामें गुजारी हैं मरीना बीच पर, और आपका तो नाता ही जुड़ा हुआ है वहां से ये जानकर बहुत अच्छा लगा..
वैसे आपके रूड़की और आपके एम.ई. के स्ट्रीम(structure) से भी मेरा नाता हुड़ा हुआ है.. मेरे भैया उसी स्ट्रीम के रूड़की में टॉपर रह चुके हैं..
वाह, क्या बात है। पवनसुत हनुमान को संकटमोचक भी कहा जाता है। जी. विश्वनाथ जी के घरवालों और ससुरालवालों तथा खुद उनकी युगलजोड़ी के लिए उस बंदर ने संकटमोचक का ही काम किया। कभी आपलोगों का उत्तरप्रदेश, बिहार आना हुआ तो वाराणसी में संकटमोचन मंदिर और पटना में महावीर मंदिर का दर्शन अवश्य करें। एक लोकप्रिय पूर्व आईपीएस अधिकारी और बिहार में वर्तमान धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष श्री किशोर कुणाल के सद्प्रयासों से पटना का महावीर मंदिर वहां का सर्वप्रमुख धार्मिक व दर्शनीय स्थल बन गया है। कुशल प्रबंधन का सुफल है कि अब उसकी गिनती भारत में सबसे अधिक आमदनी वाले मंदिरों में होती है। वाराणसी के संकटमोचन मंदिर की महिमा तो विख्यात है ही।
जय बजरंग बली!
बड़ी अच्छी जोड़ी मिलाई। और ब्लैक एण्ड ह्वाइट फोटो में देखने का अलग ही आकर्षण है।
बड़े सुन्दर लग रहें हैं ज्योति-विश्वनाथ!
" करिहु कृपा अँजनीसुत सेवकाई" ..
ज्योति भाभीजी की मुस्कुराहट बता रही है विश्वनाथ जी से मिलाप कराने मेँ पवन तनय बजरँगी बानर महाराज का आशिष क्या बढिया विवाह रचाने मेँ सफल रहा ..
:))
बहुत बढिया सँस्मरण प्रस्तुत करने के लिये अनिता जी आपका आभार और विश्वनाथ जी
का भी ..
- लावण्या
मजेदार कहानी। फोटो शानदार। ज्ञानजी ने क्रम उलट के तारीफ़ की। विश्वनाथ-ज्योति जोड़ी धांसू है। :)
इतने विस्तारपूर्वक इस रोचक कथा को हम तक पहुंचाने के लिए धन्यवाद !
अनिताजी,
आपने इस कहानी को छापने योग्य समझा उसके लिए हार्दिक धन्यावाद।
यह ब्लॉग एक अजीब नशा है।
उस दिन नशे में चूर होकर मैंने अपनी शादी और एक बन्दर से उसका संबन्ध के बारे में जिक्र किया था।
किसी ने भी आगे जानने की इच्छा ज़ाहिर नहीं की थी, सिवाय आपने।
मैं सोचने लगा था कि शायद मुझसे ज्यादती हुई है।
यह निजी मामलों के बारे में लिखकर क्यों सब को बोर करूँ?
यह जरूरी नहीं है कि जो मुझे रोचक लगे और जिस के बारे में मैं बताना चाहता हूँ वह औरों को भी उतना ही रोचक लगे।
मैं चुप रहा और सोचा था के इसे लोग भूल जाएंगे
लेकिन आप कहाँ भूलने वाली थी।
बार बार याद दिलाती रही मुझे।
आखिर आज निश्चय किया की इसे लिख भेजकर आपके पल्ले बाँध दूँ।
आप जो उचित समझेंगी, वही करेंगी।
ब्लॉग जगत के मेरे नये मित्रों की प्रतिक्रियाएं देखकर दिल भर आया।
आप सभी को धन्यवाद।
हमारी उम्र के सभी लोगों के पास अनुभवों का भंडार होता है।
यदि इस तरह का प्रोत्साहन मिलता है तो आगे और भी लिखेंगे।
शुभकामनाएं
अरे वाह जी वाह, चिर कुवांरे हनुमान जी के प्रतिनिधि विवाह भी करवाते हैं गुड है जी गुड है।
अच्छा लगा इसे पढ़ना,
शुक्रिया आप दोनो का।
बहुत बढ़िया है जी!
.. यानि मामाजी और माताजी के जाल में आप फँस ही गये और लड़की पर आप मोहित हो ही गये।
अच्छा लगा पढ़ कर विश्वनाथजी।
अनिताजी आपको भी धन्यवाद एक मजेदार किस्से को हम सब तक पहुंचाने के लिये।
Anitaji ki ek जिज्ञासा ne aaj विश्वनाथजी ji ke porane raaj ugalwadiya bhot badhiya kahani thi Din tareek sab yaad aakhir kese bhool sakte hai aasa badhiya wakya ko koi
!!जय हनुमान!!
विश्वनाथजी की कहानी बहुत अच्छी लगी । धन्यवाद !
That was one cute story. Your wedding picture is beautiful. You guys were very happy guess the credit goes to two years of snail mail.
Peace,
Desi Girl
Anitajee,
You might be surprised at visits to this page after three years.
The fact is that I have translated this and posted it at another blog site, in response to an invitation from the blogger (Indian Home Maker).
A debate is raging there on the merits and demerits of arranged marriages and this story was my contribution to the discussions.
The link to the blog posted on May 15 is
http://indianhomemaker.wordpress.com/2011/05/15/a-marriage-decided-by-a-monkey/#comments
A link to your blog is also given in that posting.
Regards and best wishes
G Vishwanath
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