बढ़ते कदम
अनिता कुमार
इतिहास गवाह है कि जब जब समाज में विषम परिस्थतियाँ पैदा हुई हैं उसका सबसे बड़ा हर्जाना औरतों को चुकाना पड़ा है। न सिर्फ़ इतना उन विषम परिस्थतियों से निपटने की जिम्मेदारी भी धीरे धीरे औरतों के कंधों पर आ जाती है। ऐसी ही कुछ परिस्थती है बांग्लादेश की, कमरतोड़ू महंगाई और जीविका के नगण्य साधन, कोई आश्चर्य नहीं की बांग्लादेशी गैरकानूनी ढंग से भारत भागे चले आते हैं और यहां आ कर ऐसे मिल जाते हैं जैसे दूध में शक्कर्। यहां भी नारियाँ सबसे बड़ी कीमत चुकाती हैं ।
मैं आज आप को एक ऐसी लड़की से मिलवाने जा रही हूँ जिसने कई बंधन तोड़ अपना और अपने परिवार का भविष्य उज्जवल किया। वैसे तो उस लड़की का मुझसे कोई रिश्ता नहीं फ़िर भी मुझे और मेरे पूरे परिवार को उस पर गर्व है। कहने को ये कथा एक बहुत सी साधारण सी कन्या की लगती है जो हमारे देश की आम औरतों की तरह जी रही है, पर अगर इस बात पर गौर किया जाए कि वो गैरकानूनी तरह से भारत में बसने वाले बांग्लादेशी हैं और यहां आए दिन पुलिस रेड पड़ती रहती है और बांग्लादेशी जेल भेजे जाते हैं, जहां औरतों के साथ मनमाना व्यवहार होता है, जहां जी तोड़ मेहनत करने के बावजूद अपने पैसे बैंक में जमा करने की सुविधा से ये महरूम हैं, जहां मुस्लिम समाज की सभी रुढ़िवादियों से भारत आ कर भी औरतों को कोई छुटकारा नहीं मिला है तब ये कथा अलग हो जाती है।
यहां पढ़ें……नारी
5 comments:
वाकई इम्प्रेसिव लगी यास्मिन।
अत्यन्त प्रेरक प्रसंग है। मैं हमेशा कहता हूँ। स्त्रियाँ अपनी आजादी का खुद और केवल खुद ही सृजन कर सकती हैं।
होनहार ओर मेहनती इन्सांन के लिये कोई भी मजिल दुर नही,चाहे वो मर्द हो या ओरत
अच्छा लगा पढ़कर.
bahut badia...
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