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आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।

January 02, 2008

अंदाज अपना अपना

अंदाज अपना अपना


कल हमने अपनी एक सहेली को फ़ोन किया, नये वर्ष की शुभ कामनाएं देनी थीं, फ़ोन पर आते ही सहेली बोली, "टेल मी", लगा किसी ने हथौड़ा ही मार दिया हो, अगर उसके कहे का अंग्रेजी अनुवाद करुं और उसके वाक्य को पूरा करुं तो कहेगें " टेल मी, वॉह्ट केन आई डू फ़ोर यू"। कितना ठंडापन, मानो सहेली से नहीं मशीन से बात कर रहे हैं जो आज कल किसी भी बड़े दफ़्तर में फ़ोन करने पर आप का स्वागत करती हैं। सिर्फ़ कमी इतनी ही थी कि उसने ये नहीं कहा कि अगर नव वर्ष की शुभकामनाएं देनी हैं तो डायल वन, अगर कोई काम है तो डायल दो……॥ऐसी बात नहीं कि वो हमसे बात नहीं करना चाह्ती थी,इनफ़ेक्ट, ये हथौड़ा मारने के बाद( जिसका उसे एहसास भी नहीं था) वो काफ़ी देर तक मुझसे आत्मियता से बतियाती रहे, पर कहीं न कहीं हम आहत मह्सूस कर रहे थे।

दरअसल कसूर उसका नहीं था कसूर था भाषा का। मेरी सहेली दक्षिण भारतीय है और ज्यादातर अंग्रेजी ही में बात होती है, "टेल मी" कहना आम बात है, यही बात कोई मराठी में कहता तो कहता "बोला, काय महण्तात", मतलब बोलिए क्या बोलते हैं आप। इसमें अग्रेजी के जुम्ले से ज्यादा अपनत्व लगता है और हिन्दी भाषी फ़ोन पर कहता," कहिए, कैसे है आप?" वो और भी मीठा लगता है।

बात सिर्फ़ भाषा की हो ऐसा भी नहीं, बदलते वक्त के साथ जिन्दगी जीने के अंदाज बदल गये हैं, वक्त बचाने के लिए लोग स म स की भाषा में बात करने लग गये हैं , फ़िल्मों के नाम ही देख लिजिए, आप नव पीढ़ी को कहते सुनेगें डी डी ऐल जे(दिल वाले दुल्हनिया ले जायेगें)/ के के के ज़ी(कभी खुशी कभी गम)/टी ज़े पी(तारे जमीं पर) देखने जा रहे हैं। पहले कोई फ़ोन करता था तो मन में जिज्ञासा होने के बावजूद पूछना अभद्र्ता लगती थी कि भई क्युं फ़ोन किया, इधर उधर की बातों के बाद वो पूछा जाता था वैसे कुछ काम था क्या? फ़ोन करने वाला अक्लमंद होता था तो जल्दी मुद्दे पर आ जाता था, एकदम मुद्दे पर आना भी रूड माना जाता था, अब ऐसे में आज कल का ये टेल मी गोली सा लगेगा ही। हम खुद को समझा रहे थे कि तुम तो पुरानी हो गयी हो, ओल्ड फ़ैशन्ड अब कहां ये सब शिष्टाचार निभाये जाते हैं, बदल डालो खुद को। आप इस पोस्ट की लंबाई से अंदाजा लगा सकते हैं कि हम नहीं बदले।

हिन्दी चिठ्ठाकारी ने बदलने नहीं दिया हमें। ब्लोगिंग का अपना एक संसार है, यहां अलग अलग प्रातों के लोग मिले,दोस्त बने, उनसे फ़ोन पर या चैट पर भी बात होती है। वहां हमें वही अपने पुराने (क्या उन्हें पुराना कहें?)शिष्टाचार मिले, जल्दी में भी लोग शिष्टाचार भूलते नहीं और हथौड़ा नहीं मारते। ऐसी तृप्ती मिलती है मानो कोई रिशतेदार घर आये हों और गप्पों के दौर चल रहे हों, सिर्फ़ चाय की कमी, वो हम पूरी कर लेते हैं।

मेरे सभी चिठ्ठाकार दोस्तों को नव वर्ष की शुभकामनाएं।

देखा कितनी देर लगा दी असली बात कहने में, मेरे बम्बई के दोस्त कहेगें इत्ती देर लगाओगी कहने में तो गाड़ी छूट जाएगी तुम टिकट खरीदती रह जाओगी, कोई बात नहीं हम दूसरी गाड़ी का इंतजार कर लेगें और तब तक अपने दोस्तों से और बतिया लेगें क्युं ठीक है न दोस्तों?
भाषा से ही जुड़े मेरे कुछ अनुभव कविताई रूप में ढालने की कौशिश की है
कितनी भन्नाई थी जब पहली बार आदर से 'बाई' कहलाई थी
दीदी के बदले स्नेह से 'ताई' कहलाई थी
तरसे ये कान कितने बरसों से
सुनने को झल्ली, पागल, ढ्क्कन,
जब बार बार ट्युबलाइट कहलाई थी
आलू,प्याज,छौंका, अरहर की दाल
बन गये कांदा, बटाटा और तुअर की दाल
जब हम कहें खुद को "हम"
अगलें बगलें झाकें लोग बाग
जब हम कहें "आप" तो छोटे समझें
ये है ताना या गुस्सा,
"तू" और "तुम" संबोधन से दोस्त लेते
दिल की घनिष्ट्ता नाप ,
शिकायत उनकी
अभी भी दिल में दूरी है
कैसे बताएं ये मेरे संस्कारों की मजबूरी है

17 comments:

Pankaj Oudhia said...

नये वर्ष मे नये रंग मे आपको देखकर खुशी हुई। वैसे भी चन्द पंक्तियो की कविता वो सब कह जाती है जो लंबे लेखो से कह पाना सम्भव नही है।

आपको भी नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए।

अस्तित्व said...

नव वर्ष की शुभकामना आपको भी। आपकी बातो से सहमत हूँ। भाषा का सही प्रयोग भी करना एक कला है। वरना किस रुप में लिया जायेगा इसका अनुमान लगाना कठिन है।मुझे याद है मेरे एक दोस्त जो अब कनाडा के निवासी है फोन पर अभिनन्दन के बाद कहा करते थे "आगे बढो" शुरु शुरु में अजीब सा लगता था लेकिन फ़िर आदत सी हो गई थी नही तो लगता था की उनको हमसे बात करने मे दिल्चस्पी नही है।

ghughutibasuti said...

आपको भी नववर्ष की शुभकामनाएँ । वाह ! कविता के माध्यम से विभिन्न प्रान्तों में भाषा के अलग अलग रंग के बारे में बढ़िया लिखा है ।
घुघूती बासूती

Anonymous said...

आपका ब्लाग पढ़कर बहुत अच्छा लगा
आपको नये साल की शुभकामनायें

दिनेशराय द्विवेदी said...

अनिता जी, आप जब भी लिखती हैं तो बात बहुत अंन्दर से निकलती है। यही आप के आलेखों की विशेषता है। कभी आप के भीतर से गुस्सा भी निकलता तो होगा ही? यहां कभी ब्लॉग पर नजर नहीं आया। जरा देखना चाहते हैं। नये साल पर मुम्बई में जो बद्तमीजी की शर्मनाक घटना घटी है उस से गुस्सा तो बहुत उबला होगा? तो कुछ लिख डालिए इस पर ।
आप के अन्दर का स्नेह बहुत देखा है। गुस्सा भी उस का ही दूसरा फलक है। जरा वह भी तो दिखाइये हमें।

Gyan Dutt Pandey said...

हिन्दी में भी फोन के मैनर्स कहां हैं? आप फोन उठायें तो फोन करने वाले की हथौड़ा मारती आवाज आती है - कौन?
और मन होता है कि फोन उसके सिर पर दे मारें!

नया साल तो अब पुराना हो गया; पर मुबारक तो कहा ही जा सकता है आपको।

उन्मुक्त said...

यह कसूर भाषा का नहीं है भाषा के गलत प्रयोग का है। यदि कोई व्यक्ति भाषा का गलत प्रयोग करे तो दोष भाषा को देना ठीक नहीं।

अंग्रेजी उतनी प्यारी है जितनी हिन्दी। मैंने आजतक किसी भी अपने मित्र को Tell me कहते नहीं सुना। What's up, How's life, How do you do शायद उतने अच्छे हैं जितने हिन्दी के शब्द।

मैं इन शब्दों के प्रयोग के लिये माफी चाहूंगा, पर यदि कोई कहे 'कस बे, बोल' तो शायद यह भी भद्दा होगा।

हिन्दी या मराठी या अंग्रेजी या फिर कोई भी भाषा प्रिय या अप्रिय नहीं होती - यह उसके प्रयोग करने वाले पर निर्भर है कि उसे वह कैसा बनाये।

आपकी सहेली ने अनजाने में, बिना समझे वह भाषा का का प्रयोग कर लिया होगा। हो सकता है उनके समाज में यह बुरा न माना जाता हो।

ALOK PURANIK said...

जमाये रहिये।

mamta said...

आपको और आपके परिवार को नया साल शुभ औए मंगलमय हो।

हमने ऐसे ही भाषा पर कुछ लिखा था जिसका हम यहां लिंक दे रहे है।

http://mamtatv.blogspot.com/2007/04/blog-post_29.html

Sanjeet Tripathi said...

होता है जी!!
किसी भी भाषा के शब्द आखिर शब्द हैं उन्हें चुनने वालें तो हम है न। यह तो हम पर निर्भर करता है कि कब किस भाषा के शब्द चुनने हैं!

तो आप भी ढक्कन, ट्यूबलाईट आदि विशेषणों से नवाज़ी जा चुकी हैं, बधाई जी बधाई!!

कविता के माध्यम से अभिव्यक्ति बहुत बढ़िया रही!!

नीरज गोस्वामी said...

अनिता जी
ज़िंदगी की आप धापी और चूहा दौड़ ने इसमें से समय और मिठास दोनों गायब कर दी हैं. जब समय और मिठास दोनों ही न रहें तो बताईये फ़िर बचा ही क्या रह जाता है?. समय जब अपने ही लिए नहीं मिलता तो किसी दूसरे के लिए कहाँ से मिलेगा? बात ख़ुद से भी कहाँ हो पाती है? महानगर की ज़िंदगी के बारे में बोलते सब हैं लेकिन इसमें से निकल ना कोई नहीं चाहता. भाषा में जिस मिठास को हम तलाश रहे हैं वो असल में जीने की जद्दो जेहद में खो गयी है.
मेरा एक शेर है:
जिक्र तेरा ही हर कहीं "नीरज"
जब तलक गुड़ तेरी ज़बान में है."
जबान के गुड़ को संभाले रखिये बस.... नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ.
नीरज

Dr Parveen Chopra said...

आप को भी नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएं। आप के द्वारा कही सारी बातों में यथार्थ की महक आती है। निःसंदेह ये वाणी के द्वारा मारे गये हथोड़े बेहद तंग करते हैं।

Anonymous said...

in this article too there was a sweet touch of humour. Specially i like the way u have designed it.

Anonymous said...

आपको भी नव वर्ष की शुभकामनाएँ अनिता दीदी.

Asha Joglekar said...

आपके मन के भाव ुतारती हुई कविता । पर भाषा तो महज माध्यम हे दिल की बात कहने का ।

सुनीता शानू said...

आपको भी नव-वर्ष की ढेर सारी शुभ-कामनाएं...बहुत समय से आप से दूरी हो गई है,जो मुझे भी बहुत खलती है,मगर अब नियमित रहने की कोशिश करूँगी...

vikky said...

"तू" और "तुम" संबोधन से दोस्त लेते
दिल की घनिष्ट्ता नाप ,
शिकायत उनकी
अभी भी दिल में दूरी है
कैसे बताएं ये मेरे संस्कारों की मजबूरी है!!!!!!!!!!!!!

वह जी हमे तो बहोत पसंद आये आपके विचार कम शब्द मै बड़ी बाते समझने का आपके अंदाज का जवाब नहीं!!!!!!!!!