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आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।

September 08, 2007

बैरी मन


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी





बैरी मन


दुनिया के रेले, आते जाते लोग,

सड़क किनारे बैठे हम अकेले,

उड़ती सी नजर, ठिठके कदम,

जाते अपने रास्ते,

कौतुहल, खिलती मुस्कान,

दौस्ताना फ़ैले हाथ,

कछुए सी खुद में सिमटना,

कैसे भूलूँ,

वो सब कुछ कदम हम कदम,

कर गये मुझे,

अपने ही अधेंरों में गुम,

नीलकठं सा बैरी मन,

आज भी दूसरों की पीड़ा से

इसका गहराता नीला रंग,

हसीं की खनक से जब कोई

कछुए का खोल टकटकाता है,

तू सब भूल जाता है,

रस्सी छुड़ाए बैल सा बाहर निकल आता है,

कितना समझाया,

अब बस कर,

ये गिरने पड़ने का खेल,

अब इन हड्डियों में तेरी चोटें सहने की ताब कहाँ,

खुशी, इमानदारी सब कोरी मर्गतर्षणा हैं,

सच है सिर्फ़ धोखा, खुदगर्जी,

झूठ से प्यार कर,

खुशी मिले या न मिले,

चोट तो न खायेगा!!

11 comments:

शैलेश भारतवासी said...

इस मूड की ढेरों कविताएँ पढ़ने को मिली हैं मुझे। जैसे 'अंधेरा अंतिम सत्य है, धोखा अंतिम सच है, प्यार मिथ्या है' इत्यादि। फ़िर भी इसमें उपमाएँ दिलचस्प हैं।

Gyan Dutt Pandey said...

बस-बस इस कविता के मूड को लांघ कर बाहर आइये! और नहीं तो कुछ अगड़म-बगड़म पढ़िये!

Anonymous said...

acchee lagee mam aap kii kavita

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छी रचना है।बधाई

ALOK PURANIK said...

जी काहे अकेली रहती हैं, हमरे ब्लाग पर आइये ना वहां बहूत कुछ है, हाकी है क्रिकेट है, पूड़ी हैं परांठा है। इधर से जोड़ा है, उधऱ से गांठा है।

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया कविता अनीता जी!!
शुक्रिया!!

श्रद्धा जैन said...

bahut hi achhi kavita likhi hai aapne didi

bhaut hi achhe se kaha hai har baat ko aapko padhna achha lagat hai bhaut

Anonymous said...

anita ji aapki kavita bahut pasand aayi.aap badhai ki patra hein.mere blog mein sabse pehle comments aapne hi diye they...mein aapki bahut aabhari hoon...mein chahungi ki aap niyamit roop se meri rachnaien pedhein aur her post mein apne comments zaroor zaroor dein.....thanks....mera blog address hai
http://kuchsapnokikhatir.blogspot.com

Rajesh said...

खुशी, इमानदारी सब कोरी मर्गतर्षणा हैं,

सच है सिर्फ़ धोखा, खुदगर्जी,

झूठ से प्यार कर,

खुशी मिले या न मिले,

चोट तो न खायेगा!!

Bahot hi sach kaha hai Anita ji,
aaj ke yug mein yahi sab chal raha hai aur dekh rahe hai ki kisi ko kisi ki parwah nahi hai, phir bhi na jane kyon yah paagal, hamara mann, inhi duliya walon ke boolave per, kitni hi baar dhokha kha lene per bhi unhi logon ki khood garji ko nazar andaaz kar ke aise hi logon ke kaam ke liye kisi bhi waqt nikal hi padta hai.......
ab aap use kitna hi tatologe, yah hamari maan ne wala kahan hai, bus phir chaut kha lega, phir ladkhada jayega, phir uthega aur phir ek baar koi aur ki awaaz soon kar phir daud padega.......

रवीन्द्र प्रभात said...

सुन्दर भाव, सुन्दर शब्द, सुन्दर रचना,उपमाएँ दिलचस्प हैं, बधाई .

inderjeet said...

Kuch to log kahenge loogo ka kaam hai kehna chodo bekaar ke baatoon ko abhi aap ko bahut kuch hai kehna .....keep it on (wonderful efforts)