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September 13, 2007
आती क्या खंडाला
अर्पणा (जो ओर्कुट पर खुद को ऐपी कह्ती है) मुझे ठेल रही थी 10 सेप्टेंबर को खंडाला में होने वाले जमावड़े में आने के लिए। 40+ ऐंड रोकिंग कमयुनटि का ये दूसरा आयोजन था ऐसे जमावड़े का। इस कम्युनटी की सदस्य होने के बावजूद मेरा वहाँ जाना कम ही होता है और मैं वहाँ से बहुत कम लोगों को जानती हूँ। अर्पणा मुझे समझा रही थी कि ज्यादातर लोग एक दूसरे को नहीं जानते। बम्बई से सब इंतजाम करने का जिम्मा उठाया था विजय ने, जो ओर्कुट पर खुद को भूत कहलवाता है। हमने उससे कभी बात नहीं की थी, पहली बार जब उसका स्क्रेप आया तो हमने ये कह कर रिजेक्ट कर दिया कि भूतों से हमें बहुत डर लगता है और हम सिर्फ़ जिन्दा लोगों से ही बात करते हैं।बाद में पता चला कि वो 40+ रॉकर है तो जान में जान आयी। खैर ऐपी के बहुत जोर देने पर हमने पतिदेव के सामने बात उठाई। हमें पक्का विश्वास था कि एक लम्बा लेक्चर सुनना पड़ेगा ओर्कुट के खतरों के ले कर। वैसे भी मैं और मेरे पति ज़रा झेपू किस्म के बंदे है। पर मेरी हैरानी का ठिकाना न रहा जब न सिर्फ़ उन्होंने अपनी सहमति दिखायी बल्कि खुद भी साथ चलने को तैयार हो गये। उसी कम्युनटी में हमारे एक और मित्र हैं उदय जी-60 साल के, रिटायरड पर अभी भी प्रोफ़ेसरी का काम करते हैं, एकदम जिन्दादिल इन्सान। इधर बहुत दिनों से उनसे बात नहीं हुई थी। अचानक उनका स्क्रेप आ गया, “आती क्या खंडाला”, पढ़ते ही मेरी हंसी छूट गयी। उनको तो मैंने जवाब दिया, “ क्या करूं आके मैं खंडाला” पर अब जाने का मन बना लिया।
बम्बई और पूना दोनों तरफ़ के रॉकरस की एक्साइट्मेट देखते ही बनती थी। वहीं नेट पर रोज सब इन्तमाजात की जानकारी, लोगों के सुझाव, जो नहीं आ रहे थे उनकी निराशा, सब था वंहा। आखिर वो इतवार आ ही गया। नवी मुम्बई से हम तीन जन चढ़ने वाले थे, एक और सद्स्य हैं 40+ के जो इस बार के जमावड़े में नहीं आ सकते थे, पर उन्हों ने अपनी पत्नी को प्रोत्साहित किया था कि वो जरुर जाएँ, सो नीतू जी हमारे एरिआ से आने वाली थीं, हम उनको नहीं जानते थे, खैर! क्या शखसिय्त है जनाब ये नीतू जी की, मजा आ गया। मिलते ही बोलीं कि आते आते उन्हें एक पंडित जी दिखाई दिए, धोती कुर्ते में लैस। उन्हों ने भूत को पिछ्ले जमावड़े में ऐसे ही देखा था तो सोचा भूत है, उन्हें देर हो गयी है इस लिए इन्तजार कर रहा होगा। वो दूर से ही चिल्लायीं, “ हाय भूत”, अब वो पंडित जी का चेहरा देखने लायक था। अपनी गल्ती का एहसास होते ही नीतू जी बगलें झांक रही थीं। हंस हंस कर हमारे पेट में बल पड़ गये। इतने में बस आ गयी। बस में बैठे ये अन्जान लोग ऐसे मिले जैसे हम बरसों पुराने मित्र हों। हमारी झिझक एक मिनट में उड़न छू हो गयी। चुहलबाजी, अन्ताक्शरी के दौर चल पड़े, गरमा गरम समोसों के साथ । पूना के रास्ते में दो तीन लंबी सुरंगो से गुजरना पड़ता है, किसी ने सुझाया कि सुंरग में गाने की आवाज ऊँची कर दी जाए और उसकी प्रतिध्वनी सुनी जाए। बस फ़िर क्या था, सुंरग टूट कर हमारी बस पर नहीं गिरी यही गनिमत है। इतना सिली आइडिया, पर कितना आंनद आया ऐसी बचकानी हरकत करने में।
वहाँ पूना वाले भी ऐसे मिले जैसे बरसों से जानते हों। कुल मिला कर हम 30 जन थे। कुछ के जीवन साथी ऑर्कुट के सद्स्य न होते हुए भी आये थे। तो कोई अपने छोटे बच्चों को भी लाई थीं। हॉट्ल से घाटी का द्र्श्य इतना मनोरम था कि बस मन करता था कि बरसाती झरने को ही देखते रहो। वहाँ एक बड़े से कमरे का इन्तजाम किया गया था।
शुरु हुआ कुछ गेम्स खेलने का दौर- सबसे पहले एक दूसरे परिचित होने के लिए ये खेल खेला गया कि सब जन एक घेरा बना कर बैठ जाएं फ़िर एक जन शुरुवात करेगा, अपना नाम बोलेगा और साथ में कोइ विशेषण लगाए, फ़िर दूसरा जन पहले वाले का नाम और विशेषण बोले और फ़िर अपना नाम और विशेषण, यानि कि 30स्वें जन को बाकी 29जन के नाम और विशेषण बताने थे और फ़िर अपना नाम और विशेषण, इनाम भी रक्खा गया था(जो हमें मालूम नहीं था) बिना एक भी गल्ती किए जो सब नाम और विशेषण दोहरा दे। दिन के पहले ही गेम में इनाम जीतते हुए हमें बहुत अच्छा लगा, और हमारे हर्ष का ठिकाना न रहा जब इनाम में शुभा(पूना से आई रॉकर) ने अपने हाथों से पेन्ट किया हुआ एक कप हमें दिया जिस पर 40+ कम्युनटी का पह्चान चिन्ह पेन्ट किया हुआ था।फ़िर शुरु हुआ सगींत और डांस का प्रोग्राम। 40 साल से ले कर 65 साल के सभ्रांत स्त्री पुरुष थिरक रहे थे – कजरारे, बिड़ी जलई ले, नच बलिए, और न जाने कौन कौन से गीतों की धुन पर। उस समय पहली बार नाच न जानने का रंज हो रहा था, अब सीखूंगी।
नीरज जी पूना से सपत्नी आए थे। उनकी पत्नी भी जरा झेंपू टाइप की थीं हमारे जैसे, सो उन्होंने हमारे साथ बैठ्ने ने ही अपनी भलाई समझी। बातों बातों में पता चला कि नीरज जी और नीरु जी( उनकी पत्नी) दोनों अलिगढ़ से हैं, सुन कर मेरी तो बाछें खिल गयीं, बचपन की यादें ताजा हो आयीं, नीरू जी भी उसी स्कूल से पढ़ी हैं जिससे हम पढ़े थे, बस फ़िर क्या था हम यादों में अलिगढ़ घूम आये। तब तक नीरज जी पार्टी की जान बन चुके थे, ऐसा मधुर गला पाया है कि बस सुनते ही रहो।
शाम के 6.30 बज चुके थे किसी का भी लौटने का मन न था, पर लौटना तो था ही। बस जैसे जैसे बम्बई के नजदीक पहुँच रही थी स्मिता प्लान बना रही थी कि हम सब साथ साथ एक पिक्चर देखने चलें और फ़िर खाना, मोबाइल नंबर लेने का दौर चला। घर पहुँचते ही हमने कम्पुय्टर ऑन कर दिया, पतिदेव बोले अरे अभी तो आई हो लेकिन हम ऑलरेडी उन लोगों को मिस कर रहे थे, लो क्या देखती हूँ, व्रंदा जो हमसे थोड़ा पहले उतरी थी उस का दोस्ती का पैगाम ऑर्कुट पर आया पढ़ा है, और शंकर जो पूना से आए थे उन्हों ने फोटोस अपलोड कर दी हैं। और भी कई लोग अपने अपने संस्मरण लिख चुके थे। मैं सोच रही थी हम सब 50 के है या 15 के।
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16 comments:
अनिता जी,
हम चिट्ठाकार लोग इतनी भारी संख्या में १४ जुलाई को दिल्ली में ज़रूर मिले थे लेकिन ऑरकुट की कम्न्यूटी से सम्पर्क में आये ३० लोगों का जमावाड़ा वो भी ४0+ के लोगों का पहली बार सुना, पढ़ा और शायद इस रिपोर्ट के माध्यम से देखा भी।
सच में इंटरनेट का यही सब सदुपयोग है। जो लोग ऑरकुट को केवल गलत मानते हैं, उन्हें यह उदाहरण दिया जा सकता है। वैसे मैं खुद बहुत पहले से चाकू के गला या सब्जी काटने/कटने में चाकू की महिमा नहीं मानता, सब प्रयोक्ता के ऊपर है।
हिन्दी-दिवस की बधाइयाँ!!
अनिता जी,
आपका साथियोँ से मिलने का पूरा विवरण बडा मनोरँजक लगा ~
आप भी ज़िँदादील ही लगीँ हमेँ तो ~
~ और हाँ मेरे ताऊजी की लडकी भी अलीगढ ब्याहीँ हैँ ~~
शुभकामना सहित
--लावण्या
anita ji baatein sunkar aapki laga ki hum bhi khandal ghoom aaye aap ke sath . per wha such mi bada he interesting trip raha hog aap ke leye ye hum samajh sakte hai aanjaan logo se milna who bhi is hitech duniya mi hitech tareke se great & good use of orkut ! next time hami bhi le chaleye ga hum bhi achhe bache hai
vikky ....
बड़ा रोचक संस्मरण रहा यह तो. अनजान तो तभी तक अनजान है जब तक हम उससे मिले नहीं.
अच्छा प्रयास रहा.
आशा है ऐसे ही भविष्य में भी आप लोग खुशी खुशी मिलते रहें और संस्मरण हमारे साथ बांटते रहें.
हिन्दी-दिवस की बधाई.
वाह! भूतों को वर्तमान और जीवंत बनाने का यह अच्छा तरीका है. हम तो यूं ही भूत हुये जा रहे हैं - अब जरा आसपास टटोलेंगे हम उम्र लोगों को.
पढ कर बस मजा आ गया, बहुत ही रोचक संस्मरण आपने सुनाया उसके लिये आपको बधाई। लगा की मैं भी उस 40+ को ज्वाईन कर ही लूं पर अभी उसके लिये 14 साल और इंतजार करने पड़ेंगे। :D
लेकिन एक कमी खल गयी, आपने अपना और्कुट का पता नहीं दिया। मैं भी वहां जाकर आपके ट्रिप की तस्वीरें देखना चाहता हूं।
हे भगवान, कुछ बचेगा भी क्या आपसे। शेयर, कविता, ट्रेकिंग, भूत-हमकू लगता है कि चांद पर जायेंगे, तो वहां भी आपका ही साइनबोर्ड मिलेगा। ये सब आप ही करती हैं, या आपकी फोटूकापियां भी हैं।
Anita ji, Namaskaar, Sarva pratham Hindi Divas ki Badhaaiyan. Aap ke 40+ ka trip shayad jaadu se bhara hua hi mahsoos ho raha hai. Apni hi umra ke, apnon se anjan logon se pahli baar milna, phir itna ghool mil jana, kuchh hi ghanton mein, in fact kabile daad hai. Anita ji, itni kathin pratiyogita mein bhi prize paane ke liye aap ko ek aur badhayi. Aap ki baaton se hamesha yahi lagta hai ki aap shayad kabhi itni BUDHI hai hi nahi, magar phir aap ki tasveer dekh kar mann ko manana padta hai, aur maan na padta hai ki yes, aap 50+ ki JAWAAN hai. "ABHI TO HUM JAWAAN HAI". aap ke narration ko padhkar sach hi mein aisa laga ki hum bhi KHANDALA ki sair kar aye hai. Aapne jo varnan kiya hai - aapke hotel ke room se dikhayi dene wala ghati ki najara, wah bus ke antakshari ki pal, sab kuchh aisa laga mano ki yah sab hamari aankhon ke saamne hi ho raha hai aur oon sab functions mein hum hazir nazir rahe hai. aap ke dwara diya gaya bhoot ka varnan, really its grt and amazing. Itna mastttt article banane ki liye ek bar phir badhaaaaaaayyyyyyiiiiiiiiiiii
वाह!!!
आपके संस्मरण शानदार हैं.
Maan Gaye Anokhi Anita ji ko.
Sansmaran kaafi rochak ban pada hai aur mujh nikrishta kalakaar ko itnaa dheir sa protsahan deney ke liye haardik dhanyavaad
I loved reading "aati kya khandaala very much".As I was reading it, I had so many posivive feelings....It has been written in a very humourous way.I enjoyed reading it. the reaction to "bhut" was specially interesting to know about.and at the end of it all.... I had a feeling that I wish I was 40 plus !!
anita ji,namaskar aapka mumbai to pune ka trip padh ker laga ki jaise hum bhi wahan gaye they per aapse nahi mile..mein bhi last year pune to mumbai usi raastey se gayi thi,is liye wo surang yaad aa gayi..bahut achcha laga ...kash delhi mein bhi koi program aisa ban pata to achcha rehta....aap isi tarh life enjoy kerti rahein hamari dua hai...aapne hamare blog mein hamara utsah badhaya is baat ki bahut khushi hai....asha hai hamein aapka sahyog isi tarah hamesha milta rahega...thanx.....
अनिता जी
नमस्कार
मैंने आपका सफर वृतांत पढ़ा, पढ़कर काफी अच्छा लगा। आपने अपने लेख के अंत में उम्र का जिक्र किया है, उस पर मुझे कहना है कि लोगों को उम्र का तरजीह देनी चाहिए पर ऐसा नहीं है कि अगर हम 40 वर्ष पार कर गये अथवा 60 साल के हो गये तो हमें मौज-मस्ती करने का हक नहीं है अथवा हम वो नहीं कर सकते जो लड़कपन में लोग किया करते हैं। हालांकि मैं आपसे उम्र में काफी छोटा हूं पर मेरा मानना है कि जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है और आपने जो किया, उस तरह की सोच हर किसी को रखनी चाहिए तभी जिन्दगी जीने का मजा आएगा।
अनिता जी
नमस्कार
मैंने आपका सफर वृतांत पढ़ा, पढ़कर काफी अच्छा लगा। आपने अपने लेख के अंत में उम्र का जिक्र किया है, उस पर मुझे कहना है कि लोगों को उम्र का तरजीह देनी चाहिए पर ऐसा नहीं है कि अगर हम 40 वर्ष पार कर गये अथवा 60 साल के हो गये तो हमें मौज-मस्ती करने का हक नहीं है अथवा हम वो नहीं कर सकते जो लड़कपन में लोग किया करते हैं। हालांकि मैं आपसे उम्र में काफी छोटा हूं पर मेरा मानना है कि जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है और आपने जो किया, उस तरह की सोच हर किसी को रखनी चाहिए तभी जिन्दगी जीने का मजा आएगा।
Anitaji namaskaar,
kaafi badhiya blog aur usse bhi badhiya ye sansmaran...mujhe to laalach aa raha hai ki kab is blog par aapka wo sansmaran bhi dekhne ko milega..jo IIT mein aakar aapne mahsoos kiya :)...waise mere laalach ko aap majaak mein hi len.
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