ठप्पा लगवा लिए(भाग 1)
उषा आगामी अकेडेमिक वर्ष के शुरुवात
में इस नौकरी के अट्ठाइस साल पूरे कर रिटायर हो जायेगी। हमारे ग्रुप का एक और
सदस्य चला जायेगा सोच कर ही मन उदास हो जाता है। दो महीने पहले अचानक उषा ने
सुझाया कि क्युं न हम तीनों एक साथ छुट्टी मनाने चलें। झटपट प्रोग्राम बनने
लगा। हमने पतिदेव को दफ़्तर में ही फ़ोन धनघना कर कह दिया कि छुटटी के लिये अर्जी दे
दो। एक मई से छुट्टियां शुरु होती हैं और दो तारिख को निकलने का प्रोग्राम बना
लिया गया। तारीखें तय कर के सोचा गया कि कहां जाया जाये।
बायें से वैंकट, उषा, माला(अमिता की छोटी बहन), अमिता, मैं और विनोद |
केसरी ट्रेवल्स के दफ़्तर पर धावा
बोला गया, कई तरह के प्रोग्राम देखे गये और तय हुआ कि
मैं और अमिता अपने अपने नये नवेले पासपोर्ट का उदघाटन करेगें, पासपोर्ट के कोरे पन्नों पर एक ठ्प्पा तो लगना ही चाहिए। तो
प्रोग्राम बना सिंगापुर जाने का।
हड़ताल
एक महीना पहले महाराष्ट्र में कॉलेज
टीचर्स हड़ताल पर चले गये और पेपर्स जाचंने
से साफ़ इंकार कर दिया( बिना रोये तो सरकार के कान पर जूं भी नहीं रेंगती न,
छठा वेतन आयोग अब तक संपूर्ण नहीं, और मिलने
की आशा भी नहीं) उलटा चोर कोतवाल को डांटे, एक तो सरकार हमारे हिस्से के पैसे केन्द्र
सरकार से ले कर हजम कर गयी और साथ में हड़तालियों को निलंबित करने की धमकी भी दे
रही है। हड़ताल और सरकार के रवैये पर फ़िर कभी…॥ खैर, हमने जैसे तैसे
कुछ टीचरों को एकत्र कर पेपर्स जांचने का काम जो मेरे नेतृत्त्व में पूरा होना था
उसे एक तारीख तक पूरा किया और दो तारीख की रात को चल पड़े एक नये अनुभव की ओर।
बम्बई रात की बाहों में
सुबह तीन बजे जब सड़कें काफ़ी हद्द तक
खाली होती हैं(सुनसान तो कभी नहीं होतीं) और समुद्र से आती ठंडी हवायें चेहरे से
टकराती हैं तो बम्बई और हसीन लगती है।आदतन टैक्सी वाले से बतियाये, मेरू
टैक्सी( प्राइवेट कंपनी की टैक्सी) कंपनी की कार्यप्रणाली के बारे में जाना, टैक्सी ड्राइवर
की दिक्कतें, आमदनी, और न जाने क्या क्या पूछ डाला। उसकी भाषा से साफ़ जाहिर था
टैक्सी वाला यू पी का है(आम भाषा में तनिक शब्द का इस्तेमाल कोई बम्बइया तो करेगा
नहीं।), पूछने पर हिचकते हुए उसने बताया कि वो बनारस का है। उसकी हिचक को देखते
हुए हमने पूछा क्या किसी राजनीतिक कारणों से उसे कोई परेशानी का सामना करना पड़ता
है? उसने बताया कि राजनीतिज्ञ तो नहीं पर काली पीली टैक्सी वाले बहुत परेशान
करते हैं, मारपीट पर भी उतर आते हैं, पैसेंजर भी कभी कभी किराये को ले कर झगड़ा कर
बैठते हैं तो उनसे कैसे निपटा जाता है।अचानक वो सिर्फ़ टैक्सी ड्राइवर न हो कर
इंसान दिखने लगा। और भी बहुत कुछ पूछना था उस से पर तब तक ऐअरपोर्ट आ गया।
बोर न हुए हों तो बतलाऊं आगे का जो
अफ़साना है…J
7 comments:
छुट्टियों का पूरा आनन्द उठायें, ये पल दुबारा नहीं आयेंगे।
अरे ये किस्सा रोक काहे दिया गया भाई!
aap ka trip itna descriptive aur pyara hai ki maja aa gaya.good writing skill.inspire me to write.
aap ka trip itna descriptive aur pyara hai ki maja aa gaya.good writing skill.inspire me to write.
Nice Post:- HindiSocial
Thank you
Blog per post daale toh zamaanaa ho gayaa..achaanak comment ke notification se vapas in galiyon mein jhankaa ki bhai kaun si post per shivam ji nein comment karne ki takleef li..khud bhi padhi..purani yaadein taazaa ho gayin..ab toh is group ke sab log retire ho chuke hain..Shivam ji aap ko anekon dhanyawaad meri bhi yaadein taazaa karne ke liye
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