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October 14, 2010

वर्धा यात्रा ने बना दिया गाय, वर्ना आदमी तो हम भी थे काम के

समीर जी ये रही धनेश की फ़ोटो। 

फ़ोटो लेती रचना जी, फ़ोन पर सिद्धार्थ जी, धनेश जोशी, और गायत्री 
ले हाथों में हाथ ओ साथी चलSSSSS
कविता जी और मेरे हाथ हरसिंगार के फ़ूलों के साथ 
धनेश से हमें पता लग चुका था कि शैलेश भारतवासी, सुरेश चिपलूनकर जी, जय कुमार झा, जाकिर अली, और अविनाश जी एक रात पहले ही आ चुके हैं। कविता जी तो पहले ही से वहां थीं। सुबह के छ: बज चुके थे पर इनमें से किसी का कोई अता पता नहीं था। शैलेश और अविनाश जी से मैं पहले भी मिल चुकी थी, एक बार मन हुआ कि जा के इनका और कविता जी का दरवाजा खटखटा दें, फ़िर न जाने क्या सोच के खुद को रोक लिया। उसी होस्टल में रह रहे विश्वविधालय के टीचर्स एक एक कर आ रहे थे और सुबह की चाय का आनंद ले रहे थे पर ब्लागर मित्र सब गायब थे जिनका हमें इंतजार था। खैर सबसे पहले सुरेश चिपलूनकर जी अवतरित हुए और हम ने लगभग उछलते हुए प्रश्नवाचक लहजे में पुकारा सुरेश चिपलूनकर जीईईईई। वो बिचारे अभी अभी आंख मलते हुए आ रहे थे इतनी जोर से उनका नाम पुकारा गया तो थोड़े हिल गये। एक मिनिट मेरी तरफ़ देखा और मुस्कुरा दिये। हमारे मन में पहला विचार जो आया वो था अरे ये आदमी मुस्कुराता भी है? ब्लोग पर तो सदा आग उगलते ही देखा। इतने में जय कुमार झा साहब भी आ गये, इनसे हमारा कोई परिचय नहीं था न ही इनके ब्लोग से हम वाकिफ़ थे।

दुआ सलाम और बातों के दौर में धनेश कब स्टेशन खिसक गया पता ही न चला। गाड़ी आ कर सीढ़ियों के पास लगी तो पता चला कि एक खेप आ गयी। गाड़ी से अजित गुप्ता जी उतरीं। हम सेल्फ़ अपोंनटेड रिसेपशन कमैटी बन गये और अजित जी का स्वागत करने के लिए आगे बढ़ गये। वैसे हम खुद भी हैरान थे अपने इस व्यव्हार  से। हम तो शुरु से बहुत संकोची रहे हैं ये हमें क्या हो रहा था? अजित जी के साथ दो मेहमान और थे और हमें विश्वास नहीं होता कि हम संजीत त्रिपाठी को नहीं पहचान पाये थे। अरे, वो फ़ोटो में जैसा दिखता है उस से कहीं ज्यादा गोरा और पतला है। एक बार संजीत को पहचान लिया तो साथ में महेश सिन्हा जी हैं पता ही था। एक बार फ़िर परिचय और सुबह की चाय का दौर चला पर पता नहीं क्युं हम आज चाय पीने के मूड में नहीं थे। बम्बई में तो सुबह चाय की प्याली से होती है पर यहां… पता नहीं क्या हुआ? हम इतने उत्सुक थे सब से मिलने के लिए( नहीं, सही शब्द तो एक्साइटेड है) कि भूख प्यास सब भूल चुके थे( याद है न हमने एक रात पहले भी खाना नहीं खाया हुआ था)

थोड़ी ही देर में मेहमानों की दूसरी और अंतिम खैप आयी जिसमें अनूप जी, विवेक, इत्यादि लोग उतरे। एक बार फ़िर मैं और अविनाश जी दौड़ पड़े मेहमानों का स्वागत करने के लिए। अनूप जी को तो मैं उनकी तस्वीरों से जानती थी, उन्हों ने भी पहचानने में देर नहीं लगाई। विवेक को भी हम पहचान गये, लेकिन उनके साथ आये एक बहुत आकर्षक, शालीन युवक को हम पहचान नहीं पाये। पता चला ये भड़ास वाला यशवंत है। येएएएएएएए? एक बार फ़िर चश्मा साफ़ किया। हमारे ब्लोगिंग के शुरुवाती दिनों में भड़ास के बारे में गढ़ी नकारत्मक इमेज आखों के सामने घूम गयी। हमने तो सोचा था कि भड़ास जैसा ब्लोग लिखने वाला कोई विलेन टाइप खड़ूस बंदा होगा, पर ये बंदा तो बड़ी शालीनता से सबसे मिल रहा था। खैर हमसे ज्यादा बात तो होने का कोई सवाल ही नहीं था क्युं कि वो न हमें जानता था न उसने कभी हमारे बारे में सुना था। तब तक सिद्धार्थ जी भी आ गये और इतनी गर्मजोशी से हम सब से मिले कि मन की सारी हिचकिचाहट जाती रही। कुछ ही देर में कविता जी और रचना जी (सिद्धार्थ जी की पत्नी) और सत्यार्थ ( उनका बेटा और वहां पर सबसे छोटा ब्लोगर) भी आ गये। सत्यार्थ इतना स्मार्ट बच्चा है कि उस से बतियाते हुए समय कैसे गुजर जाए पता ही नहीं चलता।

अनूप जी ब्लोगर कम और रिपोर्टर ज्यादा लग रहे थे, लैपटॉप और कैमरे से लैस, आते ही उन्हों ने सब की फ़ोटो लेना शुरु कर दिया। कविता जी कहती रह गयी कि अभी तो मैं सो कर उठी हूँ पर वो कहां मानने वाले थे। कविता जी, अजित जी और मैं ऐसे घुलमिल गयीं जैसे बरसों  से सखियां हों।

एक और सुखद आश्चर्य हमारे लिए था विवेक सिंह। मुझे याद है कुछ महीने पहले चिठ्ठा चर्चा पर उसकी पोस्ट पढ़ा करती थी और उसकी टिप्पणियां भी किसी कोल्हापुर की मिर्ची से कम न होती थीं पर ये जो बंदा हम से बतिया रहा था( नहीं नहीं शरमा रहा था) उसके तो गले से आवाज ही नहीं निकलती थी। उस से ज्यादा ऊंची आवाज मेरी और कविता जी की थी। मैं और कविता जी एक साथ बोलीं कि विवेक तुम्हें देख तो मन में वात्सल्य उमड़ता है। उसने एक शरमीली सी मुस्कुराहट के साथ हम दोनों के वात्सल्य को स्वीकार किया। थैंक्यू विवेक्।  

सभाग्रह का विवरण आप दूसरों से सुन ही चुके हैं। शाम को काव्य संध्या का आयोजन था। करीब सात बजे वही खुले चबुतरे पर कविताओं का आनंद लूटने का निर्णय हुआ। अब वहां हवा तो थी पर लाइट थोड़ी कम थी। कविताओं का आनंद देने और लूटने आलोक धन्वा जी और दूसरे टीचर्स भी आ गये। दर असल वो लोग हम सब के साथ ऐसे घुल मिल गये जैसे दूध में शक्कर। एहसास ही नहीं होता था  कि वो लोग ब्लोगर नहीं हैं। उनमें से एक ने कविता पाठ करने के लिए जेब से टार्च निकाली और फ़िर तो जिस को कविता पढ़नी होती थी वो टार्च उसके पास पहुंच जाती थी। कविताओं के बाद गप्पों का दौर चला । किसी का मन नहीं कर रहा था सोने जाने के लिए। खूब मजा आया…अनूप जी, जो सबकी मौज लेते रहते है, उनकी कविता जी ने ऐसी मौजिया खबर ली कि उनसे कुछ बोलते न बना।

एक एक कर सब अपने अपने कमरों की तरफ़ बढ़ गये, सिर्फ़ कुछ लोग ही बच गये थे। शैलेश, यशवंत और गायत्री मेरी बायीं तरफ़ बैठे गपिया रहे थे और कविता जी, अजित जी और ॠषभ जी मेरे दायीं तरफ़ थे। अचानक मैं मुड़ी और यशवंत से कहा मुझे आप से कुछ पूछना है। अब ये उनके लिए अप्रत्याशित था, उन्हों ने हमें टालने के लिए कहा कि सुबह पूछ लीजिएगा। शैलेष भांप रहा था कि यशवंत हमें जानते नहीं इस लिए शायद संकोच कर रहे हैं उसने यशवंत के आगे हमारी तारीफ़ के पुल बांधने शुरु ही किए थे कि यशवंत ने बात काट दी और कहा अच्छा अच्छा आप पूछिए क्या पूछना है? हमने मन ही मन यशवंत को कोसा, अपनी तारीफ़ सुनने का एक मौका जो हाथ से चला गया, लेकिन प्रत्यक्ष रूप से बोले कि हम बहुत देर से देख रहे हैं कि आप बहुत ही संस्कारी और शालीन व्यक्ति हैं फ़िर आप एक भड़ास पर एक बिगड़े हुए, गाली बकते हुए ऐसे व्यक्ति की इमेज क्युं प्रस्तुत करते हैं जिस से लोग बात करते हुए भी डरें। वो थोड़ा मुस्कुराया और करीब पंद्रह मिनिट तक डिटेल में बताता रहा कि भड़ास अब ब्लोग नहीं रहा एक वेब पोर्टल बन चुका है और अब बिल्कुल वैसा नहीं जैसा पहले था। अपने निजी जी्वन के बारे में काफ़ी कुछ बताया, उसकी बातें सुन हमें सत्तर के दशक का यंग ऐंग्री अमिताभ बच्चन याद आ रहा था। हमने उसे बिन मांगी ढेर सारी सलाहें दी जिसकी उसे बिल्कुल जरूरत नहीं थी पर हम अपनी आदत से मजबूर हैं। उसने अच्छे संस्कारी बच्चे की तरह वो सब सलाहें सहेज कर जेब में रख लीं। दूसरे दिन तक हम अच्छे दोस्त बन गये थे और यशवंत ने अपने मंहगे मोबाइल से जो फ़ोटो खींचे थे उसमें से कई हमसे साझा किये।थैंक्यू यशवंत

फ़िर शैलेश भारतवासी से गपियाये, हिन्द युगम  की  भविष्य की योजनाओं के बारे में       जाना। अच्छा मजेदार बात ये है कि हमारे ब्लोगिंग के शुरुवाती दौर में जितनी बहस/ झगड़ा हिन्द युगम के नियमों को ले कर मैं ने शैलेश से किया है उतना किसी और ने मुझसे किया होता तो मैं उस से दूर रहती, लेकिन शैलेश आज तक न सिर्फ़ हमें झेलता है बल्कि सम्मान भी देता है। यहां तक कि हिन्द युगम की आगामी योजनाओं के बारे में भी वो हमारी राय जानना चाहता था। हर बार जब भी वो हमें मिलता है उसके पास हमें देने के लिए कोई न कोई उपहार जरूर होता है, इस बार भी उसने कुछ पत्रिकाएं और सी डीस  भेंट की। शैलेष मैं तुम्हारे स्नेह से अभीभूत हूँ।

संजय बैंगानी को मैं पहली बार देख रही थी। वो अपनी उम्र से करीब दस साल छोटे लगते हैं( उनकी उम्र आप उनसे ही पूछ लीजिएगा मुझे तो सिर्फ़ सत्ताइस तक के लगे…J) उनसे भी तरकश को ले कर कई बातें हुईं। अजित जी ने उनसे वैब साइट बनाने की पैचीदगियों पर चर्चा की और हम भी लाभान्वित हुए।
 प्रवीण पाण्डे जी से मेरी पहली मुलाकात पिछले महीने बैंगलोर में हुई थी। इस लिए उनके बारे में अगली पोस्ट में।
 
प्रियंकर पालिवाल भी अपनी फ़ोटो में जितने मोटे और अधेड़ उम्र के लगते है वास्तव में उसके आधे भी नहीं। वो साहित्यकार हैं और हम उस मामले में अप्रवासी से। उनसे हमारी बातचीत हुई जब सिद्धार्थ जी ने चार ग्रुप बना दिये थे आचार संहिता पर विचार विमर्श करने के लिए। हम जो पेपर्स बना कर ले गये थे हमने ग्रुप के सामने रखे। रवींद्र जी और मेरे पेपर में बहुत समानता थी सो सारे पोइंटस मिला के एक पेपर किया गया। उसके अलावा हम बलोग एथिक्स पर हुई मनोवैज्ञानिक शोध पर भी एक पेपर तैयार कर के ले गये थे। निश्चित ये किया गया कि अगर समय रहा तो हमारे ग्रुप में से दो पेपर पढ़े जायेगें। प्रियंकर जी से ज्यादा बात तो नहीं हुई लेकिन दूसरे दिन विदा लेते समय उनका ये कहना कि वो हमारी शख्सियत से प्रभावित हुए हैं हमारी सुनहरी यादों का हिस्सा बन गया।

इसी तरह से आलोक धन्वा जी का मैं ने नाम भी नहीं सुना हुआ था। जब उनके परिचय में कहा गया कि वो कवि हैं तो हमने कोई खास ध्यान न दिया। हाँ इस बात पर हमारा ध्यान जरूर गया कि इस उम्र में भी( करीब अस्सी के तो होगें) और इतनी कमजोर काया के बावजूद उनमें स्फ़ूर्ती और शक्ती भरपूर है। मुझे नहीं याद आता कि मैं ने उन्हें अपनी कुर्सी पर दो मिनिट से ज्यादा बैठे देखा हो। बात बात पर वो उठ कर अपने कमरे की तरफ़ दौड़ते जाते थे और कुछ न कुछ लाते रहते थे। मुझे उनके साथ बैठने का मौका मिला दूसरे दिन जब हमारे वहां से निकलने में मुश्कि
मेरा छुटकु ब्लोगर दोस्त सत्यार्थ अपनी असिस्टेंट रचना जी के साथ 
ल से एक घंटा रह गया था। सत्यार्थ को चोट लग गयी थी। वो दौड़े हुए गये और बेन्डेड ले आये साथ में चॉकलेट भी। हमारे मुंह से बेसाख्ता निकल गया और हमारे लिए उन्हों ने सुन लिया लेकिन सोचा कि शायद पास बैठी गायत्री ने कहा है, आखिरकार वो सबसे छोटी जो थी ग्रुप में। वो फ़िर दौड़े गये और एक और चॉकलेट ले आये। हम तुनके कि मांगी तो हमने थी। उनके पास और चॉकलेट नहीं थी। बड़े स्नेह से मेरे पास आ के बैठे और बोले आप को अगली बार ले दूंगा…हा हा हा। अब हमसे असली मानों में परिचय लिया दिया गया। हमने उन्हें बताया कि हम उनकी रचनाओं से वाकिफ़ नहीं ( भले पूरा परिसर उनकी रचनाओं का गुणगान कर रहा था) लेकिन अब वापस जा कर पढ़ेंगें। किसी बात पर उन्हों ने कहा आप और हम अब इस उम्र में…हम फ़िर तुनक गये ( उम्र होगी जी आप की यहां तो दिल बच्चा है जी) वो हंस दिये। जब जाने का समय आया तो अपनी वर्द्धावस्था के बावजूद वो सात आठ सीढ़ियां उतर कर हमें विदा करने आये और कहने लगे मैं ने आप जैसा सरल व्यक्तित्व नहीं देखा मैं आप को कभी भूल नहीं पाऊंगा और जब भी बम्बई आया आप से जरूर संपर्क करूंगा। ऐसा व्यक्ति जो शायद सेलेब्रेटी है वो ऐसा कहे सोच कर ही हम नतमस्तक हो जाते हैं। उनकी आवाज अब भी मेरे कानों में गूंज रही है।

लौटने का समय जैसे जैसे नजदीक आ रहा था हम चिंतित हो रहे थे। करीब पांच बार सिद्धार्थ जी को याद दिलाया कि मेरी ट्रेन साढ़े छ: बजे की है। बम्बइया हिसाब से हम वहां से पांच बजे ही निकलने को तैयार हो गये थे। सिद्धार्थ जी ने आश्वस्त किया कि एक छात्र आप को गाड़ी में बिठा कर आयेगा। आप निश्चिंत हो कर चाय पियें। हम सब के साथ फ़ोटो खिचाने में मस्त हो गये। करीब साढ़े पांच/छ: बजे जब विदा लेने लगे तो सिद्धार्थ जी ने  हमारी तरफ़ एक डिब्बा बढ़ाते हुए कहा ये आप का रात का खाना। उस समय की खुशी और उस समय के एहसास ब्यां करने के लिए तो मेरे पास शब्द ही नहीं। ऐसा लगा मानो मैं इंदौर से अपने छोटे भाई के घर से लौट रही हूँ। इस वर्धा यात्रा ने तो मुझे गाय बना दिया है। हर रोज अपनी तन्हाइयों में मैं इन यादों को निकाल जुगाली करती हूँ ।

 सुना था लेकिन अब एहसास भी हो रहा है कि लेखन भी जिम जाने जैसा है। जब तक जाते रहो शरीर चुस्त दुरुस्त रहता है, जरा सा भी आलस किया और कुछ दिन के लिए छोड़ा तो फ़िर दोबारा खुद को जिम में ले जाना बड़ी टेड़ी खीर है। लेखन का भी यही हाल है। मेरी लास्ट पोस्ट जून में आयी थी। उसके बाद ऐसा नहीं कि मेरे पास लिखने को कुछ नहीं था, अगर कहूं कि वक्त नहीं मिला तो भी सरासर झूठ होगा बस कलम को जंग लग गया था। वर्धा मीट में अनूप जी ने परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य की तरह स्नेह भरी डांट लगायी, फ़िर से कलम उठाने के लिए प्रेरित किया। अपने परिचय में जब हम ने कुछ ज्यादा कहने से संकोच किया तो उन्हों ने मेरी लिखी एक पोस्ट का जिक्र करते हुए याद दिलाया कि किसी जमाने में हम ठीक ठाक लिख लेते थे और अब भी अगर फ़िर से लिखना शुरु कर दें तो ठीक ठाक लिख ही लेगें। तो अनूप जी ये पोस्ट आप को समर्पित- अच्छी है या बुरी आप की किस्मत्…।J
  
निकलने से एक घंटा पहले गपियाते साथी
गायत्री, सिद्धार्थ जी और रचना जी और…:) 
संजीत, सिद्धार्थ और विवेक, पीछे हैं महेश सिन्हा जी
सभाग्रह से चिठ्ठाचर्चा पर जाती पहली पोस्ट( अनूप जी और विवेक) 

45 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

हमें तो आप देवीसम लग रही थीं।

रवीन्द्र प्रभात said...

आभार आपका इस संगोष्ठी में भाग लेने तथा हमसब से अपनापन भरा स्नेह बाँटने के लिए .......

विवेक सिंह said...

आपका और कविता जी का जो वात्सल्य मिला वही तो अब तक भूल नहीं पा रहा । सच कहूँ तो आप दोनों मेरी वर्धा की उपलब्धियाँ हो । अनूप जी से मिलकर तो खैर लगा ही नहीं कि पहली बार मिल रहा हूँ ।

Unknown said...

मैं तो खैर सभी से पहली बार मिल रहा था, लेकिन मैंने सभी को तुरन्त बराबर पहचान लिया था…
======
नोट - लेखों में आग उगलने वाले अक्सर मुस्कराते हुए ही पाये जाते हैं… :)

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

मुझे लगता है कि इस संगोष्ठी के आगे-पीछे के दस दिन मेरी जिन्दगी के सबसे अनमोल दिन हो गये हैं। बार-बार उन पलों को जीना चाहता हूँ जो आपलोगों के सान्निध्य में गुजारे। आपकी पोस्ट पढ़कर अब खुद कुछ लिख पाने का साहस चुकता जा रहा है। अभिभूत हूँ।

सतीश पंचम said...

वाह, एकदम जीवंत प्रसारण।

Kavita Vachaknavee said...
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Kavita Vachaknavee said...

आपने अनवरत लिखती रहे.

- अनूप जी की क्लास लेने का अपना सुख है, विशेषकर यह कि वे सर झुकाए अच्छी बच्चे की तरह डपट सुनते झेलते रहते हैं और कत्तई बुरा नहीं मानते. व्यक्तित्व का यह बड़प्पन बड़ी चीज है. वैसे इस बार आप साथ थीं तो खबर और मौज लेने में कुछ अधिक आनंद आया.


- अहा... आनंद से अभिभूत हूँ. इस सम्मिलन के साथ आत्मीयता का ऐसा अकूत खजाना बटोर लाई हूँ कि क्या कहूँ..


बस प्रार्थना है कि हरसिंगार सदा महमहाते रहें, खिलें रहें .. हथेलियाँ भरी रहे इस रूप, रस, गंध व स्पर्श से .

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

पहले सिद्धार्थ दम्पति ने न आने पर उलाहना दे दे अपराधबोध से ग्रसित कर दिया और अब आप की पोस्ट ने उसे पुख्ता कर दिया।

चलिए कोई बात नहीं।
छोटी सी है दुनिया पहचाने रास्ते हैं
तुम कभी तो मिलोगे, कहीं तो मिलोगे ...

Kavita Vachaknavee said...

"आपने" को "आप" पढ़ा जाए.

शेफाली पाण्डे said...

aisa laga ki ham bhi pahuch gae ...

आभा said...

आप तो हर हाल में काम की आदमी हैं.आप का सहज व्यवहार..। वर्धा का सुखद अनुभव पढ़ कर अच्छा लग रहा है, और आप का गाय होना भी ... सब का सही सही परिचय देने के लिए आभार।

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा said...

अब भला आप सबने हमारे लिखने को कुछ छोड़ा है क्या? [ सन्दर्भ : आपका प्रश्न - 'अब हमारे लिए क्या छोड़ा है'!]

दीपक 'मशाल' said...

कविता मैम को लन्दन पहुँच कर फोन लगाता रहा पर फोन बंद मिला... बाद में पता चला कि वो यहाँ थीं... कल्पना कर सकता हूँ कि क्या माहौल रहा होगा... आप कभी भी लिखें कलम में.. अरीईई... कीबोर्ड में वही धार मिलती है.. :P
अब बार-बार पूछा मत कीज्ये कि ''कुछ हम कहें????'' आप जैसे वरिष्ठों को ये शोभा नहीं देता.. बस कहते रहा कीजियेगा.. :)

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन विवरण रहा...आनन्द आ गया.

प्रवीण त्रिवेदी said...

अफ़सोस हो रहा है ....बस !!!

Anonymous said...
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Anonymous said...

छिनाल फेम विभूति नारायण राय द्वारा प्रायोजित / पोषित कार्यक्रम में भाग लेकर विदुषी महिलायें धन्य धन्य हुईं :)

अविनाश वाचस्पति said...

ये हुई न ........
गाय

प्रणाम सभी को सभी की ओर से।
खेलगांव में बंदर महाशय से चैटिंग
अवश्‍य मिलिए यह सबका इंतजार कर रहा है।

संजय बेंगाणी said...

फिर से यादें ताजा हो गई....वैसे भूला भी कब था. आपसे बाते करना अच्छा लग रहा था. मैं आपसे घंटों बतिया सकता था :)

जब सब ब्लॉगर मिले, गूट-वाद सब ताक पर रह गए. स्नेह देखते ही बनता था.

यशवंत सिंह yashwant singh said...

लेकिन माताश्री, एक बात खटक रही है कि आपने वर्धा के सबसे युवा व्यक्ति को सबसे बूढ़ा बता दिया. आलोक धन्वा जी सुन लेंगे तो आपको कभी माफ न करेंगे :)
बहुत प्रेम से लिखा है आपने.
शुक्रिया

डॉ महेश सिन्हा said...

आपको झगड़ना भी आता है !!
मेरे वर्धा आने में आपका बहुत बड़ा रोल रहा है :)

नीरज गोस्वामी said...

कमाल करती हैं अनिता जी आप...वर्धा तक चली गयीं और खोपोली तक नहीं आ पायीं...खैर सोच रहा हूँ आपको यहाँ बुलाने के लिए एक ब्लोगर सम्मलेन यहाँ रखना पड़ेगा...:-)
आपकी कलम से वर्धा की पूरी खबर बहुत रोचक अंदाज़ में मिली...वहां न पहुँच पाने का गम और गहरा गया...अनूप जी ने सही कहा है आपसे आप लिखती रहा करें...कलम को विश्राम दें लेकिन इतना लंबा भी नहीं...
अगली पोस्ट का इन्तेज़ार है...

नीरज

अजित गुप्ता का कोना said...

अनिता जी, यह यात्रा वास्‍तव में जीवन का नया अनुभव है। जहाँ हम एक दूसरे को नहीं जानते हुए भी जानते थे। लेकिन कितना जानते थे? मन भी न जाने कैसी छवि अपने आप ही निर्मित कर लेता है? जब वास्‍तविकता से पाला पड़ता है तो लगता है कि अरे हम तो यह समझे बैठे थे। वैसे हम स्‍वयं भी अपने आपको कहाँ जान पाते हैं। पता नहीं कब कैसा व्‍यवहार कर बैठते हैं। इसीलिए तो आप कह रही हैं कि हमें गाय बना दिया। बढिया लिखा है आपने।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वर्धा सम्मेलन का बेहद आत्मीय संस्मरण है ये. हर पोस्ट को पढने के बाद खुद के वहां न पहुंच पाने पर अफ़सोस में डूब जाती हूं. कविता जी ने अनूप जी की मौज ली.... सोच के ही मन आनन्दित हो गया..कोई तो हो अनूप जी की मौज लेने वाला :)

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आपकी दृष्टि से देखना भी अच्छा लगा वर्धा सम्मेलन।

Sanjeet Tripathi said...

वाह आपने तो पल-पल का विवरण दे दिया। वाकई सबसे मिलना सुखद रहा।

ल्लो कल्लो बात, आपको मैं पतला दिखता हूं, यहां मै यह सोचकर परेशान हूं कि तोंद दिखने लगी है।
वैसे मुझे आश्चर्य हुआ कि आप मुझे पहचान ही न पाईं अचानक से।
अब अगली किश्त का इंतजार

ZEAL said...

.

सोचती हूँ , यदि मैं आप लोगों से मिली तो कैसे पहचानूंगी। एक बात तो तय है की जो मुस्कुराते हुए मिलेंगे वो सुरेश जी ही होंगे।

अनीता जी , इस प्यारी पोस्ट के लिए आभार , बहुत ध्यान से पढ़ा और खूबसूरत चित्रों को ह्रदय में संजो लिया।

.

शरद कोकास said...

एकेडेमिक विवरण से हटकर यह विवरण अच्छा लगा ।

Anita kumar said...

रवी छाबरा जी मेरे ब्लोग के अब्लोगर पाठक हैं। उनकी टिप्पणी में मेल में आयी।
HI
Nice experience
How do I join this group ?
Regards
Ravi

और मेरा जबाव
रवी जी
आप आए मेरे ब्लोग पर देख कर बहुत अच्छा लगा, आप का इस ग्रुप में स्वागत है। इस ग्रुप में अलग अलग प्रोफ़ेशन के लोग हैं अलग अलग प्रांत के लोग हैं लेकिन सब हिन्दी प्रेमी हैं और ब्लोगर हैं। बस यही करना है, अपना ब्लोग बनाइए, और कुछ भी लिखिए कारवां खुद ब खुद आप के दरवाजे पर पहुंच जायेगा। और मुझसे ज्यादा खुशी किसी और को क्या होगी अगर आप हम सब के साथ हो लिए। ब्लोग बनाने में कोई जानकारी चाहिए हो तो मैं हाजिर हूँ या ऐसे लोगों से मिलवा दूंगी जो हिन्दी में लिखना भी सिखा देंगे और ब्लोग भी बनवा देगें।
अनीता

Anita kumar said...

मेरे ब्लोग पर आये सभी मित्रों की मैं तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ ।

दोस्तों लगता है मेरा ब्लोग भी सेलिब्रेटी की लिस्ट में आ गया। ये पहली बार है कि किसी अनामी व्यक्ति ने मेरे ब्लोग पर टिपियाने ( नहीं जहर उगलने ) की जहमत उठाई है। आप का मकसद मुझे आहत करना था तो बता दूं कि आप की सोच से मैं आहत हुई हूँ। आशा है इस से आप को खुशी मिली होगी।

Unknown said...

बेनामी भाई -
खुलकर लिखो यार, छिपने की क्या जरुरत है? यशवन्त या विभूति कोई खा तो नहीं जायेंगे तुम्हें…

महिलाओं के शोषण की बात चली है तो थोड़ा दूसरे मोहल्लों में भी झाँक आओ कि उधर क्या गुलगपाड़े हो चुके हैं… :)

यहाँ इस ब्लॉग पर इस तरह के कमेण्ट की कोई जरुरत ही नहीं थी…

Girish Kumar Billore said...

अच्छी रपट

Asha Joglekar said...

Bada achcha laga aapka ye wardha goshthi sansmaran padh kar. hume aisa laga ki hum bhee vahin the.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

हम्म यूं लगा कि मैं भी वहीं कहीं था. सजीव.

Anonymous said...

वर्धा यात्रा के बहाने आपकी छमाही ब्लॉग पोस्ट तो आई :-)

11-16 अक्टूबर पुणे में था, आज लौटा तो यह पोस्ट देख पाया।

जब आप खापोली नहीं जा पाईं तो भिलाई क्या आतीं जो वर्धा से 250 किलोमीटर ही है!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

बहुत दिनों बाद आप को लिखते हुए देख प्रसन्नता हुई डॊक्टर साहब। आशा है सिलसिला जारी रहेगा :) दशहरा की शुभकामनाएं॥

honesty project democracy said...

पता नहीं आपकी यह पोस्ट पढने से कैसे छूट गया था ...खैर आज पढ़ ही लिया ..बहुत ही अच्छा और सच्चाई से लिखी गयी भावनात्मक पोस्ट है यह .....

Priti Krishna said...
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Girish Kumar Billore said...

हर सिंगार के फ़ूल की सुंदरता पर कौन न हो मोहित

Priti Krishna said...
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Priti Krishna said...
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Priti Krishna said...
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Asha Joglekar said...

अच्छी लगी ये रपट, जरा हट के । सारे फोटोज बहुत सुंदर हैं । जरा जल्दी जल्दी आये पोस्ट तो और मज़ा आये ।

callenijams said...
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