Subscribe

RSS Feed (xml)

Powered By

Skin Design:
Free Blogger Skins

Powered by Blogger

सुस्वागतम

आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।

April 27, 2010

ब्लोगर मीट और आलसीराम

बम्बई में हुई कल की ब्लोगर मीट की खबर तो आप तक पहुंच ही गयी। हम ठहरे आलसी बंदे, इसी लिए आप से देर से मुखातिब हो रहे हैं। जब तक घर पहुंचे नौ बज चुके थे और आ कर देखा तो घर पर महफ़िल लगी हुई थी। मेरा परिवार, भाई सपरिवार, सचिन तेंदुलकर और धोनी सब ड्रांइग रूम में धूनी रमाये बैठे थे। कंप्युटर खोलने का तो सवाल ही नहीं उठता था। आधी रात को मैच खत्म होने तक बम्बई की चांद सी सड़कों की बदौलत हम नींद की गौद में जा चुके थे। 

सुबह उठे तो शाम तक टीचर के रोल में रहे ( मजबूरी है भाई, नहीं जी बच्चों को अपने लेक्चर से नहीं मार रहे थे, उनके लिखे ऊट पटांग जवाबों से खुद मर रहे थे।) जब शाम को ब्लोगजगत की दुनिया में लौटे तो पता चला कि रश्मि रविजा जी और विवेक जी तो राजधानी से भी तेज हैं जी सुपर सोनिक जेट, कल रात को ही सब को खबर कर दिये। हम आलसीराम खुश हो लिए कि चलो अब हम उनके पोस्ट पर आये कमैंट से मजा लूटेगें। हम तो कैमरा भी ले जाना भूल गये थे (जानबूझ के:)) लेकिन हमारे मित्रगण हड़काऊगिरी में नंबर एक हैं… लगे हड़काने।

हमने कहा भी, 'अमां यार, रिपोर्ट तो रश्मि जी ने पढ़वा दी फ़ोटू विवेक जी ने दिखला दी अब और भी बोर

होने की ताब बाकी है? हमारे ये परम मित्र 'सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है…।' की तर्ज पर बोले 'देखना है बोर कितना, करने की ताब तुझ में है'। तो जनाब आप को क्या लगता है हम क्या कर रहे हैं? हाँ………ठीक समझे आप:)



स्कूल के दरवाजे पर बोधीसत्व जी, विमल जी, अनिल रघुराज जी और हमारे आगे आगे ही आये अभय जी परफ़ेक्ट होस्ट के रूप में स्वागत में खड़े पाये गये। अब तक तो हम कुछ महसूस नहीं कर रहे थे, लेकिन इन लोगों को देखते ही एक खुशी की लहर दौड़ गयी मानों बरसों से बिछड़े सगे संबधियों से मिल रहे हों। उम्मीद है कि उन्हें भी उतनी ही खुशी हुई होगी।




यूँ तो घुघुती जी ने बताया था फ़ोन पे कि ऐसी ब्लोगर मीट की संभावना बन रही है पर हमारा जाना कुछ निश्चित नहीं था। आभा जी का मेल आया तो ब्लोगर मीट में किस विषय पर चर्चा होगी ये भी स्पष्ट किया हुआ था,'मेरी रचना, मेरी कलम और ब्लोगकी दुनिया'। विषय रोचक लग रहा था। हम अब भी नहीं तय कर पाये थे कि हम जायेगें या नहीं। बाई मिस्टेक यूनुस जी ऑन लाइन दिखाई दिये, बाई मिस्टेक इस लिए कह रहे हैं कि वो इन्विसिबल रहना चाह्ते थे लेकिन लोगों को दिख रहे थे। खैर हमने पूछा जादू आ रहा है? उन्हों ने बताया की वो बम्बई का स्टार ब्लोगर है उसके बिना ब्लोगर मीट कैसे हो सकती है। ह्म्म, अब ये एक और लालच हमारे सामने था, इतने में आभा जी और बोधी जी भी चैट पर आ गये और कहा कि हम पूछ नहीं रहे कह रहे हैं कि आप को आना है। चलो जी, अब हम आलसीराम को निर्णय लेने की कोई जरूरत ही नहीं थी, निर्णय तो लिया जा चुका था , अपने को तो सिर्फ़ हुकुम की तामील करनी थी। सो हमने झट से घुघुती जी की कार को थम्ब डाउन दिखाया और लपक कर उनके साथ हो लिए। बहुत मजा रहा, क्युं कि हम ड्राइव नहीं कर रहे थे, उन अनजान गलियों की भूलभुलैयां बूझने का काम उनके ड्राइवर ने किया और बम्बई के ऐसे दर्शन कराये जो हमने पिछले तीस सालों में नहीं किये थे। रास्ते भर ट्रैफ़िक हमारी कार को गलबहियां करता रहा जैसे समुद्री ओक्टोपस। उनका ड्राइवर किसी महायौद्धा की भांति ट्रैफ़िक से जुझता रास्ता बनाता रहा और हम 92 7 एफ़ एम का मजा लूटते चिव्युगम चबाते बतियाते रहे, गुनगुनाते रहे।

दुआ सलाम के बाद हम सब क्लास रूम की ओर चल दिये। क्लास शायद के जी के बच्चों की रही होगी, छोटी छोटी बेन्च और बोर्ड पे लिखा हुआ ब्लोगर मीट। वहां आभा जी और दो महिलाये और पहले से मौजूद थीं जिन्हें हम नहीं पहचानते थे। हम आभा जी से करीब दो साल बाद मिल रहे थे। हमने गौर किया कि वो पहले से भी ज्यादा खूबसूरत दिख रही हैं, एकदम सौम्य, धीर गंभीर पर स्नेहमयी और बोधी जी तो मेहमान नवाजी में निपुण लग रहे थे। हम क्लास में सबसे पीछे की बेन्च पर जा के बैठे, घुघूती जी बीच बीच में कान में पूछ रही थीं ये कौन हैं? हम फ़ुसफ़ुसा के बता रहे थे ये विमल जी हैं, ये अनिल रघुराज जी, ये विवेक जी। विवेक जी को मैं पहली बार देख रही थी लेकिन तुरंत पहचान लिया( उन्हों ने अपना सर मुड़ाने पे पोस्ट जो लिखी थी…:) )




परिचय का दौर

जैसा रश्मि जी ने बताया परिचय का दौर कई बार शुरु हुआ, चर्चा के विषय की तरफ़ मुड़ा, यूनुस जी की लेट एन्ट्री से कुछ ठिठका, आगे बड़ा, राज सिंह जी की एन्ट्री से फ़िर ठिठका, टी ब्रेक हुआ और फ़िर दोबारा शुरु हुआ। अंत में परिचय और चर्चा का विषय आपस में चाइनीस नूडलस की तरह घुलमिल कर हिन्दी चीनी भाई भाई का नारा लगाने लगे।


परिचय आरंभ हुआ विभा रानी जी से, वो इन्डियन आइल में काम करती हैं, फ़िर आया विवेक जी पर। विवेक जी ने अपने ब्लोगस का परिचय दिया और बाकि परिचय ऐसे दिया जैसा बायोडेटा में लिखा रहता है, शायद थोड़ा झिझक रहे थे कि कितना खुलें…हमने थोड़ा चाबी मारने का काम किया, उनके भविष्य के प्लान के बारे में बोलने को उकसाया( जो हमें मालूम था)। मैं और विवेक जी इस बात से पूर्णत्या सहमत है कि आज एक बहुत ही लाजवाब कैरियर अगर है तो वो ये कि आप गॉडमेन बन जाइए, मिनिमम लागत और ढेरों पैसा और ऐशो आराम्…कोई बॉस का झंझट नहीं। विवेक जी का आध्यात्म और पौराणिक कथाओं की तरफ़ काफ़ी झुकाव है, उस पर वो एक ब्लोग भी चलाते हैं। हमने उन्हें देवदत्त पटनायक की किताबें पढ़ने की सलाह दी और यू ट्यूब पर भी उस के लेक्चर देखने को कहा। जो उन्हों ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।


राजसिंह और नितीश कुमार


फ़िर ये परिचय आभा जी, ममता जी से घूमता हुआ राजसिंह जी पर पहुंच गया। रश्मि जी बता ही चुकी हैं कि राज सिंह जी ने आते ही हांक लगायी थी ' ओह! अनिता जी आप भी आयी हैं?' और आश्चर्य से हमारी आंखे चश्मे के बाहर गिरते गिरते बचीं। हम ऐसे अचंभित हुए कि बेवकूफ़ी के सवाल पूछने लगे, 'आप कौन?' अरे समझने की बात है, ब्लोगर मीट में आया तो ब्लोगर ही होगा, कैसा बेवकूफ़ी का सवाल था? खैर, राज सिंह जी ने हल्की सी मुस्कान के साथ हमारी जिझासा शांत की, अपने ब्लोग का परिचय दिया, अपने परिचय में जोड़ा कि मैं जनता दल बम्बई शाखा का प्रमुख हूँ। अभय जी ने पूछा कौन सा जनता दल, नितीश कुमार वाला? उन्हों ने हामी भरी। हमने झट से प्रशन दागा, ये नितीश कुमार अपना ब्लोग अंग्रेजी में क्युं लिख रहा है? अब चौंकने की बारी राज सिंह जी की थी। पक्के राजनेता की तरह उन्हों ने हमारे प्रश्न की बाल को धीरे से खेला और कहा कि बिहार की आम जनता भी अंग्रेजी जानती है। हमने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि ये राजनेता भाषा की बॉल से खेलते ही रह जायेगें, क्या?
'बत्ती के नीचे, मेज के ऊपर, ले टपाटप, दे टपाटप'( टेबल टेनिस) और अंग्रेजी चुपचाप राष्ट्र भाषा का स्थान ले उड़ेगी।

तब तक बोधी जी ने चाय का दौर शुरु कर दिया और हम चाय की चुस्कियां लेते हुए जादू के जादू में खो गये। रश्मि जी से परिचय लिया, मन ही मन उनकी खूबसूरती को सराहा, उनके व्यक्तित्व को सराहा, और क्लास वापस लग गयी सब लोग जो क्लास के बाहर गये थे लौट आये। राज जी ने कहा, ' अनिता जी, मैं ने नितीश कुमार के सचिव को फ़ोन कर दिया है और कह दिया है कि उनके ब्लोग का हिन्दी में अनुवाद करवाओ'।


अहा! हम सोच रहे थे इसे कहते हैं ब्लोगिंग की ताकत। घुघुती जी, विमल जी, अनिल जी और रश्मि जी के परिचय के बाद हमसे कहा गया कि हम अपना परिचय दें। हमने कहा कि हमें तो सब जानते ही हैं वहां, लेकिन रश्मि जी नहीं मानी और कहा कि रुल इस रूल…सब को अपना परिचय देना है तो आप को भी देना होगा।


अब कहना कुछ ऐसा था जो ज्यादातर लोगों को न पता हो नहीं तो सब बोरियत की बली चढ़ जाते। तो हमने कहा कि भाई जो बातें जगजाहिर हैं उन के बारे में क्या बोलना, जो विषय दिया गया है उस पर कुछ कहते हैं, कुछ घुघुती जी ने जो कहा उस पर रिएक्ट करते हैं।


चैटिंग


अक्सर हमने लोगों नाक भौं सिकोड़ते, कहते सुना है कि भैया हम तो चैटिंग से दूर ही रहते हैं। बेकार की चीज है। हम इस बात से सहमत नहीं। हमें लगता है कि ये लोगों के मन के पूर्वाग्रह हैं। अगर हिन्दी भाषा के हिसाब से भी देख लें तो ब्लोग लिखता हूँ, मेरा ब्लोग है ( ब्लोग पुर्लिंग है) उसे लोग सम्मान की दृष्टि से देखते हैं, फ़क्र महसूस करते हैं कि हम ब्लोगर हैं। चैट की जाती है( स्त्रिलिंग है) उसे वो सम्मान प्राप्त नहीं। इन फ़ेक्ट ऑलमोस्ट अपवित्र मानी जाती है। लेकिन सवाल ये है कि ब्लोगिंग क्या है- संवाद का एक जरिया है, तो फ़िर चैटिंग क्या है- संवाद का एक जरिया। मैं आज कल नियमित नहीं लिख पा रही और फ़िर भी लोग मुझे भूले नहीं… क्युं? इस लिए नहीं कि मैं बहुत अच्छा लिखती थी, बल्कि इस लिए कि मैं आज भी कई ब्लोगर दोस्तों के साथ संवाद बनाये हुए हूँ, कैसे? चैटिंग से , टिप्पणी से। तो क्या चैटिंग बुरी चीज है। मुझे तो नहीं लगता, आप बतायें…।


वर्चुअल वर्ड बनाम रियल वर्ड




अभय जी ने अपना विचार सामने रखा कि रियल वर्ड के रिश्ते ज्यादा संतुष्टी देने वाले, ज्यादा पुखता होते हैं और वर्चुअल वर्ड के रिश्तों में वो बात नहीं होती। लेकिन हमें लगता है कि ये पूरा सच नहीं । किताबों में तो मैं ने भी यही पढ़ा है कि रियल वर्ड के रिश्ते ज्यादा पुख्ता होते हैं और वर्चुअल वर्ड के रिश्तों का क्या वजूद्। आप का पी सी नहीं चल रहा। मोबाइल में बैलेंस नहीं तो वर्चुअल वर्ड के रिश्ते तो हवा हो गये और मुसीबत के समय पास पड़ौस ही काम आयेगा, वर्चुअल वर्ड के दोस्त नहीं। ये बात तो सच है।


लेकिन उन खबरों का क्या जो हमने अखबारों में पढ़ी हैं । बम्बई की ही महाराष्ट्रियन लड़की को नेट पर पाकिस्तानी लड़के से प्यार हो गया और उन्हों ने शादी भी कर ली, नेट पर ही हुई बातों से किसी ने किसी को आत्महत्या करने से रोका, वगैरह वगैरह्। ये नेट कई वर्द्ध व्यक्तियों का मसीहा बन उनके अकेलेपन का साथी बन रहा है। हमारे हिन्दी ब्लोगजगत को ही देख लें तो ब्लोगर मीट की शुरुवात तो नेट से होती है, आत्मियता बड़ती है और मिलने की इच्छा जागती है। बलोगजगत में जो तू तू मैं मैं होती है वो क्या हमारे ऊपर असली असर नहीं छोड़ती? अखबार पढ़ कर तो जर्नलिस्ट को मिलने की इच्छा नहीं जागती। लेकिन ये मामला इतना पेचीदा है कि इसका कोई सीधा सीधा हा या न में उत्तर देना कठिन है, है न? आप को क्या लगता है?


ब्लोगिंग का प्रभाव




एक बात जो वहां उपस्थित ज्यादातर लोगों ने मानी वो ये कि हम सब नेट या कहें ब्लोग लत से पीड़ित हैं। और अगर अपने दिन का या जिन्दगी का एक बड़ा हिस्सा नेट के नाम कर रहे हैं, परोक्ष या अपरोक्ष रूप से, तो ये मुद्दा बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि ब्लोगिंग हमें किस तरह प्रभावित कर रही है।


घुघुती जी का कहना था कि ब्लोगिंग से पहले उनकी अपनी कोई पहचान नहीं थी, उनकी पहचान उनके पति से थी, उनका सामाजिक दायरा पति के सहकर्मियों से जुड़ा था और वो खुश हैं कि ब्लोगिंग ने उन्हें अपनी एक पहचान दी है और अपने मित्र दिये हैं। मैं भी लगभग उनकी बात से सहमत थी।


एक पहचान


मेरी परिस्थति थोड़ी बेहतर है। मेरी ब्लोगिंग से पहले भी अपनी एक पहचान थी, प्रोफ़ेशन की वजह से पति से अलग भी सहेलियों का एक गुट है। लेकिन फ़िर भी हम भी कहां तक आजाद थे। कॉलेज में हम किस के साथ काम करेगें, घर पर कौन हमारे पड़ौसी होगें, कौन हमारे रिश्तेदार होगें, ये हम नहीं निश्चित कर सकते, और हम भी अपनी रियल जिन्दगी में कुएं के मेढक के समान थे। हमें उतना ही आकाश नजर आता था जितना हमारे कुएं के ऊपर था। अपने आसपास वही लोग, वही बातें।




ब्लोग की दुनिया में आने के बाद हमें धीरे धीरे एहसास होने लगा कि अपने ही देश में मेरे अपने देशवासी कितनी अलग अलग लेवल पर जीते हैं, उत्तर भारत में ही संस्कृति के कितने अलग अलग रूप है, छत्तीसगढ़, झारखंड मेरे लिए सिर्फ़ अखबार में पढ़े जाने वाले नाम थे। भावनात्मक रूप से मैं उनके साथ नहीं जुड़ी हुई थी। लेकिन अब ब्लोगजगत में वहां रहने वाले ब्लोगर साथी मेरे मित्र हैं और ये राज्य मेरे मानसपटल पर अब भारत का एक अभिन्न अंग हैं। संजीत अगर ब्लोगर न होता तो माओवादी समस्या के बारे में मैं ने शायद गहराई से सोचा न होता। संगीत और खास कर फ़िल्मी गीत तो बचपन से मेरी जान रहे हैं लेकिन यूनुस और मनीष कुमार जी के ब्लोग पर जा कर मैं महज श्रोता से फ़िल्मी संगीत की शिष्या बन गयी और उन बारीकियों की तरफ़ ध्यान देने लग गयी जो पहले कभी न सोचा था। मेरा आनंद दूना हो गया। अजित वेडनेकर जी के शब्दों के सफ़र ने मेरा ज्ञान लीपस एंड बाउंडस में बढ़ाया और शब्दों की उत्त्पति के बारे में मेरी रुचि जगा दी, इसके पहले मैं ने इसके बारे में कभी न सोचा था। अनूप शुक्ला जी की पोस्टस क्रिएटिव राइटिंग की क्लासेस लगती हैं तो कविता जी के बेलेसंड लेख मुझे हदप्रद कर जाते हैं। क्या नहीं है यहां? यू नेम द टॉपिक और कोई न कोई उसके बारे में लिख रहा होगा।




कहने का तात्पर्य ये कि ब्लोग की दुनिया में आने के बाद


1) मेरी अपनी सोच विकसित हुई, ज्ञान बढ़ा,

2) कई पूर्वाग्रह टूटे, और

3) पहली बार भारी संख्या में वैरायटी मिली जिसमें से मैं दोस्त चुन सकती थी।

4) मैं ने ये भी देखा कि रियल वर्ड में भी जब लोगों को पता चलता है कि

मैं ब्लोगिंग करती हूँ तो उनकी आखों में एक अलग प्रकार की आदर की भावनादेखती हूँ

5) मैं खुद भी गर्व महसूस करती हूँ कि मैं ब्लोगर हूँ, ये मेरी पहचान का एक अहम हिस्सा बन चुका है

6) ब्लोगिंग जो अभिव्यक्ति की स्वत्रंता देती है वो मुझे अपने सशक्त होने का एहसास देती है और इसमें मैं नारी सशक्तिकरण की बात नहीं कर रही। किसी भी प्राणी के लिए जो इस सिस्टम से लड़ नहीं सकता, जिसकी आवाज दबा दी जाती है अब ब्लोग पर अपनी आवाज वापस पा सकता है।


आशा करती हूँ कि मैं आने वाले कई सालों तक ब्लोगिंग में सक्रिय रहूंगी और मेरी आज के मित्रों के साथ मित्रता कालजयी साबित होगी और अनेक और नये मित्र भी मिलेगें…आमीन।







41 comments:

दीपक 'मशाल' said...

Baap re itni vistrat!!!! blogger meet report hai ya budget?? :)
abhi aadhi padh kar so raha hoon--- shesh bhag kal. ha ha ha

Kavita Vachaknavee said...

"आशा करती हूँ कि मैं आने वाले कई सालों तक ब्लोगिंग में सक्रिय रहूंगी और मेरी आज के मित्रों के साथ मित्रता कालजयी साबित होगी और अनेक और नये मित्र भी मिलेगें…आमीन।"

आपकी सक्रियता बनी रहे, मैत्री सुखद हों, समस्त शुभकामनाएँ।

Udan Tashtari said...

ब्लॉगर मीट की रिपोर्ट के बहाने बहुत सार्थक बातचीत की आपने. उम्मीद है आप सक्रियता बढ़ाती चलेंगी. बहुत बहुत शुभकामनाएँ.

विवेक रस्तोगी said...

अरे वाह अनीता जी क्या लिखा है, क्या लिखा है मजा आ गया, ऐसा लगा कि वापिस से मीटिंग में पहुँच गये हैं :)

अनूप शुक्ल said...

बड़ी विस्तार से चर्चा की ब्लॉगर मीट की। वो तो भला हो इस मुलाकात का जिसके चलते पूरे एक माह सत्ताइस दिन बाद आपकी अगली पोस्ट आई! बधाई!

अविनाश वाचस्पति said...

एक मीट वहां हुई और दूसरी

पोस्‍ट का मीटर यहां पर चला

पता हीं नहीं चला

इतनी जायकेदार, लज्‍जतदार

वाह अनीता जी वाह

आपका भी जवाब नहीं

मतलब आपकी पोस्‍ट का

इतना विस्‍तृत फलक

पूरा तंबू ही तान दिया है

हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग को इसी तंबू की जरूरत है

अगली बार जब भी कोई मीट हो

पोस्‍ट आपकी ही हिट हो

इसे कहते हैं कलम का कमाल

शब्‍दों को विचारों से कर दिया मालामाल

कमाल ही कमाल

चारों तरफ कमाल ही कमाल।


हम तो दंग हैं

आपकी ब्‍लॉगिंग के व्‍यापक रंग है

पोस्‍ट मीटिंग जारी रखिएगा

चाहे जितनी (चैट) लिखचीत करती रहें
पर सप्‍ताह में एक पोस्‍ट

चाहे 500 शब्‍दों की ही

अवश्‍य परोसिएगा।

उन्मुक्त said...

'कई सालों तक ब्लोगिंग में सक्रिय रहूंगी' हम भी आप से यही उम्मीद रखते हैं।

दिनेशराय द्विवेदी said...

होती रहे मीट तो कुछ कहती रहें आप।

ghughutibasuti said...

वाह, आपने तो ब्लॉगर मीट के साथ साथ ब्लॉगिंग चिन्तन भी कर लिया। बहुत सही लिखा है। हम सब ब्लॉगर बनकर फिर से बहुत कुछ सीख रहे हैं। दूसरों से तो सीखते ही हैं, साथ साथ अपने विचार भी पहले से अधिक साफ हो जाते हैं। चैटिंग के भी बहुत से लाभ तो हैं ही।
घुघूती बासूती

राजीव तनेजा said...

विस्तृत एवं सिलसिलेवार रिपोर्ट पेश करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय said...

ब्लॉगिंग से इतने लाभ हैं ! तब तो लगे रहना पड़ेगा ।

Unknown said...

वाह अनीता जी, सशक्त और समग्र विवरण. पूरी मस्ती के साथ अपनी और दूसरो की बाते लिखी. मजा आ गया पढने मे.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

ब्लागर मीट की विस्तृत रिपोर्ट पढ कर अच्छा लगा।
आभार

Anonymous said...

बढ़िया रिपोर्ट
गंभीर चिंतन
चुलबुला अंदाज़

कुल मिला कर
हम सब आने वालों वर्षों तक ब्लॉगिंग में सक्रिय रहेंगे

आभा said...

एक अच्छी सिलसिलेवार रिर्पोट के लिए आभार ..

PN Subramanian said...

आपके अंतीं पंक्तियों को पढ़ते हुए "आमीन" कह पड़ा था. और अंत में "आमीन" देख प्रस्सनता हुई. वर्चुअल हमें रियल की और ले ही आता है.शुभकामनायें

कविता रावत said...

Ghar-daftar se fursat nahi mil paati ..padhte-padhte laga jaise hum bhi blogger's meet the.... Blogger's meet ke anubhav samay-samy par uplabdh hote rahte hai... bahut sukhad ahsaas hota hai.....
Bahut shubhkamnayne....

Batangad said...

badhiya, aapne to kafi sawal jawab kar dale

डॉ महेश सिन्हा said...

वाह क्या बात है :)
ब्लाग और चैट में फर्क यह है कि एक मुख्यतः एकांगी सवाद है तो दूसरा द्विआयामी.
ये एक नितांत व्यक्तिगत विचार है .

rashmi ravija said...

वाह..ये है असली रिपोर्टिंग....मैं तो विषयों को बस ऊपर से छूते हुए निकल गयी थी...आपने विस्तार से जानकारी दी....बहुत ही बढ़िया वर्णन
और चैटिंग को मैं भी किसी तरह कमतर नहीं आंकती,यहाँ भी, खुलकर विचारों का आदान-प्रदान होता है. मेरी एक मलेशियन चाट फ्रेंड है, उसके साथ हुई चाट के द्वारा जितना मैं मलेशिया को,वहाँ के रहन-सहन,रीती रिवाज और स्त्रियों की स्थिति को जान पायी हूँ. कोई भी किताब या कितने भी आलेख पढ़कर नहीं जान पाती.
और आप अक्सर पोस्ट लिखा करें. अनूप जी ने बस महीने और दिन बताये...ज्यादा इंतज़ार करवाएंगी तो घंटे भी बता देंगे..:)

Sanjeet Tripathi said...

चलिए इस मीट ने आपको ब्लॉग पर लिखने के लिए मजबूर तो किया, तो फिर क्या यह उम्मीद की जाए कि ऐसी मीट जल्दी-जल्दी होती रहे जिससे आप जल्दी जल्दी लिखती रहें।

;) आपने अपने खास स्टाइल में ब्यौरा दिया है।

मीट की रपट के बहाने आपने जो चिंतन किया है वो बहुत सही है। चैटिंग का भी अपना एक अलग कोना है, इस वर्चुअल वर्ल्ड में तो कई लोग इस चैटिंग नामक बीमारी से ग्रसित भी होते हैं
और उन्हें पता भी नहीं चलता लेकिन आपने यह बात सच कही कि चैटिंग भी संवाद का जरिया ही है।

रही बात वर्चुअल से रियल वर्ल्ड की तो वर्चुअल भी एक माध्यम ही है रियल वर्ल्ड से जुड़े रहने का।

ब्लॉगगिंग के प्रभाव पर आपने जो कहा उससे सहमत हूं।

अंत में
सुम-आमीन!

Manish Kumar said...

अब तक की सबसे बेहतर रिपोर्ट। दरअसल जो लोग दूर बैठे हैं वो सिर्फ लोगों का चेहरा नहीं देखना चाहते हैं बल्कि ये भी चाहते हैं कि जो लोग शरीक हुए उनके बारे में जानें। अच्छा लगा पुराने नामों को एक बार फिर पढ़कर।

शेफाली पाण्डे said...

इस रिपोर्ट पर कौन ना हो जाए फ़िदा ?

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

bhut badhiya reprt anita ji

vandana gupta said...

bahut hi vistrit report.

Anita kumar said...

आप सब मेरे घर आये, मेरी तमाम कौशिशों के बावजूद बोर नहीं हुए, तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ। जैसी मैं ने उम्मीद जाहिर की थी, मेरे सदा के मित्रों ने दोस्ती कालजयी होने का प्रमाण दिया तो कुछ महानुभावों ने पहली बार इस दरवाजे के अंदर झांका। आशा करती हूँ कि वो भी अब आते रहेगें और जो आ कर चले गये हैं अब नहीं आते उन्हें कहना चाहूंगी कि हम अब भी इंतजार है, उम्मीद पे दुनिया कायम है।

आप सब के कमैंट से समझ रही हूँ कि पोस्ट कुछ ज्यादा ही लंबी हो गयी…॥का करें संगत का असर हो गया है, डागदर साब के पास गये थे…वो तो खुद ही बिमार निकले और निठ्ठले बैठे मिले…।:)

संगीता पुरी said...

अच्‍छी रिपोर्टिंग की .. और साथ साथ ब्‍लॉग पर आपका चिंतन भी चलता रहा .. पढकर अच्‍छा लगा !!

डॉ .अनुराग said...

ये अंदाजे बयां दिलचस्प है......आलसीराम की कई खूबियों को बता रहा है ......

मीनाक्षी said...

अनितादी..आलस्य तो किसी भी कोण से नहीं दिखा बल्कि हमारा आलस भागने की फिराक़ में है......ब्लॉगर मीट का इतना सजीव चित्रण पढ कर लगा जैसे हम भी वहीं थे..

डॉ महेश सिन्हा said...

@ anitakumar जी
ये कौन डागदर साहब हैं जो निठल्ले बैठे हैं . देश में इतनी कमी है दागदारों की . कोई केतन देसाई से लिंक तो नहीं है

शरद कोकास said...

अच्छा लगा यह पढ़कर । इस बीच मेरा दो बार मुम्बई आना हुआ । लेकिन मैं किसी से मिल नही पाया । अब अगली बार जब भी आऊँ तो सभी से मुलाकात करूंगा । कृपया यह बतायें कि किस से सम्पर्क करना होगा ताकि सभी एक जगह एक साथ मिल जायें ?

Girish Kumar Billore said...

वाह

शोभना चौरे said...

जब आलसिराम कि पोस्ट इतनी लम्बी है तो फुर्तीले लोगो के क्या हाल ?
खैर पूरी कि पूरी पोस्ट एक ही साँस में पढ़ गई ,रश्मि जी के साथ ही हम लोग भी वही थे ऐसा लगा |ब्लागर के जो फायदे अपने वर्णन किये है हम तो उसके कायल हो गये |आशा है जल्दी जल्दी आपके आलेख [पढने को मिलते रहेगे |क्योकि भलेही हम ब्लॉग जगत में डेढ़ साल पुराने है पर गति बहुत धीमी है ब्लॉग कि |
विस्तृत रिपोर्ट पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा |

वन्दना अवस्थी दुबे said...

ढूंढ के मुम्बई ब्लॉगर-मीट की पोस्टें पढ रही हूं. बढिया रपट.

Unknown said...

"...आशा करती हूँ कि मैं आने वाले कई सालों तक ब्लोगिंग में सक्रिय रहूंगी और मेरी आज के मित्रों के साथ मित्रता कालजयी साबित होगी और अनेक और नये मित्र भी मिलेगें…"
हमारी भी ऊपर वाले से यही दुआ है… मुम्बई जैसी ब्लॉगर मीटिंग देश के कोने-कोने में हों और आपसी प्रेम और विश्वास बढ़े…

देर से टिप्पणी देने के लिये माफ़ी चाहता हूं, लेकिन असल में मैंने दो किस्तों में इसे पढ़ा है और अब कमेंट कर रहा हूं…
आपको एवं आपके परिवार को समस्त शुभकामनाओं सहित…

Vibha Rani said...

अनिता जी, बहुत बढिया. मिलना-जुलना होटल रहना एक नई उमंग को साथ ले कर आता है.

रेखा श्रीवास्तव said...

अनीता जी,

ये ब्लोग्गेर्स मीट तो वाकई एक ऐतिहासिक घटना हो गयी. कितना अच्छा लगा होगा आप लोगों को, मुझे तो पढ़ कर ही अहसास हो रहा है. सबसे बड़ी बात ये की रश्मि, विभा रानी और आप सबकी पोस्ट इस बारे में पढ़ी . लग रहा हैकि मैं वहाँ क्यों नहीं थी?

सतीश पंचम said...

क्या बात है......लेट आने का इतना फायदा तो मिल ही जाता है कि सब की बातें सुनने पढने के बाद अपनी बात को और पुख्ता तरीके से रखा जा सकता है।

खैर,
मुंबई ब्लॉगर बैठकी की पोस्ट दर पोस्ट पढ़ने के बाद इतना जरूर कहूँगा कि हिच अब दूर हो रहा है सभी ब्लॉगरों के बीच से ।

एक दूसरे को ब्लॉगर अब बिना हिचक सीधे ही संबोधित कर रहे हैं और यह एक अच्छा संकेत है।

अच्छी लगी आपकी रिपोर्टिंग।

RAJ SINH said...

अनीता जी ,
नमस्कार !

अब तो आप मानेंगी की आपको जानता हूँ . पहले सिर्फ लिखे से जानता था . ( और आप वैसी ही हैं :) )

वैसे शायद आपके ब्लॉग पर पहली टिप्पणी मेरी होती पर जानबूझ कर नहीं दी .पहले भी कभी नहीं दी कारण अक्सर लेट हो जाता था .( व्यस्तताओं के चलते अक्सर एक दिन ही छुट्टी कर पाता हूँ और उसी दिन सब पढता हूँ ) . और जो बात मैं कहना चाहता हूँ वह अगर औरों की टिप्पणिओं में आ जाती है तो नहीं करता टिप्पणी कि क्या दोहराया जाये .ऐसे ही बहुत से ब्लॉग हैं जिनका मैं मुरीद हूँ और पढता हूँ पर टिप्पणी इसी कारन नहीं करता.आपकी तरह वे भी मुझे नहीं जानते होंगे पर मैं जानता हूँ लेखन से उनके .और एक कारण है की पढना ज्यादा चाहता हूँ लिखना कम .दो सौ ब्लॉग पढ़ शायद अपना एक ब्लॉग लिख लेता हूँ एवेरेज.दूसरे एक प्रवृत्ति सी पाता हूँ की लोग टिप्पणियां करते हैं ,टिप्पणीयाँ पाने को.शायद मैं सोचता हूँ कि गर अच्छा लगे किसी को तो बिना मेरे टिप्पणी किये भी मुझे पढ़ेगा और ले दे वाली मजबूरी भी नहीं रहेगी . हाँ जहां जरूरी समझता हूँ तो ( बिना औरों का रिपीट किये ) लम्बी टिप्पणीयाँ भी करता हूँ.

खैर इस बार पहली टिप्पणी इस लिए नहीं दी ( वैसे तैय्यारी कर ली थी इन्तेजाम के साथ ) कि मेरा कुछ जिक्र आ गया था .a

नितीश के ब्लॉग पर जो आपने चर्चा की उसमे . हाँ मैंने कहा की " बिहार की काफी जनता अंगरेजी जानती है " तो शायद उस व्यंग को आप समझ ही नहीं पायीं . ( आपका दोष नहीं क्योंकि आप तो मुझे जानती नहीं थीं वर्ना जानतीं की मैं गंभीर बातें व्यंग में कहता हूँ .मेरी फिल्म भी बहुत ही गंभीर विषय है पर मैं उसे व्यंग,हास्य ,फार्स में ही बना रहा हूँ क्योंकि मेरा अपना मानना है की व्यंग बन्दूक से भी ज्यादा कारगर हथियार है . और फिल्म भी आज की राजनीति और राजनेताओं पर ही है ) .

दूसरी बात की आपने भी बढियां व्यंग मुझ पर किया इसी आलेख में कि ..... ' पक्के राजनेता की तरह उन्होंने .....................' .
तो पहली टिप्पणी में ही कह जाता तो आपके लिखे की गरिमा शायद कम हो जाती . ( आप समझ सकती हैं कि इतनी टिप्पणिओं में सबों ने कितना आनंद उठाया तो न उठा पाते पाठक ,कुछ विषयांतर हो जाता ) .

हकीकत यह है की नितीश सहित अपनी पार्टी के सभी महत्वपूर्ण लोगों से मैंने निवेदन किया था की ब्लॉग से जुड़ें और अपनी बात सीधे कहें .क्योंकि राजनेता अक्सर कुछ बोल जाते हैं और फिर कहते हैं कि मैंने ऐसा कहा ही नहीं या तोड़ मरोड़ की गयी है ( पक्के राजनेताओं की तरह :) }
औरों ने तो नहीं पर शायद नितीश जी ने मुझे सीरियसली लिया और शुरू किया ब्लॉग. मैं भी चौंका की अंगरेजी में ? अपने सुझाव पर मुझे ही शर्म सी आयी .बिहार के मुख्यमंत्री का ब्लॉग अंगरेजी में ? उनसे संपर्क करने की कोशिश सफल नहीं हो पाई पर सचिव और अपने महामंत्री से इस विषय में अपनी निराशा और शायद गुस्सा भी बताया की यह कैसी विडम्बना ? उन्हें व्यक्तिगत और पार्टी लाईन पर भी लिखा सुझाव और समझाने को की क्या है ये .ब्लॉग खुला मंच है इसलिए इस पर अनुशाषित कार्यकर्त्ता के नाते ज्यादा नहीं कहूँगा पर शायद जल्दी ही आप देखें की हिन्दी अंगरेजी सहित सभी भारतीय भाषाओँ में अनुवाद मिल जायेगा उनके ब्लॉग का.
सच्चाई यह है की हमारे आप जैसे बड़े नेता अपना ब्लॉग लिखते नहीं डिक्टेट करवाते हैं ( गलत कुछ नहीं इसमें इतने बड़े पदभार पर व्यस्तताएं होती होंगी ). कहते वे हिन्दी में ही हैं पर ' नौकर शाही ' अंगरेजी है तो माज़रा /मजाक ये है ( अंगरेजी अनुवाद ) .

और तो और बिहार पर सब सरकारी सूचनाएँ फार्म जानकारीयाँ भी अंगरेजी में ही हैं. मैंने उस पर भी ध्यान खींचा है उनका .शायद वह भी जल्दी ठीक किया जाये ( सिर्फ उम्मीद कर सकता हूँ नौकरशाही का चरित्र जानते हुए भी ) .बाद में पता चला कि ' नौकरशाही ' ने सफाई में ये कहा की नेट का इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर अंगरेजी ही जानते हैं .अनुवाद तो मीडिया प्रिंट कर ही देता है हिन्दी वगैरह में .( शायद वे बिल गेट वगैरह तक बात पहुँचाना ज्यादा जरूरी समझते हों ) . लेकिन फार्म वगैरह ? सूचना अधिकार की जानकारियां ? बहुत से सवाल हैं. शायद अब इस हडकंप से कुछ फायदा ही ह .

RAJ SINH said...

शायद पूरी टिप्पणी गूगल जीने लेने से मना कर दिया तो गतांश .....

मेरी अपनी सीमायें भी न बड़ी हैं न उतना बड़ा राजनैतिक कद . और क्या कर सकता हूँ ? फिर भी अब लग गया हूँ :) . कम से कम हर कोशिश तो कर ही सकता हूँ और कर भी रहा हूँ.

आपने ' राजनेता ' कहा मुझे .शिकायत नहीं कर रहा पर यह शब्द ही आजकल अपमान सूचक लगता है मुझे सभी की तरह .मैं अपनी नज़र में एक उद्देस का कार्यकर्त्ता ही हूँ. लोहिया जी के समय से १३ साल की उम्र से ही ' लोहियायित ' रहा तो अमेरिका से लौटने पर कुछ पुराने ज़माने के समाजवादियों के आग्रह पर यह पद या कर्म जो भी आप कहें या लोग समझें ,स्वीकार किया .क्योंकि किसी ज़माने के समाजवाद के गढ़ मुम्बई में समाजवाद शून्य हो चुका है और मुम्बई को जिन ताकतों ने जकड लिया है वह निवासी होने के नाते आप मुझ ' भगोड़े ' से ज्यादा ही जानती होंगी .

हाँ बड़ी विनम्रता से यह कह सकता हूँ के मैं अब भी वही हूँ और ' नेता ' नहीं हूँ आज के सन्दर्भ का .कभी मौका लगे तो मेरे ब्लॉग की एक पोस्ट ' क्या मैं नेता हूँ ' पढने की कृपा करें , वहीं कुछ कह चुका हूँ इस विषय पर पदभार लेने के बाद.

पुराने तमाम ' लोहिअवादियों ' की राजनीति आप जैसी विदुषी से छिपी नहीं है तो वह कहते भी लाज ही आती है पर अगर अच्छे लोग पलायन करेंगे तो राजनीति का स्वरुप कैसे बदलेगा ?

कभी सोचा भी नहीं था कि फिर कभी राजनीति में पाँव भी रखूंगा पर अब भी बहुत से समर्पित लोग हैं और अनदेखे तो हैं पर पलायन नहीं किया है उन्होंने . निराश भले हों हताश नहीं हैं.

मेरी अपनी नज़र में देश से अपने स्वार्थ के लिए लम्बे ' पलायन ' के बाद यह मेरा सिर्फ कर्तव्यबोध है और प्रायश्चित भी .जरूरी भी की जो ' विश्व व्यवस्था ' का चक्र है उसमे इस देश की आम जनता के लिए बड़े विनाशक तत्व भी हैं और अवसर भी. अपने बूते भर वही कर भी रहा हूँ ,बस .

और आपकी रपट का आनंद तो पहले ही ले चुका हूँ तमाम ब्लागरों की तरह .
आप ऐसे ही लिखती रहें ,विश्वास करें मैं पढता भी हूँ और अब तो आपको और भी जानता हूँ :) .अब सब टिप्पणियां आनी जो थी आ ही गयीं तो मान कर चल रहा हूँ की मेरी आख़री है .

पुनश्च : जब विदिओग्रफ़ी शुरू की तो सिर्फ १.५ मिनट में आप ही हैं .....उसके बाद तो बंद ही कर देनी पडी . कभी आप देखना चाहें या अपनी पोस्ट पर ( पुच्छिल ) करना चाहें तो भेज दूंगा .
सादर
राज सिंह

Amrendra Nath Tripathi said...

वाह जी !
इसे कहते हैं कि शुरुआत में एक स्टेज खड़ा किया और फिर
कुछ विचारों और भावों को मोती की मानिंद जहां - तहां सजा
दिया ! अंत में निष्कर्षात्मक छह मोटी तो अपनी आभा से पोस्ट भर
को चमका रहे हैं !

सोच रहा हूँ काश वह ड्राइवर भी ब्लोगर होता तो जाने कितना सजीव वर्णन
करता उन पेंचदार सड़कों का भी ! आपकी ब्लोगर मीट में वह भी
एक सीट ग्रहण करता ! विवेक जी का परिचय भी मिला तो उनके बालों
से , किसी का मुंह परिचय देता है और किसी की खोपड़ी ! :)

रश्मि जी का लेख पढ़ा था .. सजीव लगा था .. आपका भी पढ़ा , कमाल का सहज
लिखती हैं आप .. अब तो एक धारणा ही बनती जा रही है कि महिला
ब्लोगर , ब्लॉग-मिलन पर ज्यादा बढियां लिखती हैं , ठीक पाक-विधि जैसी
आत्मीय-विशेषज्ञता के साथ !
[ यहाँ यह मत कहिएगा कि स्त्री के रसोईं-दार रूप का मैं महिमा - मंडन
कर रहा हूँ , नहीं तो कल ही ब्लोगिंग में महिला-मंडल का 'जलजला' मेरे ऊपर
फूट पडेगा ! :) ]

चैटिंग को लेकर आपकी सकारात्मक धारणा से थोड़ा ताल्लुक मेरा भी है , पर
बच्चा हूँ तो बहक जाता हूँ ! पर आपकी इस बात में कोई दोष नहीं दिखता कि
टीप और चैट संवाद की प्रक्रिया को बनाए रखते हैं ! दोषी माध्यम नहीं बल्कि
व्यक्ति होता है , कम-से-कम यहाँ के लिए ! वर्चुअल दुनिया की सकारात्मकता
को आपने ठीक ही लक्षित किया है ! अभी ज्ञान जी की 'सेकेण्ड लास्ट' वाली पोस्ट
पर मैंने इसी बात को अपने ढंग से कहा है !

ब्लॉग-जगत भारतीय सास्कृतिक वैविध्य का दाता है , एकदम सहमत ! यह
इस माध्यम की अन्य श्रेष्ठ उपलब्धियों में से एक है !
इसी बात को सोचते हुए मैं भाषिक वैविध्य की गुंजाइश भी बना रहा हूँ या
कहिये कि उसके लिए प्रयासरत हूँ ! भाषा भी तो एक सांस्कृतिक पहलू है !
ब्लॉग जगत में विविध संस्कृतियों के अंतर्सूत्र को प्रोत्साहित करने की जरूरत है |

अंत के छह मोती अपने आप में पर्याप्त हैं ! एक बात जो आपकी पोष्ट को पढ़ते हुए महसूस
हुई कि इतना सहज और बोधगम्य मुझ जैसा व्यक्ति नहीं लिख सकता ! अन्यथा न
लीजिएगा इस बात को ! कारण है कि सम्प्रेषण के इस स्तर पर जाकर अंगरेजी-नुमा
होने का ख़तरा रहता है और आप अपने लेखन को इससे बचाए हुई हैं , यह
काबिले-तारीफ़ है ! बात रखते समय आपके यहाँ कठिन हिन्दी के शब्द भी नहीं
आते , यह भी सम्प्रेषण की एक बड़ी चुनौती है ! [ तब तो और जब आप नियमित
वडनेकर जी की ' शब्द-चर्चा' देख रहीं हों ! :) ]

अंत में सुन्दर सी प्रविष्टि के लिए आभार !