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September 09, 2009

ब्लोगर मीट और संगोष्ठी

मुख्य अतिथी श्री कुमार केतकर और गेस्ट ऑफ़ ऑनर श्री वी एल धारुरकर

ब्लोगजगत से जुड़े तो पहली बार पत्रकार नामक जीव से पाला पड़ा, इससे पहले इतनी लंबी जिन्दगी में कभी पत्रकारिता की ओर ध्यान न गया था। सौभाग्यवश ब्लोगजगत के हर गली कूचे में किसी न किसी पत्रकार का डेरा है। स्वभाविक है कि इन गलियों में घूमते घूमते कई पत्रकार मित्र बने और उनके प्रोफ़ेशन के बारे में हमारे मन में कई विचार, सवाल उठे। पिछले साल जब आने वाले साल की गतिविधियों का खाका तैयार हो रहा था हमने मीडिया पर एक संगोष्ठी करने का अपना इरादा बताया जो सहर्ष स्वीकार कर लिया गया। हमने अकेले इसे अंजाम देने की जिम्मेदारी उठा ली। योजनाएं बनने लगीं कि क्या सत्र रखे जाएं किस किस विषय पर बात हो। शर्म आती है मगर आज ये कहना होगा कि हमारी एक बहुत बुरी आदत है, जब एक बार हम कुछ करने की ठान लें तो फ़िर वो निश्चय हमारे जीवन को नियंत्रित करने लगता है, सोते जागते हमें और कुछ नहीं सूझता। इस बार भी ऐसा ही था। हम चैट पर भी बैठें( बकलम की बदौलत हमारी ये दूसरी बुरी आदत तो अब जग जाहिर है…:)) तो जो मित्र मिले उनसे इसी संगोष्ठी के बारे में बातें करें खास कर पत्रकार मित्रों से। खैर हर सत्र के विषय चुने गये---
1) नागरिक पत्रकारिता और अच्छा शासन चलाने में संचार माध्यमों की भूमिका
2) निजिकरण का जनसंचार माध्यमों पर प्रभाव
3) आर्थिक बाजारों के प्रति जागरुकता बढ़ाने में जनसंचार माध्यमों की भूमिका
4) सायबर पत्रकारिता और सोशल जनसंचार माध्यम
5)जनसंचार में क्षेत्रवाद का बढ़ता प्रभाव

इन विषयों पर विमर्श के अलावा पेपर प्रेसेटेंशन और फ़ोटो प्रतियोगिता भी थी। इन पांच सत्रों के अलावा उदघाटन सत्र और समापन सत्र भी थे। अगला कदम था हर सत्र के लिए वक्ता सुनिश्चित करना। एक बार फ़िर हमने अपने ब्लोगजगत के खजाने का ढककन उठाया। एक से एक हीरे रखे हैं यहां, हम बाहर क्युं देखते?
कठिनाई सिर्फ़ इतनी थी कि हर सरकारी संस्था की तरह हमारा कॉलेज भी हर समय संसाधनों की कमी से जूझता रहता है इस लिए सब रिसोर्स परसन्स बाहर से बुलाना मुमकिन न था। हम मन मसौस के रह गये लेकिन हार न मानी।
आर्थिक बजारों की जागरुकता में जनसंचार की भूमिका के लिए हमने आलोक पुराणिक जी और हर्षवर्धन त्रिपाठी जी को आमंत्रित किया। हमारे प्रिंसिपल साहब ने उसी सत्र के लिए आई डी बी आई बैंक के रिस्क डिपार्ट्मेंट में कार्यरत बम्बई निवासी एम के दातार जी को आमंत्रित किया।


नागरिक पत्रकारिता के लिए हमने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल सांइसिस से मजुंला जी को बुलाया जो वहां मीडिया डिपार्टमेंट की प्रमुख हैं और कई आदोलनों का हिस्सा हैं, शमीम मोदी के केस में भी समर्थन जुटाने में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। उनका साथ दिया टाइम्स ऑफ़ इंडिया के प्रदीप विजयकर जी ने जो
न सिर्फ़ काफ़ी वरिष्ठ पत्रकार हैं बल्कि प्रेस क्लब के अध्यक्ष भी हैं।

निजिकरण का जनसंचार माध्यमों पर प्रभाव, इस पर चर्चा करने के लिए हमने टाइम्स ऑफ़ इंडिया के ही पोलिटिकल संपादक प्रफ़ुल मारपकवार जी और आइ बी एन 7 के प्रमुख ब्युरो रवीन्द्र आंबेकर जी को आमंत्रित किया। हमारे कुछ सहकर्मियों के आग्रह पर ई टीवी पर एक कार्यक्रम आता है 'संवाद' उस के सूत्रधार 'राजू परुलेकर' जी को आमंत्रित किया।


जब सायबर पत्रकारिता और सोशल मीडिया की बात हो तो अपने ब्लोगजगत के शीर्ष रवि रतलामी जी को याद करना स्वभाविक था। मुझे बहुत खुशी है कि उन्हों ने मेरा निमंत्रण सहर्ष स्वीकार किया।उनका साथ देने के लिए अनूप जी की सलाह पर ब्लोगजगत के एक और दिग्गज सदस्य देबाशीश जी को याद किया, हमें तभी पता चला कि वो तो बम्बई के पड़ौसी है पूना में रहते हैं, हमने उन्हें फ़ोन लगाया तो पहली ही बार में उन्हों ने इतनी आत्मियता से बात की कि आधा घंटा कहां गया हमें पता ही न चला। उन्हों ने भी सहर्ष हमारा निमंत्रण स्वीकार किया। बाद में अपने काम की व्यस्तता के चलते और स्वाइन फ़्लू के डर से वो नहीं आ पाये ये अलग बात है। देबाशीश जी ने सेमिनार के एक हफ़्ता पहले हमें खबर कर दी कि वो नहीं आ पायेगें, हमने पाबला जी से आग्रह किया कि वो पेपर प्रसेंट करें। उनकी बिटिया भी पेपर प्रेसेंट करने आने वाली थी पर लास्ट मिनिट पर पाबला जी की कंपनी ने उन्हें छुट्टी नहीं दी और स्वाइन फ़्लू के चलते बम्बई आने की इजाजत तो बिल्कुल नहीं दी। हमें लगा जैसे हमें ही बिन बिमारी आइसोलेशन वॉर्ड में डाल दिया गया है।
अंतिम क्षणों में देबाशीश जी की जगह ली मुंबई विध्यापीठ के मॉस कम्युनिकेशन डिपार्टमेंट से जुड़े प्रोफ़ेसर मंगेश करांदिकर जी ने ।


जनसंचार में बढ़ते क्षेत्रवाद के प्रभाव के बारे में बोलने के लिए हमने संजय केतकर जी जैसे वरिष्ठ पत्रकार को आमंत्रित किया जो कई पेपर्स के साथ काम कर अब फ़्रीलांस पत्रकारिता कर रहे हैं।



उदघाटन करने के लि पदमश्री प्राप्त किए हुए श्री कुमार केतकर जी आये जो आज कल लोकसत्ता के प्रमुख संपादक हैं, सिर्फ़ इतना भर कह देना उनकी उपलब्धियों के साथ अन्याय करना होगा। उनके बारे में थोड़ा और बताना हम अपना कर्तव्य समझते हैं।





श्री कुमारकेतकर और श्री धारुरकर विमर्श करते हुए

समापन सत्र के लिए श्री प्रसा मोकाशी जी आये जो इस समय मराठी पत्रकार संघ के अध्यक्ष भी हैं।
बोर तो नहीं हो रहे? अगर आप कहें तो आगे का हाल सुनाएं कि क्या बोले हमारे ब्लोगर मित्र














प्रिंसिपल और हम

15 comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बहुत सुन्दर अनीता जी -
- आभार इस जबरदस्त प्रस्तुति के लिए -
- क्या स्वांइन फ्लू का प्रकोप
बढ़ गया है वहां ? ;-((

vinitutpal said...

thodi vistar se charcha karte to badhya hota. hamre alok puranik sir photo me kahin nahin dikh rahe hain.

Udan Tashtari said...

अच्छा लगा रिपोर्ट पढ़कर..संगोष्ठि में क्या हुआ, क्या कहा गया..उस पर जरा प्रकाश डाला जाये.

Asha Joglekar said...

ye bhi koee bat huee ki appetiser dekar khana den ya na den pooch rahee hain ? Intjar men. Bahut sunder aur sarth upkram.

अनूप शुक्ल said...

कार्यक्रम सफ़लतापूर्वक कर पाने की बधाई! आगे की कड़ियों में विस्तृत रपट का इंतजार रहेगा।

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर रिपोर्टिंग .. अगली कडियों का इंतजार है !!

Arvind Mishra said...

लोग आये गए इससे अधिक महत्वपूर्ण है ,
कहे क्या ? प्रतीक्षा रहेगी !

कुश said...

फोटो में तो आप बड़ी क्यूट लग रही है..

कंचन सिंह चौहान said...

kush ne sahi kahaa

36solutions said...

इस सफल आयोजन के माध्‍यम से हिन्‍दी को मुम्‍बई जैसे महानगर में स्‍थापित करने के प्रयास के लिए आपको हृदय से धन्‍यवाद.

Anonymous said...

ये तो एक तरह का प्रोमो हो गया :-)

अब आगे क्या हुया?
बताएँ, दिखाएँ

उत्सुकता बनी हुई है

बी एस पाबला

Riya Sharma said...

Anita ji

Charcha vistaar kee mang kar rahi hai...kripya aur prakash daleyn jara ...
Interesting !!

Sanjeet Tripathi said...

बढ़िया रपट

चलिए अगली किश्त में विस्तार से बताइए

मसिजीवी said...

हमारा आकलन है कि सेमिनार की सत्रवार रपट तैयार की ही गई होगी तो एक ठो पीडीएफ हमें भी भेजी जाए ताकि हम यहीं बैठे सीख सकें।

भ्‍सली बात ये है कि मनोविज्ञान विभाग ने इस विषय पर आयोजन पर विचार किया। ये काफी इंटरडिस्प्लिनरी किस्‍म का साहस है। अपने कॉलेज के किसी मनोविज्ञान के शिक्षक को दिखाते हैं :)

बधाई सफल आयोजन के लिए।

Gyan Dutt Pandey said...

मुझे लगता है - और मैं अल्पसंख्यक हो सकता हूं - ब्लॉग के विषय में लोगों की समझ भिन्न भिन्न हो सकती है, और इसे ले कर अज्ञान बहुत है।

कल ही एक सज्जन कह रहे थे कि वे ब्लॉग जैसी पोर्नोग्राफिकल साइट नहीं देखते! :)