पिछली पोस्ट हमने करीब दो महिने पहले लिखी थी( पता है बहुत बेकार स्कोर है), इस बीच बहुत कुछ घट गया, बहुत कुछ पढ़ा, कहीं टिपिया पाये कहीं नहीं। अक्सर ऐसा हुआ कि हमने पोस्ट पढ़ी, मन ही मन में टिपियाया और निकल गये। कारण ये था कि हम पिछले दो महीने से एक कोर्स कर रहे थे, कोई मजबूरी नहीं थी, बस अपनी मर्जी थी। कोर्स तो जोश में जॉइन कर लिया लेकिन इतने सालों बाद जब परीक्षा में बैठना पड़ा तो नानी याद आ गयी। पिछली बार मैने परीक्षा दी थी 1978 में। पता है, पता है, आप में से कई लोग तो पैदा भी नहीं हुए होगें और बाकी उस साल में नाक पौछतें, निक्कर संभालते गोटियाँ खेलते होगें। परिक्षा का जिस दिन परिणाम निकलना था, हमारे हाथ पांव ठंडे हो रहे थे। फ़ैल हो जाते तो कैरिअर पर कोई असर नहीं पड़ना था लेकिन कॉलेज की सहेलियां कितना हंसेगी सोच कर ही जान निकली जा रही थी। भगवान ने लाज रख ली और 80% ले कर पास हो लिए, जान बची तो लाखों पाये, लौट कर बुद्धु घर को(ब्लोगजगत में ) आये।
यूँ तो सभी ब्लोग्स पर जब पोस्ट पढ़ते हैं तो कहने को कुछ न कुछ मन में आता ही है लेकिन आज की पोस्ट को स्टीम्युलेट (हिन्दी में क्या कहेगें?) करने का सेहरा जाता है ज्ञान जी की पोस्ट को 'ब्लॉग पोस्ट प्रमुख है, शेष गौण'। ई-मेल में ही इस पोस्ट को पढ़ते ही मुझे याद आ गया एक खत जो मैनें अभी कुछ दिन पहले बलविन्दर पाबला जी को लिखा था। अपनी उस याद को आप सब से बांटने के लिए मैं वो खत ज्यों का त्यों यहां दे रही हूँ।
लेकिन वो खत आप लोगों से बांटने के पहले ये तो बता दूँ कि पाबला जी से मेरी मुलाकात अभी कुछ दिन पहले ही हुई है और मुझे पता चला कि वो वेब डिजाइनिंग में बहुत दक्ष हैं। मैं उनसे कुछ तकनीकी सहायता ले रही थी( उसके बारे में अगली पोस्ट में लिखूंगी)। उसी संदर्भ में ये खत लिखा गया था……।
"पाबला जी
सादर प्रणाम,
हम तो इस बात से ही खुश हैं कि कोई हमारे स्टुपिड से सवालों का जवाब देने को भी तैयार है, इस हिसाब से आप मेरे गुरु हो लिए…प्रणाम गुरु जी……।
कहते हैं कि लोग बुढ़ापे में सठिया जाते हैं, अजीब अजीब हरकतें करने लगते हैं, अजीब अजीब (बम्बइया भाषा में अजीब बोले तो कहेगें अतरंगी) इच्छाएं मन में जन्म लेने लगती हैं। मैं साठ की तो नहीं हुई हूँ( अभी काफ़ी दूर हूँ उस मंजिल से) लेकिन सठिया जरूर गयी हूँ( जब साठ की होऊंगी तब पता नहीं क्या करूंगी) अपनी पूरी मसरुफ़ियत के बावजूद ब्लोगिंग की लती हो गयी हूँ। यहां तक तो गनीमत थी लेकिन उसके साथ साथ मुझे ये इन्टरनेट के फ़ंडे सीखने का शौक भी चर्राया है……डा अमर कुमार के ब्लोग पर विषय से संबधित कार्टून लगा देखा तो आश्चर्य से आखें फ़टी की फ़टी रह गयीं। ज्ञान जी के ब्लोग पर चलता इंजिन मुझे उतना ही अच्छा लगता है जैसे किसी बच्चे को प्लास्टिक की पटरी पर गोल गोल दौड़ती रेलगाड़ी…॥ फ़ुर्सतिया जी के ब्लोग पर खिले फ़ूल और हाशिये में लगा राजकपूर के गानों का विडियो……यूनुस जी के ब्लोग पर इस्तेमाल किए फ़ोन्ट्स का स्टाइल, मनीष और मीत जी के ब्लोग पर पहले ईस्निप (जिसे मैं थर्मामीटर कहती हूँ, वैसा ही दिखता था) से लोड किये गाने, अभिषेक के ब्लोग पर लगी ढेर सारी फ़ोटोस थम्बनेल के रूप में(उसे थम्बनेल कहते हैं ये भी अभी अभी पता चला है),अजित जी के ब्लोग के अक्सर बदलते रंगरूप, होली के अवसर पर बैंगणी भाइयों की फ़ोटोशॉप से खेली होली कौन भुला सकता है, किसी के ब्लोग पर ढोलक बजाता ढीगंना का आइकोन और भी न जाने क्या क्या ....
ब्लोगजगत ऐसा लगता है जैसे कोई मेला लगा है और मैं दुकानों के बाहर खड़ी हर दुकान पे सजी चीजें ललचाई नजरों से निहार रही हूँ…।काश मैं भी ये सब चीजें ले पाती। ये सब वो खिलौने हैं जो मेरी पहुंच के बाहर हैं ....बहुत सिर फ़ोड़ा, कई घंटे बरबाद किए लेकिन आज तक इन सब बातों को समझ नहीं पायी। सोचा कोई क्लास जॉइन कर लूँ, लेकिन सब ने कहा कि ये सब क्लास में नहीं सिखाते, खुद ही सीखना पड़ता है। झट से जाके वेबडिजाइनिंग पर एक मोटी सी किताब खरीद लाई…।घर पर आ कर खोली तो पाया कि मेरे लिए तो ये काला अक्षर भैंस बराबर है जी, उसे अपने किताबों की अलमारी में सबसे पीछे डाल दिया…:)।
कहते हैं कि अगर किसी चीज के लिए बहुत प्रबल इच्छा हो तो भगवान भी आप की सुन लेते हैं…।कुछ ऐसा ही हुआ होगा…द्विवेदी जी ने जब कहा कि आप को फ़ोन कर लूँ तो मेरा पहला सवाल ये था कि मैं तो ये नाम पहली बार सुन रही हूँ, क्या वो मेरे बारे में जानते हैं। द्विवेदी जी ने हंसते हुए कहा था कि अरे पाबला जी को आप को बहुत अच्छे से जानते है, बस आप फ़ोन कर लिजीए।मुझे याद भी दिलाया कि आप अक्सर 'अदालत' ब्लोग की बात करती हैं वो मैं नहीं लिखता पाबला जी लिखते हैं…हमें बड़ा आश्चर्य हुआ, हम तो यही समझे थे कि द्विवेदी जी लिखते हैं। कुछ कौतुहल और कुछ असमंजस की स्थिती में मैंने आप का नंबर घुमाया था…लेकिन आप इतनी आत्मियता के साथ बतियाये कि लगा ही नहीं कि पहली बार बात कर रही हूँ, और एक सिलसिला चल निकला…। आप से और गुरुप्रीत से मुझे इतना अपनापन मिला कि मुझे लगता है मानो आप लोग मेरे ही परिवार का हिस्सा हों। ………"
तो ज्ञान जी के ब्लोग पर कइयों को वो सब खिलौने डिस्ट्रेक्शन लगते होगें लेकिन कुछ मेरे जैसे भी होगें जो चलते इंजिन और ऊपर चलती पट्टी और ध्यानमगन कृष्ण जी को भी देखने आते होगें, रोज देखते है लेकिन फ़िर भी मन नहीं ऊबा। ये ऐसे ही है कि कुछ छात्र गणित प्रेक्टिस करने के समय रेडियो जरूर चला लेते हैं और कुछ बंद कर देते हैं । सब की पसंद अपनी अपनी।
सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा? अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।
February 19, 2009
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17 comments:
hamne tipiya diya. aapka blog dekh achcha laga.
बहुत बढ़िया पोस्ट है अनिता दी। जल्दी जल्दी क्यों नहीं लिखती हैं भई...कई बार इधर से गुज़र जाता हूं और पता चलता है, गाड़ी वहीं खड़ी है। ये परीक्षा देने की क्या सूझी और हासिल क्या हुआ उससे ? आपको बता दें 1978 में हमनें दसवीं पास कर ग्यारहवीं में आए थे।
वेब डिजाइनिंग तो हमें भी लुभाती है, पर अपन भी जीरो हैं इस मामले में। वो तो थोड़ा बहुत अखबारी लेआऊट में दिलचस्पी है और एस्थेटिक सेंस तगड़ा है(ये दंभ नहीं, आत्मविश्वास है)सो नेट की सहायता से कुछ खिलवाड़ शब्दों के साथ करते रहते हैं। पाबला जी से हमें भी बात करनी ही पड़ेगी...ऐसा लगता है।
जल्दी से फिर लिखिये...
अजित
सही कह रही हैं..पसंद अपनी अपनी..हमें भी ज्ञान जी की वो भागती रेलगाड़ी बहुत पसंद आती है. :)
पाबला जी के बारे में जानकर और अच्छा लगा.
अरे, आपको वो ८०% लाने के लिए बहुत बधाई. कोर्स कौन सा था?
अनीता जी आप को सबसे पहले बधाई !!
८०% मार्क्स वाह जी वाह !!
आपके ब्लोग पे आते ही उपर आता है,
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
"सुस्वागतम
आपका हार्दिक स्वागत है, आप CINCINNATI, UNITED STATES.
से पधारे हैं, आपको यह चिट्ठा कैसा लगा?
अपनी बहूमूल्य राय से हमें जरूर अवगत करावें,धन्यवाद।"
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
हमेँ तो वही अचरज से भर देता है :-)
..ये तकनीक हमारे चिठ्ठे को भी सीखला देँ
और पाबला जी को पाती
आत्मीयता से लिखी गई है
- आप अब जल्दी लिखा करेँ --
स स्नेह,
- लावण्या
सही कह रही हैं..पसंद अपनी अपनी..हमें भी ताऊ का खूंटा बहुत भाता है !
बहुत बढ़िया लिखा है, परीक्षा का अब डर नही रहा कृपया अब तो नियमित लिखती रहें !
बहुत अच्छा लगा आपको पढकर....आपकी अनुपस्थिति का कारण अब समझ में आया....बहुत बहुत बधाई।
आपके ब्लॉग का अभिकल्प सचमुच बहुत सुन्दर है, पढ़ते हुए आंखों में चुभन नहीं होती!
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गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
Akarshak roop rekha har blog ko ek naya andaaz deti hai par agar pathakon ko post padhne mein wo badhit kar deti ho to sochna padta hi hai ki kaise blog ko nikharne huye hum itne frills bhi na laga dein ki post padhne wale ko irritation ho.
आपके बारे मे पाब्ला जी के ब्लाग् से ही पता चला। हम भी उन सौभाग्यशाली लोगो मे से है,जिन्हे पाब्ला जी से मिलने का मौका मिल चुका है,वो मौका भी हमे आप ही की तरह द्विवेदी जी के कारण ही मिला।बहुत ही बढिया लिखा है आपने,सच मे पसंद अपनी-अपनी।
अनिता जी, आप सठियाई नहीं है, अभी तो टीनेज के जीवाणु हम लोगों में मौजूद हैं।
ज्ञान जी में इस तरह के जीवाणुओं का तेजी से क्षय हो रहा है उन्हें इन के संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए। वरना बहुत शीघ्र वैराग्य शतक लिखने की फार्म में आ जाएंगे। पर उन के लिए यह जान लेना जरूरी है कि भर्तृहरि ने वैराग्य के पहले श्रंगार और नीति शतक लिख लिए थे। ज्ञान जी को अभी उधर ही प्रयास करना चाहिए। ये जो उन्हों ने अपने ब्लाग का श्रंगार उतार दिया है। बिलकुल विधवा की तरह लगने लगा है। ये ठीक नहीं है, बल्कि ब्लाग का मिस रिप्रेजेण्टेशन है।
८०% की बधाई. आशा है अब थोड़े रेगुलर पोस्ट आयेंगे. वैसे कोर्स कौन सा था? हम भी दे देंगे. ये शौक तो अपने को भी है :-)
आपकी मेधा का मैं भी कायल हूं।
इन्जन और फ्लिंस्टन हटाते मुझे भी कष्ट हुआ था। पर जो है, सो है।
और अभी वैराज्ञ-शतक नहीं लिखने वाला!
ज्ञान दादा इंजन हमे भिजवा दे हम उससे भी कुछ पंगे लेना चाहते है
द्विवेदी जी का कहना पसंद आया कि टीनेज के जीवाणु हम लोगों में मौजूद हैं। और आप जैसी लड़की सठियाने की बात करे तो हजम नहीं होता।
वैसे, ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया
अनिता दी,,,80% अंक मे पास होने की बहुत बहुत बधाई... ज्ञानजी की भागती रेलगाड़ी तो हमे ज़िन्दगी के पहिए जैसी भागती दिखती रही है जिससे भागते रहने की ताकत मिलती रहती है...अब आपको देखकर लगा कि जल्दी ही हमे भी 3 टेस्ट पास करके अपनी अधूरी पढ़ाई पूरी कर लेनी चाहिए..
ये भी कोई पोस्ट है जी! लगता है भूमिका लिखकर खतम ! जरा जल्दी से लिखिये पूरी पोस्ट!
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