चाँद की सैर
सुबह के सात बजते ही एफ़ एम गोल्ड पर पहले गाने की स्वर लहरियां गूंजी । " चांद को क्या मालूम चाहता है उसे कोई चकोर्…",
अहा! जब दिन की शुरुवात इतनी मधुर है तो दिन तो मधुमास ही समझो। कार में रेडियो सुनने का मजा ही कुछ और है। बंद खिड़कियां, ए सी की ठंडक, आस पास की चिल्ल पौं को नो एन्ट्री, पूरा डब्बा(कार) संगीतमय हो लेता है। हाई वे पर तेज और तेज सरपट दौड़ती कार और संगीत की स्वर लहरियां , वक्त मानो थम सा जाता है। ये आधा घंटा पूरे दिन का सबसे हसीन वक्त होता है जब हम अपने साथ होते हैं।
वाशी सिगनल पार करती हिचकोले खाती कार, हम सोच रहे थे आज कल चकौर तो न दीखते बम्बई में, हां यहां की सड़के जरूर चांद के प्रेम में चंद्र्यमान हो रही हैं। सिगनल पार होते ही पीछे से कुछ हल्की हल्की आवाज आने लगी। कार के हिचकोलों ने शायद पीछे रखे औजारों को जगा दिया था और अब वे भी अपना बेसुरी तान जोड़ कर पूरे संगीत का मजा चौपट कर रहे थे। पड़ौसन से गपियाती मां अक्सर बच्चे की कुनमुनाहट को नजर अंदाज कर जाती है, हम भी फ़िर संगीत में खो गये।
दस किलोमीटर के करीब और आगे जाते जाते पीछे की खटर पटर इतनी बड़ गयी मानों भारत पाक सीमा पर गोला बारी हो रही हो। मजबूरन रुकना पड़ा। भुनभुनाते हम नीचे उतरे कि आज इन औजारों की अच्छी खबर लेते हैं , न वक्त देखते हैं न मौका जब देखो बजते रहते हैं। देखा तो औजार बिचारे तो चुपचाप बैठे थे लेकिन पीछे के टायर के परखच्चे उड़ चुके थे, बियोंड रिपेअर। अब इतनी सुबह कौन से टायरवाले की दुकान खुली होगी। आसपास देखा तो सब दुकानें बंद सिर्फ़ एक चाय वाला अपना भाखड़ा सजाए खड़ा था, सड़क पर ही एक बैंच डाल रखा था, कुछ ऑटो वाले बैठे अखबार के साथ सुबह की चाय का आनंद ले रहे थे, धंधे पर निकलने के लिए अभी बहुत जल्दी थी। उनमें से कोई भी हमारी खातिर अपनी चाय और अखबार का अलसाया आनंद छोड़ने को तैयार नहीं था। कलीम( हमारा हमेशा का टायर वाला) की दुकान तो खुली होगी लेकिन वो भी अभी कम से कम एक डेढ़ किलोमीटर दूर थी और गाड़ी तो अब अपने पैरों को सहलाती टस से मस न होने की मुद्रा में बैठी थी।
जैसे तैसे कलीम को लिवाने उसकी दुकान पर पहुंचे। कलीम की दुकान के बाहर ही उसका एक दोस्त अपनी ऑटो में बैठा दूसरे ऑटो वाले से बतियाता दिख गया। कार के पास पहुंचते ही इस ऑटो वाले को भी चाय की तलब उठी, कलीम को चाय पीने के लिए आने को कहते हुए वो उस तरफ़ बढ़ चला, ठिठका, मुड़ा और पूछा ऑंटी चाय पियेगीं।
हैरानी को छुपाते हुए हमने न में सर हिलाया और मोबाइल पर व्यस्त हो गये।
बम्बई के टैक्सी, ऑटो वालों के दोस्ताना अंदाजा के बारे में जानते तो थे पर ये तो हद्द ही थी। अगर हम उसका निमंत्रण स्वीकार कर लेते तो कल्पना कीजिए कि रोड पर रखी बैंच पर अपनी सफ़ेद वर्दी में बैठे चार पांच ऑटो वाले और हम, हाथ में गरमागरम कटिंग चाय, पास में नगर निगम का झाड़ू लगाता जमादार और उस के झाड़ू से उठती धूल चाय का स्वाद बड़ाती। बाप रे!
विनोद जी को फ़ोन पर सुबह के समाचारों की तर्ज पर पूरी स्थिति का जायजा देते हुए पूछा इस फ़टे टायर का क्या करें? जवाब आया "फ़ैंक दो, दूसरा खरीद लो"। तब तक कलीम अपना काम कर चुका था, और फ़टे टायर को डिक्की में रखने की तैयारी में था। हमने कहा भैया इसे फ़ैंक दो और अगर तुम्हें चाहिए तो तुम ले जाओ। उस की आखें कैरम की गोटी जितनी चौड़ाई, पर कुछ बोला नहीं, चुपचाप फ़टा टायर ऑटो में रखा और चाय के भाकड़े की ओर बढ़ गया। हम इस बात पर खुश कि चलो लेक्चर के लिए टाइम पर पहुंच जायेगें। साथ ही सोच रहे थे, बेचारा! क्या करेगा इस तार तार हुए टायर का, न ट्युब बची न बाहर का टायर, ज्यादा से ज्यादा अंदर का लोहा बेच लेगा, पांच रुपये किलो।
तब तक कॉलेज आ गया और पूरा वाक्या जहन से खिसक लिया। दोपहर घर जाते वक्त सोचा कि चलो स्टेपनी के लिए एक पुराना टायर ही खरीद लिया जाए। सुबह कलीम से पूछा था, उसके पास तो मेरी गाड़ी के योग्य कोई टायर नहीं था पर अंदाजन पांच सौ तक आ जाएगा ये जानकारी उसने दे दी थी। दूसरी दुकान पर टायर उपलब्ध था, हमने पूछा कितने का? बोला आठ सौ। हम मन ही मन मुस्कुराए, अच्छा बेटा, हमें पागल समझा है क्या? बोले “नहीं हम तो पांच सौ देगें।”
थोड़ी ना नुकुर के बाद सौदा तय हुआ कि पांच सौ का पुराना टायर और तीन सौ की नयी ट्युब और फ़िटिंग फ़्री।
हमने बड़े विजयी भाव से डिक्की खोली, कहा “रख दो”।
उसके चेहरे पर उलझन देख पूछा “क्या हुआ,”?
“काय में फ़िट करूं टायर, रिम कहां है?”
अब चौंकने की बारी हमारी थी।
अरे! तुम टायर दोगे तो रिम न दोगे साथ में, बिना रिम टायर कैसा?
हमारी बेवकूफ़ी पर खिलखिलाते हुए बोला,
“मैडम! आप हो किस दुनिया में, नया टायर भी रिम के साथ नहीं आता। रिम लेने को जाओगे तो आठ सौ और देना पड़ेगा। वैसे आप ने रिम का किया क्या?”
हमने दबी आवाज में कहा “वो तो हमने सुबह फ़ैंक दिया मतलब टायर वाले को दे दिया”।
“हे भगवान! कौन से टायर वाले को दिया? अभी का अभी जाओ और उस से अपना रिम वापस मांगो”
मन कह रहा था अब समझ में आया कलीम ने वो तार तार टायर क्युं सहेज के ऑटो में रख लिया था, बोले
“अब वो हमें क्युं वापस करेगा। वो कह देगा कि वो तो हमने बेच दिया तब हम क्या कर लेगें।”
“अरे मैडम आप जा कर उसे मेरा नाम बोलना वो रिम वापस कर देगा।”
हमें कोई उम्मीद तो न थी पर फ़िर भी पूछने में क्या जाता है सोच वापस मुड़ लिए। कलीम की दुकान पर पहुंचे। बाहर से ही इशारे से बुलाया।
सकुचाते सकुचाते पूछा
“वो रिम्”।
वो मुस्कुराया, मानो कहता हो सुबह तो बड़ी ठसक से कह गयी थी फ़ैंक दो। खीसे निपोरता हुआ रिम ले आया
“हैं हैं हैं! मैं तो तभी जानता था कि आप वापस आयेगीं, इसी लिए अलग रख दिया था”।
चैन की सांस लेते हुए हमने धन्यवाद की मुस्कुराहट फ़ैंकी और लौट लिए। हाथ रेडियो की तरफ़ बढ़े, “नहीं, नहीं दोपहर को अभी इतने अच्छे गाने नहीं आते न जो हमें चांद पर पहुंचा दें। वैसे भी ये चाँद की सैर बहुत महंगी है।”……है न?……J
19 comments:
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि चांद की सैर के लिये अपने पास एक टायर होना चाहिये स्टेपिनी समेत।
उस चाय का स्वाद बुरा नहीं होता। अपनापन की ऐसी चाय भला महानगरों में कहां मिलती है?
हम रक्षाबंधन पर भुगत चुके हैं यह दुर्घटना। पूर्वा व उस की फ्लेटमेट मुम्बई से आई थी। उस की फ्लेटमेट को उस के भाई के यहाँ छोड़ा और अपने घर को चले रास्तें में आवाज आने लगी तो पूर्वा बोली डिक्की के सामानों की आ रही है। दो किलोमीटर चलने के बाद घर से एक किलोमीटर पर रहा नहीं गया देखा तो एक टायर बैठा हुआ था। स्टेपनी से उसे बदला। बाद में देखा तो टायर तो बच गया था अंदर ट्यूब को दो टुकड़े हो चुके थे। केवल ट्य़ूब से काम चल गया, वह भी एक मित्र जिन ने कुछ दिन पहले नए टायर डाले थे भेंट में प्राप्त हो गई।
ant bhala to sab bhala..
सुबह सुबह यह सैर की दास्तान चाँद पर जाने से कम नही लगी :) अनुभव वैसे अच्छा रोचक लगा यह :)
बात यह है कि मुंबई में जाने पहचाने लोग भी मौका मिला तो चूना लगाने से नहीं चूकते. अनुभव दिलचस्प लगा.
"ha ha ha very interesting post to read, ab chand ke sair kerna kaun nahee chayega, pr ye baat smej aa gye ke stepne ke jruret kaheen bhee pdh sektee hai chahe vo chand ke siar ke liye hee kyun na ho..."
Regards
अनितादी, आपकी किस्सागोई तो हमेशा रोचक होती है..रूबरू सुन लो तो मज़ा दुगुना :)
bahut acchhi post-- anita di...:)
ह्म्म्म, चलो जी अनूप जी कहे अनुसार इस कहानी से अपन ने शिक्षा ले ली
भई अनीता जी सुनते हैं कि चांद की सतह पर ऊबड़ खाबड़ पत्थर हैं । जब आपने चांद के गाने सुने तो उनमें से एकाध पत्थर के धरती वाले रिश्तेदार को जोश आ गया होगा और उसने टायर से अपनी मुहब्बत का इज़हार कर दिया होगा ।
अब जब दो लोग मुहब्बत करते हैं तो दुनिया को परेशानी होती ही है ना ।
बस आपको भी हुई । :P
वाह; बढ़िया पोस्ट! बच्चा भी बाथटब के साथ फैंक दिया! और बाद में उसे ट्रेस बैक किया!
बहुत मेहनत से लिखा है जी। काश सभी लोग इतनी मेहनत करते अपनीब्लॉग-पोस्ट बनाने में।
अनिताजी कलीम जी का भला हो आपको टायर की रीम लौटा दी और फिर गाना सुना दिया आपने ..अच्छा
लगा ये वाकया ....सुखद अँत सहित !
लिखते रहीये जी :)
- स्नेह,
- लावण्या
हा हा रोचक पोस्ट-सब आपके साथ ही होना है क्या!! खैर, अंत बढ़िया रहा. मैने तो सुना था रेडियो पर २४ घंटे बेहतरीन गाने आते हैं. :)
आपकी किस्सागोही दिलचस्प होती है.
इस मासूमियत पर न मर जाय कौन खुदा ......!
जो रिम और टायर का अन्तर भी नही जानते
व्यंग्य भी ,हकीकत भी ,हास्य भी फ़साना भी रोचक रचना के लिए धन्यबाद तो क्या कहूं ,पढ़ कर बहुत अच्छा लगा /एक निवेदन में कबीर दास की चदरिया पर मेरे आज के लेख पर अपनी राय [लेख अच्छा बुरा नही वल्कि }भिन्न अर्थ वाली ,मेरी बातों की आलोचना करने वाली ,की उम्मीद करता हूँ
वाह, बहुत मजेदार किस्सा सुनाया आपने।
घुघूती बासूती
पढा तो था इसे २ दिन पहले पर जाने क्या हुआ कि टिप्पणी लिखते लिखते सब कुछ गायब हो गया, आज दुबारा आकर पता चला कि आप तो चांद की सैर पहले ही कर आईं चंद्रयान तो आज गया है ।
चन्द्रमा के परिभ्रमण पर जाने का शौक आसान नहीं होता। आनन्द लीजिए।
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