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September 14, 2008

जानने का हक है



जानने का हक है

आज की ताजा खबर ये है कि विश्वस्त सूत्रों से पता चला है कि हमारा दिमाग और मन छुट्टी से लौट रहे हैं। आज 14 सेप्टेंबर है, गणपति जी के जाने का दिन आ गया, हर साल की तरह इस साल भी बरखा की झड़ी लगी है। ऊपर की फ़ोटो हमारे कमरे की बैकसाइड है लेकिन इसमें बरसती बरखा का जो आनंद हम ले रहे हैं वो आप को दिखाई नहीं दे पाएगा। सागर जी ने बताया कि इस बार उन्होंने अपने घर गणपति जी जी आराधना हमारे ब्लोग पर लगी आरती से की। जान कर अच्छा लगा कि उन्हें भी ये आरती पसंद आयी।


नीरज जी का न्यौता

हमें याद आ रहा है 7 सितंबर, इस महिने का पहला इतवार्। सितंबर शुरु होते ही नीरज भाई का न्यौता आया था "अनिता जी आते इतवार को खपोली में कवि सम्मेलन का आयोजन किया है आप जरूर आइयेगा।" न्यौता आने के ठीक एक मिनिट पहले हम उनके बलोग पर खपौली में बहते बरसाती झरनों का आनंद उठा कर आ रहे थे। ऐसी बरसात और ऐसे झरनों को देख किसका मन न मचल उठेगा। मन तो ललचाया लेकिन अकेले इतनी दूर हम कभी गये नहीं । विनोद जी को पूछा " ले चलोगे?" बोले कोई ओप्शन है क्या? हम हंस दिये।


अभी जाने में एक सप्ताह बाकी था, दो दिन बाद कुलवंत जी का फ़ोन आया, खपौली चलने का न्यौता दोहराते हुए कहा कि बम्बई से कुछ पंद्रह लोग जा रहे हैं इस लिए हम बस कर रहे हैं । हमने कहा हम भी फ़िर बस में ही चलेगें। सिर्फ़ प्रकृति के साथ ही नहीं लोगों के साथ भी तो जुड़ना था। विनोद जी को पता चला तो उन्होंने राहत की सांस ली। हमारे बहुत ललचाने पर भी वो किसी कवि सम्मेलन को झेलने के लिए तैयार न थे। ये सोचते हुए कि हर आदमी को हफ़्ते भर कड़ी मेहनत करने के बाद एक दिन अपनी मर्जी से बिताने का हक्क है हमने भी साथ आने पर जोर नहीं दिया।

वो इतवार आ ही गया। इंद्र देव हम पर मेहरबान थे, रास्ते भर बरसात की फ़ुहारों का मजा लेते अंताक्षरी खेलते करीब डेढ़ घंटे में हम खपौली पहुंचे। खेल तो रहे थे अंतक्षारी लेकिन मन ही मन बस में बैठे सहयात्रियों पर नजर डाली तो देखा सिर्फ़ एक लड़की, महिमा ,को छोड़ दें तो सब या तो पचास पच्च्पन को छू रहे थे या उससे भी कहीं आगे निकले हुए थे। गाने वालों में महिमा ही सबसे खामोश थी बाकी सब बेसुरे गा रहे थे।

बैरन यादाश्त
भूषण स्टील पहुंचते ही नीरज जी अपने कुछ साथियों के साथ गेस्ट हाउस के बाहर ही स्वागत करते मिले। दुआ सलाम होते ही हम सब के आराम करने के लिए कई कमरे खोल दिए गये। मैं, महिमा, आशा शर्मा जी और अनामिका शाहनी एक कमरे में थी बाद में रेखा रौशनी जी भी हमारे कमरे में आ गयीं। एक बजे का वक्त, चाय के शुरुआती दौर के साथ आपस में परिचय का दौर चला। कुछ देर बाद अनामिका जी ने हमसे पूछा आप ने आशा जी को नहीं पहचाना? हमने ध्यान से उनकी तरफ़ देखा, दिमाग पर बहुत जोर दिया, कहीं किसी कवि सम्मेलन में, किसी ब्लोग पर देखा है क्या? लेकिन क्या करें हमारे दिमाग और मन की तरह हमारी यादाश्त भी हमारे बस में नहीं रहती ऐन मौके पर दगा दे जाती है। हमसे कुछ शर्मसार होते हुए हल्की सी मुस्कुराहट के साथ ना में सर हिलाया।

अनामिका: अरे ये बहुत सारी फ़िल्मों में और टी वी सिरियलों में आ चुकी हैं अमिताभ बच्चन की मां का रोल भी निभा चुकी हैं। हमने आखें चौड़ी कर अपनी यादाश्त को झकझोरने की कौशिश की लेकिन वो टस से मस नहीं हुई। आशा जी ने हल्की सी मुस्कुराहट से हमें माफ़ किया। हमने उन्हें न पहचानने के अपराध की क्षमा मांगी और उन्हों ने तपाक से माफ़ कर दिया। जो हमने उनसे नहीं कहा वो ये कि जब हम अमिताभ बच्चन की फ़िल्म देखते हैं तो सिर्फ़ अमिताभ बच्चन को देखेगें न उसकी मां को थोड़े ही देखेगें। खैर, इस परिचय कार्यक्र्म के बाद खाने का दौर आया और फ़िर वापस हम अपने अपने कमरों में। कवि सम्मेलन शाम को 4 बजे शुरु होना था। अब गप्पबाजी का दौर चला। अनामिका जी किसी और कमरे में चली गयीं जहां उनके एक दूसरे मित्र ठहरे हुए थे।

आप की आवाज
आशा जी से गपियाते हुए हमने जो एक बात नोट की वो ये कि उनके व्यवहार में,वेश भूषा में, बातचीत में लेशमात्र भी फ़िल्मीपन नहीं था। एक बार भी उन्होंने ये जताने की कौशिश नहीं की कि वो फ़िल्मों से जुड़ी हैं और फ़िल्म आर्टिस्ट्स ऐसोशिएन कार्य समिति की मेम्बर हैं। उलटे वो हमारी ही तारिफ़ करने लगीं कि आप की आवाज सुन कर ऐसा लगता है कि आप अच्छा गाती होगीं, हमने हंस कर कहा जी गाती तो नहीं अल्बत्ता चिल्लाती जरूर हूँ। पलट कर पूछने लगीं फ़िल्मों में काम करोगी और हम ठठा कर हंस दिये लेकिन देखा वो तो एकदम सिरियस चेहरा लिए हमारी तरफ़ देखती रहीं। इतने में रेखा जी आ गयी और रेखा जी जहां हों वहां किसी और को बोलने का मौका मिलना मुश्किल है। बस यूं ही चार बज गये और हम सब हॉल में जा डटे।

दुर्घटना
मरियम गजाला, मिश्रा जी, कुलवंत जी, चेतन शाह, देवी नाग रानी, अनामिका जी, रेखा रौशनी जी, महिमा और भी न जाने कितने ही कवि वहां जमा थे। देवमणी पांडे जी ने मंच संभाला और एक एक कर कविताओं का दौर शुरु हुआ। हम इन शब्दों के सागर में आनंद विभोर होते मजे लूट रहे थे कि अचानक हम पर गाज आ गिरी जब देवमणी पांडे ने अचानक हमारा नाम ऐनाउंस कर दिया। हम हक्के बक्के उनको देख रहे थे, ये बिल्कुल अप्रत्याशित था, हम उन्हें इशारे से मना कर रहे थे कि तभी तपाक से हमें बुके भी पेश कर दिया गया, अब मरता क्या न करता कि तर्ज पर स्टेज पर जाना ही था। हम हाथ में कोई कविता लाए नहीं थे और याद हमें कुछ रहता नहीं है। मन कर रहा था कि धरती फ़ट जाए और हम उसमें समा जाए या जोर से तुफ़ान आ जाए और लोगों का ध्यान बंट जाए। हमने बड़ी असहाय नजर से देवमणि जी की तरफ़ देखा। बड़ी सहानुभूती जताते हुए बोले कि ठीक है आप अपना परिचय ही दे दिजिए, हम पता नहीं क्या बोल कर आ गये। बाद में कुलवंत जी और देवमणी जी ने हमसे माफ़ी मांगी कि इस तरह हमें ऐसी परिस्थति का सामना करना पड़ा। उन्हें इस बात का विश्वास था कि हर कवि अपनी जेब में अपनी एक दो कविताएं तो ले कर घूमता है और जैसे लोग बात बात में अपने विजिटिंग कार्ड निकाल कर बांटते हैं वैसे ही हर कवी हर जगह अपनी चार लाइना तो ठेलता ही रहता है। उनके हिसाब से हमें शुक्रगुजार होना चाहिए था कि हमें मौका दिया गया, अब उन्हें कैसे बताते कि हम तो कवि हैं ही नहीं न्। कविता सुनना और लिखना दो अलग अलग बाते हैं।खैर, सिर्फ़ इस दुर्घटना के सिवा दिन बहुत अच्छा बीता। नीरज जी की खातिरदारी देख कर ऐसा लगता था मानों हम सब बराती हैं जो बिना दुल्हे के आ गये हैं। वापस लौटने के समय ही पता चला कि जिस बस से हम इतने आराम से खपौली आये हैं और वापस जा रहे हैं वो नीरज जी की भेजी हुई है।

वापसी में देवमणी पांडे जी सबको एक दूसरे कवि सम्मेलन में आने का निमंत्रण दे रहे थे जो हमारे घर के पास ही नेरुल में होने वाला था। बात आयी गयी हो गयी। परसों अरविंद राही जी ने फ़ोन दनदनाया और उसी नेरुल वाले कवि सम्मेलन में आने का आग्रह किया, ये हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित सर्व भाषा साहित्य सम्मेलन था। इसमें भी कई कवि नजर आये। देवी नागरानी ने सिंधी में कविता पढ़ी तो महात्रे साहब ने मराठी में, विष्णु शर्मा ने पंजाबी में पढ़ी और किसी ने मैथली में। लेकिन सबसे ज्यादा आंनद आया हमें जफ़र रजा साहब को सुनने का।

उनके कुछ शेर जो मुझे याद रहे सुनिये

नफ़स नफ़स तुझे महसूस कर रहा हूँ मगर,
दिखाई देता है सदियों का फ़ासला मुझको।

सितम थी या कि अदा थी हिजाब था क्या था,
मेरे रहे मगर अपना नहीं कहा मुझको।


खुशनुमा दिन

वैसे कल का दिन बहुत ही खुशनुमा दिन था, सुबह एक वीडियों देखा था "जानने का हक" और ये मेरे जेहन में ऐसा अटका कि अब तक नहीं निकला। इसे देखा तो था राइट टू इन्फ़ोरमेशन के संदर्भ में, लेकिन इस ऐक्ट के बारे में लिखने का हक्क दिनेशराय द्विवेदी जी को है। हम उम्मीद कर रहे हैं कि वो हमें इसके बारे में डिटेल में बतायेगें। अभी तो आप ये वीडियो देखें, मुझे पूरी उम्मीद हैं कि आप को भी अच्छा लगेगा, वैसे ये भी हो सकता है कि आप में से कइयों ने इसे पहले देखा होगा, लेकिन अच्छी चीज एक बार और देखी जा सकती है, है न?

24 comments:

Anonymous said...

बढ़िया है। अब आप अपने साथ हमेशा कवितायें रखिये। न जाने कब सुनाने के लिये मौका मिल जाये। फ़िल्मों के लिये हां कर दीजिये और फ़टाक से बालीबुडिया बन जाइये। नीरज जी के खपोली में आयोजन की फोटो भी तो होनी चाहिये न!

Sanjeet Tripathi said...

आप तो बढ़िया तफरीह कर आईं।

नीरज जी को बधाई देना चाहिए इस आयोजन के लिए।

शुकुल जी सही कह रहे हैं फोटो होनी ही चाहिए थी।

और रहा सवाल जानने का हक़ के बारे मे तो उसका तो जितना ज्यादा से ज्यादा उपयोग करें उतना ही अच्छा है।

Udan Tashtari said...

बिल्कुल जी, कविता पर्स में रखा करिये..विडियो ने सच मन अटका लिया...

कवि सम्मेलन के विस्तृत विवरण का मय चित्र इन्तजार रहेगा!!

काश, हम भी पहुँच पाते खपोली. :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

गणपति की आरती से आरंभ का लाभ, दो कविसम्मेलन और एक फिल्म में काम का ऑफर? लगता है गणेश जी आप पर ही टूट पड़े हैं।
हाँ चित्र की कमी तो सब को खल रही है। लोग आशा जी को आप के साथ देखना चाहते थे।
जानने का हक पर लिखने का सब को अधिकार है। जहाँ तक कानून का प्रश्न है, यह कानून कुछ सुविधाएँ तो देता है, लेकिन परेशानियाँ अधिक। आखिर आप को जानने के लिए उसी व्यवस्था के सामने आवेदन करना होगा। श्रीलाल जी शुक्ल का रागदरबारी का वह किसान याद आता है जो अक्सर तहसील के बाहर मिलता है जिसे बरसों से अपनी जमीन के खातों की नकलें नहीं मिलीं।
कुल मिला कर वीडयो सही है। एक दिन वादे और पाँच साल काम नहीं। पूरी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। अब तो सोचना यह है कि नयी व्यवस्था कैसी हो?

Gyan Dutt Pandey said...

आपने लिखा दुर्घटना और एकबारगी तो मैने सांस रोक ली। फिर पता चला कि यह तो वह था, जिसकी कविलोग सतत आशा लगाये रहते हैं।
अच्छा संस्मरण रहा। आगे से अपने साथ कविताओं का पुलिन्दा और कैमरा जरूर रखें!

मीनाक्षी said...

अहा....तो यह बात है ...अब कारण समझ में आया कि अनिता दी हमारे अदना से ब्लॉग पर नज़र क्यों नहीं डाल रही.... इतनी यादगार पोस्ट पढ़कर तो हम मुँह बाए देखते रह गए कि कहीं आपकी तस्वीर भी दिख जाती..कोई बात नहीं जल्दी ही बॉलीवुड में आपको बड़े पर्दे पर देखेगे :) :)
नीरजजी की मेहमाननवाज़ी के बारे में पढ़कर तो खपोली जाने का विचार पक्का होता जा रहा है .

रंजू भाटिया said...

गणपति जी की जय ...वाह ...घूम भी आए ..और फ़िल्म का ऑफर भी ..क्या बात है अनीता जी ..सही सही .:) .कविता तो हमें भी याद नही रहती है :) खैर बढ़िया लग रही है ..यह यात्रा कथा ..कुछ फोटो भी लगाओ ..जल्दी से इन्तजार रहेगा

सागर नाहर said...

तो अब हम यह उम्मीद करें कि आप बहुत जल्दी किसी फिल्म में दिखने वाली हैं? :)

यात्रा वृतांत बहुत बढ़िया रहा।

Manish Kumar said...

shukriya is yatrra mein humein apna sajhi banane ke liye..

Abhishek Ojha said...

फिल्मों में आने का चांस हो तो बताइयेगा.... फ़िल्म देख लेंगे. वैसे हम एक्टिंग में फिसड्डी... नहीं तो कुछ सोर्स लगवाते आपसे :-)

खोपोली की तस्वीर की मांग में मेरी भी आवाज़ सुनी जाय !

شہروز said...

श्रेष्ठ कार्य किये हैं.
आप ने ब्लॉग ke maarfat जो बीडा उठाया है,निश्चित ही सराहनीय है.
कभी समय मिले तो हमारे भी दिन-रात आकर देख लें:

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/
http://hamzabaan.blogspot.com/
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/

Arvind Mishra said...

मंचीय डेबू की बधाई !

योगेन्द्र मौदगिल said...

Wah Wah
mujhe bhi kavita yaad nahi rahti fir bhi thora bahut kaam chala leta hoon

नीरज गोस्वामी said...

अनीता जी
नेट की धोखा देने की प्रवर्ति के कारण चाह कर भी काव्य संध्या की रिपोर्ट ब्लॉग पर नहीं डाल पाया आज आप के ब्लॉग पर इसे देख बहुत खुश हो गया हूँ...एक आध दिन में नेट का गतिरोध दूर होते ही सबसे पहले इसे ही पोस्ट करूँगा...आप ने कार्यक्रम में शिरकत की और आनद उठाया समझो आयोजन सफल हुआ...
स्नेह बनायें रखें...
नीरज

डॉ .अनुराग said...

वाह जी वाह ....सच में आपने तफरीह की है.....दिलचस्प अंदाज में बयान भी...

कंचन सिंह चौहान said...

thanks for sharing

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Every Q. asked should Lead to a better tomorrow .
Anuta ji,
Badhaai ho !
Very interesting Post about the Kvi Sammelan hosted by Neeraj bhai.
( sorry for posting in English
as I'm away from my PC )

Asha Joglekar said...

तभी आप ब्लागिंग कम कर रहीं हैं । एक्टिंग शुरू करदी क्या ?

Kavi Kulwant said...

atni achchi report likhi aur ek gadbad kar di... hame bhi aap ne 50/55 ki umra walo ke saath jod diya...!! yan phir hm par aapne nazar hi nahi daali.. yan phir..gharaati samajh kar nazar andaaz kar diya.. kyun ki aap sabhi to baraati the.. hai na?
ha..ha..ha..

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Anonymous said...

Test of comment 4 ---------- name /url ----name

Anonymous said...

Test of comment 5 ----------

Anonymous said...

Test of comment 6 -----------
Anonymous

Anonymous said...

Anita Ji, bahut achchha laga sansmaran padkar. Kavisammelan ka report ka intzar hai.